डॉ. मयंक चतुर्वेदी
निशांत ने लिखा- प्रधानमंत्री जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद, हमें आज का एक और अविस्मरणीय दिन देने का। आपका सेवा का संकल्प, आपका जुनून हमें ना केवल नया और मजबूत भारत दे रहा है बल्कि हमें हमारी संस्कृति के भी करीब ला रहा है। अब मोदी सिर्फ एक नाम नहीं, विकास, विश्वास और आस की पहचान है। देश आपका नेतृत्व पाकर धन्य है। नई संसद में 2024 में फिर देश आपको चुनने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह लिखते ही तुरन्त ही इस पर मिथुन कुमार शर्मा की प्रतिक्रिया आई, धन्यवाद प्रधानमंत्री जी! भगवान आपको और भी ज्यादा यश और कृति प्रदान करें!
आशुतोष कुमार सिंह का कहना है, देश को अपना संसद भवन आज मिला है। यह एक ऐतिहासिक पल है। जरूरत है इस भवन में आने वाले सांसद भी भारतीय मन वाले हो। आज इस ऐतिहासिक पल का विरोध कर के कुछ राजनीतिक दल भारतीयता को शर्मसार कर रहे हैं। पहले सेंगोल का विरोध और अब संसद भवन का विरोध। गुलामी के प्रतीकों से जब देश आज़ाद हो रहा है, इन राजनीतिक शक्तियों को मिर्ची क्यों लग रही है पता नहीं! फिर इंद्राणी की प्रतिक्रिया कुछ इस तरह सामने आई, आज के इस दिन के लिए दिल से बहुत बहुत आभार माननीय प्रधान मंत्री जी, महादेव की कृपा ही है हम सब पर जो आप जैसा तेजस्वी व्यक्ति हमारा प्रधानमंत्री है, हमारा देश हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए आपका नाम हर युग मे लिया जायेगा। कोटी कोटी प्रणाम आपको । हर्ष पटेल ने लिखा, यतो धर्मस्ततो जयः। धर्मे च सर्वं प्रतिष्ठितम्। धर्म एव हतो हन्ति। धर्मो रक्षति रक्षितः॥
अविनाश सनातनी यहां कहते हैं, आशा है कि यह सेंगोल तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों को दंडित करेगा। समान नागरिक संहिता जल्द लागू होगा। समाज को बांटने वाले हंसिये पर जायेंगे। जेहादी तबका अपनी श्रेष्ठता के घमंड से विमुख होगा। देश चहूंओर विकास से प्रफुल्लित होगा। एनआरसी लागू कर देश सुरक्षित होगा। अभय जैन इतने भावुक नजर आए कि उन्होंने लिख दिया, मैं इस देश का हनुमान हूं ये देश मेरा राम है सीना चीर के दिखा दूंगा अन्दर बैठा हिन्दूस्तान है।
निताशा सिहाग कहती हैं – स्वर्णिम इतिहास का साक्षी ‘सेंगोल’ ! प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के सम्मान और तमिल परंपरा के महान प्रतीक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित करा कर एक भारत श्रेष्ठ भारत की हमारी भावना को और सशक्त किया है। एसएम कलारिया ने लिखा-धर्म दंड प्रतीक है कि धर्म राजा, शासक से ऊपर है। नए संसद भवन में इसे स्थापित करने का संदेश है कि इस सदन में बैठे सभी लोगों के पद से ऊपर धर्म है, इसलिए धर्म दंड से कोई नहीं बच सकता। समीर तेंदुलकर यहां यह व्याख्यायित करते दिखे कि सेंगोल धर्मशास्त्र मनुस्मृति 7.4 से राज दंड है: तस्यार्थे सर्वभूतानां गोप्तारं धर्मं आत्मजम् ।ब्रह्मतेजोमयं दण्डं असृजत्पूर्वं ईश्वरः । उस राजा के लिए सृष्टि के प्रारम्भ में ही ईश्वर ने सब प्राणियों की सुरक्षा करने वाले ब्रह्मतेजोमय अर्थात् शिक्षाप्रद और अपराधनाशक गुण वाले धर्मस्वरूपात्मक दण्ड को रचा।
यहां नुपुर जे शर्मा की टिप्पणी भी अभीभूत कर देती है। अपने विचार रखते हुए उन्होंने लिखा- आखिरकार हमने फैसला किया है कि हम अपनी सभ्यता को बचाएंगे। हम कहां से आए हैं, हम क्या थे और हम क्या बनना चाहते हैं, इसकी निशानी। हमारे पूर्वजों ने जिस चीज के लिए संघर्ष किया, उसके लिए मर गए, जिसके लिए संघर्ष किया, उसकी निशानी। उस मिट्टी की निशानी जहाँ हमारी यादें दबी हैं। फिर से गर्व महसूस करना और एक प्राचीन सभ्यता की महानता को महसूस करना। यह छवि जीवित रहेगी। एक ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली छवि के रूप में जो यह भूले बिना आगे बढ़ना चाहते हैं कि वे कहां से आए हैं।
श्री हरिहर देसिका स्वामीगल, मदुरै अधीनम के 293वें प्रधान पुजारी यहां यह कहते नजर आए हैं कि मुझे नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भाग लेकर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। पीएम मोदी हमेशा तमिल संस्कृति और तमिल लोगों के साथ गर्व से खड़े रहे हैं। मोदी जी पहले पीएम हैं जिन्होंने तमिल अधीनम को आमंत्रित किया और संसद में तमिल संस्कृति को गर्व से प्रोत्साहित किया। वहीं, यहां अमित थडानी जैसे लोगों के कमेंट्स भी हैं, जिसमें उन्होंने कहा कि नई संसद में अखंड भारत। कोई आश्चर्य नहीं कि वैचारिक रूप से “उप-राष्ट्रवाद” से जुड़े लोग इमारत में प्रवेश करने से इनकार कर रहे हैं।
इसके साथ ही देश के प्रसिद्ध थिंकर आनन्द रंगनाथन का यहां कहना रहा कि किसी सभ्यता की असली निशानी है, न बुझने वाली प्यास, अपने उन पूर्वजों को न्याय दिलाना जिनके साथ अन्याय हुआ है और जिन्हें उनके अपार ज्ञान भण्डार के उपरांत भी उपहासित किया गया, उनका गौरव लौटाना, उनकी याद में खुद को भूल जाना। धर्मचक्र-प्रवर्तनाय। कुछ महानता की ओर बढ़ते हैं, अन्य उसमें लौट आते हैं। हम भारतीय दोनों करते हैं।
