गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस अनुक्रमणिका पुस्तक का विमोचन
आईजीएनसीए की पत्रिका ‘कलाकल्प’ के वसंत पंचमी अंक का लोकार्पण
वैदिक फॉन्ट ‘वेदाक्षर’ का लोकार्पण
कलानिधि डिजिटल रिपॉजिटरी का लोकार्पण
‘वसंत बहार’ थीम पर कथक प्रस्तुति
आपका अखबार ब्यूरो।
वसंत वातावरण में रस घोल देता है। चारों तरफ उत्सव, उत्साह और ऊर्जा का संचार सहज ही होने लगता है। प्राणियों के साथ प्रकृति भी झूमने लगती है। वसंत जीवन में राग-रंग लेकर आता है, वहीं यह ऋतु आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। वसंत पंचमी के दिन ही कला, ज्ञान और विद्या की देवी मां सरस्वती का प्रकटोत्सव मनाया जाता है। मां सरस्वती परम चेतना हैं। ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। यह अत्यंत सौभाग्य का विषय है कि इसी शुभ दिन इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कलानिधि विभाग का स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 14 फरवरी को आयोजित कलानिधि विभाग के स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदर्शनी, पुस्तक विमोचन एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया, साथ ही सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया गया।
स्थापना दिवस के अवसर पर विमलेश कांति वर्मा एवं सुनंदा वर्मा द्वारा तैयार की गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस की अनुक्रमणिका का लोकार्पण आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, आईसीसीएसआर के सदस्य सचिव प्रो. धनंजय सिंह, कलानिधि के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौर और सुनंदा वर्मा ने किया। इस दौरान गणमान्य अतिथियों ने कलानिधि विभाग द्वारा तैयार की गई ‘सूक्ष्म चित्रित पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक ई-पज्जिका दर्शन खंड- 4 ( भाग 1-3)’, आईजीएनसीए की पत्रिका ‘कला कल्प’ के वसंत पंचमी अंक और वैदिक फॉन्ट ‘वेदाक्षर’ का भी लोकार्पण किया। इसके अतिरिक्त, कलानिधि डिजिटल रिपॉजिटरी का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने की। कार्यक्रम में अतिविशिष्ट अतिथि थे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीसीएसआर) नई दिल्ली के सदस्य सचिव प्रो. धनंजय सिंह।
कलानिधि स्थापना दिवस कार्यक्रम के दूसरे चरण में डॉ. अनु सिन्हा और उनकी मंडली ने ‘वसंत बहार’ थीम पर मनमोहक कथक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में कला निधि विभाग डॉ. पौलोमी दासगुप्ता ने सरस्वती वदंना की।
श्रीरामचरितमानस की अनुक्रमणिका तैयार करने वाले प्रसिद्ध लेखक और कई देशों में राजनयिक रहे विमलेश कांति वर्मा ने कहा कि भारत में मुख्य रूप से तीन लोकनायक हुए- राजा राम, गौतम बुद्ध और गोस्वामी तुलसीदास। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व का नेतृत्व किया। विदेशों में भी तुलसीदास के रामचरितमानस पर आधारित रामलीलाओं का मंचन देखने को मिलता है। उन्होंने आगे कहा, राम शब्द एक महामंत्र है। राम शब्द तीन ध्वनियों से मिलकर बना है- र, आ और म। ये तीनों ध्वनियां अग्नि, सूर्य और चंद्र शक्ति हैं, इसलिए राम नाम तीन शक्तियों का समुच्चय है। प्रो. धनंजय सिंह ने कहा कि विश्वभर में जितने भी बड़े वैज्ञानिक हुए, उनमें ज्यादातर की भारतीय दर्शन में रुचि रही। उन्होंने कहा कि राम हम सभी के भीतर मौजूद हैं। राम से भी अधिक महिमा उनके नाम की है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में रामबहादुर राय ने कहा, मेरे हिसाब से रामचरितमानस में दो ही पात्र हैं। राम और रावण। उन्होंने कहा कि आज हमें इन दोनों पात्रों समझने की आवश्यकता है। राम और रावण दोनों में शक्ति थी। राम और रावण में फर्क यह था कि राम की शक्ति में करुणा थी। यदि रावण में करुणा होती, तो उसका हृदय धीरे-धीर शुद्ध होने लगता। जैसे-जैसे हमारा हृदय शुद्ध होता है, हममें राम की शक्ति आने लगती है। लेकिन हृदय में कलुष होता है, तो शक्ति आप को रावण के पथ पर ले जाएगी।
प्रो. रमेश चंद्र गौर ने स्थापना दिवस पर लोगों का स्वागत करते हुए कलानिधि विभाग के एक वर्ष के कामों का ब्योरा लोगों के सामने रखा। इस दौरान उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ दिनों में कला निधि विभाग की दो सीरिज लॉन्च की जाएंगी। इस क्रम 23 फरवरी को केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी ‘कल्चर पॉलिसी चौपाल’ का शुभारम्भ करेंगी। वहीं दूसरी सीरिज होगी- ‘मेरी भाषा मेरे लोग’, जिसका उदेश्य होगा, हमें हर भाषा से कुछ न कुछ सीखना है।
‘वेदाक्षर’ फ़ॉन्ट के बारे में बताते हुए प्रो. रमेश गौर ने कहा कि भारतीय संस्कृति और कला की बहुमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण धरोहर पाण्डुलिपियों में निहित हैं। इन दुर्लभ लिपियों के संरक्षण हेतु फ़ॉन्ट सॉफटवेयर निर्माण की आवश्यकता है, ताकि इन लिपियों का ज्ञान विलुप्त ना हो। इसी उद्देश्य से कलानिधि विभाग ने वेदों के सस्वर पाठों के सम्पादन एवं प्रकाशन हेतु वेदाक्षर फ़ॉन्ट का निर्माण करवाया है। यह पाण्डुलिपि एवं लिपि विज्ञान पाठ्यक्रम के पठन-पाठन, वैदिक ग्रन्थ एवं लिपि शिक्षण पुस्तकों, कलामूलशास्त्र शृंखला के ग्रन्थ प्रकाशन और वैदिक हैरिटेज पोर्टल पर वैदिक सामग्री उपलब्ध कराने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होगा।
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रमेश गौड़ ने श्री रामचरितमानस अनुक्रमणिका के बारे में बताते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस विश्व साहित्य की अनुपम निधि है। यह एक विशालकाय ग्रन्थ है। जनमानस उसकी अर्धालियां और चौपाईयां विविध अवसरों पर सामान्य रूप से उद्धृत करता चलता है। लेकिन, उस चौपाई के सन्दर्भ को आप श्रीरामचरितमानस में यदि खोजना चाहें तो यह कार्य बहुत श्रमसाध्य और समयसाध्य होगा। ऐसी स्थिति में विद्वानों, छात्रों के लिए, साहित्य, धर्म, दर्शन और इतिहास आदि विविध अनुशासनों पर काम करने वाले शोधकर्ताओं के लिए चौपाई के सन्दर्भ को उद्धृत करना बहुत दुष्कर हो जाता है। श्रीरामचरितमानस की यह अनुक्रमणिका रामचरितमानस का अध्ययन करने में एक महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में प्रयुक्त होगी। अनुक्रमणिका में गीताप्रेस, गोरखपुर का पाठ मान्य एवं प्रचलित पाठ के रूप में स्वीकार किया गया है। इस अनुक्रमणिका में संस्कृत श्लोक, दोहा, सोरठा, विविध प्रयुक्त छंद सभी प्रथम वर्ण क्रम से व्यवस्थित हैं। (एएमएपी)