के. विक्रम राव ।

अरब, पठान, मलमो तथा अन्य सुन्नी-बहुल फिरकों के मुल्कों में ईद-उल-अजाह मनाया तो गया, मगर इस त्याग, प्रेम और बलिदान के प्रतीक पावन पर्व पर आगजनी, खूरेंजी, बमधमाका और सहअकीदतमंदों पर हिंसा बेतहाशा हुई। काबुल के राष्ट्रपति भवन पर नमाज अता करते हुए सदरे जम्हूरिया अशरफ घनी तथा पैगंबर के कई अनुयायियों पर तालिबानियों ने राकेट और गोले दागे। ईस्लामी स्टेट आफ ईराक एण्ड सीरिया के आतंकियों ने अपनी ”अमाक” संवाद समिति द्वारा प्रसारित किया था कि इन गद्दारों पर हमला जायज है। अमाक एजेंसी का नामकरण किया पत्रकार बारा काडेक उर्फ रायन मशाल ने। वह अमेरिकी बमबारी में मारा जा चुका है। संवाद समिति का नाम भी महत्वपूर्ण है। दक्षिण तुर्की के अमूक घाटी के मजहबी स्थल से जुड़ा है। वहीं इन इस्लामी गणराज्यों से शिया, इबादी, अहमदिया, आगा खान के शिष्यों आदि के संहार का निर्देश जारी होता है। इसी के खलीफा अबु बकर अल बगदादी यदाकदा जलवा अफरोज हुआ करते थे। इन्हें बाद में अमेरिकी सैनिकों ने मार डाला।


मोहर्रम बना दी गयी मुसलमानों की ईद

Coronavirus Impact: No Muharram Congregations In Kargil This Time

 

ईद के पर्व पर बगदाद के समीप भीड़भाड़ वाले सद्र शहर में 35 ग्राहकों को ईद मनाने के पूर्व ही इन कट्टर सुन्नियों ने कत्ल कर दिया था। साठ घायल हो गये। इसी भांति तायाराम मार्केट चौक में कुछ समय पहले कई अरब मुसलमान मारे गये थे। उधर अफगानिस्तान से सटी हुई चीन की सीमा वाले शिंजियांग (चीनी) प्रदेश के उइगर मुसलमानों की ईद मानों मोहर्रम बना दी गयी थी। वे सब यातना शिविरों में कैद ही रहे। इस्लामी राष्ट्रों में मुसलमानों का संहार, बमबारुद के धमाके, खासकर मस्जिदों पर और मजहबी मरकजों पर जमा सहधर्मियों पर जानलेवा प्रहार, बहुत भयावह लगा।

आजाद ने कहा था

बस इन्हीं कारणों से कांग्रेसी पुरोधा गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा वाला (9 फरवरी 2021) विदाई भाषण याद आता है। आजाद ने सदन में कहा था कि : ”समूची दुनिया में सिर्फ भारत है जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक महफूज हैं, तरक्की कर रहे हैं।” उन्होंने चुनौतीभरे लहजे में हिन्दुस्तानी मुसलमानों से कहा : ” जरा निगाह डालिये इस्लामी मुल्कों पर और बताईये कहां मुसलमान सुरक्षित हैं?”

सुविधाभोगी मुसलमानों का विलाप

Ramnik Singh Mann 🇮🇳😷 on Twitter: "Chacha: Muslims are not safe in India ~Hamid Ansari Bhatija: I am not safe in Uttar Pradesh ~ Mukhtar Ansari Both are used to a Self

मगर आश्चर्य तो तब होता है जब दस साल तक उपराष्ट्रपति रहे मोहम्मद हामिद अंसारी, पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त सैय्यद याकूब कुरैशी, पूर्व यूपी राज्यपाल मो. अजीज कुरैशी आदि सुविधाभोगी मुस्लिम विलाप करते हैं, क्रन्दन करते हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ भेदभाव होता रहा। उन्हें गुलाम नबी के संसदीय संबोधन को ठीक से सुनना चाहिये, फिर पढ़ना चाहिये।

जंगे आजादी के सेनानी खां अल्लाहबख्श सुमरों

Allah Baksh Sumro, a Freedom Fighter who sacrificed his life for communal harmony

