संत रविदास जयंती पर विशेष ।

Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath in a fix over the Chinese investments in the state | Business Insider Indiaयोगी आदित्यनाथ,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश ।

आज से 645 वर्ष पूर्व एक महान संत का इस धरती पर प्राकट्य हुआ था जिन्होंने काशी की धरती पर जन्म लेकर भारत की सनातन धर्म की परंपरा को नई ऊंचाइयां दी हैं। वे महान संत हैं संत रविदास जी। आज संत रविदास जी की पावन जयंती है। मैं आज माघी पूर्णिमा के अवसर पर आप सभी को संत रविदास जयंती की बधाई देता हूं। यह पावन दिवस हम सबको अनेक प्रकार की प्रेरणाएं प्रदान कर रहा है।


महत्व इस बात का नहीं है कि व्यक्ति का जन्म कितने बड़े घर में हुआ है। अटलजी ने एक बात कही थी कि आदमी न छोटा होता है न बड़ा होता है, आदमी न ऊंचा होता है न नीचा होता है, आदमी तो सिर्फ आदमी होता है। यह भाव आज हम सब इस रूप में देख रहे हैं कि व्यक्ति अपने कर्मांे के माध्यम से कैसे महानता हासिल करता है और कैसे वह पूज्य हो सकता है। संत रविदास महाराज का जीवन चरित्र हम सबको निरंतर इस बारे में प्रेरणा प्रदान करता है।

धर्म को कर्त्तव्य माना भारतीय मनीषा ने

मैं जब भी काशी जाता हूं तो मुझे संत रविदास जी के मंदिर में जाने का अवसर प्राप्त होता है। हम लोग वहां संत रविदास की जन्मस्थली पर सौंदर्यीकरण के एक बहुत बड़े कार्य को आगे बढ़ाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। हम सब यह कार्य वहां पर कर रहे हैं। लेकिन हम सबको एक बात को ध्यान में रखना होगा कि कैसे इन कार्यक्रमों को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है। और कैसे व्यक्ति महानता हासिल करता है। भारतीय मनीषा ने धर्म को कर्त्तव्य माना है। उसकी जीती जागती प्रतिमूर्ति हैं संत रविदास जी।

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मेरी तरफ से यह एक आना गंगा मैया को चढ़ा देना

हम सब जानते हैं कि संत रविदास जी नित्यप्रति गंगा स्रान करने जाया करते थे। एक बार उनके सहयोगी संत ने कहा कि स्नान करने चलते हैं। तो संत रविदास जी ने उनसे कहा कि आज मेरे पास समय नहीं है, मेरे पास कुछ ज्यादा काम आ गया है। अच्छा होगा कि तुम गंगा स्नान कर लो और मेरी तरफ से यह एक आना गंगा मैया को चढ़ा देना। उनका सहयोगी संत गंगा स्नान करने गया। स्रान करने के बाद उसने अपनी ओर से जो दान पुण्य करना था वह किया। उसके बाद वह जैसे ही चलने के लिए बाहर आया उसे स्मरण आया कि मैंने अपनी ओर से जो अर्पण करना था वह तो कर दिया लेकिन संत रविदास की ओर से मैंने कुछ अर्पण नहीं किया। उन्होंने मुझे एक आना दिया था इसको मैं चढ़ा देता हूं। जब उन्होंने संत रविदास जी की ओर से एक आना गंगा मैया को चढ़ाया तो पता लगा कि नदी से एक हाथ स्वयं उनकी ओर आता है और संत रविदास जी द्वारा दी गई दक्षिणा को स्वयं ग्रहण करता है। सहयोगी संत को आश्चर्य हुआ। उन्होंने संत रविदास जी के पास आकर पूछा कि ऐसा क्या था कि मैंने जो दान किया वह तो गंगाजी में वैसे ही चला गया, बह गया। लेकिन जो दान आपने दिया था उसे गंगा मैया ने स्वयं अपने हाथों से ग्रहण किया है। उस समय संत रविदास जी ने इस बात को कहा था कि- मन चंगा तो कठौती में गंगा।

सनातन हिंदू धर्म को मजबूती देने का काम किया

साधना अंत:करण के भाव होते हैं। अगर हम अंत:करण से शुद्ध हैं तो साधना का प्रतिफल भी हमें उसी रूप में प्राप्त होता है। अगर हम अंत:करण से कलुषित हैं और बाहरी रूप से दिखावा कर रहे हैं तो कभी भी हमें साधना का फल प्राप्त नहीं हो सकता है। याद रखिएगा, संत रविदास जी ने जीवनपर्यन्त समाज की तमाम रूढ़ियों और पाखंडों का सामना करते हुए सनातन हिंदू धर्म को मजबूती देने का काम किया- जो हम सबकी सुरक्षा और पहचान है। उस परंपरा और पहचान को बनाए रखते हुए जो काम संत रविदास जी ने आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व किया था उसी का परिणाम है कि हम सब 645 वर्षांे के बाद भी इस महान संत के जन्मोत्सव के कार्यक्रम को पूरी भव्यता के साथ मना रहे हैं, उनका स्मरण और कोटि काटि नमन कर रहे हैं।

(संत शिरोमणि गुरु रविदास जी की जयंती पर 27 फरवरी 2021 को लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में उद्बोधन के संपादित अंश)


 

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