आपका अखबार ब्यूरो ।

ऐसा कम ही होता है कि पुत्र वियोग में लिखा गया गीत, प्रेमियों का सबसे पसंदीदा गाना बन जाए। उस गाने के जारी होने के समय जन्मी पीढ़ी भी आज वरिष्ठ नागरिक बन चुकी है। एफएम पर आज भी वह गाना बजता है तो हर पीढ़ी के कानों को सुकून देता है, भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल चैन से जीने सुनने का रास्ता दिखाता है।


बेटा घर छोड़कर चला गया तो…

Ten of my favourite Bharat Vyas songs | Dustedoffपंडित भरत व्यास के लिखे उस गाने की भी एक अजीबोगरीब कहानी है। भरत व्यास जी का एक बेटा था श्याम सुंदर व्यास। वह बहुत संवेदनशील था। एक दिन किसी बात पर अपने पिता से नाराज हुआ और घर छोड़कर चला गया। भारत व्यास जी ने पुत्र को ढूंढने में कोई कसर न छोड़ी। वह सब कुछ किया जो एक पिता के वश में था। रेडियो और अखबारों में विज्ञापन देने से लेकर गली-मोहल्ले और शहर की सड़कों पर पोस्टर लगाने तक। सब कुछ किया। आस्था की सभी देहरियों मंदिर-गुरुद्वारे-चर्च-मजारों पर जाकर प्रार्थना की और बेटे की घरवापसी की दुआ मांगी। ज्योतिषियों और नजूमियों के पास गए कि शायद कहीं से बेटे की कोई खबर मिल जाए। पर सब बेकार। कुछ हाथ न लगा।

एक पिता का हृदय पुत्र विछोह से छटपटा रहा था। उसकी हर बात पूरी कर दें बस एक बार वह घर लौट आए। भरत व्यास निराश हो गए।

उस समय भरत व्यास जी के करियर का बेहतरीन दौर था। लेकिन अचानक बेटे के अचानक चले जाने से जैसे जिंदगी में हताशा और उदासी भर गई। काम में मन बिल्कुल नहीं लगता था।

‘पंडितजी, मेरी फिल्म के लिए गीत लिख दीजिए’

निराशा से भरे उस दौर में एक फिल्म निर्माता भरत व्यास से मिलने आता है और उनसे निवेदन करता है, ‘पंडित जी, आप मेरी फिल्म के लिए गीत लिख दीजिए।’ पुत्र वियोग से पीड़ित भरत व्यास कुछ भी लिखने की स्थिति में खुद को नहीं पाते और निर्माता से अपने घर से चले जाने को कहते हैं। उसी समय उनकी पत्नी वहां आती हैं जो अत्यंत मृदुभाषी, समझदार और व्यावहारिक हैं। वह अपने पति के व्यवहार के लिए निर्माता से माफी मांगती हैं। साथ ही निर्माता से प्रार्थना करती हैं कि वह अगले दिन सुबह भरत जी से मिलने आएं। निर्माता भी भरत जी के प्रति बहुत सम्मान-भाव रखता है और अगले दिन पुन: आने की बात मान जाता है।

भरत जी से धर्मपत्नी निवेदन करती हैं कि वे उस निर्माता की फिल्म के लिए गीत अवश्य लिखें भले अपने पुत्र की याद में ही लिखें। निराश-उदास भरत व्यास जाने क्यों पत्नी के आग्रह को टाल नहीं पाते और गीत लिखने की हामी भर देते हैं।
फिर वह कमरे में अपने भाव में डूब जाते हैं, कलम चलती है और कागज पर गीत उतरता है- ‘जरा सामने तो आओ छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज है, युं छुप न सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की यह आवाज है।’

