-प्रदीप सिंह।
मध्य प्रदेश में बेटियों के मामा और बहनों के भाई शिवराज सिंह चौहान की हो गई विदाई। क्यों गए शिवराज सिंह चौहान? आखिर क्यों जाना पड़ा उनको। शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के उन थोड़े से नेताओं में हैं जो बड़े जुझारू हैं। जनाधार वाले नेता हैं। लोकप्रिय नेता हैं। पार्टी से कभी बगावत नहीं की। पार्टी में कभी असंतोष जाहिर नहीं किया। पद मिला तो, पद नहीं मिला तो। मुख्यमंत्री बनेंगे वो, ऐसा लग रहा था। कम से कम मुझे लग रहा था कि जिस तरह का वर्डिक्ट आया है, जितना बड़ा जनादेश आया है, उसके बाद उन्हें- चाहे आधे टर्म के लिए- मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था। लेकिन मेरी धारणाएं, मेरा आकलन और अनुमान गलत साबित हुआ। बहुत से लोगों का आकलन गलत साबित हुआ। मध्य प्रदेश में तमाम ऐसे लोग होंगे जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को यह समझकर वोट दिया था कि शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बनेंगे। खासतौर से बेटियों और बहनों ने। लेकिन उनको निराशा हाथ लगी।
शिवराज सिंह चौहान निराश हैं या नहीं, यह कहना मुश्किल है। लेकिन किसी को भी शिखर से उतरना अच्छा नहीं लगता। शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए कोई ऐसा काम नहीं किया जो उनके खिलाफ जाता हो। जिस आधार पर आप कह सकें कि इस आधार पर उन्हें हटा दिया जाना चाहिए था। जितने बाक्सेज थे, सभी को उन्होंने टिक किया। फिर भी उन्हें पद से हटा दिया गया- या उन्हें पद नहीं दिया गया।
जन सेवा की जो शपथ ली थी
सालों पहले,
जब तक साँसें चलेंगी,
निभाऊँगा… pic.twitter.com/BaAUizlepe— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) December 18, 2023
मझधार से निकाल के लाए ‘कश्ती’
अब उसके कई कारण हैं। उसकी भी बात करता हूं। पहले शिवराज सिंह चौहान की बात कर लें। शिवराज सिंह जब 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो पार्टी उस समय बड़े संकट में थी। सबसे बड़ी लोकप्रिय नेता उमा भारती पार्टी से बगावत कर चुकी थीं। मुख्यमंत्री पद से उनको हटाया गया था। इस बात को वह स्वीकार नहीं कर पा रही थीं। उन्होंने पार्टी से अलग होने का फैसला लिया। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। उस समय वह बहुत लोकप्रिय नेता नहीं थे। बहुत जाना पहचाना नाम नहीं था शिवराज सिंह चौहान का। और पार्टी का जो राष्ट्रीय नेतृत्व है, उस समय उसका भी उतना समर्थन उन्हें नहीं था, जितना उमा भारती को था। इसके बावजूद आप उनको देखिए कि जितने समय उमा भारती पार्टी में रहीं या पार्टी को छोड़ कर चली गईं, उसके बाद भी उन्होंने उमा भारती के लिए एक भी अपशब्द नहीं कहा। कोई भी उनका ऐसा बयान आप नहीं दिखा सकते जिससे लगता हो कि उन्होंने कभी उमा भारती का अपमान करने की कोशिश की हो। या उनकी गरिमा घटाने की कोशिश की हो। तो ये स्वभाव है शिवराज सिंह चौहान का।
वे अपने प्रतिद्वंदी या अपने विरोधी के बारे में भी कोई कड़वा शब्द, कोई तीखी बात नहीं बोलते। और अपने साथियों के साथ तो ऐसा बोलने का सवाल ही नहीं। उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान- वो लगभग साढ़े सोलह- सत्रह साल मुख्यमंत्री रहे 2005 से 2023 तक और बीच में डेढ़ साल कमलनाथ मुख्यमंत्री रहे- कभी कोई ऐसा काम नहीं किया कि पार्टी हाई कमान को ऐसा लगे कि वह पार्टी के बताए हुए रास्ते पर या पार्टी के सुझाए हुए रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी के खिलाफ कुछ नहीं किया। प्रदेश के खिलाफ कुछ नहीं किया। शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ कुछ नहीं किया।
#WATCH | Bhopal: Former Madya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan says, “Aaj jab main yahan se vidayi le raha hoon…I am satisfied that in 2023, once again the BJP formed the govt with a thumping majority. My heart is filled with happiness and satisfaction…” pic.twitter.com/9l28OSwEz8
— ANI (@ANI) December 12, 2023
