क्या हिंदू मंदिर आपके लिए फिल्म प्रचार का साधन है?

#pradepsinghप्रदीप सिंह।

रणबीर कपूर और आलिया भट्ट उज्जैन के महाकाल मंदिर दर्शन के लिए गए थे। सनातनियों और महाकाल के भक्तों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश कर ने नहीं दिया और उन्हें वापस जाना पड़ा। इस घटना की पूरे देश-विदेश में बड़ी चर्चा है, सोशल मीडिया पर यही मुद्दा छाया हुआ है। इस घटना की प्रशंसा और आलोचना दोनों हो रही है। मजे की बात यह है कि जो दो पक्ष बने हैं उनमें से विरोध करने वाले ज्यादातर लोग सनातन धर्म के मानने वाले ही हैं। रणबीर और आलिया मंदिर इसलिए गए थे कि इनकी एक फिल्म ब्रह्मास्त्र (पार्ट वन शिवा) रिलीज होने वाली है। रिलीज से पहले ये उसके प्रमोशन का एक हिस्सा था। अब आप इस बात को समझिए कि अभी तक राजनेता चुनाव के समय मंदिर यात्रा पर निकलते थे, अब फिल्म स्टार निकल रहे हैं। पिछले छह-आठ महीनों से ऐसा हो रहा है। इससे पहले बॉलीवुड के तमाम कलाकार फिल्म रिलीज होने से पहले अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने जाते थे। ये अब मंदिर क्यों आ रहे हैं यह बताने की जरूरत नहीं है।

सनातनी ही सनातन धर्म की दशा-दुर्दशा के जिम्मेदार

देश में जो माहौल बन रहा है, जिस तरह का हिंदू पुनर्जागरण हो रहा है- यह उसी का नतीजा है। मैं बार-बार यह बात कहता हूं कि हिंदू को सिर्फ इतना समझ में आ रहा है कि सही क्या है और गलत क्या। उसके साथ जो कुछ हो रहा था उसका कारण वह खुद था। दूसरे लोगों को मैं जिम्मेदार नहीं मानता। सनातन धर्म के लोग ही सनातन धर्म की दशा-दुर्दशा के जिम्मेदार हैं। मैं कभी इस मामले में मुसलमानों को दोष नहीं देता। वे तो मानते हैं कि अल्लाह के अलावा और कोई शक्ति है ही नहीं, जो अल्लाह को नहीं मानते हैं उन्हें जीने का अधिकार नहीं है- तो उनसे कैसी शिकायत। इस घटना के बाद जो लोग ये तर्क दे रहे हैं कि सनातन धर्म का मतलब है ‘लॉजिक और डिबेट’… तो भाई ये बात आपको 75 साल से क्यों नहीं समझ में आई। इससे पहले का इतिहास छोड़ भी दें और केवल आजादी के बाद की बात करें तो ये बात इससे पहले क्यों नहीं समझ में आई। ये भी तर्क दिया जा रहा है कि आलिया भट्ट प्रेग्नेंट हैं, उनके साथ इस तरह का व्यवहार नहीं होना चाहिए। फिर एक नया तर्क आया कि फिल्मों के बायकॉट का अभियान तक तो ठीक था उसमें कोई बुराई नहीं थी, शांतिपूर्वक सब चल रहा था। …लेकिन हिंसा तो इस घटना में भी नहीं हुई, किसी ने हाथ तक नहीं उठाया।

