भारतीय राजनीति में बसपा के उभार के पहले दलित समुदाय कांग्रेस का मजबूत समर्थक वर्ग रहा है। बाद में कांग्रेस के कमजोर पड़ने पर उसका एक वर्ग भाजपा के साथ भी जुड़ा। अगड़े-पिछड़े वर्ग के समर्थक वर्ग के साथ दलित समर्थन भी मिलने से भाजपा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर काफी सफलता भी मिली थी, लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। प्रदेश में भाजपा को लगातार सत्ता में लगभग दो दशक (बीच का सवा साल छोड़कर) हो गए हैं। ऐसे में सत्ता विरोधी माहौल भी पनपा है।
भाजपा के लिए लाभ की बात उसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान है, जो बीते डेढ़ दशक से प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ भाजपा के निर्विवाद नेता बने हुए हैं। ऐसे में भाजपा को पिछड़ा वर्ग का बड़ा समर्थन मिल रहा है। लेकिन अन्य समुदायों में नाराजगी भी दिखती है। इसमें दलित समुदाय भी है, जिसके लगभग 16 फीसद मतदाता है। इनका असर राज्य की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों के साथ लगभग 84 सीटों पर है। जीत हार में यह समुदाय इस बार काफी महत्वपूर्ण होगा। गौरतलब है कि भाजपा ने अपने केंद्रीय संसदीय बोर्ड में लंबे समय से दलित समुदाय के प्रतिनिधित्व के लिए मध्य प्रदेश को चुना है। अभी पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया संसदीय बोर्ड में है। उनके पहले थावरचंद गहलौत बोर्ड में रहे। गहलौत अभी कर्नाटक के राज्यपाल है और उसके पहले वह राज्यसभा में सदन के नेता थे।
अब भाजपा ने संत रविदास के भव्य मंदिर से अपने इस दलित समर्थन को मजबूत करने की कोशिश की है। दरअसल भाजपा को पिछले चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर झटका लगा था। इन 35 सीटों में उसे 18 सीटें ही मिली थी। 17 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी। इसके पहले 2013 के चुनाव में भाजपा ने 28 सीटें जीती थी। तब कांग्रेस ने भाजपा के इस वर्ग में बड़ी सेंध लगाकर अपनी वापसी की थी। अब भाजपा उसे वापस लेने की कोशिश कर रही है।(एएमएपी)