आपका अख़बार ब्यूरो।

एक ‘अच्छाई के लिए युद्ध’ का बुरा अंत हुआ। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में छपी राखाहरी चटर्जी की रिपोर्ट के अनुसार अव्यवस्थित वापसी के लिए राष्ट्रपति बाइडेन की आलोचना की गई, लेकिन इस बात को मानना होगा कि एक ‘अजेय युद्ध’ से बाहर निकलने का नतीजा, जिसका कोई स्पष्ट और सीमित लक्ष्य नहीं था, अप्रिय ही होना था। जिन लोगों को वियतनाम से अमेरिकी सेना की वापसी याद है, वो ज़रूर सहमत होंगे, भले ही वो उत्तर वियतनाम के साथ कई सालों तक शांति प्रक्रिया को लेकर बातचीत के बाद वापस लौटे थे। इतिहासकार को इस बात का विश्लेषण करने का मौका अवश्य मिलेगा कि किस तरह 2003 की शुरुआत में डोनाल्ड रम्सफेल्ड का विचारहीन “मिशन पूरा हुआ” का ऐलान, तालिबान के साथ स्वीकार्य शर्तों पर सामंजस्य बैठाने के अवसरों को खोने के साथ ही अफ़गान सरकार और अफ़गान सेना के कमज़ोर होने की बात मानने से इनकार करने की वजह से, एक ‘चिरकालीन युद्ध’ में बदल गया।

राखाहरी चटर्जी के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान की संस्कृति की समझ न होना, पाकिस्तान की दोहरी भूमिका पर पंगु अकर्मण्यता, व्यापक और गहराई तक जमी भ्रष्टाचार की जड़ों के कारण अफ़ग़ानिस्तान सरकार की अलोकप्रियता सहित कई अन्य मसलों ने हालात को और भी बदतर कर दिया। 2006 से, तालिबान ने अपने हमले शुरू किये और दक्षिणी और पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान के प्रांतों को कब्ज़े में लेना शुरू कर दिया। संख्या बल में अधिक होने के बावजूद अफ़ग़ान सेना का तालिबान के सामने कोई मुक़ाबला नहीं था, क्योंकि उसमें विदेशी शक्ति द्वारा शुरू किये गए युद्ध को लड़ने का कोई जज़्बा नहीं था।

रिपोर्ट में कहा गया है: जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बाद आये राष्ट्रपतियों की इच्छा अफ़गानिस्तान में ‘असाध्य युद्ध’ से बाहर निकलने की थी, लेकिन ‘आतंक के ख़िलाफ युद्ध’ खिंचता गया और सही मायने में उनकी निगरानी में चलने वाला अजेय आतंकवाद विरोधी अभियान बन गया। अनिष्ट के संकेत मिल चुके थे। अमेरिका की अधिकांश जनता (55 प्रतिशत) ने 2010 में ही, सीएनएन/ओपीनियन रिसर्च पोल के अनुसार युद्ध का विरोध किया था। 2019 तक- वॉशिंगटन पोस्ट में छपे अफगानिस्तान पेपर्स के मुताबिक- कई अमेरिकी अधिकारी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि यह युद्ध अजेय है। ओसामा बिन लादेन को कैद करने और मौत के साथ ही युद्ध के अंत पर विचार करने को लेकर अमेरिकी जनता ज़्यादा यथार्थवादी प्रतीत हुई। जैसे की उम्मीद थी, इस साल अगस्त में किये गए अमेरिकी व्यस्कों के प्यू रिसर्च सर्वे में यह बात सामने आयी कि अधिकांश लोग (54 प्रतिशत) अमेरिकी सेना की वापसी को सही फैसला मानते हैं।

इसलिए खुद को यह कहकर दिलासा देना कि विजेता तालिबान काबुल के द्वार पर बातचीत के ज़रिए अफ़गान सरकार से समझौते का इंतज़ार करेगा अनावश्यक है। हालांकि प्यू  सर्वे में पाया गया कि एक बड़े वर्ग ने, करीब 70 प्रतिशत, यह महसूस किया कि अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका अपना लक्ष्य हासिल करने में विफल रहा; बल्कि यह तो वक्त ही बताएगा कि अफ़ग़ानिस्तान में 20 सालों तक अमेरिका की सहभागिता पूरी तरह से निरर्थक रही या नहीं।

पूरी रिपोर्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं:
https://www.orfonline.org/hindi/research/india-and-developments-in-afghanistan/