
बागी विधायकों को भाजपा में विलय की क्या जरूरत
उच्चतम न्यायालय ने उद्धव ठाकरे की शिंदे गुट द्वारा विलय की दलीलों पर सवाल उठाया। कोर्ट ने पूछा, शिवसेना के बागी विधायकों को भाजपा में विलय की क्या जरूरत थी। विलय होने के बाद उनकी पहचान नहीं रहती, वो तो अब भी शिवसैनिक की राजनीतिक पहचान के साथ हैं। ठाकरे की ओर से सिंघवी ने कहा कि वैसे तो हर पार्टी में असंतुष्ट हैं, लेकिन उनसे निपटने के और भी समुचित उपाय है। लेकिन ये कैसे हो सकता है कि आप असंतुष्ट होकर सरकार को ही अस्थिर कर उसे गिरा दें, इसलिए व्हिप का उल्लंघन करने के बजाय आप सदस्यता छोड़ दें।
पार्टी परिवार चला रहा तो समूह में टूटने में क्या बुराई
पीठ के एक जज जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि पार्टियों में लोकतंत्र बचा ही नहीं है। पार्टियों को एक परिवार के व्यक्ति चला रहे हैं। उनके सामने किसी का कोई विरोध नहीं चलता। ऐसे में समूह के रूप में टूटकर अगल होने में क्या बुराई है। यह तर्क कभी-कभी खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि पार्टी में एक नेता के अलावा बिल्कुल भी आजादी नहीं है। कई बार इसे एक ही परिवार चलाता है। फ्रेम में किसी और के आने की कोई गुंजाइश नहीं है। आप यह कहने के लिए संविधान की व्याख्या कर रहे हैं कि यह किसी विधायक के लिए संभव नहीं है।(एएमएपी)