मध्य प्रदेश में 2023 में भारतीय जनता पार्टी की जीत में- यह ठीक है कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में और प्रधानमंत्री के चेहरे पर लड़ा गया- आप ये बात नहीं कह सकते कि शिवराज सिंह चौहान का उसमें कोई योगदान नहीं है। उसमें उनका एक बड़ा योगदान था। चुनाव के दौरान उनका एक बयान काफी लोकप्रिय रहा था कि- “चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊंगा।” और मेरा मानना है कि शिवराज सिंह चौहान चले गए हैं और बहुत याद आएंगे। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी याद आएंगे, कार्यकर्ताओं को भी याद आएंगे, समर्थकों को भी, मतदाताओं को भी और उन लाडली बहनों को भी जिनके लिए उन्होंने वो योजना शुरू की।
पहली बार किसने पहचानी उनकी प्रतिभा
शिवराज सिंह चौहान क्यों चले गए? इससे पहले बात करते हैं कि वो क्यों बने? किन परिस्थितियों में बने? उमा भारती को हटाए जाने का फैसला किया पार्टी हाईकमान ने। उस समय पार्टी हाईकमान दूसरा था- अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी जी का समय था। उमा भारती को हटाने का फैसला आडवाणी जी का था। अटल जी इसके समर्थन में नहीं थे। उन्हें जब बताया गया कि उमा भारती को हटा कर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हो रहा है तो उन्होंने पूछा कि उसको क्यों हटा रहे हो? मतलब उमा भारती के लिए था। तो ये कहा गया आडवाणी और उनके सलाहकारों की ओर से कहा गया कि उमा भारती नेता अच्छी हैं और लोकप्रिय भी हैं, लेकिन वो प्रशासक अच्छी नहीं हैं। सरकार में दिक्कत हो रही है। इसलिए उन्हें हटाना जरूरी हो गया है। तो अटल जी की राय शिवराज सिंह चौहान के बारे में उस समय जो थी, वो ये कि- आप जिसे बनाना चाहते हैं, उसके बारे में तो ये दोनों बातें नहीं कही जा सकतीं। उस समय ये बात सही थी कि शिवराज सिंह चौहान लोकप्रिय भी नहीं थे और प्रशासन का उन्हें कोई अनुभव नहीं था। वो सांसद रह चुके थे। अटल जी उस समय शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे। लेकिन यह आडवाणी जी का फैसला था।
अब ये देखिए कि बड़े नेताओं की एक खूबी होती है। वह है नए नेतृत्व को पहचानने की उनकी क्षमता। लालकृष्ण आडवाणी को ये समझ में आया कि शिवराज सिंह चौहान आगे चलकर मध्य प्रदेश के लिए, भारतीय जनता पार्टी के लिए एक सुयोग्य नेता बन सकते हैं। एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर भी बन सकते हैं। इसी तरह से उन्होंने पहचाना था नरेंद्र मोदी को। जब उनको 2001 में गुजरात भेजा गया था। उस समय नरेंद्र मोदी को कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था। वो कभी कोई चुनाव नहीं लड़े थे। विधायक भी नहीं थे। तब भेजा गया था। तो ये बड़े नेताओं का जो गुण है, अपने कार्यकर्ताओं के बीच में जाकर पहचानना कि कौन अच्छा नेता बन सकता है, कौन अच्छा प्रशासक बन सकता है- यही उनको बड़ा बनाता है।
अटल जी, आडवानी जी के समय में ऐसे कई लोग बनाए गए। शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती के अलावा वसुंधरा राजे सिंधिया को राजस्थान भेजा गया था। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को भेजा गया था। रमन सिंह को जब छत्तीसगढ़ भेजने का फैसला हुआ तो रमन सिंह की पत्नी अटल जी से मिलने गई थीं। और कहा कि इतने लंबे समय से संघर्ष कर रहे विपक्ष में थे- अब केंद्र में सरकार बनी है सत्ता में आए हैं- तो आप फिर से संघर्ष के लिए भेज रहे हैं तो अटल जी का जवाब था, भविष्य के लिए कुछ अच्छा सोचकर भेज रहे हैं। और 15 साल रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे। और अब पांच साल के अंतराल के बाद विधानसभा के अध्यक्ष होंगे। मुझे नहीं लगता कि रमन सिंह ने 2003 में यह कल्पना भी की होगी कि वो मुख्यमंत्री बनेंगे और इतने लंबे समय तक बनेंगे। और सत्ता में रहेंगे इतने लंबे समय तक। लेकिन रमन सिंह हैं। शिवराज सिंह चौहान नहीं हैं। शिवराज सिंह चौहान ने आखिर क्या गलती की? उनको हटाने के कारणों पर बात करते हैं।
सभी नवनिर्वाचित विधायक मित्रों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
