प्रमोद जोशी।
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को चुनावों से पहले मुफ्त उपहारों की घोषणा करने वाली सरकारों और राजनीतिक दलों को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि इससे लोग काम करने से बच रहे हैं और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में श्रम शक्ति सूख रही है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और एजी मसीह का पीठ बेघरों के लिए आश्रय गृहों के बारे में एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि नीतियाँ केवल अमीरों के लिए बनाई गई हैं। वकील ने कहा, “असली पीड़ित गरीब और बेघर लोग हैं। दुर्भाग्य से, बेघर होने के कारणों की बात नहीं की जाती है। इस देश में यह सबसे कम प्राथमिकता है। मुझे यह कहते हुए खेद है कि करुणा केवल अमीरों के लिए है, गरीबों के लिए नहीं।”
न्यायमूर्ति गवई ने वकील के यह कहने पर आपत्ति जताई कि करुणा केवल अमीरों के लिए है, और कहा कि राजनीतिक भाषण न दें। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “इस अदालत में वैसा भाषण न दें, जैसा रामलीला मैदान में दिया जाता है। अदालत में, अपने आप को तर्क तक सीमित रखें। यदि आप किसी के पक्ष में बोल रहे हैं, तो उसे (वहीं तक) सीमित रखें। अनावश्यक आरोप न लगाएं। यहाँ कोई राजनीतिक भाषण न दें। हम अपने न्यायालय कक्ष को राजनीतिक मंच में बदलने की अनुमति नहीं देंगे।”
अधिवक्ता ने कहा, “मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। मेरा यह मतलब नहीं था।” फिर जस्टिस गवई ने वकील से पूछा, “आप कैसे कह सकते हैं कि करुणा सिर्फ़ अमीरों के लिए ही दिखाई जाती है?”
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि इलाके के सौंदर्यीकरण के लिए कुछ आश्रय स्थलों को हटा दिया गया।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि दिल्ली सरकार के वकील ने जानकारी दी है कि आश्रय गृहों की हालत खस्ता है। मामले में दायर हलफनामे में दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में बताया गया है। साथ ही न्यायमूर्ति गवई ने टिप्पणी की, “तो, देश के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग तैयार नहीं कर रहे हैं?”
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “दुर्भाग्य से, चुनाव के समय घोषित इन मुफ्त सुविधाओं के कारण… कुछ लाडली बहन और कुछ अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है, बिना किसी काम के पैसे मिल रहे हैं, तो वे काम क्यों करें!”
जैसे ही प्रशांत भूषण ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हम उनके लिए आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने और राष्ट्र के विकास में योगदान देने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता? मैं आपको व्यावहारिक अनुभव बता रहा हूँ, इन मुफ्त सुविधाओं के कारण, कुछ राज्य मुफ्त राशन देते हैं… इसलिए लोग काम नहीं करना चाहते हैं।”
भूषण ने कहा, ‘इस देश में शायद ही कोई ऐसा होगा जो काम मिलने पर काम नहीं करना चाहेगा।’ उन्होंने कहा कि लोग शहरों की ओर इसलिए आते हैं क्योंकि उनके गाँवों में उनके पास कोई काम नहीं होता।
जस्टिस गवई ने कहा, “आपको सिर्फ़ एकतरफ़ा जानकारी होगी। मैं एक किसान परिवार से आता हूँ। महाराष्ट्र में चुनाव से ठीक पहले घोषित की गई मुफ़्त सुविधाओं की वजह से किसानों को मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। जब सभी को घर पर मुफ़्त सुविधाएँ मिल रही हैं, तो वे काम क्यों करना चाहेंगे?