प्रदीप सिंह।
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शुक्रवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस पर दो देशों की दो तरह की प्रतिक्रियाएं आई। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर गहरा दुख जाहिर किया है। शिंजो आबे और नरेंद्र मोदी की दोस्ती के बारे में सबको पता है। भारत और जापान की दोस्ती के बारे में सबको पता है। वहीं दूसरी ओर चीन के सोशल मीडिया में इस पर खुशी मनाई जा रही है। चीन का पूरा सोशल मीडिया खुशी के संदेशों से भरा पड़ा है। जबकि वहां के आधिकारिक मीडिया ने कहा है कि वह बहुत लोकप्रिय नहीं थे। इसके बहुत गहरे मायने हैं। आबे की हत्या मात्र जापान के एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या नहीं है, इसके अंतरराष्ट्रीय मायने हैं। दुनिया का जो वैश्विक ऑर्डर बदल रहा है उससे इसका संबंध है, चीन को जो घेरने की कोशिश हो रही है उससे संबंध है।
आप याद कीजिए, डोकलाम में जब चीन ने घुसपैठ की कोशिश की थी तो जो देश और जिस देश का प्रधानमंत्री सबसे पहले भारत के समर्थन में आया था वो शिंजो आबे थे। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी विश्व के जिन तीन नेताओं को ट्विटर पर फॉलो करते थे उनमें एक शिंजो आबे थे। मुख्यमंत्री के रूप में 2012 से 2014 के बीच उन्होंने जिन तीन देशों की यात्रा की थी उनमें रूस, जापान और चीन थे। मोदी की डिप्लोमेसी की बात मैं पहले भी कर चुका हूं। उसके गहरे मायने को समझिए। भारत दुनिया के कई देशों की आंख की किरकिरी बना हुआ है। जो डीप स्टेट हैं, डीप स्टेट कौन हैं, पूर्व राष्ट्रपति, राष्ट्राध्यक्ष, सीआईए, नाटो, जो प्रभावशाली सांसद हैं, बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां, इनका गठजोड़ दुनिया में कहीं भी अराजकता फैलाने, सत्ता परिवर्तन करने, तख्ता पलटने, इन सबमें सक्षम है। मत भूलिए कि भारत में पिछले चार सालों से क्या हो रहा है। सीएए के विरोध में आंदोलन, तथाकथित किसान आंदोलन, अग्निवीर को लेकर आंदोलन, इस तरह के जितने आंदोलन हो रहे हैं उसके पीछे डीप स्टेट का हाथ है। वे लोग खुद नहीं आते, उनके देश के लोग नहीं आते, उनके देश की सेना नहीं आती, वो यहीं के स्थानीय लोगों का इस्तेमाल करते हैं। उसको इस तरह से दिखाते हैं जैसे विरोध असंतोष की वजह से है, सरकार के खिलाफ नाराजगी है, सरकार की नीतियों से नाराजगी के रूप में पेश करने की कोशिश होती है। नरेंद्र मोदी बहुत से देशों के निशाने पर हैं, खासकर मैं डीप स्टेट की बात कर रहा हूं।
चीन के खिलाफ गठजोड़ के थे जनक
अब आप देखिए किस तरह से विश्व में घटनाएं घट रही हैं। 2016 से 2020 के चार सालों में चीन के विरुद्ध एक गठजोड़ बना जिसके जनक जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री आबे थे। उस समय शिंजो आबे ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने बाद में ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया, के साथ चीन के खिलाफ मजबूत गठबंधन तैयार किया। इससे चीन बहुत बेचैन था। उससे पहले की बात करें, शिंजो आबे 2006 में पहली बार जापान के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने संविधान में संशोधन की बात की क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान का जो संविधान बना वह अमेरिकी जनरलों की देखरेख में बना था। जापान में जो भी उस संविधान के खिलाफ बोलता था उसको चुप करा दिया जाता था, पार्टी से निकाल दिया जाता था या दूसरी कार्रवाई की जाती थी। उन्होंने संविधान बदल डाला। साथ ही दुनिया में चीन के रणनीतिक और आर्थिक प्रभाव को कम करने की कोशिश की। बराक ओबामा जब अमेरिकी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने जपान को सबक सिखाने के लिए चीन को आगे बढ़ाना शुरू किया। उसके बाद जापान विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं रह गया। अमेरिका ने नीतियों में ऐसे परिवर्तन किए जिससे जापान को यह संदेश जाए कि तुमने हमारी हुक्मअदूली की है इसकी सजा भुगतो। लेकिन शिंजो आबे पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। 