प्रदीप सिंह।
पिछले छह महीने से दिल्ली शराब घोटाले के आरोप में जेल में बंद आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। उम्मीद थी कि उनको जमानत जल्दी नहीं मिलेगी लेकिन मंगलवार को इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) ने उनकी जमानत का विरोध नहीं किया।
दो सदस्यों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने ईडी से पूछा कि आपने इनको 6 महीने जेल में रखा तो इनके पास से कोई मनी ट्रेल बरामद हुई नहीं- कोई पैसा बरामद हुआ नहीं- और यह फ्लाइट रिस्क भी नहीं है। तो अब आप बताइए कि क्या इनको जुडिशियसली में रखना जरूरी है? आप अपने अफसरों से निर्देश लेकर बताइए। नहीं तो हम जजमेंट देंगे और केस की मेरिट पर जजमेंट देंगे।
इस पर ईडी के अफसरों ने अपने ऊपर के अफसरों से बात की और कहा कि हम जमानत का विरोध नहीं करते लेकिन अदालत फैसले में यह बात लिखे कि इसको दूसरे मामलों में नजीर नहीं माना जाएगा। यानी मनीष सिसौदिया या सत्येंद्र जैन या अरविंद केजरीवाल को जमानत देने का यह आधार नहीं बनेगा। अदालत ने यह बात मान ली और फैसले में यह बात लिख दी।
सवाल यह है कि संजय सिंह का छूटना आम आदमी पार्टी के लिए अभिशाप है या वरदान- राहत है या आफत। …यह इस पर निर्भर करता है कि आप पूरे घटनाक्रम को किस तरह से देखते हैं। अंग्रेजी जासूसी उपन्यासों की दुनिया की प्रसिद्ध लेखिका हैं अगाथा क्रिस्टी। अगर उनके उपन्यास आपने पढ़े हों तो हर समय इतना रहस्यमय होता है, घटनाक्रम इस तरह से चलता है कि हर मोड़ पर लगता है कि जैसे अब गुत्थी सुलझ गई। जो जिम्मेदार है इस अपराध के लिए वह सामने आ गया है और अब पकड़ लिया जाएगा। फिर पता चलता है कि मामला घूम गया और किसी और तरफ चला गया है। बाद में पता चलता है कि वह तो निर्दोष है। आम आदमी पार्टी के साथ जो कुछ हो रहा है, आम आदमी पार्टी में जो कुछ हो रहा है- उसमें भी कुछ ऐसा ही नाटकीय मोड़ बार-बार आ रहा है।
कायदे से तो संजय सिंह की जमानत का मुद्दा आम आदमी पार्टी के लिए राहत की खबर होनी चाहिए। उनके सभी बड़े नेता जेल में बंद हैं। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठता क्रम में सबसे ऊपर हैं अरविंद केजरीवाल। उसके बाद मनीष सिसौदिया, और तीसरे नंबर पर आते हैं संजय सिंह। ये तीनों ही जेल में बंद थे। फिर चुनाव चल रहा है तो जाहिर है कि चुनाव प्रचार और दूसरे मामलों में फैसलों के लिए, पार्टी चलाने के लिए बड़ी मुश्किल थी।
संजय सिंह का बाहर आना मेरी नजर में सबसे ज्यादा मुसीबत लेकर आया है सुनीता केजरीवाल के लिए। अरविंद केजरीवाल जो गोटियां बिछा रहे थे उसमें व्यवधान आ गया है। कैसे… यह बताता हूं।
पहले जान लीजिए कि संजय सिंह को मिली जमानत दूसरे मामलों में नजीर नहीं बनेगी। इसलिए आम आदमी पार्टी इस बात से खुश नहीं हो सकती कि उनको जमानत मिल गई है तो इसी आधार पर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और सत्येंद्र जैन को भी जमानत मिल जाएगी। उन्हें किसी दूसरे आधार पर जमानत मिले, ना मिले, वह अदालत का फैसला होगा।
संजय सिंह को जमानत मिलने से विपक्ष का यह बड़ा हथियार बेकार चला गया कि सरकार वेंडेटा पॉलिटिक्स कर रही है। जानबूझकर हमारे नेताओं को जेल से बाहर नहीं आने दे रही है और चुनाव के समय उनको जेल में भरा जा रहा है। जबकि संजय सिंह की गिरफ्तारी 6 महीने पहले हुई थी। मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी 14 महीने पहले हुई थी। सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी उससे भी पहले हुई थी। तब चुनाव का दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं था। इसलिए पहली बात तो चुनाव से इसको जोड़कर देखना गलत है।
