प्रदीप सिंह।
एक समय था जब अरविंद केजरीवाल के लिए देश के तमाम लोगों की तरह मेरे मन में भी यह भाव था कि यह व्यक्ति कुछ बदलाव करने के लिए- कुछ नया करने के लिए- आया है। शायद उसी उम्मीद का नतीजा है कि उनसे इतनी बड़ी निराशा हुई।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपके मन में अलग-अलग तरह की भावना जगाते हैं। ऐसे लोग जिन्हें आप जानते नहीं हों, पहली बार देख रहे हों, पहली बार सुन रहे हों- फिर भी उनके लिए मन में एक स्नेह, श्रद्धा या एक पॉजिटिव वाइब्स आती है। ठीक इसी तरह कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्होंने आपके जीवन में कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं किया हो लेकिन उसके बारे में मन में निगेटिव वाइब्स आती है। उनको देखते ही गुस्सा आता है- चिड़चिड़ापन होता है- घृणा होती है।वहीँ- कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनको देखते ही मन में वितृष्णा पैदा होती है। भारतीय राजनीति में भी एक ऐसे शख्स हैं और वो हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल। उनके लिए चतुर शब्द का इस्तेमाल करना भी इस शब्द का अपमान होगा और धूर्त मैं कहना नहीं चाहता। आप खुद ही इन दोनों के बीच का कोई शब्द उनके लिए निर्धारित कर लीजिए।
नहीं देखा होगा ऐसा नेता
अरविंद केजरीवाल के बारे में बात करने में भी मन में एक निगेटिविटी आती है। मैंने अपने जीवन में ऐसा नेता नहीं देखा है। दुनिया में जो तानाशाह हुए हैं, जिनके बारे में आपके मन में घृणा पैदा होती है, उनसे भी ज्यादा का भाव इनके बारे में पैदा होता है। इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। अरविंद केजरीवाल से मेरा कोई निजी राग द्वेष नहीं है। उन्होंने मेरा कोई निजी नुकसान नहीं किया। उनसे कभी मेरा निजी साबका नहीं पड़ा है। अरविंद केजरीवाल या उनकी पार्टी या किसी भी राजनीतिक पार्टी से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। एक समय था जब अरविंद केजरीवाल के लिए देश के तमाम लोगों की तरह मेरे मन में भी यह भाव था कि यह व्यक्ति कुछ बदलाव करने के लिए आया है, कुछ नया करने के लिए आया है। शायद उसी उम्मीद का नतीजा है कि उनसे इतनी बड़ी निराशा हुई। यह आदमी जो बोल रहा था उसका कितने डिग्री उलटा है, यह भी बताना मुश्किल है। अभी हाल ही में उनका एक ट्वीट आया जिसमें उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी की विचारधारा के तीन स्तंभ हैं- कट्टर राष्ट्रप्रेम, ईमानदारी और इंसानियत। ये तीनों शब्द आप किसी पर भी फिट कर सकते हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल पर तो बिल्कुल नहीं कर सकते हैं। पहली बात तो यह कि मैं मानता ही नहीं कि आम आदमी पार्टी की कोई विचारधारा है- अरविंद केजरीवाल का कोई वैचारिक आधार या वैचारिक सोच है।
सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार
किसी तरह से सत्ता में आना और उसमें बने रहना यही उनकी सोच है। हालांकि, हर राजनीतिक दल यह चाहता है कि वह सत्ता में आए और उसमें बने रहे। इलेक्टोरल या पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में ऐसा सोचने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन किस तरह से और किस हद तक जाकर… मुझे नहीं लगता है कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का मुकाबला इसमें कोई कर सकता है। आज तक देश में ऐसी कोई पार्टी ही नहीं हुई। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कट्टर राष्ट्रप्रेम। उनका कट्टर राष्ट्रप्रेम यह है कि जब पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकवादियों के ठिकानों पर भारतीय वायु सेना हमला करे तो उस पर सवाल उठाओ- उसके सबूत मांगो- तब कहो कि यह सच है या झूठ बोला जा रहा है- भारतीय वायुसेना ने किया या नहीं इसका प्रमाण मांगो। जिस पाकिस्तान का नुकसान हुआ वह प्रमाण नहीं मांग रहा बल्कि भारत के एक प्रदेश के निर्वाचित मुख्यमंत्री प्रमाण मांगते हैं। पंजाब में उनकी पार्टी के विपक्ष के नेता रहे हैं सुखपाल सिहं खैरा। उन्होंने सिख फॉर जस्टिस, जो खालिस्तानियों का संगठन है,के रेफ्रेन्डम2020 के प्रस्ताव का समर्थन किया था। अरविंद केजरीवाल 2017 में खालिस्तान से जुड़े एक व्यक्ति के घर जाकर रुक चुके हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद सिख फॉर जस्टिस के नेता मुख्यमंत्री भगवंत मान को चिट्ठी लिख कर कह चुके हैं कि पार्टी हमारे समर्थन और हमारे पैसे से जीती है, अब सरकार रेफ्रेन्डम 2020 को विधानसभा से पास करवाए। तो यह है इनका राष्ट्रप्रेम। हर ऐसी घटना जो भारत के समर्थन में हो- सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक- उस पर सवाल उठा कर ये अपना राष्ट्रप्रेम दिखाते हैं।
