प्रदीप सिंह।
सनातनियों को उनकी ताकत याद दिलानी पड़ती है। हनुमान जी की तरह जब तक उन्हें अहसास न कराया जाए, अनुभूति न कराई जाए कि उनकी ताकत कितनी है, वे कितने ताकतवर हैं, क्या-क्या नहीं कर सकते हैं- तब तक वे जागते नहीं हैं। सनातनी अब बड़ी लंबी नींद से जागे हैं। खबर है कि बॉलीवुड के सुपर-डुपर स्टार आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा फ्लॉप हो गई है यानी बॉक्स ऑफिस पर हिट नहीं हुई है। कोई फिल्म पिट जाए- कोई हिंदी फिल्म पिट जाए- यह कोई अच्छी खबर नहीं हो सकती। मगर बात यह नहीं है कि हिंदी या किसी और भाषा की फिल्म पिट गई। यह फिल्म नहीं पिटी है बल्कि यह उन कलाकारों के दर्प का दमन, उनके अहंकार का टूटना है- जो अपने को भाग्यविधाता- ईश्वर तुल्य समझते हैं। इसलिए यह खुशी की बात है।
जाग गए सनातनी
लाल सिंह चड्ढा का बॉक्स ऑफिस पर न चलना- और सोशल मीडिया पर बायकॉट करने की अपील होने के बाद न चलना इस बात का संकेत है कि सनातन धर्म को मानने वाले जाग चुके हैं। यह जो कुछ हुआ है वह इस बात की याद दिलाता है कि संयम की क्या कीमत होती है। हमारे एक फैसले से कितना बड़ा सामाजिक बदलाव आ सकता है। यह बदलाव किसी हिंसा के जरिये नहीं आया, इसके लिए हमें सड़क पर उतरने की जरूरत नहीं पड़ी, पत्थरबाजी और पेट्रोल बम फेंकने की जरूरत नहीं पड़ी, हथियार जुटाने और सरकारी संपत्ति को जलाने की जरूरत नहीं पड़ी। हमको सिर्फ एक फैसला करना पड़ा कि हमारे लिए जो सही नहीं है हम उसके साथ नहीं हैं, बस… इससे ज्यादा कुछ नहीं। किसी को गाली देने की जरूरत नहीं, किसी की निंदा या आलोचना करने की जरूरत नहीं, किसी को अपशब्द बोलने और किसी से मदद मांगने की भी जरूरत नहीं। चाहे वह कोई संस्था हो, राजनीतिक दल हो, सरकार हो, कोई भी हो किसी से भी मदद मांगने की जरूरत नहीं। जो फिल्म कहती है कि ‘पूजा करने से दंगा होता है’ वह फिल्म यह क्यों नहीं बताती है कि मस्जिद से नमाज पढ़कर निकलने के बाद हाथ में पत्थर लेकर, पेट्रोल बम और हथियार लेकर पुलिस वालों पर हमला करने, सरकारी संपत्ति जलाने से क्या होता है? आखिर यह भी तो बताना चाहिए? कोई तो बताए! इस फिल्म में न बताइए दूसरी में बताइए, तीसरी, चौथी या पांचवी में बताइए, किसी एक फिल्म में तो बताइए। हर बार यही होगा कि पूजा करने से दंगा फैलता है! यह कब तक कोई बर्दाश्त करेगा, कब तक कोई सुनेगा। सनातन धर्म और संस्कृति का इतिहास हजारों सालों का है। उसमें कोई एक उदाहरण नहीं है कि पूजा करने से दंगा हुआ। कोई एक उदाहरण नहीं है जिसमें पूजा से उठकर लोग हिंसा पर उतर आए। मस्जिद से नमाज पढ़कर निकलने वालों ने दंगा किया, इसके हजारों उदाहरण मिल जाएंगे।
एक ही धर्म पर निशाना क्यों?
