पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने पर आधारित है मकर संक्रांति का पर्व
उन्होंने बताया कि संक्रांति का अर्थ सूर्य का एक तारामंडल से दूसरे तारामंडल में पहुंचने की घटना है। सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती पृथ्वी एक साल में 360 डिग्री घूमती है। इस दौरान पृथ्वी के आगे बढ़ने से सूर्य के पीछे दिखने वाला तारामंडल बदलता जाता है। जब सूर्य धनु तारामंडल छोड़ कर मकर तारामंडल में प्रवेश करता दिखता है, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। इस वर्ष मान्यता के अनुसार यह 15 जनवरी को होने जा रहा है।
सारिका ने बताया कि अभी से लगभग 1800-2000 वर्ष पूर्व मकर संक्रांति 22 दिसंबर के आसपास मानी जाती थी। उस समय संक्रांति और सूर्य उत्तरायण एक साथ होते थे। इसी गति और समय अन्तराल के बढ़ते क्रम के कारण यह संक्रांति अब 14-15 जनवरी तक आ गई है। लगभग 80 से 100 वर्ष में यह संक्रांति काल एक दिन बढ़ जाता है। एक गणना के अनुसार एक साल में संक्रांति नौ मिनट आगे बढ़ जाती है तथा 400 साल में औसत रूप से 5.5 दिन आगे बढ़ जाती है।
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उन्होंने कहा कि सूर्य का उत्तरायण 22 दिसम्बर को चुका है, लेकिन पतंग और तिल गुड़ की मान्यता के साथ सूर्य की महिमा को बताने वाले मकर संक्रांति पर्व को सोमवार, 15 जनवरी को पूरे उत्साह के साथ मनाने के लिए तैयार रहें।(एएमएपी)