बंद करो सनातन धर्म का मजाक

इस विरोध के तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों कारण हैं। रणबीर कपूर का एक वीडियो आजकल सोशल मीडिया पर घूम रहा है जिसमें वह अपने को बीफ ईटर (गाय का मांस खाने वाला) बता रहे हैं। बड़े गर्व से कह रहे हैं कि उनके परिवार का रिश्ता पेशावर से है और वहां बीफ खाते हैं तो उन्हें भी बीफ पसंद है। किसी के खाने की, पहनने की पसंद-नापसंद उसकी व्यक्तिगत पसंद है। इसमें कोई ऐतराज नहीं है कि कौन क्या खाता है, क्या पहनता है। यह उसका निजी अधिकार है। लेकिन आप जिस बात में यकीन नहीं करते हैं, उसको सिर्फ नाटक के लिए, अपने व्यावसायिक फायदे के लिए, अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अगर इस्तेमाल करेंगे तो उससे ऐतराज है। आप कह रहे हैं कि आपको फिल्म पसंद नहीं है तो मत देखिए- हम कह रहे हैं कि आपको हिंदू धर्म पसंद नहीं है तो मंदिर मत जाइए। …क्यों जा रहे हैं? आप अपनी फिल्मों में हिंदू धर्म का, हिंदू धर्म के प्रतीकों का, त्योहारों का, रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाएंगे- निजी बातचीत में भी और सार्वजनिक रूप से भी दिन-रात मखौल उड़ाएंगे। हर फिल्म में आपको विलेन मिलेगा तो वह हिंदू होगा, पूजा करता हुआ मिलेगा, तिलक लगाए और कंठी-माला पहने हुए मिलेगा। मानो वही सब बुराई की जड़ है।

दो तरह से हिंदू धर्म का इस्तेमाल

आप सनातन धर्म को बुरा दिखा रहे हैं यह आपकी सोच हो सकती है। मुझे उस पर भी ऐतराज नहीं है। अगर आप मानते हैं कि सनातन धर्म बुरा है, बहुत घटिया है- तो यह सोचने का आपका अधिकार है। आप सनातन धर्म से असहमत हैं, सनातन धर्म में सिर्फ बुराई देखते हैं- तो भी यह आपका अधिकार है।मगर मेरा भी यह अधिकार है कि जो मेरे धर्म में यकीन नहीं करता है, जो सनातन धर्म को नहीं मानता है, जो इस देश की संस्कृति को नहीं मानता है, उसको उस देश के मंदिरों में जाने का अधिकार क्यों होना चाहिए। अगर आप हिंदू धर्म को नहीं मानते हैं तो मंदिर क्यों जा रहे हैं- यह सवाल तो आपसे पूछा जाना चाहिए या नहीं। क्या हिंदू मंदिर आपके लिए प्रचार का साधन है? आप दो तरह से हिंदू धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। अपनी फिल्म में हिंदू धर्म को नीचा दिखा कर फिल्म बेचना चाहते हैं और फिल्म के बाहर आप मंदिर जाकर अपनी फिल्म बेचना चाहते हैं। मंदिर, संस्कृति और धर्म किसी के व्यापार का साधन नहीं हो सकता- ऐतराज इस पर है। सोशल मीडिया पर ऐसे लेफ्ट-लिबरल लोग तर्क लेकर आ रहे हैं जो खुद सनातन धर्म को मानने वाले हैं। वे कह रहे हैं कि हमको क्या हो गया है, यह तो बड़ा सहिष्णु धर्म था, हम जिनकी आलोचना करते थे उनके जैसे क्यों हो गए- तो मेरा उनसे सवाल है कि आपने उनकी आलोचना कभी की थी क्या? जिनकी आलोचना की बात कर रहे हैं, जिनको आज बुरा बता रहे हैं उनको आपने कभी जीवन में बुरा बताया था क्या? आप जब उसके साथ हैं तब भी उनकी बुराई करेंगे, जब इधर हैं तब भी उनकी बुराई करेंगे। मैं फिर कह रहा हूं कि आपको सनातन धर्म बुरा लगता है तो मत मानिए- यह आपका अधिकार है, लेकिन उसका जब इस्तेमाल होगा तब भी आप उसे जायज ठहराएंगे- तो ये बात नहीं चलने वाली है।

