आपका अखबार ब्यूरो।
सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और उनसे जुड़ी घटनाओं पर एक बार फिर चर्चा होने जा रही है। बुधवार को ‘कान्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया)’ की ओर से दाखिल याचिका का उल्लेख प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष किया गया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 का सही तरीके से पालन नहीं हो रहा, जबकि इन नियमों के तहत आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नियमित नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य है।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से तत्काल सुनवाई की मांग की, जिस पर प्रधान न्यायाधीश ने आश्वासन दिया कि वह इस पर विचार करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि आवारा कुत्तों के संबंध में पहले ही एक अन्य पीठ आदेश पारित कर चुकी है।
गौरतलब है कि सोमवार को न्यायमूर्ति जे.बी. पार्डीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाओं को ‘बेहद गंभीर’ बताते हुए सभी आवारा कुत्तों को शीघ्र स्थायी रूप से आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। अदालत ने दिल्ली के अधिकारियों को निर्देश दिया था कि छह से आठ सप्ताह के भीतर लगभग 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थल बनाए जाएं। साथ ही चेतावनी दी थी कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन इस प्रक्रिया में बाधा डालेगा, तो उसके खिलाफ अवमानना कार्यवाही की जाएगी।
बुधवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने मई 2024 के उस आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने आवारा कुत्तों से संबंधित मामलों को संबंधित हाई कोर्टों में भेजने का निर्णय लिया था।
‘कान्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया)’ का कहना है कि यदि नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम प्रभावी रूप से लागू किए जाएं, तो न केवल कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बल्कि काटने की घटनाओं और नागरिकों की सुरक्षा से जुड़े जोखिम भी कम होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह भी कहा था कि भविष्य में कुत्तों के लिए आश्रय स्थलों की संख्या बढ़ाना आवश्यक होगा, ताकि किसी भी क्षेत्र में आवारा कुत्तों की अनियंत्रित वृद्धि न हो। अब देखना होगा कि प्रधान न्यायाधीश की पीठ इस मामले में कब सुनवाई तय करती है और क्या पहले से जारी आदेशों में कोई संशोधन या नए दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।