पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव का अंतिम संस्कार  मध्य प्रदेश के होशंगाबाद स्थित उनके पैत्रक गांव आंखमऊ में किया जाना है। भारतीय राजनीति में शरद यादव उन कुछ चुनिंदा नेताओं में से हैं जिन्‍होंने एक राज्‍य से निकलकर दूसरे और फिर तीसरे राज्‍य को अपनी कर्म भूमि बनाया और आजीवन फिर वहीं से राष्‍ट्रीय राजनीति में अपना अहम योगदान दिया। लेकिन उसके बाद भी अपनी मिट्टी से कभी नाता नहीं तोड़ा और अब उनकी अंतिम इच्‍छा के अनुरूप उनका देह संस्‍कार पंचतत्‍व में विलीन भी उसी गांव में किया जा रहा है, जहां जन्‍म लेने के बाद वे देश की राजनीति में छा गए थे।

बिहार से होती है उनकी पहचान

शरद भले का जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन उनकी छात्र राजनीति में कॉलेज की पंचायत से लेकर लोक तंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक उनकी आवाज गूंजती हुई दिखाई देती है । शरद यादव मध्य प्रदेश से होते हुए उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा बनाने मे सफल रहे । आज उनकी पहचान बिहार से ही होती है।  जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष, केंद्रीय मंत्री और सात बार सांसद रहे वे नीतीश के बेहद करीबी रहे थे।  बाद में वह लालू यादव के खेमे में भी जाते हुए दिखाई दिए थे । उनके बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि वे न सिर्फ भारतीय राजनीति का माना जाना चेहरा थे, बल्‍कि उन्‍होंने  एक रणनीतिकार नेता के रूप में अपनी अहम भूमिका निभाई । जिसका कि परिणाम था कि समय-समय पर बड़े बड़ों को राजनीतिक अखाड़े में उन्‍होंने अपनी कुशल योजना से चित्त कर दिया था।

राष्ट्रीय स्तर पर 1974 के चुनाव से मिली पहचान

शरद यादव का नाम राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आया जब 1974 में जबलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में उन्होंने विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के दिग्गज नेता को हराया था । यह सीट सुप्रसिद्ध हिंदी सेवी सेठ गोविंददास के निधन से खाली हुई थी। यह उपचुनाव कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण था । सेठ गोविंददास इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 1952 से लगातार जीतते आ रहे थे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़े सेठ गोविंद दास के बेटे रविमोहन दास को हराया। जिस समय यह उपचुनाव हुआ उस समय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन पूरे चरम पर था। जय प्रकाश नारायण ने पहली बार खुद की मर्जी से यादव को उम्मीदवार बनाया था। शरद यादव उस समय जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे और आंदोलन के सिलसिले में ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद थे।  मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पीसी सेठी ने उन्‍हें हराने के लिए सारे प्रयास किए थे, लेकिन उसके बावजूद शरद यादव ने विजय हासिल की थी।

विपक्षी गठबंधन का तानाबाना बुनने वाले नेताओं में अग्रणी

देश में जब कांग्रेस 400 से भी अधिक लोकसभा सीटें जीतकर अजेय की भूमिका में दिखाई दे रही थी और सभी ओर यही लगता था कि कांग्रेस को हराना अब नामुमकिन है तब शरद यादव कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी गठबंधन का तानाबाना बुनने वाले नेताओं में अग्रणी भूमिका निभाई थी । एतिहासिक संदर्भों के साथ देखें तो सही सामने आता है कि जबलपुर का जनता उम्मीदवार का यह प्रयोग ही आगे चलकर 1977 में उस जनता पार्टी के गठन की प्रेरणा बना। जिसने सत्ता पर तीन दशक पुराने कांग्रेस के एकाधिकार को समाप्‍त करने का ऐतिहासिक काम किया। आपातकाल के दौरान शरद यादव को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। इसके अलावा भी राजनीतिक आंदोलनों के कारण उन्हें कई मौकों पर जेल की हवा खानी पड़ी। शरद यादव को देश में ओबीसी ही राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता रहा है। उन्हें मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला नेता माना जाता है।