इतिहास बना, प्रसिद्धि के नए कीर्तिमान रचे गए

1957 में रिलीज फिल्म ‘जनम जनम के फेरे’ का संगीत तो सुपरहिट रहा ही। और उसके जिस गाने ने अपने दौर में हर वर्ग की जुबां पर चढ़कर तहलका मचाया, वह यही था- जरा सामने तो आओ छलिये। यह कर्णप्रिय गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि उस साल बिनाका गीतमाला का सरताज गीत बना। यानी उस वर्ष का गाना नंबर वन। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर ने पूरे भाव में डूबकर दर्दभरे गले से उसे स्वर दिया।

एक इतिहास बना, गीत ने प्रसिद्धि के नए कीर्तिमान रचे। लेकिन जिसके लिए गीत की रचना की गई थी वह बेटा वापस नहीं लौटा। भरत व्यास पुत्र वियोग की व्यथा से उबर नहीं पाए।

लौट के आजा मेरे मीत

लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी भरत व्यास निराशा के अंधेरे में डूबने के बजाय आशा के दीये जलाना जारी रखते हैं। पुत्र वियोग का दर्द और कशिश ‘रानी रूपमती’ (1959) के लिए रचे गए इस गीत में और घनीभूत होता है- ‘आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं/ मेरा सूना पड़ा संगीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’ इस बार एक पिता की दुआ काम कर जाती है और बेटा घर लौट आता है।
यह आश्चर्य ही लगता है कि पुत्र वियोग में लिखे गए ये गाने उस दौर के युवा प्रेमियों के सर चढ़कर बोलते थे। यह पंडित व्यास जी की कलम का ही जादू था।

हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई मुकाबला नहीं

अभी चार दिन पहले 6 जनवरी को भरत व्यासजी की जन्म जयंती थी। पंडित 6 जनवरी, 1918 को बीकानेर में जन्मे भरत व्यास जाति से पुष्करना ब्राह्मण थे। वे मूल रूप से चूरू के थे और बालपन से ही उनमें काव्य प्रतिभा दिखने लगी थी। मजबूत कद काठी के धनी भरत व्यास बीकानेर के डूंगर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रह चुके थे।

वह राजस्थान के चुरू इलाके से 1943 में पहले पूना आये और फिर बंबई का रुख किया। बंबई में उन्होंने बहुत संघर्ष किया लेकिन हार न मानी। संघर्ष का फल भी मिला। उनकी कलम से बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे गए। आज भी हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई मुकाबला नहीं है।

एक से बढ़ कर एक

एक से बढ़ कर एक बेहतरीन गीत उनकी कलम से निकले, जो हमारे साहित्य और संस्कृति की धरोहर हैं।
आधा है चंद्रमा रात आधी… तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां (नवरंग), निर्बल की लड़ाई भगवान से, यह कहानी है दिए और तूफान की (तूफान और दीया), सारंगा तेरी याद में (सारंगा), तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं (सती सावित्री), ज्योत से ज्योत जलाते चलो (संत ज्ञानेश्वर), हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है(बूंद जो बन गई मोती), ऐ मालिक तेरे बंदे हम… सैयां झूठों का बड़ा सरताज निकला (दो आंखें बारह हाथ), दीप जल रहा मगर रोशनी कहां (अंधेर नगरी चौपट राजा), दिल का खिलौना हाय टूट गया… कह दो कोई न करे यहां प्यार… तेरे सुर और मेरे गीत (गूंज उठी शहनाई), कैद में है बुलबुल, सय्याद मुस्कुराये (बेदर्द जमाना क्या जाने) आदि।

व्यास जी का लिखा गीत- ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ महाराष्ट्र के कई स्कूलों में सालों तक सुबह की प्रार्थना सभाओं का गीत बना रहा। पचास का दशक भरत व्यास के फिल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर था।
ये अमर नगमे अगर आज भी एफएम पर सुनाई देते हैं तो इसलिए कि आज की नई पीढ़ी भी बड़ी रुचि के साथ उन्हें सुनती है। और पुरानों के इन गानों के प्रति क्रेज की तो पूछिए ही मत। गोल्डन इरा के शौकीनों के अल्बम इन गानों के बिना अधूरे हैं।


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