यहां एक बार अविभाजित भारत में कराची के वरिष्ठतम मुसलमान नेता खां अल्लाहबख्श सुमरों (23 मार्च 1938 से 18 अप्रैल 1940) के भाषण का उल्लेख हो जाये। उन्होंने जिन्ना के पाकिस्तान का जमकर विरोध किया था। अल्लाह बख्श सिंध प्रांत के दो बार इत्तेहाद पार्टी से मुख्यमंत्री और गृहमंत्री रहे। भारत की जंगे आजादी के नामी सेनानी रहे। जिन्ना के परम आलोचक थे। ”शहीद” कहलाते थे। मुस्लिम लीगियों ने 14 मई 1943 में उनकी हत्या कर दी थी। उनके बेटे रहीम बख्श पाकिस्तान में शीर्ष नेता थे। उनका भतीजा इलाही बख्श सुमरो पाकिस्तान राष्ट्रीय एसेंब्ली के स्पीकर थे। कृपया पढ़ें इन पाकिस्तान-विरोधी सिंधी जननायक का दिल्ली के गांधी मैदान में 28 अप्रैल 1940 को दिया गया भाषण।  उसका अंश निम्नलिखित है। इससे साफ फर्क दिखता है कि अवध- खासकर लखनऊ- के मुसलमान पाकिस्तान के पक्ष में ज्यादा थे। पर रह गये यूपी में ही। मगर यह सिंधी मुस्लिम नेता दुर्भाग्य से जिन्ना के भाड़े के हत्यारों का शिकार हुआ, शहीद हुआ क्योंकि वह भारत के विभाजन का विरोधी था। उन्होंने कहा था:

विवेकहीन प्रयास

The Muslim League: A factional history - Pakistan - DAWN.COM

”पाकिस्तान योजना एक गंभीर समस्या को हल करने के लिये अत्यंत विवेकहीन प्रयास है।” खां अल्लाहबख्श ने आज तीसरे पहर 4 बजे गांधी मैदान में शुरु हुए ”अखिल भारतीय राष्ट्रीय मुस्लिम सम्मेलन” के अध्यक्ष पद से भाषण देते हुए यह कहा था। अपने भाषण के दौरान इस भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने मुस्लिम लीग की भारत बंटवारे की योजना को तथ्यहीन सिद्ध किया और यह तजवीज की कि कांफ्रेंस ऐसे प्रस्ताव तैयार करें, जो कि एक स्थायी हिन्दू-मुस्लिम समझौते के आधार बन सकें। भारत के अधिकांश मुसलमान भारत को आजाद देखना चाहते हैं। वे इसके लिये एक विधानसभा में शामिल होकर शासन विधान बनाने के लिये तैयार हैं। खां अल्लाहबख्श ने घोषणा की कि केवल यही मुस्लिम कांफ्रेंस आज ऐसी स्थिति में है कि जो एक योजना तैयार करके राजनीतिक संकट का अंत कर सकती है। उन्होंने कहा, ”यदि आज सब लोग किसी साम्प्रदायिक समझौते के आधार के बारे में सहमत हो जायेंगे, तो कांग्रेस, जो कि देश की सबसे शक्तिशाली संस्था है, को आपके प्रस्तावों पर विचार करना पड़ेगा। आपके निर्णय की इस देश में तथा विदेशों में भी उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा की जा रही है।” (28 अप्रैल, 1940 दैनिक हिन्दुस्तान से)।

इस्लाम में सुधार लायें मुस्लिम

Why Muslims and Christians are safer in India than most places on earth

तमाम इस्लामी राष्ट्रों में मुसलमानों द्वारा असहमत इस्लामिस्टों की हत्या पवित्र ईद पर देख कर अब तो हिन्दुस्तान के प्रबुद्ध मुसलमानों को सेक्युलर बन जाना चाहिये। उनके प्रेरक स्रोत खान अल्लाहबख्श और डा. एपीजी अब्दुल कलाम होना चाहिये। न कि असदुल्ला ओवेसी (तेलंगाना), बदरुद्दीन अजमल (असम) और उनके हमनुमा इस्लामी सांप्रदायिक सरबराह। अर्थात् भारत में ईद पर खुशी मने, गम नहीं। तभी लेखिका तसलीमा नसरीन का अंदेशा दूर हो पायेगा कि: ”दुनिया ने आईएसआईएस, अल कायदा वगैरह की क्रूरता देखी है। तालिबान की देख ही रही है। यही कट्टरपन इस्लाम का मूल स्वरुप है, जो 1400 वर्ष पुराना है। इस हिंसा और महिला-विरोधी रवैये के खात्मे के लिये जरुरी है कि मुस्लिम आगे बढ़कर इस्लाम में सुधार लायें।”

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)