डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
कोई भारत में पीएच.डी. करे या विदेश में। सबके अपने सुपरवाइजर के बारे में कुछ खट्टे-मीठे अनुभव होते हैं।
ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी में मेरे पीएच.डी. सुपरवाइजर थे – जेफ मंझम। मेरा उनसे तीन वर्ष से अधिक का संपर्क रहा। सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने कभी भी मुझसे कोई भी व्यक्तिगत काम नहीं लिया और हमेशा मेरी मदद की।
मुझे ‘सर’ न कहो
मैं उनसे पहली बार 4 अक्टूबर 1989 को मिला था। जैसे ही मैंने उनको ‘सर’ कह कर के संबोधित किया, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे ‘जेफ’ कह कर संबोधित करो।
कार्डिफ ब्रिटेन के वेल्स प्रान्त की राजधानी है।
एक बार मैं अपने सेंटर के मुख्य दरवाजे पर खडा था। बाहर बारिश हो रही थी। मेरे हाथ में छाता था। तभी बिल्डिंग के अन्दर से जेफ आ गए। उन्हें उस बारिश में किसी काम से जरा देर के लिए बाहर जाना था। तब उन्होंने मुझसे कहा था : “Can I borrow your umbrella?” अर्थात क्या मैं तुम्हारा छाता ले सकता हूँ? तो मैंने उनको अपना छाता दे दिया। उसे लेकर वह बारिश में बाहर चले गए। और कोई पांच मिनट अन्दर ही वापस लौट आए और मेरा छाता मुझे लौटा दिया। बस इतना ही व्यक्तिगत काम उन्होंने मुझसे लिया था।
जेफ की पूरी यूनिवर्सिटी में बहुत इज्जत थी। उनका पढ़ाने का ढ़ंग बहुत अच्छा था। इस कारण उन्हें उनके स्टूडेंट्स बहुत पसंद करते थे।
कार्डिफ काउन्सिल का चुनाव
जेफ लेबर पार्टी के सीनिअर मेंबर थे और कार्डिफ काउन्सिल के निर्वाचित सदस्य थे। एक बार उनका इलेक्शन था। उनके निर्वाचन क्षेत्र में भरतीय मूल के लोगों की काफी आबादी थी। तब मैने उनसे कहा था कि आपको यदि अपने चुनाव प्रचार में मेरी जरूरत पड़े, तो उसके लिए मैं तैयार हूँ। उन्होंने मेरी बात सुन ली। और मेरे प्रस्ताव के लिए अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त की। परन्तु मुझसे कभी कोई काम नहीं लिया।

एक बार कार्डिफ में रह रहे एक बिहारी सज्जन का मेरे पास फोन आया। उन्होंने मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की और मुझसे एप्यान्मेंट मांगा। मैंने उनसे कहा कि आप मुझसे मिलने के लिए जब चाहे आ जाएं, हर वक्त आपका स्वागत है। वह सज्जन बोले कि अभी आ जाऊं? मैंने कहा आप अभी आ जाएं, मुझे कोई प्राब्लेम नहीं है। मैं उन सज्जन का नाम भूल गया हूँ। खैर, थोड़ी देर बाद वे मुझसे मिलने मेरे घर पर आ गए। मैंने उनके लिए चाय बनाना चाही। परन्तु वे बोले कि किसी रेस्त्रां में चलते हैं, वहां बात करेंगे। तो हम लोग उनकी कार से कार्डिफ के एक रेस्त्रां में गए।
रेस्त्रां में उन्होंने बताया कि वे कार्डिफ काउन्सिल का चुनाव लड़ रहे हैं। वे यह चाहते थे कि मैं उनके चुनाव प्रचार में उनकी मदद करूं। परन्तु मैंने उनसे मना कर दिया। मैंने कहा – मेरे पास अपनी पीएच.डी. का बहुत काम है। इसलिए मैं आपका चुनाव प्रचार नहीं कर सकता।
लेकिन वे बहुत आरजू-मिन्नत करने लगे, तो मैंने उनसे पूछा – आपके प्रचार में मुझे कितना वक्त देना होगा। उन्होंने कहा – बस एक हफ्ता।