मुझे पूरा विश्वास है कि मुख्यमंत्री श्री @DrMohanYadav51 जी के नेतृत्व में प्रदेश प्रगति और विकास की नई ऊचाइयां छुएगा।
मुझे गर्व औरआत्मसंतोष भी है कि मैंने लगभग 17 साल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनता की सेवा… pic.twitter.com/bdpYlG1Pms
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) December 18, 2023
भारतीय जनता पार्टी 2018 में तीन राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान हार गई थी। सबसे कम मार्जिन से हार मध्य प्रदेश में हुई थी। हार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे। बहुमत से लगभग नौ सीटें कम थीं। उसके बाद कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। लेकिन वो सरकार चल नहीं पाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर दी थी। वह कांग्रेस के कुछ विधायकों को लेकर भाजपा में चले आए। उसके बाद क्या हुआ, सब आपको मालूम है। मध्य प्रदेश मेें भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई। शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय नेतृत्व ने फिर मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंप दी। एक स्थिर सरकार देना उस समय की जरूरत थी और शिवराज सिंह चौहान ही एक ऐसे नेता थे जो यह काम कर सकते थे। बाहर से जो विधायक आए थे, उनको पार्टी से जोड़ना और सरकार चलाना आसान नहीं था। लेकिन हर परीक्षा में शिवराज सिंह चौहान खरे साबित हुए।
प्रतिद्वंद्विता से दूर
एक ऐसा अवसर 2013 में आया था, जब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की दौड़ में शिवराज सिंह शामिल नजर आ रहे थे, लेकिन शिवराज ने अपने व्यवहार से यह साबित कर दिया था कि उस समय के नरेंद्र मोदी से उनकी कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है। वह हमेशा पार्टी के फैसलों के साथ खड़े रहे। फिलहाल उनके मन में क्या है, यह कोई नहीं जानता। लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सार्वजनिक व्यवहार से या विचारों से यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह कहीं भी नरेंद्र मोदी की प्रतिद्वंद्विता में खड़े हैं। वह पार्टी के साथ खड़े रहे और अब भी जब पार्टी ने तय किया कि उनको मुख्यमंत्री रहते हुए भी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जाएगा वह पार्टी के साथ रहे। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार नहीं थी इसलिए वहां वसुंधरा राजे या रमन सिंह को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोई मजबूरी नहीं थी। लेकिन मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे। इसलिए उनको मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट ना करना एक तरह से उनकी प्रतिष्ठा के साथ समझौता था। मैं ये तो नहीं कहूंगा कि इससे उनका अपमान किया गया लेकिन इतना जरूर है कि इससे उनका सम्मान बढ़ा नहीं।
सिटिंग चीफ मिनिस्टर को यह पता न हो कि उसे टिकट मिलेगा कि नहीं, और चुनाव जीत गए तो वह मुख्यमंत्री बनेगा कि नहीं। ये स्थिति अच्छी नहीं होती। पता नहीं, पार्टी हाई कमान ने क्या सोचा होगा। क्या पार्टी हाई कमान का आकलन था कि उन्हें प्रोजेक्ट न करने से फायदा होगा या प्रोजेक्ट करने से कोई नुक्सान होगा, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। लेकिन इतना तय है कि नतीजे बताते हैं कि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहने से भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ और जो जनादेश आया है, उसमें शिवराज सिंह चौहान का बड़ा योगदान है।
बेदाग और जनता के नेता
