#dhruvguptध्रुव गुप्त। 
आज सावन का आरंभ हो गया है। सावन को भगवान शिव का महीना कहा गया है। इस मान्यता के पीछे की पौराणिक कथा यह है कि प्राचीन काल में देवों और असुरों के संयुक्त प्रयास से समुद्र-मंथन का अभियान सावन में ही चला था। 

हलाहल का कोई दावेदार नहीं

समुद्र मंथन अभियान में मिले ज्यादातर रत्नों का बंटवारा तो देवों और असुरों ने आपस में कर लिया लेकिन एक विनाशकारी रत्न हलाहल का कोई दावेदार नहीं था। सृष्टि को इस विष के घातक प्रभाव से बचाने के लिए शिव ने उसे स्वयं पीना स्वीकार किया। यह नीला जहर उनके कंठ में एकत्र हो गया जिसके कारण उन्हें नीलकंठ का नाम मिला। उनके शरीर में विष का ताप कम करने के लिए देवों ने दूर-दूर से गंगाजल लाकर उनका अभिषेक किया। तब से शिवभक्तों द्वारा सावन के महीने में पवित्र गंगा से जल लेकर भारत के विभिन्न ज्योतिर्लिंगों और शिव मंदिरों में अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है। यह कथा तो खैर कथा ही है, वरना जिस शिव की जटा में ही गंगा का वास है उनके लिए कहीं दूर से गंगाजल ढोकर लाने की क्या आवश्यकता थी ?

प्रकृति के विराट रूपक

मेरी समझ से शिव और सावन का रिश्ता यह है कि सावन में प्रकृति अपने को नए सिरे से गढ़ती है और शिव प्रकृति के ही देवता हैं। प्रकृति के एक विराट रूपक। पर्वत उनका आवास है। वन उनकी क्रीड़ाभूमि। सांप, बैल, मोर, चूहा उनके परिवार के सदस्य हैं। उनके पुत्र गणेश का सर हाथी का है। उनकी पत्नी पार्वती के एक रूप दुर्गा का वाहन सिंह है। नदी उनकी जटाओं से निकलती है। योग से वे वायु को नियंत्रित करते हैं। उनकी तीसरी आंख में अग्नि का तेज और माथे पर चंद्रमा की शीतलता है। उनका त्रिशूल प्रकृति के तीन गुणों- रज, तम और सत का प्रतीक है। उनके डमरू के स्वर में प्रकृति का संगीत है। उनके तांडव में प्रकृति का आक्रोश। उनकी पूजा दुर्लभ और महंगी पूजन सामग्रियों से नहीं, प्रकृति में बहुतायत से उपलब्ध बेलपत्र, भांग की पत्तियों, धतूरे और कनैल के फूलों से होती है। शिव निश्छल, भोले, कल्याणकारी हैं। एकदम प्रकृति की तरह। शिव का जीवन इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर जीवन में सुख-शांति, सरलता, सादगी, शौर्य, योग, अध्यात्म सहित कोई भी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। शिव का सावन प्रकृति के साथ साहचर्य का संदेश है। यह चेतावनी भी कि प्रकृति के साथ अनाचार का नतीजा अंततः प्रलयंकारी तांडव के सिवा कुछ नहीं होने वाला है।
(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एवं जाने-माने साहित्यकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)