2012 में जब वे दोबारा लौट कर सत्ता में आए तो उस रास्ते पर और तेजी से चले और चीन को घेरने की भरपूर कोशिश की। एशियाई देशों को जोड़ने की कोशिश की।
भारत और मोदी के सबसे बड़े मददगार
भारत के लिए तो जापान और शिंजो आबे जिस तरह से मददगार थे उस तरह से तो शायद दुनिया का कोई और देश हो। बुलेट ट्रेन का मामला लीजिए, यह प्रोजेक्ट बहुत महंगा है और भारत जैसे देश के लिए इसे अफोर्ड करना मुश्किल था। आबे ने भारत को आश्वस्त किया कि इसका ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा। इसलिए प्रोजेक्ट की 80 फीसदी फंडिंग जापान ने की। यह जापान की फंडिंग से चल रहा है। इसके अलावा मालाबार हिल्स एक्सरसाइज जिसमें जापान आता जाता है, क्वार्ड बनने के बाद से जापान लगातार इसमें शामिल हुआ है। यह भी चीन के खिलाफ है। अब आप देखिए कि कौन लोग कैसे सत्ता से बाहर हुए। डोनाल्ड ट्रंप लेफ्ट विंग को हराकर सत्ता में आए थे, राष्ट्रवादी थे, सत्ता से बाहर हो गए। उसके बाद शिंजो आबे को स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से हटना पड़ा। यह कोई सामान्य बात नहीं थी और असामान्य बात डीप स्टेट के लिए यह थी कि पद से हटने के बाद भी शिंजो आबे जापान की विदेश नीति के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। भारत और ब्रिटेन के रणनीतिक संबंधों को आगे ले जाने वाले बोरिस जॉनसन को भी एक सहयोगी के मामले में फंस कर सत्ता से बाहर कर दिया गया। बहुत जल्द भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते को लेकर हस्ताक्षर होने वाला था। जॉनसन लंबे समय के संघर्ष के बाद कम्युनिस्टों को हरा कर सत्ता में आए थे, राष्ट्रवादी थे। अब आप देखिए कि किस तरह से पेशबंदी हो रही है पूरी दुनिया में। यह पेशबंदी भारत के खिलाफ हो रही है, मोदी के खिलाफ हो रही है। सवाल यह है कि मोदी के खिलाफ क्यों हो रही है, क्योंकि डीप स्टेट को पता है कि मोदी के नेतृत्व में भारत ही एकमात्र देश है जो उनके प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है और उसे कम कर सकता है। इसलिए चारो तरफ से हमला भारत पर है। जो भी भारत का दोस्त बनता है, मोदी का दोस्त बनता है उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ न कुछ होने लगता है। डोनाल्ड ट्रंप और बोरिस जॉनसन सत्ता से बाहर हो गए। जब भी ऐसा कोई नेता सत्ता से बाहर होता है तो लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम या डीप स्टेट का जो इकोसिस्टम है उनमें उम्मीद की एक लहर दौड़ने लगती है। डोनाल्ड ट्रंप गए तो माना गया कि अब मोदी की बारी है। बोरिस जॉनसन गए तो खुशी मनाई जा रही है कि अब इसके बाद मोदी की बारी हो सकती है। ये हर बार इंतजार करते हैं मोदी के जाने का।
ट्रंप-जॉनसन वाली गलती मोदी ने नहीं की
