आखिर शशि थरूर को लेकर क्‍यों चिंतित है कांग्रेस ? कहीं ये तो नहीं वजह….

कांग्रेसी नेता शशि थरूर को चर्चाओं में बने रहना आता है, फिर चाहे वो उनकी छवि हो या फिर राजनीति में अपने बयानों से सुर्खियों बटोरने का हुनर। एक बात दीगर है कि अपने दम पर कांग्रेस का दामन थामे ही वह पार्टी से बगावत भी करते हैं और उसकी बेहतरी के लिए काम करने का दम भी भरते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद हारने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है।शशि थरूर “देश को कांग्रेस की जरूरत है और पार्टी को सुधार की जरूरत है” वाली अपनी बात पर कायम हैं। इसे लेकर पर वह फुल एक्शन मोड में हैं। अब वो पार्टी की नाखुशी के बावजूद केरल में मोर्चा संभाले हुए हैं। इस दक्षिणी राज्य में उनकी बढ़ती सक्रियता से इस सूबे के नेताओं की सांसें थमी हुई हैं।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर का हालिया जारी एक वीडियो उनके इरादों को पुख्ता सबूत है कि वो रुकेंगे नहीं। उन्होंने इसमें साफ कर दिया है कि वो पार्टी में रहते हुए बलबूते पर ही कांग्रेस की कायापलट करने की कुवत रखते हैं। इसमें उन्होंने कहा,”जिनमें हौसला हिम्मत होगी वो कभी बीजेपी का दामन नहीं थामेंगे, जिनमें लड़ने की कुवत नहीं होगी वो लालच के चलते बीजेपी के साथ जा सकते है।”

केरल में कांग्रेस है परेशान

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी केरल में शायद पार्टी खुद को नहीं जोड़ पा रही है। वहां कांग्रेस विधायक और केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीसन और सूबे के पार्टी अध्यक्ष के सुधाकरन के बीच तनातनी की खबरें आई हैं। बीते हफ्ते ही केरल के पार्टी अध्यक्ष के सुधाकरन के अपना पद से इस्तीफे देने की चर्चाएं थीं। सूत्रों की माने तो सूबे में कांग्रेस के अनुभवी नेता सुधाकरन ने केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद छोड़ने को लेकर राहुल गांधी को खत लिखा था। गौरतलब है कि सुधाकरन अपनी तेज तर्रार जुबान के लिए मशहूर हैं।

पार्टी अध्यक्ष पद के चुनावों में जाहिर कर दिया इरादा

मल्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद शशि थरूर खेमा उनसे नाखुश रहा। इस नाखुशी की वजह थरूर खेमे को संचालन समिति में शामिल नहीं किया जाना रहा था। उस वक्त इस खेमे ने एतराज जताते हुए कहा था कि अगर नए अध्यक्ष खरगे को सभी को साथ लेकर चलने की मंशा होती तो थरूर के नजदीकी कुछ नेता तो इस नई संचालन समिति का हिस्सा बनते।

कांग्रेसी सांसद शशि थरूर पार्टी के बगावती गुट जी-23 में हैं। उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनावों के दौरान ही अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। जब उन्होंने ये कहा था कि पार्टी में शक्तियों के एक हाथ में होने की जगह उसना विकेंद्रीकरण होना चाहिए।  थरूर ने ये भी कहा था कि अतीत में कांग्रेस ने देश को बेहतर तरीके से चलाया है, लेकिन अब पार्टी में बड़े बदलाव की जरूरत है। थरूर ने ये भी कहा था कि उन्हें लगता है कि पार्टी में बदलाव लाने की काबिलियत उनमें है और वो इसे साबित करेंगे। केरल में पार्टी के अंदर चल रही उठा पटक में  शायद उन्हें खुद के लिए यहां बड़ी भूमिका निभाने का अच्छा मौका नजर आ रहा है।

थरूर का केरल दौरा और सूबे में बेचैनी

20 नवंबर रविवार से शशि थरूर ने अपना उत्तर केरल का 4 दिन का दौरा शुरू किया है। इस दौरे पर सूबे के कांग्रेसी नेता नजरें गड़ाए बैठे हैं। उनके इस दौरे को लेकर कांग्रेस की केरल इकाई में बेचैनी बढ़ रही है। सूबे के कांग्रेसी नेता इसे थरूर के यहां की  राजनीति में और अधिक सक्रिय होने की कोशिशों की तरह देख रहे हैं। थरूर का खौफ इस कदर है कि रविवार को दौरे के पहले ही दिन उनके कार्यक्रम पर रोक लगाई गई।