बेवकूफ बनाकर कमाई अब नहीं चलेगी

लोग आंकड़े निकाल कर ला रहे हैं कि भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बीफ एक्सपोर्टर है। अब इन अनपढ़ लोगों को कौन बताए कि बीफ एक्सपोर्टर और बीफ ईटर दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। यह जरूरी नहीं है कि जो एक्सपोर्टर है वह ईटर भी हो। ये आंकड़े देकर यह बताना चाहते हैं कि यह देश इतना बीफ एक्सपोर्ट करता है तो आपको इसका भी विरोध करना चाहिए। इस तरह के तर्क को कुतर्क की श्रेणी में रखा जाता है जिसका उस घटना से, उस समस्या से, उस मुद्दे से कोई मेल ही नहीं हो। रणबीर कपूर बीफ खाते होंगे, उन्हें  अच्छा लगता होगा। मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि रणबीर कपूर पोर्क (सुअर का मांस) भी खाते होंगे- लेकिन किसी में यह हिम्मत कि वह सार्वजनिक रूप से यह बोले कि वह पोर्क खाता है। बात इतने तक सीमित नहीं है कि आप हिंदू धर्म के बारे में क्या बोलते हैं, क्या मानते हैं। बात यह है कि दूसरे मजहब के बारे में क्यों नहीं बोलते या आप मानते हैं कि वहां कोई बुराई नहीं है- सारी बुराई, सारी खराबी सिर्फ सनातन धर्म में है। आप यह भी कहिए कि या तो आप नास्तिक हैं या आस्तिक हैं। अगर आपकी सनातन धर्म में आस्था है तो आपको मंदिर जाने का पूरा अधिकार है। आप क्या खाते हैं, पहनते हैं इससे कोई मतलब नहीं है लेकिन अगर आपकी आस्था नहीं है और हिंदुओं को बेवकूफ बनाकर कि देखो मैंने तिलक लगा लिया, दर्शन कर लिया, आरती में शामिल हो गए अब हमारी फिल्म का टिकट खरीदो तो इसके लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं होने दिया जा सकता है और क्यों होने दिया जाए।

फिल्म नहीं आ रही होती तब क्या ये मंदिर जाते

ये बताएं कि आज से छह-आठ महीने पहले या उससे पहले तक ये कब मंदिर गए थे फिल्म के प्रमोशन के लिए। कौन सा अभिनेता-अभिनेत्री फिल्म का प्रमोशन करने के लिए मंदिर गए थे। तब दरगाह पर जाते थे, मजारों पर जाते थे। अब क्यों नहीं जा रहे हैं। ये ऐसे नकली लोग हैं जिनको न दरगाहों से प्रेम है, न मंदिरों और मजारों से। इनको सिर्फ अपने पैसे से, अपने व्यवसाय से प्रेम है। उसके लिए ये गधे को भी बाप बनाने को तैयार हो जाएंगे। कल तक मजार और दरगाह पर जाने से आपकी फिल्म को फायदा हो रहा था तो वहां जा रहे थे। आज आपको लग रहा है कि वहां जाने से नुकसान हो जाएगा तो आपने वहां जाना बंद कर दिया। अब लग रहा है कि मंदिर में जाने से फायदा होगा तो मंदिर जाने लगे। इनका अपना कोई ईमान धर्म नहीं है। जैसे स्टेटलेस सिटीजन होते हैं ये उसी तरह के सिटीजन हैं जिनका न तो कोई देश है, न कोई धर्म,न कोई विचारधारा, न कोई ईमान है। इनके लिए ये सब बेमानी चीज है। इनकी नजर में ये सब बातें निम्न स्तर के लोगों के लिए हैं जो इनकी श्रेणी में नहीं आते नहीं हैं। एक और तर्क आया कि उनकी फिल्म रिलीज हो रही है इसलिए विरोध हो रहा है, सामान्य दिन होते तब भी क्या इन दोनों के मंदिर जाने पर इसी तरह का विरोध होता। इसके जवाब में मैं उनसे उलटा सवाल पूछ रहा हूं कि अगर इनकी फिल्म नहीं आ रही होती तब क्या ये मंदिर जाते, तब क्या इनको महाकाल की याद आती। अगर आपका मानना है कि फिल्म आ रही है इसलिए विरोध हो रहा है तो आपको इसका भी जवाब देना चाहिए की फिल्म नहीं आ रही होती तो ये मंदिर जाते क्या? जब फिल्म नहीं आ रही थी तब मंदिर जा रहे थे क्या?

