प्रमोद जोशी ।

दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर कई तरह की बातें हैं। इसमें आए लोगों की कारों के मॉडलों और जींस पहने नौजवानों तथा अंग्रेजी बोलने वालों का जिक्र भी हो रहा है। इन बातों का कोई मतलब नहीं है। अलबत्ता यह सवाल जरूर है कि इसमें सबसे ज्यादा लोग पंजाब-हरियाणा से ही क्यों आए हैं और बाकी राज्यों में यह बड़ा आंदोलन क्यों नहीं है? सवाल यह भी है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया है, पर पंजाब सरकार आंदोलन की समर्थक है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने भी आंदोलन का समर्थन किया है। जाहिर है कि बड़ा कारण पंजाब की राजनीति है। इस राजनीति की ध्वनि आपको ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन से भी सुनाई पड़ रही है, तो उसके पीछे के कारणों को भी समझना होगा।


आर्थिक के अलावा सामाजिक असमानता सबसे ज्यादा

पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी तीनों किसी न किसी रूप में गाँव की राजनीति करना चाहते हैं। पर पंजाब के गाँवों में जबर्दस्त अंतर्विरोध हैं। पंजाब में बड़े किसानों का वर्चस्व है, पर गाँवों में बहुत बड़ी आबादी भूमिहीनों या बटाई पर खेती करने वालों की है। असमानता के गिनी इंडेक्स पर देखेंगे, तो पंजाब में संभवतः सबसे ज्यादा असमानता है। यहाँ आर्थिक के अलावा सामाजिक असमानता सबसे ज्यादा है। राज्य की आबादी में 32 फीसदी दलित हैं। यह प्रतिशत गाँवों में 38 फीसदी है। इतनी बड़ी संख्या में भूमिहीन जब इस राज्य में हैं, तब यहाँ बिहार और उत्तर प्रदेश से खेत मजदूर क्यों आते हैं? इसकी एक वजह यह है कि यहाँ के खेत-मजदूर महंगे पड़ते हैं।

पंजाब की जातीय संरचना

यहां के ज्यादातर दलित भूमिहीन मजदूर खेती से जुड़े उद्योगों या सहायक कारोबारों में काम करते हैं। उनके हित जाट भूस्वामियों से टकराते हैं। कम जोत वाले किसानों की जमीन धीरे-धीरे बड़े किसानों के पास पहुँचती जा रही है। दलितों के अलग धर्मस्थल और डेरे हैं। जिस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार की जातीय संरचना ने राजनीति को प्रभावित किया है, वैसे ही पंजाब की जातीय संरचना उसे प्रभावित कर रही है और आने वाले समय में और ज्यादा करेगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)