आज कहा, कल पलटे
अब इनकी ईमानदारी पर आते हैं। इनकी ईमानदारी का आलम यह है कि ये जो बात बच्चों की कसम खाकर कहते हैं उसका भी पालन नहीं करते। सार्वजनिक जीवन में इनकी शुरुआत आरटीआई एक्टिविस्ट के रूप में हुई। आज आप अरविंद केजरीवाल के सामने आरटीआई का नाम ले लीजिए, धक्के मार कर आपको बाहर न निकाल दिया जाए तो आप अपने आप को सौभाग्यशाली समझें। यह है आरटीआई के बारे में अब इनकी राय। जिस सीढ़ी से चढ़ते हैं उसको गिरा देना ही इनकी फितरत में शामिल है। दूसरी बात- ये और इनकी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन की उपज हैं। राजनीति में आते ही इन्होंने कहा था कि कोई रिश्वत मांगे तो मना मत करना- दे देना- लेकिन उसकी रिकॉर्डिंग कर लेना। उसके बाद सरकार रिश्वतखोर कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी।इनके कार्यकाल के शुरुआती चार-छह महीनों को छोड़ दीजिए तो आपने पिछले चार-पांच साल में कभी यह नहीं सुना होगा कि किसी ने अपील की हो। ईमानदारी का आलम यह है कि चुनाव के दौरान ये कहते हैं कि कोई पैसा दे रहा हो तो पैसे ले लो, पर वोट हमको दो। यानी रिश्वत ले लो और वोट हमको दो।ईमानदारी के बारे में दिल्ली सरकार में जो कुछ हो रहा है उसके बारे में मैं कुछ कहना नहीं चाहता। सार्वजनिक रूप से तमाम चीजें सामने आ चुकी हैं। आप कुछ भी कह सकते हैं लेकिन केजरीवाल सरकार को ईमानदार नहीं कह सकते।
देश देख चुका इनकी इंसानियत का नजारा
अब बात इंसानियत की। इनकी इंसानियत ऐसी है कि जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था तो 31 मार्च, 2020 को उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों को डीटीसी की बसों में भरकर दिल्ली से उत्तर प्रदेश की सीमा पर लाकर छोड़ दिया। जाओ मरो, जो करो- लेकिन यहां से निकलो। जिन घरों में रह रहे थे उनके मकान मालिकों से कह दिया कि घर खाली करवा लो। उनके खाने का, पीने का, जाने का कोई इंतजाम नहीं किया। बाद में दिखाने के लिए चुनाव के समय वादा किया कि लॉकडाउन के दौरान जिनका नुकसान हुआ है उनको किराये का पैसा देंगे लेकिन इससे भी मुकर गए। तब अदालत ने कहा कि वादा किया है तो पूरा करना पड़ेगा। यह तो है इनकी इंसानियत। इंसानियत का उनका सबसे ताजा उदाहरण दिल्ली विधानसभा का है जिसे पूरी दिल्ली ने, पूरे देश ने, पूरी दुनिया ने देखा। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर, उनके मुद्दे पर जो शख्स अट्टाहास लगा सकता है- ऐसा अट्टाहास जिससे रावण को भी ईर्ष्या होने लगे- उसकी संवेदना के बारे में आप समझ सकते हैं। संवेदना और इंसानियत शब्द बोलने का उसको अधिकार भी नहीं होना चाहिए। उन्होंने और कहा कि यह झूठी फिल्म है। पूरी दुनिया जिसको सच मान रही है- जिन लोगों ने कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार किया वे भी इसे सच मानते हैं, यह बात दूसरी है कि वे डर के मारे कुछ और बोलते हैं- कश्मीर के जिन मुसलमानों ने ये किया वे भी मानते हैं कि अत्याचार हुआ। पूरा देश वह दृश्य देख कर रो रहा है जो ‘द कश्मीर फाइल्स’ में दिखाए गए हैं। इसमें जो दिखाया गया वह तो जितना हुआ है उसका एक छोटा सा हिस्सा भर है। यह सब पता है अरविंद केजरीवाल को। उसके बाद भी अट्टाहास… क्यों?… क्योंकि उनको डर था कि अगर अट्टाहास नहीं किया तो दिल्ली में मुसलमान वोट खिसक जाएगा। यह अट्टाहास अब उनको भारी पड़ रहा है।
रंग बदलने में गिरगिट को भी मात
