आपका अखबार ब्यूरो।

गुरु द्रोण की नगरी गुरुग्राम में भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन ‘विविभा: 2024’ के अंतिम दिन विश्वविख्यात योग गुरु स्वामी रामदेव ने शोधार्थियों को योगाभ्यास करवाया। उन्होंने दैनिक जीवन से लेकर राष्ट्र निर्माण तक में योग के महत्व पर प्रकाश डाला। स्वामी रामदेव ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशंसा करते हुए कहा कि जो लोग स्वदेशी अभियान को प्रारंभ करने का श्रेय लेते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि स्वदेशी अभियान की आधारशिला संघ ने बहुत पहले रख दी थी और मुझे भी इस अभियान को आगे बढ़ाने का मौका मिला।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण में शिक्षण मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है- एडमिरल दिनेश त्रिपाठी

युवा शोधार्थियों को सम्बोधित करते हुए भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने भारत केंद्रित शोध को प्रोत्साहित कर युवाओं में शोध कार्य के प्रति जागरूकता लाने के भारतीय शिक्षण मंडल युवा आयाम के इस प्रयास की सराहना की। एडमिरल त्रिपाठी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षानीति के निर्माण में भारतीय शिक्षण मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विकसित भारत की संकल्पना देश के प्रत्येक नागरिक की प्राथमिकता होनी चाहिए।

15 नवंबर से 17 नवंबर तक आयोजित हुए इस कार्यक्रम में देश भर से आए 1,200 शोधार्थियों को देशभर से आए विषय विशेषज्ञों से मुक्त चर्चा का अवसर मिला। भारत केंद्रित शोध को बढ़ाने और युवा शोधार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए तीन दिन तक चले शोध महाकुंभ में जहां युवाओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अनुकरण करने लायक चीजें ही लेने और अन्धानुकरण से बचने का मंत्र दिया। वहीं गीता मनीषि महामंडलेश्वर परम पूज्य ज्ञानानंद जी महाराज ने युवाओं को श्रीमद्भगवद्गीता के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ श्लोक को जीवन का सूत्रवाक्य बनाने का आह्वान किया। उन्होंने युवाओं और विशेष रूप से युवा शोधार्थियों को भविष्य की चिंता में ऊर्जा व्यय करने के स्थान पर वर्तमान के निर्माण में जुट जाने का आह्वान किया।

विजन 2047’ को मूर्त रूप में लाने के लिए युवाओं की भूमिका प्रमुख

समापन समारोह में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय अध्यक्ष सच्चिदानंद जोशी एवं भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सुहास पेडनेकर ने भी अपने विचार रखे। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री बी. आर. शंकरानंद जी ने समापन सत्र को संबोधित करते हुए ‘विजन 2047’ के लक्ष्य को मूर्त रूप में लाने के लिए युवाओं की प्रमुख भूमिका बताई। उन्होंने कहा आध्यात्मिक शक्ति की नींव पर भारत को विकसित बनाना है, तभी वह एक श्रेष्ठ भारत बन पाता है। युवा अपने पांच मूल कार्यों पर केंद्रित होकर पूर्ण समर्थन और समर्पण भाव से कार्य करें। हमारा पहला काम है अनुसंधान। एक विद्यालय की वेशभूषा या पोशाक किस रंग की होनी चाहिए, यह भी एक शोध का विषय है। इस पर भी शोध की आवश्यकता है। इसीलिए शोध, शिक्षण मंडल का प्रमुख कार्य है। दूसरा महत्वपूर्ण कार्य है पाठ्यक्रम निर्माण। तीसरा महत्वपूर्ण कार्य है प्रकाशन और चौथा है शिक्षण विधि। हमारा अंतिम और पांचवाँ कार्य है शिक्षक शिक्षा। और, हमारे सभी पांच कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।

एसजीटी विश्विद्यालय के अध्यक्ष डॉ मनमोहन चावला ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘विविभा: 2024’ से पूरे भारत से आए हुए शोधार्थियों अत्यन्त लाभ मिला है। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री डॉ. भरत शरण सिंह ने आभार व्यक्त किया, जबकि अतिथि परिचय भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. संजय पाठक ने एवं मंच संचालन डॉ. चंचल भारद्वाज किया।