वो जनता के नेता हैं। इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी जनता के बीच इतने घुलमिल जाते हैं कि जैसे उन्हीं के व्यक्ति हों। सामान्य व्यक्ति हों। सत्ता का, एनटाइटिलमेंट का भाव कि मैं मुख्यमंत्री हूं- इतने समय से मुख्यमंत्री हूं- इतने बड़े राज्य का मुख्यमंत्री हूं- ये भाव शिवराज सिंह चौहान में कभी नहीं आया। सामान्य व्यक्ति से बात कर रहे हों, कार्यकर्ता से बात कर रहे हों, प्रदेश के नेता से बात कर रहे हों या राष्ट्रीय नेताओं से बात कर रहे हों। उन्होंने कभी ये जताने की कोशिश नहीं की कि जो कुछ है मध्य प्रदेश में, वो सब मेरी वजह से है। वह श्रेय हमेशा पार्टी को, संगठन को और कार्यकर्ताओं को देते रहे हैं। तो भारतीय जनता पार्टी में मेरी नजर में ऐसे नेता खोजना बहुत मुश्किल है।
शिवराज सिंह चौहान अपने किस्म के अद्भुत नेता हैं। जो इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद बेदाग निकले। आपको याद होगा 2018 के विधानसभा चुनाव का नतीजा। उसके बाद मध्य प्रदेश में एक माहौल था। एक दुख का माहौल था। खुशी का नहीं था कि कांग्रेस पार्टी की सरकार बन गई- हमने जिस पार्टी को वोट दिया उसकी सरकार बन गई। लोगों में ये अफसोस था कि हमने कुछ ज्यादा कर दिया। शिवराज सिंह चौहान को हारना नहीं चाहिए था। मतलब उनकी सरकार को जाना नहीं चाहिए था। वो अपना चुनाव नहीं हारे थे। उनकी सरकार को जाना नहीं चाहिए था। हमने नाराजगी कुछ ज्यादा दिखा दी।
आप मुझे बताइए याद करके- कितने ऐसे चुनाव होंगे जिसमें हारने वाली पार्टी के नेता के प्रति ऐसी सहानुभूति हो। शिवराज सिंह चौहान के प्रति ऐसा था। प्रदेश की बेटियां और बहनें जिसको अपना अपने परिवार का मुखिया मानती हों, ऐसा मुख्यमंत्री कहां मिलेगा? शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही मुख्यमंत्री थे। तब उनको हटाने का फैसला मुझे लगता है, इस वजह से हुआ कि 2018 में तीनों राज्यों में हार के बाद पार्टी नेतृत्व परिवर्तन करना चाहती थी। अगली पीढ़ी को मौका देना चाहती थी। पीढ़ी परिवर्तन करना चाहती थी लेकिन उस समय नहीं हो पाया। उस समय राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपना पांव अड़ा दिया था और छत्तीसगढ़ में पार्टी ने एक तरह से मान लिया था कि वो 2018 का ही चुनाव नहीं हारी है, 2023 का चुनाव भी हार जाएगी। पार्टी ने एक तरह से सरेंडर कर दिया था। आत्मसमर्पण कर दिया था कि हमको अगला चुनाव भी जीतने की कोई उम्मीद नहीं है। लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं हुआ। मध्य प्रदेश में पार्टी बहुत कम मतों से हारी थी। इसलिए शिवराज सिंह चौहान का रिलेवेंस बना रहा। उनकी प्रासंगिकता बनी रही।उनकी जरूरत बनी रही। 2020 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया आए और भाजपा की सरकार बनी तब शिवराज सिंह चौहान मजबूरी नहीं जरूरी थे।
विरासत और विकास की पटरी पर तेज गति से आगे बढ़ रहा भारत : प्रधानमंत्री मोदी
वही थे जो चला सकते थे। और पार्टी को भी अंदाजा है कि जिन छह सात मंत्रियों और सांसदों को चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया, जिनके बारे में चर्चा रही कि उनमें से कोई मुख्यमंत्री बन सकता है, उनमें से किसी को कोई पद नहीं दिया गया। क्योंकि पार्टी को मालूम था कि इनमें से कोई भी मुख्यमंत्री बनने के योग्य नहीं है। जो नए मुख्यमंत्री बने हैं, चाहे वह राजस्थान का हो या छत्तीसगढ़ का- उसमें जो दृष्टि है, वो पीढ़ी परिवर्तन की है। नए नेतृत्व को उभारने की है। नई भाजपा को खड़ा करने की दूरगामी दृष्टि के तहत नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। राजनीति में जब भी ऐसी कोई घटना होती है तो मुझे रामधारी सिंह दिनकर की एक पंक्ति याद आती है। उन्होंने लिखा है, निष्ठुरता की सीपी में राजनीति का मोती पलता है। तो राजनीति की निष्ठुरता की भेंट चढ़ गए शिवराज सिंह चौहान। कोई गलती नहीं की। कोई कमी नहीं किए। लेकिन परिवर्तन होना था, इसलिए उनको जाना पड़ा। और कोई कारण नहीं है शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री न बनाने का। लेकिन भारतीय जनता पार्टी को शिवराज सिंह चौहान जैसा नेता मिलना मुश्किल है। बहनों के लिए ऐसा भाई मिलना मुश्किल है। बेटियों के लिए ऐसा मामा मिलना मुश्किल है। तो वो किसी को याद आएं न आएं, मध्य प्रदेश की बेटियों और बहनों को हमेशा याद आते रहेंगे।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)