संजय सिंह को जमानत मिलने से अब आम आदमी पार्टी को कम से कम लोकसभा चुनाव के लिए एक कैंपेनर मिल गया है। मुझे नहीं लगता कि अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक बाहर आप पाएंगे। दिल्ली में 25 मई को मतदान है। तब तक उनको जमानत मिल जाएगी या वह जमानत पर बाहर आ पाएंगे इसकी कोई उम्मीद नहीं लगती। दिल्ली सरकार का क्या होगा उस पर फिर कभी बात करेंगे। अभी बात कर रहे हैं केवल संजय सिंह पर। संजय सिंह के आने का क्या असर होगा? अभी जो स्थिति थी उसमें आम आदमी पार्टी एक तरह से लीडरलेस हो गई थी और आतिशी और सौरभ भारद्वाज बड़े नेता के रूप में उभर कर आ रहे थे। अब उन दोनों के लिए बड़ा झटका है। पार्टी में पद और कद दोनों में संजय सिंह उनसे बड़े नेता हैं। पार्टी की स्थापना से ही अरविंद केजरीवाल के साथ जिस तरह से जुड़े रहे हैं, जिस तरह की नजदीकी रही है, उन सबको देखते हुए अब अरविंद केजरीवाल के लिए मुश्किल यह है कि वह अभी तक जो गोटियां बिछा रहे थे उसमें किसी का दखल नहीं था। सौरभ भारद्वाज या आतिशी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि अरविंद केजरीवाल जो कहें उससे एक इंच भी टस से मस हो जाएं। सौरभ भारद्वाज और आतिशी से अरविंद केजरीवाल को पूछने या सलाह मशवरा करने की भी जरूरत नहीं थी। जेल में जिन लोगों से मिलने की उन्होंने सूची दी है उनमें तीन नाम उनके घर के हैं- पत्नी, बेटी और बेटा। उसके अलावा राज्यसभा सदस्य संदीप पाठक का नाम दिया है। इसके अलावा पार्टी के किसी नेता का नाम नहीं है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि अरविंद केजरीवाल की नजर में आतिशी और सौरव भारद्वाज की क्या हैसियत है।
आतिशी ने मंगलवार को एक नया खेल खेला। अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को अदालत में आतिशी और सौरव भारद्वाज के नाम लेकर कहा कि विजय नायर मुझे नहीं इन दोनों को रिपोर्ट करता था केजरीवाल ने उनका नाम लेकर एक तरह से उनको फंसा दिया। आतिशी ने आम आदमी पार्टी के दो और नेताओं का नाम ले लिया। उन्होंने कहा कि अब मेरी, सौरव भारद्वाज, राघव चड्ढा और दुर्गेश पाठक की बारी है। अभी तक दुर्गेश पाठक और राघव चड्ढा का नाम उस तरह से उभर कर नहीं आया था। हालांकि ईडी की एफआईआर में दुर्गेश पाठक का नाम है लेकिन वह चर्चा में नहीं थे। अतिशी इन दोनों का नाम लेकर क्या अरविंद केजरीवाल को कोई संदेश भेजने की कोशिश कर रही हैं… यह हो सकता है। या, वह संदेश भेजने की कोशिश कर रही है सुनीता केजरीवाल को… यह भी हो सकता है।
इस समय आम आदमी पार्टी में जो कुछ चल रहा है वह महल के रहस्य की तरह है। महलों में जिस तरह से रहस्यमय घटनाएं होती थीं, उस तरह से हो रहा है आम आदमी पार्टी में। लेकिन अब फिर लौटकर आते हैं संजय सिंह के मुद्दे पर।
संजय सिंह के बाहर आने पर सुनीता केजरीवाल- जो सबसे बड़ी नेता बनकर उभर रही थीं- उनके लिए मुश्किल हो जाएगी। संजय सिंह वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर पर हैं। अब पार्टी में जो भी फैसला होगा वह संजय सिंह की मर्जी या उनकी रजामंदी से होगा और जेल में रहते हुए अरविंद केजरीवाल के लिए उनकी सलाह को इग्नोर करना बहुत ही मुश्किल या लगभग असंभव होगा। पार्टी के संगठन पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया के बाद अगर किसी का काफी हद तक कब्जा जो है तो वह संजय सिंह का है। इसलिए जो अब तक लग रहा था कि सुनीता केजरीवाल का पार्टी और सरकार पर निष्कंटक राज हो जाएगा, उसमें व्यवधान आया है। सुनीता केजरीवाल के लिए संजय सिंह को जमानत मिलना एक बुरी खबर है। उनको लग रहा था कि उनकी नेतृत्व की जो दौड़ है, महत्वाकांक्षा है- वह बहुत जल्दी पूरी होने वाली है। उसमें कम से कम पार्टी के मामलों में संजय सिंह एक अवरोध बनकर बाहर आ गए हैं।
सुनीता केजरीवाल का जो मार्ग निष्कंटक लग रहा था, वह संजय सिंह के बाहर आने से कंटकाकीर्ण हो गया है। अब संजय सिंह उनके सामने दीवार की तरह खड़े हो गए हैं। वो सुनीता केजरीवाल की उस तरह से नहीं चलने देंगे जिस तरह से अभी तक चल रही थीं। अभी तक आम आदमी पार्टी में किसी की हिम्मत नहीं थी कि सुनीता केजरीवाल के सामने बोल सके, लेकिन संजय सिंह के मामले में ऐसा नहीं है। वह सुनीता केजरीवाल से वरिष्ठता में तो ऊपर हैं, अरविंद केजरीवाल से बराबरी के स्तर पर बात करते हैं। वह सुनीता केजरीवाल से डर या दब जाएंगे या उनके दबाव में आ जाएंगे ऐसा नहीं होने वाला।
अब कुछ सवाल: क्या संजय सिंह दिल्ली के मुख्यमंत्री हो सकते हैं? क्या अरविन्द केजरीवाल इस्तीफ़ा देंगे? क्या दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगेगा? विस्तार से जानने के लिए संलग्न वीडियो देखें।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)