#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

शादी ब्याह के निमंत्रण पत्र सभी के पास आते हैं। तो मेरे पास  भी आते हैं। रिटायर्मेंट के पहले ज्यादा आते थे। अब यह इनकी संख्या काफी कम हो गई है।

इस लेख में नए युग के व्हाट्सएप पर भेजे गए निमंत्रण पत्र शामिल नहीं हैं।

अनुभव यह बताता है कि लोग एक से एक से एक महंगे निमंत्रण पत्र छपवाते हैं, ताकि वे किसी से कम न दिखें। मेरे पास बड़े महंगे-महंगे निमंत्रण पत्र आए, परन्तु वास्तव में मुझे वे  याद नहीं हैं। जो दो-चार मुझे आज भी याद आते हैं, वे हैं:

एक

जब मैं बड़ौदा यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर था, तब एक गुजराती सज्जन से मेरी मुलाकात हो हुई। मैं उनका नाम आज भूल गया हूँ। उन्होंने गुजराती फिल्मों पर एक पुस्तक लिखी थी और उसकी एक प्रति मुझे भेंट भी की थी। वह पुस्तक इतने गहन रिसर्च के बाद के लिखी गई थी कि वह एक पीएच.डी. थीसिस से कम नहीं थी। जब मैंने बड़ौदा छोड़ा तब वह पुस्तक मैंने यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी को दे दी थी। उन गुजराती सज्जन की एक बेटी थी। वह डांसर थी। उन्होंने उससे मुझे मिलवाया भी था। उसकी शादी का निमंत्रण पत्र उन्होंने दिल्ली से मुझे भेजा था। गुजराती में शादी के निमंत्रण पत्र को कहते हैं લગ્નનું આમંત્રણ કાર્ડ ।  वह निमंत्रण पत्र डाक से आया था। पूरा निमंत्रण पत्र एक पोस्ट कार्ड पर बहुत अच्छी और बहुत सुन्दर हैण्ड राइटिंग में लिखा था। उस सीधे सरल और सहज निमंत्रण पत्र की आज भी मुझे याद आती है। वह निमंत्रण पत्र उस व्यक्ति के सरल व्यक्तित्व को भी दर्शाता था।

दो

बड़ौदा में मेरे एक मित्र थे जंग बहादुर सिंह। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं।  पिछले करोना काल में उनका निधन हो गया था। जंग बहादुर सिंह बड़ौदा आकर पढ़ लिख गए थे। फिर किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में भी उन्होंने कुछ समय काम किया था। वे बताते थे कि अगर मैं बड़ौदा न आया होता, तो लोग मुझे डाकू जंग बहादुर सिंह के नाम से जानते होते। वह चम्बल के डाकू तहसीलदार सिंह के भांजे थे – ऐसा वे बताते थे। तहसीलदार सिंह ने आचार्य विनोबा भावे के सामने आत्म समर्पण किया था और फिर डाका डालने का काम छोड़ दिया था।  तहसीलदार सिंह डाकू मान सिंह के बेटे थे। सन् 1939 से 1955 तक चम्बल के बीहड़ों में डाकू मानसिंह का राज्य चलता था। मान सिंह पर एक सौ से अधिक हत्याओं का आरोप था। इंटरनेट पर मान सिंह और तहसीलदार सिंह के बारे में तमाम सामग्री उपलब्ध है और इसे कोई भी देख सकता है। खैर, यहाँ बात हो रही है जंग बहादुर सिंह की। जंग बहादुर सिंह का इकलौता बेटा भारतीय वायु सेना में था। वह उसकी शादी का कार्ड देने मेरे घर पर आए थे। वास्तव में वह कोई कार्ड नहीं था। वह एक सादे कागज पर अंग्रेजी में टाइप किए गए मैटर की फोटोकापी थी। उसमें शादी का पूरा प्रोग्राम लिखा हुआ था। साथ ही यह भी लिखा हुआ था कि किसी किस्म का कोई गिफ्ट वगैरह स्वीकार नहीं होगा। जंग बहादुर सिंह के साधारण हैसियत के आदमी थे।

बड़ौदा में मेरे एक मित्र थे मुकुंद भाई शाह। उन्होंने अपने बेटे और बेटी की शादियों का कार्ड मुझे दिया था। दोनों शादियों का समारोह महाराजा बड़ौदा के पैलेस के प्रांगण में आयोजित हुआ था। मुकुंद भाई के भी दोनों कार्डों में लिखा था कि किसी किस्म का कोई गिफ्ट वगैहरा स्वीकार नहीं होगा।

 

 तीन

तीसरा कार्ड जो मुझे याद आता है वह लखनऊ में श्री श्रीकृष्ण सिंघलजी के यहां से मिला था। उसमें विवाह के प्रोग्राम की तिथियां अंग्रेजी में तो लिखी ही थीं, परन्तु साथ में भारतीय पंचांग वाली तिथि भी लिखी थी। अर्थात जैसे यदि 7 अक्टूबर 2024 लिखना है, तो उसे इस प्रकार लिखा जाएगा:

7 अक्टूबर 2024

(आश्विन शुक्ल चतुर्थी संवत 2081)

 इस कार्ड में भारतीय तिथियों के चलन को प्रोत्साहन देना मुझे पसंद आया था।

 ऊपर जिन निमंत्रण पत्रों की चर्चा की गई है उनमें से कोई भी मेरे पास सुरक्षित नहीं है। इसलिए जो कुछ भी लिखा है अपनी याददाश्त पर जोर देकर लिखा है। पाठक क्षमा करेंगे कि यदि कोई तथ्य गलत हो गया हो, क्योंकि इस बुढ़ापे में मेरी याददाश्त थोड़ा कमजोर हो गई है।

चार  

बड़ौदा यूनिवर्सिटी में मेरा एक विद्यार्थी था सिद्धार्थ दवे। साधारण परिवार का था। वहां मेरे सभी विद्यार्थियों के लिए छह-आठ हफ्ते की इंटर्नशिप करना अनिवार्य था। सिद्धार्थ अपनी इंटर्नशिप करने इस्राइल गया और वहां उसने येरुशलम टाइम्स में इंटर्नशिप की। जब उसका विवाह हुआ, तो उसने अपना निमंत्रण पत्र संस्कृत भाषा में स्वयं तैयार किया। वह प्रतिभावान तो था ही। उसको टोक्यो, जार्डन, अमेरिका, पाकिस्तान, नार्वे आदि कई देशों में रहने या पढ़ने या दोनों का मौका मिला। आजकल उसे पश्चिम एशिया मामलों का विशेशज्ञ समझा जाता है। वह कुछ जानी मानी पत्रिकाओं आदि में नियमित कालम लिखता है। और कुछ एक टीवी बहसों में भी वह दिखाई पड़ता है। संस्कृत भाषा में उसके निमंत्रण पत्र में आप देखेंगे कि अहमदाबाद का नाम कर्णावतीनगरम् लिखा हुआ है। यही उस शहर का मूल नाम है। 

(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं।)