31 मई पर विशेष।
हालांकि इससे पहले झंडे के रंगों को धर्मों से जोड़ने पर विवाद भी हुआ। कई लोग झंडे में चरखे की जगह गदा जोड़ने की मांग करने लगे। कुछ लोगों ने गेरुआ रंग भी जोड़ने की मांग की। सिखों की मांग थी की या तो झंडे में पीला रंग जोड़ा जाए या सभी तरह के धार्मिक प्रतीकों को हटाया जाए। विवाद सुलझाने के लिए 1931 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने सात लोगों की कमेटी बनाई। कमेटी ने सलाह दी कि झंडे को केवल एक ही रंग का बनाया जाए। कमेटी का यह सुझाव खारिज कर दिया गया। इसी साल कांग्रेस ने पिंगली वेंकैया के बनाए झंडे को पार्टी के आधिकारिक झंडे के तौर पर मान्यता दी।
पहला झंडे को 1921 में कांग्रेस ने अनौपचारिक रूप से मान्यता प्रदान की। दूसरे झंडे को 1931 में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से मान्यता दी। आजादी के बाद संविधान समिति ने कांग्रेस के इसी झंडे को कुछ बदलावों के साथ भारत का झंडा, यानी तिरंगा बनाने का फैसला लिया। इस झंडे में एक बड़ा बदलाव चरखे को लेकर किया गया। कांग्रेस के झंडे के बीच में जो चरखा था, उसकी जगह तिरंगे में अशोक चक्र लगाया गया। इस झंडे को पहली बार आजादी से कुछ दिन पहले 22 जुलाई, 1947 को आधिकारिक तौर पर फहराया गया था।
आजादी के बाद भारत धर्मनिरपेक्ष देश बना। इसलिए झंडे के रंगों की धर्म के आधार पर व्याख्या को बदल दिया गया। कहा गया कि इस झंडे के रंगों का धर्मों से कोई लेना-देना नहीं है। केसरिया को साहस और बलिदान, सफेद रंग को शांति और सच्चाई और हरे रंग को संपन्नता का प्रतीक माना गया। अशोक चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है। पहले भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीय पर्व के अलावा किसी भी दिन अपने घर और दुकानों पर झंडा फहराने की छूट नहीं थी। 2002 में इंडियन फ्लैग कोड में बदलाव किए गए। अब हर भारतीय नागरिक किसी भी दिन अपने घर, दुकान, फैक्टरी और कार्यालय में सम्मान के साथ झंडा फहरा सकता है।(एएमएपी)