हम रुक गएइसीलिए पतन हो गया- डॉ. मोहन भागवत

तीन दिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन ‘विविभा: 2024’ का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया था। उन्होंने कहा कि अच्छे शोध के लिए चिंतन के साथ प्रत्यक्ष प्रयास आवश्यक है। उद्घाटन के दौरान डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय शिक्षण मंडल की शोध पत्रिका ‘प्रज्ञानम’ का लोकार्पण भी किया। उन्होंने कहा कि दृष्टि की समग्रता ही भारत की विशेषता है। हर भारतवासी को अपना भारत, विकसित भारत, समर्थ भारत चाहिए। विकास के अनेक प्रयोग 2,000 वर्षों में हो चुके हैं। उनकी अपूर्णताएं लोगों के ध्यान में आयीं। विश्व इन विफलताओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है। विकास करें या पर्यावरण की रक्षा करें, दोनों में से एक को चुना जा सकता है। दोनों को साथ लेकर चलेंगे, तभी बचेंगे। विकास और पर्यावरण दोनों को एक साथ लेकर चलना ही पड़ेगा।

16वीं सदी तक सभी क्षेत्रों में भारत दुनिया का अग्रणी देश था। बहुत सी बातें हमने खोज ली थीं, हम रुक गए, इसीलिए पतन हो गया। भारत में 10,000 वर्षों से खेती हो रही है, अन्न-जल-वायु के विषाक्त होने की समस्या कभी नहीं आई। पाश्चात्य अन्धानुकरण के कारण यह समस्या आई है। विकास एकाकी हो गया है, जबकि इसे समग्रता से देखा जाना चाहिए। मनुष्य जीवन का स्वामी है, पर दास बन बैठा है। जीवन चलाने में जीवन खो बैठा है। विकास केवल अर्थ काम की प्राप्ति नहीं है। उसका विरोध नहीं है। अपितु आत्मिक और भौतिक समृद्धि दोनों विकास एक साथ चलने चाहिए। हमारी प्रकृति ऐसी है कि हम पेटेंट पर विश्वास नहीं करते। ज्ञान सबको मिलना चाहिए परन्तु उस ज्ञान का प्रयोग विवेक से करें।

तकनीक आनी चाहिए, लेकिन निर्ममता नहीं होनी चाहिए। हर हाथ को काम मिले। दुनिया हमसे सीखे कि ये सारी बातें साथ लेकर कैसे चलते हैं। अनुकरण करने लायक चीजें ही लें, लेकिन अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए। व्यवस्था बंधन नहीं होना चाहिए। व्यवस्था ज्ञान को बढ़ाने का साधन होना चाहिए। पढ़ाई खत्म होने के बाद भी सीखते रहना चाहिए। सीखते-सीखते व्यक्ति बुद्ध बन जाता है। हम किसी की नकल नहीं करेंगे, हमें खुद के ही प्रतिमान खुद खड़े करने होंगे। अगर आज से ही हम इसमें लग गए तो आगामी 20 वर्षों में विजन-2047 का भारत का सपना साकार होते हुए मैं देख रहा हूं।

विकसित भारत 2047 की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने में युवा शोधार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका –   डॉ एस. सोमनाथ 

इसरो के अध्यक्ष डॉ एस. सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने का यही सही समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना और अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना है। उन्होंने कहा की भारत की विश्वगुरु की संकल्पना को साकार करते हुए हमें ऐसा भारत बनाना है, ताकि लोग यहां पर प्रसन्नतापूर्वक रहें।