उन्हें कांग्रेस ने  कोझिकोड में यूथ कांग्रेस (वाईसी) को “संघ परिवार और धर्मनिरपेक्षता को चुनौती” पर अपने भाषण की मेजबानी करने से रोक दिया। यहां ये गौर करने की बात है कि पार्टी नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो पर हैं और इसका मकसद संघ  “विभाजनकारी राजनीति” को निशाना बनाना है। लेकिन थरूर कहां हार मानने वाले थे।उन्होंने वाईसी के अपना न्यौता वापस लेने से बेपरवाह थरूर ने इस बातचीत के लिए अपना एक नया मंच तैयार कर लिया। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस समर्थक जवाहर यूथ फाउंडेशन को खोज लिया। अब ये फाउंडेशन पार्टी के उनके कार्यक्रम से पीछे हटने के बाद उत्तर केरल में कहीं और एमपी के “कांग्रेस कार्यक्रम” की मेजबानी करेगी।

थरूर लग रहे खतरा

दरअसल अक्टूबर में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने और 12 फीसदी वोट हासिल कर अपने आलोचकों को चौंका देने के बाद केरल में कांग्रेस नेताओं को 3 बार के सांसद रहे थरूर से खतरा नजर आ रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे उन्हें यह दिखाने में मदद मिलेगी कि पार्टी में बदलाव की जरूरत है और अब उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।

पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति के मुकाबले में थरूर को उनके गृहराज्य से कोई मदद नहीं मिली। उनके गृह राज्य के नेतृत्व ने इसे  ठंडे बस्ते में डाल दिया था। माना जा रहा है थरूर की शोहरत के बढ़ने से मौजूदा वक्त में केरल के सबसे प्रभावशाली नेता और एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल की छवि को ग्रहण लग सकता है या उनके प्रभाव में कमी आ सकती है।

केरल में कांग्रेस की राजनीति में एक बड़ी भूमिका हासिल करने के थरूर के कदम से पार्टी की राज्य इकाई में समीकरण बदलने की संभावना है। खासकर उच्च जाति के हिंदू नायर खेमे में जिसमें अभी वेणुगोपाल, विपक्ष के नेता वीडी सतीसन, सूबे की विधानसभा के पूर्व विपक्षी नेता रहे रमेश चेन्निथला और  पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के मुरलीधरन का वर्चस्व है।

नायर खेमे में फूट का खौफ

थरूर की एंट्री से सूबे में कांग्रेस पार्टी के नायर खेमे में भी फूट पड़ने की संभावना है। कोझिकोड से कांग्रेस सांसद एमके राघवन और यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष केएस सबरीनाधन ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के  चुनाव में हार के बावजूद थरूर का समर्थन किया है। कांग्रेस में नायर खेमे के संकट को बढ़ाते हुए शशि थरूर को 2 जनवरी को नायर सर्विस सोसाइटी (एनएसएस) के संस्थापक मन्नथु पद्मनाभन की वार्षिक जयंती समारोह में मुख्य अतिथि बनाया गया है।

एनएसएस 1 दिसंबर को इस कार्यक्रम का आधिकारिक ऐलान करने जा रहा है। एक दौर था जब साल 2009 में थरूर ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता, तो एनएसएस उन्हें अपनाने के  लिए तैयार नहीं था। उस वक्त उन्हें इस  संगठन ने  दिल्ली का नायर कह कर दरकिनार कर दिया था। लेकिन तब से अब तक  थरूर ने चुनाव जीतकर लगातार युवाओं, महिलाओं और मध्यम वर्ग के समर्थन का आनंद लेते हुए एक लंबा सफर तय किया है। यहां पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान थरूर कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में से एक थे। तब उन्होंने वोटर्स के साथ जुड़ने की अपनी काबिलियित का शानदार जलवा बिखेरा था।

आईयूएमएल भी आ रहा करीब

थरूर उत्तर केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के मुख्य आधार इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के कई कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले हैं।आईयूएमएल के करीब आने के थरूर के कदम का पार्टी पर भी असर होगा। आईयूएमएल ऐसे वक्त में थरूर के लिए रेड कार्पेट बिछा रहा है जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के सुधाकरन अपने बार-बार आरएसएस समर्थक बयानों को लेकर बैकफुट पर हैं। सुधाकरन के आरएसएस समर्थक रुख को ध्यान में रखते हुए आईयूएमएल ने कांग्रेस को एक संदेश भेजा है कि वो पार्टी के शीर्ष पर एक विश्वसनीय, धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व देखना चाहती है। (एएमएपी)