– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत की ऋषि और ज्ञान परम्परा में गाय का सदा से महत्व बताया जाता रहा है, ऋग्वेदकालीन समाज से लेकर सनातन हिन्दू धर्म में आज का आधुनिक समाज ही क्यों न हो, गाय को एक माता के रूप में पूज रहा है। गाय के बारे में अनेक मंत्र, श्लोक भी मिल जाते हैं जोकि उसके प्रत्येक तत्व (दूध, घी, दही, मक्खन, मूत्र, गोबर) तक को पवित्र मानकर उसके विविध प्रकार से मनुष्य जीवन में व्यवहार करने की आज्ञा देते हैं। किंतु इस विचार के विपरीत भी कुछ जन हैं जिन्हें गाय सदैव से अन्य पशुओं के समान ही नजर आती रही है और उसकी कोई विशेषता उन्हें दिखाई नहीं देती बल्कि जो उसके लिए श्रद्धा भाव रखते हैं, ऐसे लोगों को ये जन मूर्ख, जड़वत और घोर अंधकारवादी नजर आते हैं। अभी हमने देखा भी कि एक संसद सदस्य ने कैसे गाय के प्रति श्रद्धा रखनेवालों का खुले में मजाक बनाया !
हिन्दू संस्कृति पर आघात करने वालों का मुंह बंद
चलिए, गाय और उसके प्रति सम्मान भाव रखनेवालों से जिन्हें घृणा करनी है वे घृणा करते रहें, किंतु उनके लिए भी जो समझने वाला सच है कि वह यह है कि जो गाय को एक आम पशु से अधिक कुछ नहीं समझते हैं, उन्हें भी यह जान लेना चाहिए कि गाय विशेष जानवर है, तभी भारतीय प्रज्ञा उसके प्रति सदियों से सम्मान का भाव रखती आई है। अब इसके एक नहीं अनेक वैज्ञानिक प्रमाण भी मिल रहे हैं । वस्तुत: आज के वैज्ञानिक युग में विज्ञान भी इस बात को स्वीकार्य करने के लिए बाध्य हुआ है कि गाय आखिर इतनी विशेष क्यों है! क्यों भारतीय ज्ञान परम्परा में इसके प्रति अब तक इतनी श्रद्धा रखी जाती रही है! जब ये खबर आई कि ”गाय के गोबर से अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा रॉकेट” तब जरूर कई लोग अचंभित हुए होंगे। किंतु जिस तरह से रॉकेट इंजन में एलबीएम यानी कि तरल बायोमीथेन के सफल प्रयोग का प्रयोग सामने आया है उसने उन लोगों के मुंह जरूर बंद किए हैं जोकि गाय को लेकर हिन्दू संस्कृति पर आघात एवं व्यंग्य करने का प्रयास करते रहे हैं।
📌TECH INNOVATION: Cow Dung as Fuel
Cow dung powered space rocket engine has v=been successfully tested in Japan#TechNews #Innovation #technology #SpaceExploration #Japan pic.twitter.com/Vb9r5yT1G4
— TheCodeWork (@thecodework) December 14, 2023
साइंस के विकास में एक नई उपलब्धी
जापान में इंजीनियरों ने गाय के गोबर से प्राप्त तरल मीथेन गैस से संचालित एक नए किस्म के रॉकेट इंजन का परीक्षण किया है, जो अधिक टिकाऊ प्रणोदक (propellent) के विकास की ओर ले जा सकता है। जापान के होक्काइडो स्पेसपोर्ट में 10 सेकंड तक “स्थैतिक अग्नि परीक्षण” किया गया है। जोकि पूरी तरह से छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान यानी जीरो, तरल बायोमीथेन (Liquid biomethane-LBM) द्वारा संचालित किया गया । जिस कंपनी ने इस कार्य को किया वह स्टार्टअप इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजीज इंक (IST) है, जिसने कि अपने इस शोध के बारे में बताया भी, उसने रॉकेट इंजन, जिसे ज़ीरो कहा जाता है, का बायोमीथेन जोकि गोबर से प्राप्त है से रॉकेट इंजन का सफल परीक्षण किया है। जिसमें कि इस बायोमीथेन से इंजन चालू हो रहा है और उससे शक्तिशाली क्षैतिज नीली लौ निकल रही है।
Japan has achieved a major breakthrough by powering a rocket engine entirely by fuel derived from cow dung
Will this underline the importance of cow dung and cow urine for those ridiculing it ?#Senthilkumar #DMK #SanatanaDharma #AntiHinduPolitics #Goumutra
Support Hindutva… pic.twitter.com/bm2LMwaR7f— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) December 11, 2023
आज इसे रॉकेट इंजन साइंस के विकास में एक नवीन उपलब्धी के रूप में देखा जा रहा है । निश्चित ही एलबीएम ईंधन बायोगैस के मुख्य घटक मीथेन को अलग और परिष्कृत करके और बाद में इसे लगभग -160 डिग्री सेल्सियस पर द्रवीकृत करके तैयार किया गया अपने आप में एक नवीन और सफल प्रयोग है ।