यहां तुलना हिंदू और मुसलमान की नहीं हो रही है। आज बात हो रही है बॉलीवुड की। बॉलीवुड ने जिस संस्कृति को पिछले 75 सालों से या यूं कहें कि उससे पहले से पाला-पोसा, बढ़ाया- लेकिन यहां आजादी और उसके बाद की ही बात करते हैं- उसमें हमेशा एक धर्म के लोग ही कठघरे में खड़े रहे। उनसे ही सवाल पूछे जाते रहे। उनको ही गलत ठहराया जाता रहा। उनका जो कुछ भी है सब गलत बताया जाता रहा कि कितने पुरातनपंथी हैं, कितने दकियानूसी हैं। यह कैसे देश को पीछे ले जा रहा है, यह कैसे देश की प्रगति में बाधक है- यह सब बताया जाता रहा और लगातार बताया जाता रहा। तब हम और आप क्या कर रहे थे? सर्दी, गर्मी, धूप, बारिश में बाहर लाइन में खड़े होकर अपने पसीने की गाढ़ी कमाई खर्च कर टिकट खरीदकर ये देखने जा रहे थे कि हमको कैसे गाली दी जाती है। हमको कैसे घटिया बताया जाता है। हमारे धर्म को कैसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। किस तरह से हिंदू धर्म को दुनिया का सबसे खराब धर्म बताने की कोशिश होती है। यह सब हम अपना पैसा खर्च करके देखते थे और इन लोगों को अमीर बनाते थे। इन लोगों को करोड़पति-अरबपति बनाते थे ताकि वे फिल्में बना सकें और फिर इसका प्रचार कर सकें। इसलिए साल दर साल, दशक दर दशक यह सिलसिला चलता रहा, कभी रोक नहीं लगी। कभी रुक कर, ठहर कर इन लोगों ने यह भी सोचने की जरूरत नहीं समझी कि यह एकतरफा विमर्श, यह एकतरफा नैरेटिव कब तक चलेगा। कब तक लोग इसको बर्दाश्त करेंगे और सुनते रहेंगे।
वास्तविकता का अहसास
इनको मालूम था कि इस संस्कृति के जो लोग हैं वे बहुत सहिष्णु होते हैं। वे अपने ऊपर हुए हमले का भी जवाब नहीं देते, पलट कर हिंसा नहीं करते हैं- ये इनका इतिहास है। इसलिए इन्होंने अपने धर्म और संस्कृति की विस्तार की नहीं सोची। दुनिया में किसी देश पर कब्जा करने की नहीं सोची। किसी दूसरे मजहब के मानने वालों को अपने धर्म में शामिल करने, उनका धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश नहीं की। ये दस- बीस- पचास साल की बात नहीं है, हजारों साल की बात कर रहा हूं। कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिलेगा जिसमें सनातन धर्म के मानने वालों ने दूसरे धर्म के मानने वालों का जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया- या लालच देकर धर्म परिवर्तन करा दिया। आखिर कुछ तो खूबी है इस धर्म और संस्कृति में जो आज तक हमें सहिष्णुता के मार्ग पर चलाए हुए है। हमको दूसरे रास्ते अपनाने की इजाजत नहीं देता है। हमारी ताकत को इन लोगों ने कमजोरी समझ लिया था। उन्हें लगा कि हम गाली देते रहेंगे, मारते रहेंगे, अपमान करते रहेंगे और ये लोग बर्दाश्त करते रहेंगे। तो अब क्या बदल गया है? कुछ नहीं बदला है- सिर्फ दो-तीन चीजें हुई हैं। पहला, सनातनी लंबी गहरी नींद से जाग गए हैं और वास्तविक दुनिया देखने लगे हैं कि दरअसल हो क्या रहा है। अभी तक सपने में थे, नींद में थे, कुछ पता ही नहीं चलता था कि क्या हो रहा है। असका अहसास ही नहीं होता था कि क्या हो रहा है। जड़ हो गए थे। अब जागे हैं। चेतनावस्था में आते ही हमें दिखाई देने लगा कि आस-पास हो क्या रहा है। जो हो रहा है वह सब कुछ हमारे खिलाफ क्यों हो रहा है। ये जो हमारे खिलाफ हो रहा है उसको देखने के लिए हम मजबूर क्यों हैं। उसके लिए हम अपनी कमाई का पैसा खर्च करने को क्यों तैयार हैं। हमारे खिलाफ फिल्म बनाते हो और हम से ही पैसा खर्च करवाते हो। हमारा ही पैसा लेकर अमीर बनते हो और फिर हमें ही गाली देते हो।