अब इमोशनल ब्लैकमेल पर उतरा बॉलीवुड का रुदाली ब्रिगेड

बॉलीवुड को कड़ा संदेश

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि लाल सिंह चड्ढा के बायकॉट से जो शुरुआत हुई है वह बॉलीवुड को यह बताने और संदेश देने की कोशिश है कि लेवल प्लेइंग फील्ड होना चाहिए। हम कोई विशेषाधिकार नहीं चाहते हैं। हम किसी अभिनेता, किसी फिल्म, किसी पटकथा के खिलाफ नहीं हैं। हम उन लोगों की प्रवृत्तियों, उन व्यक्तियों के खिलाफ हैं जो सनातन धर्म का अपमान करते हैं। जो अपनी फिल्म को चलाने के लिए या जिन लोगों ने पैसा लगाया है उनको खुश करने के लिए सनातन धर्म का अपमान करते हैं। जो माफिया को, दाऊद इब्राहिम जैसे आतंकवादी को अच्छा मानते हैं लेकिन फिल्म में अगर किसी ब्राह्मण को दिखाना है, हिंदू को दिखाना है तो उसको घटिया ही दिखाना है, बलात्कारी ही दिखाना है। कोई भी कुकर्म करने से पहले फिल्म में यह दिखाया जाएगा कि वह पूजा कर रहा है या उसके बाद पूजा कर रहा है- उसको धर्म से जोड़ा जाता है। जबकि आतंकवाद में मुसलमान की बात कीजिए तो कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। आप हिंदी सिनेमा में 60-70 साल से देखिए तो आपको एक ही बात समझ में आएगी कि अपराधी का धर्म होता है और केवल हिंदू धर्म होता है। यह 75 साल से परोसा जा रहा है। यह हम आप जैसे लोगों की कमी है, कमजोरी है, मूर्खता है कि हम इसको स्वीकार करते हैं। आज इसके विरोध में कुछ लोग खड़े हुए हैं। कुछ ही लोग जगे हैं तो उसका असर आप देखिए कि क्या हो रहा है। मैं बार-बार जो बात कहता रहा हूं उसे फिर दोहराऊंगा और हर बार दोहराऊंगा कि कभी हिंसा का सहारा मत लीजिए। जिस दिन हिंसा का सहारा लेंगे उसी दिन लड़ाई हार जाएंगे। आपके पास इतनी बड़ी ताकत है- संख्या की ताकत, इन्कार की ताकत, जो गलत है उसको अस्वीकारने की ताकत, जो सही है उसके साथ खड़े होने की ताकत- वह आपको विजय दिलाएगी। याद रखिए कि जो धर्म की रक्षा करते हैं धर्म उन्हीं की रक्षा करता। धर्म की रक्षा करने के लिए आज तलवार उठाने की जरूरत नहीं है। आपके पास अपने मोबाइल के बटन की कितनी बड़ी ताकत है, आपके पास अपनी उंगली की वोट देने की इतनी बड़ी ताकत है उससे सब कुछ बदल सकता है। जो चाहे कर सकते हैं, करवा सकते हैं। तो उस ताकत का इस्तेमाल कीजिए। आपको यह पता होना चाहिए कि सही क्या है और गलत क्या है। सच का साथ दीजिए। इससे बड़ा काम आप कोई कर नहीं सकते हैं। हम सबको एक बात अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि संदेश देने का यह तरीका बिल्कुल सही है।

सीधी सी बात

बड़ी सीधी सी बात है कि आप हमको नहीं मानते तो हम आपको नहीं मानते हैं। तुम हमारे धर्म का अपमान करोगे तो हम तुमसे कोई नाता नहीं रखेंगे। हम तुम्हारे घर नहीं आ रहे हैं, कुछ करने नहीं आ रहे हैं, तुमको गाली नहीं दे रहे हैं, तुम्हारे ऊपर हमला नहीं कह रहे हैं- हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि अगर हमारी संस्कृति को, हमारे धर्म को, हमारी सभ्यता को घटिया समझते हो, उसका मजाक उड़ाते हो तो हम तुमसे कोई ताल्लुक नहीं रखेंगे। बस इतनी सी बात है और इसी से बड़ा परिवर्तन हो रहा है। इस तरह के सामाजिक परिवर्तन के लिए जरूरी है कि आप अपनी ताकत को पहचानिए। मैं बार-बार कहता हूं कि सनातन धर्म के लोगों को उनकी ताकत का अहसास दिलाना पड़ता है। उनको पता ही नहीं है कि उनकी ताकत कितनी बड़ी है। ताकत बड़ी होते हुए भी, संख्या बड़ी होते हुए भी, हर तरह से श्रेष्ठ होते हुए भी हम मार खाते आए हैं। अपनी शक्ति को, अपने इन गुणों को, अपनी संस्कृति की ताकत को, उसके महत्व को, उसकी गुणवत्ता को पहचानिए।