उसके बाद जिस तरह से गिरगिट के अंदाज में रंग बदला और धड़ाधड़ न्यूज चैनलों और अखबारों में इंटरव्यू आने लगे। इंटरव्यू में कहा कि कश्मीरी पंडितों के लिए हमने कितना बड़ा काम किया है। स्कूलों में जो कश्मीरी पंडित अस्थायी टीचर थे उनको स्थायी कर दिया, उन्हें नौकरी दी। केंद्र सरकार तो सिर्फ बोलती है हमने तो करके दिखाया है। 24 घंटे नहीं लगे, उनके इस दावे की पोल खुल गई। मदन लाल खुराना जब दिल्ली के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कश्मीरी पंडितों को नौकरी दी थी। तब यह उम्मीद थी कि कुछ समय बाद शायद ये लोग लौट जाएंगे, इसलिए उस समय अस्थायी नौकरी दी गई। लेकिन जब उनके लौटने का कोई माहौल नहीं बना तब उन्होंने मांग की कि उनको स्थायी किया जाए। मामला कोर्ट में गया और दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने उनके पक्ष में फैसला दिया। केजरीवाल उस समय तक दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके थे। केजरीवाल सरकार ने इस आदेश का पालन करने की बजाय इसे हाई कोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दी। डबल बेंच ने भी कश्मीरी पंडितों के पक्ष में फैसला सुनाया। उसको भी केजरीवाल सरकार ने नहीं माना। उसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया कि यह सब बंद कीजिए और इनको स्थायी कीजिए। तब स्थायी किया। अपनी मर्जी से नहीं किया। और अब इसका श्रेय अरविंद केजरीवाल ले रहे हैं।
झूठ बोलने में महारत
नेशनल टेलीविजन पर इतनी सफाई से कोई और झूठ नहीं बोल सकता जिस तरह से अरविंद केजरीवाल बोलते हैं। इसमें उनको महारत हासिल है। विधानसभा में जब बोल रहे थे और जब टीवी चैनल पर इंटरव्यू दे रहे थे- दोनों समय का चेहरा देख लीजिए। विधानसभा में अट्टाहास और टीवी चैनल पर ऐसे दिख रहे थे जैसे कितने गंभीर हैं। इतने दुखी हैं कश्मीरी पंडितों को लेकर जैसे उनसे ज्यादा दुखी तो कोई है ही नहीं। एक-दो दिन में ही ऐसा क्या हो गया जो उनका रंग बदल गया। दरअसल, उन्हें डर लग गया- वोट का डर। जो भावना है इस समय देश में इस फिल्म को लेकर उसमें कहीं ऐसा न हो कि मुसलमान वोट तो मिले नहीं, हिंदू भी खिसक जाए। ये इंसानियत, ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति- ये सब सिर्फ दिखावा मात्र है उनका। संवेदना का एक और उदाहरण देखिए। किसान आंदोलन के दौरान 13 महीने तक जो लोग बैठे रहे दिल्ली के बॉर्डर पर, उस समय किसानों के सबसे बड़े हितैषी यही नजर आ रहे थे। बिजली, पानी, खाना सबका प्रबंध कर रहे थे। रोज दुखी होते थे, रोज ट्वीट करते थे कि अत्याचार हो रहा है। केंद्र सरकार उनके साथ बहुत अत्याचार कर रही है, किसान यूनियन के लोग बड़े कष्ट में हैं। पंजाब में सरकार बने अभी कुछ ही दिन हुए हैं। लांबी में किसानों पर लाठीचार्ज किया गया है। उनकी फसल बर्बाद हो गई, उसका मुआवजा मांगने आए थे। लाठीचार्ज में करीब 50 किसान घायल हुए हैं और अस्पतालों में भर्ती हैं। इससे आप अंदाजा लगाइए कि इंसानियत कैसी है इनकी। इनकी इंसानियत वह है जो इनको राजनीतिक फायदा दिलाए। राजनीतिक फायदा है तो ठीक है, मांगें मान लेंगे। लेकिन अगर कहीं दूर दूर तक भी यह आशंका हो कि राजनीतिक रूप से फायदा नहीं होगा, तब नहीं मानेंगे। अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रभक्ति का आलम यह है कि पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार बनते ही देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां चिंतित हो उठी हैं। जबकि खालिस्तानी, अलगाववादी और आतंकी संगठन खुश हैं।
ये जो पाखंड है, ये जो आडंबर है- बहुत दिनों तक चलता नहीं है। लेकिन अरविंद केजरीवाल को लगता है कि दूसरों का नहीं चलता होगा… मेरा आडंबर, मेरा पाखंड अनंतकाल तक चलता रहेगा। दिल्ली में पहली बार अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उनके घर के बाहर बड़ा प्रदर्शन हुआ। उसके बाद भी प्रतिक्रिया देखिए आप। मनीष सिसोदिया आए टेलीविजन पर। उन्होंने कहा कि यह विरोध-प्रदर्शन नहीं था बल्कि अरविंद केजरीवाल की हत्या की साजिश थी। आप इससे अंदाजा लगा लीजिए कि मामला कैसा है।विधानसभा में जो अट्टाहास लगाया है उसकी गूंज केजरीवाल को देर तक सुनाई देगी। कहते हैं कि एक फोटो हजार शब्दों से ज्यादा प्रभावी होती है। मैं कहता हूं कि एक वीडियो एक लाख शब्दों से ज्यादा प्रभावी होता है। ये जो वीडियो है विधानसभा में अट्टाहास करते हुए, उनको बहुत भारी पड़ने वाला है।