ले लिया ठहरा हुआ फैसला
दूसरा, ये हुआ है कि एक फैसला किया है कि जो हमारे खिलाफ हैं, जो हमारे साथ नहीं हैं हम उनका साथ नहीं देंगे। बस इतना सा फैसला है। इसमें कहीं कोई हिंसा, विरोध, निंदा, आलोचना कुछ नहीं है। सिर्फ एक छोटा सा फैसला है जो रुका हुआ था… ठहरा हुआ था। एक फिल्म भी आई थी “एक रुका हुआ फैसला” जो शायद आपने देखी हो। सनातन धर्म को मानने वाले जो फैसला नहीं कर पा रहे थे, जो फैसला रुका हुआ था उसे उन्होंने ले लिया कि जो हमारे विरोध में हैं हम उसके साथ खड़े नहीं हैं। जो हमारे साथ हैं, समर्थन में हैं, हम उसके साथ खड़े हैं। हम उसको अकेला नहीं छोड़ सकते। इतने दशकों से हम उसको अकेला छोड़ रहे थे। जो हमारा समर्थक था- जो हमारे साथ था- जो हमारे हित की बात करता था- जो हमारे बचाव की बात करता था- उसे हम छोड़ देते थे उसी मुद्रा में। कोई कुछ करे हमें क्या, कोई कुछ बन जाए हमें क्या, कोई हमारी आलोचना करके, हमें गाली देकर और हमारे पैसे से ही सुपरस्टार बन जाए तो हमें क्या फर्क पड़ता है- यही पूछना बंद कर दिया। हमें फर्क पड़ता है। जब यह फर्क पड़ना शुरू हुआ तो आमिर खान को कैमरे पर आकर रोना पड़ता है। उन आमिर खान को जो बड़े गर्व से, बड़े गुस्से में बोलते हैं कि इस देश में डर लगता है, उनको अपने बच्चों के लिए डर लगता है। केवल आमिर खान को ही नहीं, नसीरुद्दीन शाह जैसों को भी डर लगता है।
एक फैसले से बदली स्थिति
आप कहेंगे कि एक फिल्म में इतने सारे कलाकार होते हैं, एक आदमी से नाराजगी की सजा सबको क्यों दे रहे हैं? ये सजा नहीं है, हम किसी को सजा नहीं दे रहे हैं। हम सिर्फ इतना बता रहे हैं कि हमसे जो अब तक आप कहते थे कि हमारी पसली पर चलाने के लिए चाकू उपलब्ध कराओ, वह उपलब्ध कराना हमने बंद कर दिया है। हम आपको अपनी पसली पर चलाने के लिए चाकू नहीं देंगे। यह पूरे बॉलीवुड के लिए है। मैं केवल आमिर खान की बात नहीं कर रहा हूं। बॉलीवुड में कोई दूध का धुला हुआ नहीं है। 98 फीसदी लोग ऐसे हैं जो सनातन धर्म के विरोधी हैं। जिनको इस बात की परवाह ही नहीं थी कि हिंदू भी कुछ बोल सकता है, कुछ कर सकता है। उनको लगता था कि जितना गाली दो उतनी ताली मिलेगी। 75 साल से यह हो रहा था। हिंदुओं को गाली दी जाती थी और उस पर ताली मिलती थी। हम-आप ही ताली बजाते थे। कोई बाहर से आकर ताली नहीं बजाता था। हमको यह समझ में ही नहीं आता था कि हमारा भला क्या है- बुरा क्या है। समाज में अगर यह अहसास, यह अनुभूति ही चली जाए, यह समझ चली जाए कि हमारे हित में क्या है- जब तक वह अपने ऊपर होने वाले अत्याचार के खिलाफ बोलने को तैयार न हो कि बस अब बर्दाश्त नहीं करेंगे, इससे आगे नहीं- तब तक स्थितियां बदलती नहीं है। आप देखिए कि आपके एक फैसले से स्थिति कैसे बदल गई। आपने फैसला किया कि हम अपने घर में रहेंगे। जब घर पर खतरा या हमला होता है तो क्या होता है? पुराने जमाने में राजा-महाराजा के राज्य पर हमला होता था तो सबसे पहले किले के दरवाजे बंद कर दिए जाते थे। हमने भी अपने घर के दरवाजे बंद कर दिए कि हम बाहर नहीं निकलेंगे। हम फिल्म नहीं देखेंगे। यह हमारी मर्जी है, हमारा पैसा है, हमारा समय है, हम इसको कहीं और लगाएंगे।