गाय कई मायनों में है महत्वपूर्ण
वास्तव में गाय की महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि जब दुनिया को रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने एवं वायरस से लड़ने के लिए आंतरिक शक्ति की आवश्यकता पड़ी तो उसके लिए वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाने के लिए सबसे पहले गाय का ही चुनाव किया और दुनिया पहली वैक्सीन गाय से बनाई गई। गुजरात के वलसाड का एक हॉस्पिटल कैंसर रोगियों का ईलाज गायों से प्राप्त पंचगव्य से करता है। यह हॉस्पिटल 3500 से अधिक कैंसर रोगियों का सफल ईलाज कर चुका है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य के कैंसरनाशक प्रभावों पर यूएस से पेटेंट भारत ने प्राप्त किए हैं। छह पेटेंट अभी तक गौमूत्र के अनेक प्रभावों पर प्राप्त किए जा चुके हैं।
गाय के गोबर में विटामिन बी-12
आज आधुनिक वैज्ञानिक यह स्वीकारते हैं कि भारतीय देशी गाय के दूध में एक विशेष प्रोटीन बीटा केसिन पाया जाता है, जो अनेक बीमारियों से लड़ने में सहायक है। यह प्रोटीन बच्चों के मानसिक विकास में भी बहुत ज्यादा उपयोगी है। यह ए-2 बीटा केसीन प्रोटीन हमारे शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाने के साथ ही दिल की बीमारी के खतरे को कम करता है और पाचन तंत्र को भी मजबूत करता है । इसी तरह गाय घी शरीर को स्वस्थ बनाता है, उच्च गुणवत्तायुक्त ए2 घी का नियमित सेवन कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक है और जोड़ों के दर्द को कम करता है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते हैं। रूस में गाय के घी से हवन पर वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं। जिसमें उन्होंने पाया कि एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है। वैज्ञानिक यह प्रमाणित कर चुके हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है।
Japan develops a rocket engine which can run on a fuel made by Cow dung
Will those who mock Cow dung and Cow urine accept their significance now ?
Watch video :https://t.co/sbEwmZBQT0#Gomutra #DMKMP #SenthilKumar
— Sanatan Prabhat (Kannada) (@Sanatan_Prabhat) December 11, 2023
गोबर और गौमूत्र का बड़ा महत्व
ऐसे ही बायोगैस कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। एक प्लांट से करीब सात करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े तीन करोड़ पेड़ों को जीवनदान मिलता है। साथ ही करीब तीन करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा रहे हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता देखी गई है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद हैं। कह सकते हैं कि गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुआ है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सहायक
अंत में यही कि जापान का यह राकेट ईंधन शोध ऐसे समय में आया है जब दुनिया में हुईं कई अलग-अलग स्टडीज एवं वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पारंपरिक रूप से उपयोग किए जाने वाले रॉकेट ईंधन से विश्व पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। रॉकेट इंजन में पारंपरिक ईंधन के जलने से कालिख और अन्य प्रदूषकों के अलावा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। ऐसे में गाय के गोबर से निकलनेवाली गैस का राकेट इंधन में उपयोग आधुनिक समय में गाय की महत्ता को कई गुना प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त है। कहना होगा कि यह नया शोध ना सिर्फ रॉकेट इंजन के ईंधन का एक नया विकल्प मिलेगा बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी यह मील का पत्थर भी साबित होगा।(एएमएपी)