कुल मिलाकर रविवार 28 मई का दिन जहां एक ओर नए संसद भवन के लिए भारतीय इतिहास में दर्ज हो चुका है, वहीं अब यह संसद भवन में भव्य प्रतिष्ठा के साथ ‘सेंगोल’ की स्थापना के लिए भी जाना जाएगा। इसका यही संदेश है कि धर्म से ऊपर कुछ भी नहीं है, न राजा, न राजसत्ता, न लोक और न ही लोक की सत्ता । सभी को न्यायगत रूप से धर्माचरण करते हुए जोकि धर्म के सनातन संस्कृति में लक्षण बताए गए हैं और जिनका कि यह ‘सेंगोल’ प्रतीक भी है। उसके अनुसार आचरण ही एक नागरिक (प्रजा), प्रशासन एवं शासन के जीवन में सर्वोपरि है।
वस्तुत: भारत में इसीलिए ही धर्म के लक्षणों की व्याख्या विषद रूप से की गई मिलती भी है। मनुस्मृति, याज्ञवक्य, श्रीमद्भागवत, विदुर नीति, तुलसीदास द्वारा वर्णित धर्मरथापना, पद्मपुराण, धर्मसर्वस्वम् या वाह्य सूत्र अथवा अन्य किसी भी ग्रंथ में आप धर्म के लक्षण देख सकते हैं। तभी सनातन में धर्म एक व्यापक शब्द माना गया और यह मजहब या रिलिजन का पर्यायवाची नहीं है।
मनु ने मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए – धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: । धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।। (मनुस्मृति 6.92)। धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , शौच ( स्वच्छता ), इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं । ऋषि याज्ञवक्य ने कहा -अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह: । दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम् ।। अर्थात् अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति ही धर्म है। वहीं, श्रीमद्भागवत में सप्तम स्कन्ध में धर्म के तीस लक्षण बतलाए गए हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं ।
सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:।
अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।।
संतोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:।
नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।।
अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:।
तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।।
श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:।
सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।।
नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:।
त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।।
महात्मा विदुर का कहना है कि इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ। यह धर्म के लक्षण है और प्रत्येक राजा एवं नागरिक में ये होने चाहिए। उनका कहना है कि इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान बन जाता है।
संत तुलसीदास ने भी रामचरित मानस के लंकाकाण्ड में धर्म को व्याख्यायित किया है । वे लिखते हैं –
सुनहु सखा, कह कृपानिधाना, जेहिं जय होई सो स्यन्दन आना।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका, सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।
बल बिबेक दम पर-हित घोरे, छमा कृपा समता रजु जोरे।
ईस भजनु सारथी सुजाना, बिरति चर्म संतोष कृपाना।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचण्डा, बर बिग्यान कठिन कोदंडा।
अमल अचल मन त्रोन सामना, सम जम नियम सिलीमुख नाना।
कवच अभेद बिप्र-गुरुपूजा, एहि सम बिजय उपाय न दूजा।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें, जीतन कहँ न कतहूँ रिपु ताकें।
महा अजय संसार रिपु, जीति सकइ सो बीर ।
जाकें अस रथ होई दृढ़, सुनहु सखा मति-धीर ।। (लंकाकांड)
इसी तरह से पद्मपुराण में धर्म के संबंध में वर्णन मिलता है –
ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते।
दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।।
अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते।
एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।।
(अर्थात ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शांति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है।)
इसके साथ ही धर्मसर्वस्वम् ग्रंथ कहता है कि जिस नैतिक नियम को आजकल ‘गोल्डेन रूल’ या ‘एथिक आफ रेसिप्रोसिटी’ कहते हैं उसे भारत में प्राचीन काल से मान्यता है। सनातन धर्म में इसे ‘धर्मसर्वस्वम्” (=धर्म का सब कुछ) कहा गया है: श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।। (पद्मपुराण, शृष्टि 19/357-358)। अर्थात् धर्म का सर्वस्व क्या है , सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो । जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो , वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये । इस संदर्भ में भारत की श्रेष्ठता भी विश्वव्यापी है। संसद में ‘सेंगोल’ की स्थापना से निश्चित ही आज यही धर्म पुन: लोक के तंत्र में स्थापित हुआ ऐसा जान पड़ता है। सोशल मीडिया और न्यू मीडिया पर आईं ऐसी लाखों प्रतिक्रियाएं यही गवाही दे रही हैं।(एएमएपी)