मध्य प्रदेश में वक़्फ़ बोर्ड को अदालत से लगा जोर का झटका
डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
भारत में सेना और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी है। वक्त बीतने के साथ इसकी प्रॉपर्टी में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में अनेक शिकायतों और कहीं भी अपना दावा प्रस्तुत करने वाले वक्फ बोर्ड को न्यायालय से झटका मिलना शुरू हो गया है। देश के कई राज्यों में जमीनों के मालिकाना हक एवं अन्य प्रॉपर्टी को लेकर विवाद पैदा करने वाले वक्फ बोर्ड को मप्र में इस माह दो बार मुंह की खानी पड़ी है। दोनों ही संपत्तियों पर वक्फ अपने खूब दावे प्रस्तुत करता रहा, लेकिन दावों के सपोर्ट में जब न्यायालय ने साक्ष्य मांगे तो इससे जुड़े लोग एक भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए, जिसके बाद न्यायालय ने इन प्रॉपर्टी पर वक्फ के सभी दावों को समाप्त कर दिया है।
पहला मामला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सामने आया तो दूसरे का निर्णय संस्कारधानी जबलपुर उच्च न्यायालय से जुड़ा है। ताजा प्रकरण में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुगल सम्राट शाहजहां की बहू के मकबरे पर अपना निर्णय सुनाया है। निर्णय में न्यायालय का साफ कहना है कि बुरहानपुर में स्थित तीन ऐतिहासिक इमारतें जिसमें से एक बेगम बिलकिस का मकबरा भी है, यह तीनों ही वक्फ बोर्ड की संपत्ति का हिस्सा कभी नहीं हो सकती हैं। कोर्ट ने कहा कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत प्राचीन और संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है, तो उसे वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता है।
इस पूरे प्रकरण में वर्ष 2013 में बहुत ही होशियारी के साथ मप्र वक्फ बोर्ड ने एक आदेश जारी करते हुए इन तीनों ही साइटों को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था, जैसा कि पहले नियम था वक्फ के बारे में कि न अपील, न दलील जो वक्फ कहे वही सही। लेकिन अब वक्फ की संपत्तियों से जुड़े दावों के बीच इससे जुड़ा दूसरा या तीसरा पक्ष न्यायालय की शरण में जा रहा है और वहां से उसे साक्ष्यों के आधार पर न्याय मिलना संभव हुआ है।
इस मामले में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में रिट याचिका दायर की गई थी, जिसमें कि एएसआई का पक्ष अत्यधिक पुष्ट पाया गया। यहां कोर्ट को बताया गया कि तीन विवादित स्थल शाह शुजा स्मारक, नादिर शाह का मकबरा एवं बुरहानपुर के किले में स्थित बीबी साहिबा की मस्जिद प्राचीन और संरक्षित स्मारक हैं। इनमें शाह शुजा स्मारक मुगल सम्राट शाहजहां के बेटे शाह शुजा की पत्नी बेगम बिलकिस की कब्र है। वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड ने एक आदेश निकाल कर इन तीनों साइटों को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया था, जबकि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 यह स्पष्ट करता है कि अति प्राचीन और संरक्षित स्मारक की श्रेणी में जिसे रखा गया है, वह उसी का हिस्सा रहेगा, ऐसे में वक्फ बोर्ड की संपत्ति इन्हें नहीं माना जा सकता।
एएसआई ने न्यायालय को बताया कि जब इन स्मारकों से प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1904 के तहत संरक्षणकता यानी उसके द्वारा कभी छोड़ी नहीं गई है, वही उसका लगातार संरक्षण कर रहा है, ऐसे में यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कैसे हो सकती है? फिर वक्फ बोर्ड की ओर से जवाब दिया गया कि जब उनके सीईओ ने संपत्ति को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया था तब बोर्ड के पास इसे खाली कराने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं था। इस पर जस्टिस जीएस अहलूवालिया की ओर से कहा गया कि इस संपत्ति के संबंध में गलत अधिसूचना वक्फ बोर्ड द्वारा जारी की गई। वक्फ बोर्ड की अधिसूचना इस विवादित बनाई गई संपत्ति पर केंद्र सरकार का स्वामित्व नहीं छीनेगी।