हमारा पैसा, हमें ही गाली
हम यही तो कह रहे हैं कि हम ये फिल्म नहीं देखेंगे तो आप रोने लगे। जब तक हम गाली सुन रहे थे और ताली बजा रहे थे तब तक आप हमारे ऊपर हंस रहे थे। हमने सिर्फ इतना सा फैसला किया कि अब ताली नहीं बजाएंगे, अब गाली नहीं सुनेंगे तो आपकी आंखों में आंसू आ गए। आपको याद आ गया कि आप भारत से बड़ा प्रेम करते हैं। अगर ऐसा है भी तो आपका यह प्रेम आपकी फिल्मों में भी दिखना चाहिए, आपके काम में भी दिखना चाहिए। आपकी फिल्मों की जो स्क्रिप्ट लिखी जाती है उसमें भी दिखना चाहिए। आपके डायलॉग में भी दिखना चाहिए। ये तो अभी तक नहीं दिखता है। इससे समझ लीजिए कि मानसिकता क्या है, सोच क्या है, सनातन धर्म के बारे में बॉलीवुड की सोच क्या है। सनातन धर्म का अनुयायी यह सवाल पूरे बॉलीवुड से पूछरहा है कि कब तक गाली दोगे और कब तक हम चुप रहेंगे। चुप तो हम अभी भी हैं लेकिन यह चुप्पी दूसरी तरह की है। यह चुप्पी स्वीकारोक्ति की नहीं है कि हम पर कोई अत्याचार करो। यह चुप्पी इस बात की है कि बस अब और बर्दाश्त नहीं है। इतना सा फैसला करने से देखिए कि क्या बदलाव आया है। इतना सा बदलाव आया है कि हमने यह पहचान कर ली है कि कौन हमारा दोस्त है और कौन हमारा दोस्त नहीं है। इसको हमने पहचान लिया है। जो दोस्त नहीं है उसके साथ हम नहीं हैं, जो दोस्त है उसके साथ हम जुड़े हुए हैं। इसलिए विवेक अग्निहोत्री की फिल्म सुपरहिट होती है और सुपरस्टार आमिर खान की फिल्म फ्लॉप होती है। यह एक छोटे से फैसले के कारण हुआ।
अपनी ताकत पहचानिए
इसलिए आप अपने फैसले की ताकत समझिए, ‘नहीं’ कहने की ताकत समझिए, सही को सही, गलत को गलत कहने की ताकत को समझिए। सिर्फ इतना ही करना है आपको- और कुछ नहीं करना है। जहां सही हो रहा है उसके साथ खड़े होइए। हमने, आपने, सब लोगों ने महाभारत या तो पढ़ा होगा, सुना होगा, दादा-दादी से किस्से सुने होंगे, जिन्होंने नहीं पढ़ा या सुना उन्होंने टीवी पर महाभारत सीरियल देखा होगा। भगवान कृष्ण पांडवों के साथ क्यों थे। सीधी सी बात उन्होंने कही थी कि जहां धर्म है वहां मैं हूं। इससे पहले भी मैंने राजनीति के संदर्भ में कहा था, इस बार समाज के संदर्भ में कह रहा हूं कि “जनता जनार्दन है, उसमें ईश्वर का रूप है। उसे वहीं होना चाहिए जहां धर्म है।” धर्म का मतलब जहां नीति है, जहां सत्य है, जहां अहिंसा है, जहां सच को सच कहने की ताकत रखी जाती है, जहां धोखा और फरेब नहीं है।
मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आमिर खान की फिल्म फ्लॉप हो गई, मुझे इस बात की खुशी है कि हमारे समाज के लोगों को यह समझ में आ गया है कि गलत क्या है, सही क्या है और चुप्पी भी बहुत बड़ा हथियार हो सकती है। उसके लिए हाथ में कोई दूसरा हथियार उठाने की जरूरत नहीं है। एक नकार, एक चुप्पी, एक फैसला- पूरे देश और समाज को बदलने की ताकत रखती है। इस ताकत को भूलिए मत… पहचानिए और इस्तेमाल कीजिए।