1989 में बनाया उत्‍तर प्रदेश को अपना केंद्र

शरद यादव का जन्‍म एक जुलाई 1947 को मध्‍यप्रदेश के नर्मदापुर जिले की बाबई तहसील में बंदाई-आंखमऊ गांव में किसान परिवार में हुआ।  किसान परिवार में जन्मे शरद यादव पढ़ने-लिखने में शुरू से ही तेज थे।  प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह जबलपुर इंजीनियरिंग करने पहुंचे, जहां स्‍नातक की डिग्री लेने के साथ छात्र राजनीति से सक्रिय दिखाई दिए । पढ़ाई के दौरान वे जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। मध्यप्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने के बाद शरद यादव ने 1989 में उत्‍तर प्रदेश को अपना केंद्र बनाया और बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़े । यहां से जीतकर तीसरी बार संसद पहुंचे।  1989-1990 शरद के लिए काफी महत्‍व का रहा । इस दौरान यादव केंद्र सरकार में टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री रहे।

शरद यादव 1999 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कई विभागों के मंत्री रहे। इससे पूर्व वीपी सिंह की सरकार में भी उन्होंने मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शरद यादव को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का भी करीबी माना जाता था। जब एच डी देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सेक्युलर) का गठन किया गया तो शरद यादव की अगुवाई में जनता दल (यूनाइटेड) का गठन हुआ।

लगातार 23 साल बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे

1990 में वो बिहार पहुंचे और फिर अंतिम समय तक उन्‍होंने अपने जीवन को बिहारियों के लिए ही समर्प‍ित रखा। इसका सुफल भी उन्‍हें मिला, लगातार 23 साल यानी 1991 से 2014 तक बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे।  इस दौरान उन्होंने राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव को भी हराने में कामयाबी हासिल की। जनता दल के संस्थापकों में रहे शरद यादव का राजनीतिक सफर कुछ इस प्रकार का रहा है कि उन्‍हें आज भी देश भर में ज्‍यादातर लोग बिहारी ही समझते हैं । कुल मिलाकर शरद यादव सात बार लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे जबकि तीन बार वे राज्यसभा के सदस्य भी बने। उन्होंने तीन राज्यों से लोकसभा चुनाव जीता और उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक की भूमिका भी निभाई।

अपने राजनीतिक जीवन में किया देश के इन बड़े नेताओं के साथ काम

अपने सियासी सफर में उन्होंने मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडीस, राजनारायण, चौधरी देवीलाल, हेमवती नंदन बहुगुणा, विश्वनाथ प्रताप सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के साथ काम किया। मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, सत्यपाल मलिक, के.सी.त्यागी, रामविलास पासवान, मोहन प्रकाश, लालू प्रसाद यादव शिवानंद तिवारी जैसे कई नेता किसी न किसी मोड़ पर शरद यादव के साथ रहे।

उनके देहावसान पर आज राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति प्रधानमंत्री, कई राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री समेत देश के शीर्ष नेताओं, अधिकारियों एवं महत्‍वपूर्ण व्‍यक्‍तियों ने उन्‍हें अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं। अंतिम यात्रा में अपने को उस क्षेत्र में स्‍वयं विलीन करने की उनकी यह तमन्‍ना ही है कि उनका अंतिम संस्‍कार मध्‍य प्रदेश के नर्मदापुर जिले के  गांव आंखमऊ में किया जा रहा है। अपने बेटे को अंतिम विदाई देने आस पास के क्षेत्र के लोगों का इस गांव में आना जारी है। बाबई तहसील के प्रत्‍येक गांव में ही नहीं सभी ओर शरद यादव के कार्यों के चर्चे हो रहे हैं। उनके अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन ने अपनी आवश्‍यक तैयारियां शुरू कर दी हैं। (एएमएपी)