इस प्रकरण की सुनवाई में जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने अंतिम आदेश पारित करते हुए तथ्यों के आधार पर स्पष्ट रूप से अपने दिए निर्णय में यह भी कहा, “विचाराधीन संपत्ति एक प्राचीन और संरक्षित स्मारक है, जो प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत विधिवत अधिसूचित है और इसलिए सीईओ, मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड ने याचिकाकर्ता को इसे खाली करने का निर्देश देकर एक बड़ी अवैधता की है।”
मकबरा आज भी आकर्षण का केंद्र
ईरानी स्थापत्य शैली से बना यह मकबरा आज भी आकर्षण का केंद्र है। उल्लेखनीय है कि बेगम बिलकिस की बेटी के जन्म देते समय मौत हो गई थी, जिसे बुरहानपुर में दफनाया गया था। ईरानी स्थापत्य शैली से बना यह मकबरा आज भी आकर्षण का केंद्र है। इसका आकार खरबूजे की तरह है। इसलिए इसे खरबूजा गुंबद भी कहा जाता है। इसके जर्जर होने के कारण 1970 में केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसे बंद कर दिया वर्ष 2020 में यह खोला भी गया था। मकबरे में आकर्षक रंगीन नक्काशी है। इस संबंध में कोर्ट का आया यह अंतिम आदेश 26 जुलाई को जस्टिस जीएस अहलूवालिया का है, जिसे कि 1904 प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत इस स्मारक को विधिवत अधिसूचित किए जाने के बारे में भी बताया गया। था। मकबरा राष्ट्रीय स्मारक के रूप में दर्ज है।
वक्फ को भोपाल में अपने दावे से हटना होगा पीछे
इससे पहले एक निर्णय भोपाल में आया और वक्फ बोर्ड को साफ बता दिया गया कि शासकीय भूमि पर कब्जा स्वीकार्य नहीं किया जाएगा। इसलिए वक्फ बोर्ड शासकीय भूमि से अपने अवैध कब्जे को शीघ्र हटाए। अब यहां वक्फ बोर्ड को हमीदिया रोड स्थित इसराणी मार्केट से किए गए अपने निर्माण को हटाना होगा । तहसीलदार ने इस संदर्भ में एक आदेश पारित किया है। इसमें कब्जा हटाने के लिए 20 दिन का समय दिया गया है। इसके साथ ही भूमि के बाजार मूल्य से 20 प्रतशित अधिक राशि जमा कराने, शासकीय भूमि को मूल स्वरूप में लाने पर होने वाले व्यय की वसूली के लिए भी निर्देशित किया गया है।
उल्लेखनीय हैं कि शहर भोपाल में भूमि सर्वे नं. 520 एवं 522 कुल रकबा 3560 मद आबादी (गांवठान) प्रमुखता शासकीय भूमि है। अंशभाग 27000 वर्गफिट पर वक्फ बोर्ड ने औकाफ-ए-अम्मा के माध्यम से अवैध कब्जा करते हुए दुकान और फ्लैट का निर्माण कर दिया गया। शुरू में तहसील नजूल द्वारा पारित आदेश के पहले अनुमति प्राप्त भूमि के बदले दूसरे खसरा नम्बर की भूमि पर भवन निर्माण करने पर नगर निगम भी वक्फ बोर्ड को जबाव तलब कर चुका है। इस मामले में वक्फ सिर्फ अपने मौखिक दावे करता रहा, उसके पास कब्जाई गई भूमि के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिले, जिससे कि उसे वक्फ का होना पाया जाता। ऐसे में यह निर्णय भी पूरी तरह से वक्फ के विरोध में आया है ।
2013 में सरकार ने वक्फ को दीं अपार शक्तियां