तो उनकी जरूरत को देखते हुए मैंने हामी भर दी। परन्तु मैंने उनसे पूछा – आपके जीतने के चांसेज क्या हैं? तो वे बोले – जीतने का कोई चांस नहीं है। मैंने पूछा – क्यों, ऐसा क्यों है? उन्होंने कहा – मेरे खिलाफ लेबर पार्टी का बहुत स्ट्रांग कंडीडेट है और वही जीतेगा। मैंने पूछा – क्या आप स्पलाट से खड़े हैं? उन्होंने कहा – हां।
तब मैंने उनसे कहा – स्पलाट से जेफ मंझम चुनाव लड़ रहे हैं और वह मेरे पीएच.डी. सुपरवाइजर हैं। मैं यदि आपका चुनाव प्रचार करूंगा, तो वह कतई बुरा नहीं मानेंगे, परन्तु मन ही मन मेरे ऊपर हंसेगे जरूर।
इस प्रकार मैं उनके चुनाव प्रचार से बच गया।
एक बात और है। कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी में जेफ मंझम के कमरे में उनके सामने सिर्फ एक कुर्सी पड़ी रहती थी। अर्थात एक से ज्यादा व्यक्ति की बैठने की व्यवस्था उनके कमरे में नहीं थी। मतलब यह कि वह अपने कमरे में ज्यादा लोगों की भीड़ बढ़ाने के चक्कर में नहीं रहते थे। और मैंने यूनिवर्सिटी में उनके पास कभी किसी राजनीतिक व्यक्ति को बैठे हुए कभी नहीं देखा।
मुझे कार्डिफ यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने दो वर्ष की स्कॉलरशिप दी थी। दो वर्ष में मेरा काम पूरा नहीं हो पाया था। तो बगैर मेरे अनुरोध किए जेफ मंझम ने मेरी स्कॉलरशिप को एक वर्ष और बढ़ावा दिया था। जब मैं कार्डिफ पहुंचा था, तभी शुरू के एक-दो महीने के अंदर ही उन्होंने मेरी स्कॉलरशिप की राशि भी बढ़ावा दी थी। इतना ही नहीं, मुझे यूनिवर्सिटी एकोमोडेशन में रहने का कोई किराया भी नहीं देना पड़ता था। साथ ही गैस और इलेक्ट्रिसिटी भी फ्री थी।
यह सब मेरे पीएच.डी. सुपरवाइजर जेफ मंझम की वजह से ही हुआ था। परंतु उन्होंने कभी भी मुझसे यह नहीं कहा कि मैंने तुम्हारे लिए ये-ये करवा दिया है। उन्होंने कभी एक शब्द भी ऐसा नहीं कहा जिससे मुझे लगे कि उन्होंने मेरी कोई मदद की है या मुझ पर कोई एहसान किया है।
सरलता ही उनका सौन्दर्य था
जेफ मंझम की इंग्लिश बहुत अच्छी थी। वह बहुत सरल भाषा लिखते थे। कम शब्दों में पूरी बात कह देते थे। कार्डिफ में मेरे प्रत्येक लेखन का वह बहुत खूबसूरती से संपादन कर देते थे। उनकी भाषा ही सरल नहीं थी, उनका व्यवहार भी बहुत सरल था।
पीएच.डी. करने के बाद मैं भारत वापस आ गया और जेफ मंझम से फिर मेरा कोई संपर्क नहीं रहा। परंतु मुझे उनकी याद अक्सर आती रही और आज भी आती है। वैसे भी, जीवन में जो अच्छे लोग मिलते हैं वे बार-बार याद आते हैं।
नवम्बर 2003 में जेफ मंझम नीदरलैंड्स की एक यूनिवर्सिटी में लेक्चर देने के लिए गए हुए थे और वहीं एक रात वह सोए, फिर सुबह नहीं उठे। शायद उन्हें सोते पर हार्ट अटैक पड़ गया था। तब उनकी उम्र 57 वर्ष थी। उन्होंने शादी नहीं की थी। वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के पढ़े हुए थे। उन्होंने कई पुस्तकें लिखी थीं।अमेरिका वह लगभग हर वर्ष जाते थे। उन्होंने बीबीसी के लिए एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी जिसका विषय था – अमेरिकन सिविल वार में वेल्स का प्रभाव। उन्हें शतरंज खेलने का और बॉक्सिंग का भी शौक था।
मेरे लिए ही नहीं, दुनिया भर में फैले अपने अनेक छात्रों के लिए जेफ मंझम एक प्रेरणा स्रोत रहे। ऐसे उत्कृष्ट व्यक्तित्व को सादर नमन्।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)