सावरकर पर टिप्पणी को लेकर मानहानि मामले पर रोक लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने वीडी सावरकर के खिलाफ विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों पर मौखिक रूप से असहमति जताई। कोर्ट ने सावरकर के खिलाफ की गई टिप्पणियों को लेकर लखनऊ कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ लंबित आपराधिक मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगा दी लेकिन मौखिक रूप से चेतावनी दी कि अगर उन्होंने भविष्य में ऐसी कोई टिप्पणी की तो उनके खिलाफ स्वतः संज्ञान से कार्रवाई की जाएगी।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार मामले की सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस दत्ता ने राहुल गांधी के इस बयान पर आपत्ति जताई कि सावरकर अंग्रेजों के सेवक थे। जस्टिस दत्ता ने पूछा कि क्या महात्मा गांधी को अंग्रेजों का सेवक सिर्फ इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने वायसराय को लिखे अपने पत्रों में आपका वफादार सेवक शब्द का इस्तेमाल किया था।

Savarkar: Rahul Gandhi faces flak from ally and rivals over remarks on  Savarkar | India News - Times of India

जस्टिस दत्ता ने गांधी का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी से पूछा- “क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी वायसराय को संबोधित करते समय आपका वफादार सेवक शब्द का इस्तेमाल किया था? क्या आपके मुवक्किल को पता है कि उनकी दादी (इंदिरा गांधी) जब प्रधानमंत्री थीं, तब उन्होंने भी स्वतंत्रता सेनानी सज्जन (सावरकर) की प्रशंसा करते हुए एक पत्र भेजा था?”

Supreme Court Stays Conviction Of Congress Leader Rahul Gandhi In Criminal  Defamation Case Which Disqualified Him As MP
Image Courtesy: Livelaw.in

जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की, “उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए। आपने कानून का एक अच्छा बिंदु रखा है। आप इस पर रोक लगाने के हकदार हैं। हम यह जानते हैं। लेकिन आप हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं। जब आपको भारत के इतिहास या भूगोल के बारे में कुछ भी पता नहीं है।”

जस्टिस दत्ता ने कहा, “वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। वह राजनीतिक दल के राजनीतिक नेता हैं। आपको इस तरह से परेशानी क्यों खड़ी करनी चाहिए? आप अकोला जाते हैं और यह बयान देते हैं, महाराष्ट्र में जहां उनकी (सावरकर की) पूजा की जाती है? ऐसा मत करो। आप यह बयान क्यों देते हैं?” उन्होंने कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट के जज भी ब्रिटिश काल में चीफ जस्टिस को “आपका सेवक” कहकर संबोधित करते थे। जस्टिस दत्ता ने कहा, “कोई इस तरह सेवक नहीं बनता। अगली बार कोई कहेगा कि महात्मा गांधी अंग्रेजों के सेवक थे। आप इस तरह के बयानों को बढ़ावा दे रहे हैं।”

खंडपीठ ने कहा कि वह कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए इच्छुक है लेकिन इस शर्त पर कि वह भविष्य में इस तरह का कोई बयान नहीं देंगे। जस्टिस दत्ता ने कहा, “हम आपको रोक देंगे… लेकिन हम आपको गैर-जिम्मेदाराना बयान देने से रोकेंगे। स्पष्ट कर दें कोई भी और बयान देने पर हम स्वत: संज्ञान लेंगे और मंजूरी का कोई सवाल ही नहीं है! हम आपको हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में कुछ भी बोलने की अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने हमें स्वतंत्रता दी है और हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं?”

सिंघवी ने मौखिक रूप से वचन दिया कि इस तरह का कोई बयान नहीं दिया जाएगा। न्यायालय ने आदेश में इस शर्त को निर्दिष्ट नहीं किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 4 अप्रैल को राहत देने से इनकार करने के बाद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पिछले साल दिसंबर में प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए भाषण को लेकर अदालत ने गांधी को आरोपी के तौर पर तलब किया था। इस भाषण में उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि सावरकर अंग्रेजों के सेवक थे और उन्होंने अंग्रेजों से पेंशन ली थी।

वीर सावरकर मानहानि केस में राहुल गांधी को SC की फटकार

एडवोकेट नृपेंद्र पांडे ने शिकायती मामला दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि गांधी ने समाज में नफरत फैलाने के इरादे से विनायक दामोदर सावरकर को अंग्रेजों का सेवक कहा था। उन्होंने अंग्रेजों से पेंशन ली थी। लखनऊ के एडिशनल सिविल जज (सीनियर डिविजन)/एसीजेएम आलोक वर्मा ने दिसंबर में पारित अपने आदेश में कहा था, “प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहले से छपे पर्चे और लीफलेट बांटना दर्शाता है कि राहुल गांधी ने समाज में नफरत और दुश्मनी फैलाकर राष्ट्र की बुनियादी विशेषताओं को कमजोर और अपमानित किया है।”

हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी कि गांधी के पास धारा 397 CrPC (धारा 438 BNSS) के तहत सेशन जज के समक्ष जाने का उपाय उपलब्ध है। इसे देखते हुए न्यायालय ने उनकी याचिका का निपटारा कर दिया।