डोनाल्ड ट्रंप और बोरिस जॉनसन ने जो गलती की वह मोदी ने नहीं की। इन दोनों नेताओं ने अपने देश में अपनी विचारधारा का विस्तार करने की कोशिश नहीं की। सत्ता पाने के बाद ये सत्ता से संतुष्ट हो गए लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं किया। मोदी ने पहले दिन से ही अपनी विचारधारा का विस्तार नीचे तक करने का प्रयास शुरू कर दिया और काफी हद तक उसमें कामयाब हो चुके हैं। उनकी लोकप्रियता और विश्वसनीयता किसी भी षडयंत्र के खिलाफ उनका सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है। इसीलिए आप देखिए कि चाहे सीएए का मामला हो या कथित किसान आंदोलन का मामला हो, अग्निवीर का मामला रहा हो, इन सब से बच कर कुंदन की तरह चमकते हुए मोदी बाहर निकले। उनके विरोधी कुछ कर नहीं पाए। इन तीनों मौकों पर ऐसा लगा कि बस अब मोदी की लोकप्रियता खत्म हो गई, अब उनका पराभव शुरू होगा। मगर हर ऐसी अग्निपरीक्षा से मोदी तप कर निकले। ये काम इन दोनों नेताओं ने नहीं किया। दूसरी बात, इन दोनों नेताओं और मोदी में जो फर्क है वह यह है कि मोदी ने गरीबी देखी है, नीचे से उठे हैं। वे इन लोगों की तरह चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे। उन्होंने गरीबी नहीं देखी, उन्होंने अभाव नहीं देखा। मोदी को यह सब पता है। उन्हें मालूम है कि अभाव और गरीबी से कैसे लड़ा जाता है। दूसरी बात, कोविड के दौरान दुनिया के अमीर देश और साधन-संपन्न देश अमेरिका और ब्रिटेन भी लड़ने में नाकाम रहे। दोनों के बीच यह होड़ लगी थी कि किसके यहां ज्यादा मौतें होती हैं। उसके विपरीत साधनविहीन भारत जहां हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर दुनिया के अन्य बड़े विकासशील देशों की तुलना में भी शायद सबसे खराब स्थिति में है, उसको रातों-रात उन्होंने कई गुना बढ़ाया। पूरी दुनिया को दो प्रभावी वैक्सीन दी, पूरी दुनिया को मेडिकल सहायता दी। पीपीई किट, दवा से लेकर बाकी चीजें निर्यात की। मोदी ने जिस तरह से कोविड में काम किया उसने लोगों का भरोसा मोदी में और बढ़ाया। पूरी दुनिया ने देखा कि एक अभाव वाला देश प्रभावी नेता के कारण शताब्दी के सबसे बड़े संकट से बाहर निकल आया।
आबे की हत्या भारत के लिए खतरा
शिंजो आबे की हत्या बहुत बड़ा खतरा है भारत के लिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए। आप यह मान कर चलिए कि नरेंद्र मोदी डीप स्टेट से डरने वाले नहीं हैं। शिंजो आबे और बोरिस जॉनसन, ये दोनों कोलेटरल डैमेज हैं मोदी के समर्थन के लिए, भारत के समर्थन के लिए। चीन यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है। आप मान कर चलिए कि अमेरिका दोस्ती का कितना भी दिखावा करे, वह कतई नहीं चाहता है कि भारत आगे बढ़े। अमेरिका कतई नहीं चाहता कि भारत मजबूत हो। जिस तरह से दुनिया में भारत की ताकत बढ़ रही है यह अमेरिका को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है। नूपुर शर्मा का जो मुद्दा शुरू हुआ है यह अमेरिका का कराया हुआ है। कतर से जो शुरुआत हुई और उसके बाद जो दूसरे इस्लामी देशों से बयान आए उन ब के पीछे अमेरिका है। अमेरिका नहीं चाहता है कि मोदी और ताकतवर हों। विश्व स्तर पर आज जो हैसियत मोदी की है विश्व के किसी भी नेता की नहीं है, सबसे अमीर नेता और सबसे ताकतवर नेता की भी नहीं है। यह बात न चीन को पसंद आ रही है, न अमेरिका को और न ही उनके दोस्तों को।
अमेरिका को यह कतई पसंद नहीं आया कि उसकी रोक के बावजूद भारत ने रूस से हथियार खरीद लिए। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद तमाम प्रतिबंध लगने के बावजूद भारत रूस से तेल खरीद रहा है। रूस के खिलाफ अमेरिका और यूरोप के जो प्रतिबंध हैं भारत ने उन्हें एक तरह से निष्प्रभावी कर दिया है। भारत की यही सबसे बड़ी ताकत है कि यह अपना फैसला खुद कर रहा है। वही फैसला कर रहा है जो देश के हित में है, किसी के दबाव में या किसी के प्रभाव में फैसला नहीं कर रहा है। शिंजो आबे की हत्या, उनका जाना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। यह हमारे लिए दुख और संताप की घड़ी है। इस घटना को इस संदर्भ में देखिए कि भारत का एक बहुत अच्छा और विश्वासपात्र दोस्त चला गया।