वक्फ कानून-1995 बहुत ताकतवर बना है। कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार या मस्जिद बना लेता है और एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है। बाकी काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि पूरे भारत में अवैध मस्जिदों और मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। वक्फ बोर्ड द्वारा जमीन कब्जाने का षड्यंत्र 2013 के बाद तो और तेज हो गया है। 2013 में सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी थीं। सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे इतना घातक बना दिया कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा करने लगा है। भारत में सशस्त्र बल और रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है। वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार देश में वक्फ बोर्ड के पास फिलहाल 8 लाख 54 हजार 509 संपत्तियां हैं, जो कुल मिलाकर 8 लाख एकड़ से ज्यादा है।
वक्फ संपत्ति एवं कब्जे से जुड़ा जो बड़ा मामला बीते सालों में सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहा वह तमिलनाडु प्रदेश के त्रिचि जिले के गांव में डेढ़ हजार हिन्दू आबादी से जुड़ा है, उसमें कुल और मात्र सात-आठ घर मुस्लिमों के हैं और पड़ोस में ही एक भगवान शंकर जी का मंदिर है जो डेढ़ हजार साल पुराना है। वक्फ बोर्ड ने उस गांव की पूरी संपत्ति पर अपना दावा ठोक दिया और सबको खाली करने का नोटिस कलेक्टर के यहां से पहुंचा दिया गया। कागजात से भी संपत्ति खारिज हो गई। इस गांव की अधिकतर आबादी गरीब है, ऐसे में जब इस गांव के हिन्दू लोग थक हार गए तो उन्हें एक ऑप्शन देते हुए मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। इस्लामवादियों ने सुझाव दिया गया कि अगर वो ऐसा कर लेंगे तब उनकी जमीन बच जायेगी।
ऐसा ही एक मामला महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का बहुत चर्चाओं में रहा है, जहां एक बस्ती में 250 के करीब हिन्दू अनुसूचित जाति वर्ग के लोग निवासरत हैं, उनके पास एक नोटिस उनकी जमीन को खाली करने का आया कि वो जहां रह रहे हैं वो वक्फ बोर्ड की जमीन है। वो दर-दर भटकते रहे, लेकिन कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी, तब उनको भी इस्लाम अपनाकर मुसलमान बन जाने का ऑफर दिया गया। यानी वक्फ बोर्ड का काम सिर्फ जमीनों तक सीमित मत मानिए, यह इन मामलों को देख-समझने के बाद बड़े स्तर मतान्तरण और मजहबीकरण से भी जुड़ा है।
अल्लाह के नाम पर दी गई संपत्ति का रखाव
वक्फ बोर्ड वो संस्था है जो अल्लाह के नाम पर दान में दी गई संपत्ति का रख-रखाव करता है। वक्फ अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना। इस्लाम में ये एक तरह का मजहबी बंदोबस्त है। मुसलमान जब अपनी किसी चल या अचल संपत्ति को जकात में देते हैं तो वह संपत्ति ‘वक्फ’ कहलाती है। इसके बाद उस व्यक्ति का जकात में दी गई संपत्ति पर कोई मालिकाना अधिकार नहीं रहता । उसे अल्लाह की संपत्ति माना जाता है और उसकी देख-रेख ‘वक्फ-बोर्ड’ करता है। वह उसे किराए पर दे सकता है, उसका अन्य प्रकार से उपयोग कर सकता है, कहना होगा कि वक्फ बोर्ड उसे जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल करता है।
आज देश के हर राज्य में सुन्नी और शिया वक्फ हैं। इनका काम उस संपत्ति की देखभाल, और उसकी आय का मोमिनों (इस्लाम को माननेवालों) के हित में इस्तेमाल करना है। देश में एक सेंटर वक्फ काउंसिल है और वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया है। इसके साथ ही देश भर में अभी कुल 30 वक्फ बोर्ड्स विभिन्न राज्यों में मौजूद हैं। सबसे पहले साल 1954 में नेहरू सरकार के समय वक्फ अधिनियम पारित किया गया था, जिसे आगे कांग्रेस की अन्य सरकारों ने बहुत ताकतवर बनाने का काम किया है।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)