सत्यदेव त्रिपाठी।
आईपीएल 2022 के उद्घाटन मुक़ाबले में नये-नये कैप्टन बने आज की दुनिया के नम्बर एक हरफ़नमौला (आलराउंडर) खिलाड़ी रविन्द्र जडेजा को बैटिंग करते देखना इतना दयनीय लगा कि ‘देखि सुदामा की दीन दसा करुना करि कै करुना निधि रोये…’ की तरह रक्तन आंसू बहाने का मन हो आया। और दर्शक तो माथा पीट ही रहे हैं। एक ओवर में 36 रन तक बनाने की क्षमता रखने वाला शख़्स 28 गेंदों में 26 रन बना सका। वह भी अंतिम गेंदों में एक छक्का न हो जाता, तो 27 गेदों में 20 रन ही होते…।
हाँ, रवींद्र अंत तक नाबाद बना रहा – गोया नाबाद बने रहना टी 20 खेल का श्रेय-प्रेय हो! कप्तान बनते ही क्या कोई ऐसा बकलोल हो सकता है कि टेस्ट मैच और टी-20 का अंतर तक भूल जाये…! यह भी भूल जाये कि रन खुद से नहीं बन रहे, तो कम से कम 18वें 19वें ओवर में तो कोशिश करके देख ले… ख़ासकर तब, जब तीन बल्लेबाज़ बचे हों आने के लिए– जिसमें ब्रेवो जैसा मौक़े-बेमौके रन पीटने वाला ढांसू बल्लेबाज़ भी हो।
कप्तानी निभाने में खेल ही भूल गया
क्या यह कप्तानी का दबाव है? कहा यही जायेगा…! पर मैं इसके आगे की बात कहूँगा कि महज़ कप्तानी नहीं, अचानक और अनायास मिल गयी कप्तानी का दबाव है। उनकी कप्तानी के दावे तो क्या, बनने-बनाने की ठीक से चर्चा भी न हुई… और कप्तानी मिल गयी। तो क्या कप्तानी के लिए ज़रूरी मानसिक तैयारी का अभाव तो ऐसा दबाव नहीं दे रहा है! एक कदम इससे भी आगे चलें, तो जडेजा को कप्तान नियुक्त नहीं किया गया– कप्तानी बख़्शी गयी– जैसे भगवती चरण वर्मा के शब्दों में ‘मुग़लों ने सल्तनत बख्श दी थी अंग्रेजों को।‘ यहाँ बख्शने वाले हैं मिस्टर धोनी, जिनके खासमखास रहे हैं सर जडेजा। तो गोया दोस्त-उस्ताद ने अपने चहेते दोस्त-चेले को कप्तानी का गंडा बांध दिया, जिसकी लाज रखते हुए कप्तानी निभाने में बंदा ऐसा भ्रमित हुआ कि खेल ही भूल गया। यदि जद्दोजहद करके रोहित की तरह कप्तानी मिली होती, तो पहले से मानसिक तैयारी होती…। कौशल की कल्पना हुई होती। कुछ छल-बल सीखना पड़ा होता, जो शायद काम आता!
इतना श्रीहीन जडेजा पहले कभी न दिखा
सर जडेजा के इस सूरतेहाल पर मुझे अभी-अभी उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी सपा को हराकर विपक्ष के नेता का ताज पहनने वाले अखिलेश सिंह यादव याद आ रहे हैं। उन्हें भी मुख्यमंत्रित्व बपौती से मिला था– बख़्शीश जैसा ही। कमाना न पड़ा था उन्हें। क्या हाल किया उन्होंने पूरी पार्टी का… सबके सामने है। बपौती से मिले बहुतों के हाल यही हुए– सोनिया-राहुल से बड़ा क्या उदाहरण होगा? ये प्राप्तियाँ समय पर हुए बच्चे के सामान्य जन्म के बदले असमय हुई अपरिपक्व पैदाइश (इम्योच्योर्ड डेलीवरी) जैसी होती हैं। और जडेजा का यही हुआ है। कल तो गेंदबाज़ी में भी कुछ न होना इसका परमान है- 4 ओवर में 25 रन और कोई विकेट नहीं। इतना श्रीहीन जडेजा तो इसके पहले किसी मैच में कभी न दिखा था।
धोनी को ‘उपहार देना’ फला
हाँ, जडेजा को अपनी कप्तानी सौंपने वाले धोनी को यह उपहार देना अवश्य फला है। दो सालों बाद उन्होंने अधसैकड़ा जड़ दिया, जो इस मैच की दोनो पारियों में बने सर्वाधिक निजी रन का आँकड़ा भी है। काफ़ी धीमी शुरुआत के बाद अंत में धोनी रौ में आये। इसे पहले वाला धोनी भी नहीं कह सकते, लेकिन उसकी प्रतिलिपि अवश्य कह सकते हैं। उम्मीद करना सुखद होगा कि उनका यह रूप पूरे आइपीएल में क़ायम रहे। लेकिन इसी के साथ यह भी कि जिस तरह मिस्टर धोनी ने सर जडेजा को कप्तानी सौंपी है, उसे कप्तान बनाएँ भी…। कप्तानी स्वीकारते वक़त अपनी बेफ़िक्री ज़ाहिर करते हुए जडेजा ने कहा भी था कि धोनी साथ हैं, तो किस बात का डर है– ‘जाके सदा सहायक धोनी, उसकी फिर निश्चित जय होनी’…।
जय नहीं मिली और खिलाड़ी भी कहीं गुम हो गया
लेकिन यह आस-विश्वास पहले ही मुक़ाबले के दोनो रूपों में ग़लत सिद्ध हुआ है। जय भी नहीं मिली और जडेजा का पुराना खिलाड़ी भी कहीं गुम हो गया-सा लगा। इतना ही नहीं, जडेजा के लापरवाह बुलावे (कॉल) पर अच्छी रौ में खेलता एक खिलाड़ी बाहर (आउट) भी हुआ और दूसरा बाहर होते-होते बचा। मज़ा यह कि जिस धोनी के भरोसे जडेजा निश्चिंत हुए थे, वही धोनी इस बल्लेबाज़ी के दौरान लगभग पूरे समय जडेजा के साथ थे। और कुछ समझाते हुए दिखे नहीं…। अपनी बल्लेबाजी को लेकर जडेजा खुद एक भी बार कोई नयी कोशिश करते, कोई नयी योजना बनाते दिखायी ही नहीं पड़ा- गोया कर्त्तव्य-विमूढ़ हो गया हो!
इतना बड़ा हीरो इतना बिग ज़ीरो
और कप्तानी का ऐसा दबाव कि पहले ही मुक़ाबले में एक इतना बड़ा हीरो इतना बिग ज़ीरो हो जाये, का दूसरा उदाहरण भी शायद ही मिले। हम तो ‘चेन्नई सुपर किंग’ की इस टीम के चहेतों में हैं। इसकी जीत न सही, इसके अच्छे खेल की उम्मीद रखते है। इसीलिए यह लिख रहे हैं कि समय रहते सचेत हो जाएँ, वरना यही हाल रहा, तो अभी बस एक मच हारे हैं– शायद पूरी श्रिंखला में ही पीछे न रह जायें!