यह महायज्ञ की शुरुआत है- डॉ. कैलाश सत्यार्थी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने आयोजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि लगभग दो लाख प्रतिभागियों में से चुने हुए 1,200 शोधार्थी एक साथ एक छत के नीचे बैठे हैं। आज जिस महायज्ञ की शुरुआत हो रही है, इसका सन्देश पूरी दुनिया को आलोकित करेगा। भारतीय परंपरा की जड़ें बहुत गहरी हैं। जो कुछ भी आप जीवन में हासिल करते हैं, उसे कितना गुना करके दुनिया को वापस लौटाते हैं, उससे जो आनंद प्राप्त होता है, वही भारतीय परंपरा है। हम समावेशी विकास के साथ आगे बढ़ते हैं। विकास की परिभाषा और अवधारणा हमारी अपनी है। भारत को किसी की नकल की करने और किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। हमारे ऋषियों ने यह हमें सिखाया है। तेरे-मेरे का भाव समाप्त करें, तभी वसुधैव कुटुम्बकम की भावना साकार होगी।

उद्घाटन समारोह के दौरान इसरो चीफ डॉ. एस सोमनाथ और नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी की मौजूदजी में डॉ. मोहन भगवत  ने एक विशाल प्रदर्शनी का भी शुभारंभ किया। विविभा : 2024 में कणाद से कलाम तक की भारत की यात्रा का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान 10,000 शैक्षणिक-शोध संस्थानों और सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों ने “भारतीय शिक्षा”, “विकसित भारत के लिए दृष्टि” और “भविष्य की तकनीक” जैसे विषयों पर अपने शोध और नवाचारों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि सनातनी शिक्षा से लेकर आधुनिक शिक्षा तक के सफर में भारत कहां है। प्रदर्शनी में प्राचीन गुरुकुलों से लेकर, वर्तमान तकनीकी अनुकूलन समेत भारतीय शिक्षा के विकास और छत्रपति शिवाजी के समय के अस्त्र-शस्त्रों से लेकर भारतीय वायु सेना की ब्रह्मोस मिसाइल तक को विभिन्न स्टॉलों पर प्रदर्शित किया गया। यह प्रदर्शनी देशभर से आए शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रही। खास तौर पर IIIT मणिपुर के स्टॉल पर ‘काबुक कोइदुम’ विशेष रूप से चर्चा में रहा। गुड, चावल, तिल और मेवों से बनी यह पारंपरिक मिठाई, मणिपुर की सांस्कृतिक विरासत को देश भर से परिचित करने का महत्वपूर्ण प्रयास रहा।

शोध सृजनात्मक समाज का आधार है – धर्मेन्द्र प्रधान

सम्मेलन के दूसरे दिन युवा शोधार्थियों को सम्बोधित करते हुए केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि वेदों में लिखा गया है कि युवा हमारी सृजनशक्ति हैं। आजादी के अमृतकाल में ये आयोजन बहुत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है। मैं इसे एक सार्थक प्रयास मानता हूं। शोध गतिशील समाज के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह सृजनात्मक चिंतन का आधार है। सदियों से, वेद-उपनिषद काल से भारतीय जीवन मूल्य, भारत में रहने वाले लोगों की कुछ मान्यताएं हैं, कुछ समझ है, कुछ शोध है। अनेक सभ्यताएं आईं और विलुप्त हो गईं। जो जड़ से जुड़ीं थीं, वही टिक पाईं। भौतिक उपलब्धि व्यक्ति, देश, समाज के लिए चिरस्थायी नहीं है। भारतीय ज्ञान परंपरा बहु-आयामी, बहु-रूपीय, बहु-स्तरीय, सर्व-व्यापी, सर्व-स्पर्शी है, इसीलिए हम टिके हैं। आज हमारे देश को न केवल भौतिक ऊंचाई तक ले जाने की चुनौती है, बल्कि विश्वगुरु भी बनना है। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि हमें विश्वबंधु की भूमिका निभानी चाहिए। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के लेख में भारत की चर्चा हो रही है, भारत के बारे में रणनीति बनाई जा रही है, ये औद्योगिक क्रांति का सत्य है। भारत सस्ती दवाई नहीं बनाएगा, तो विश्व में बीमारियां हो जाएंगी। भारत अगर आईटी प्रोफेशनल तैयार नहीं करेगा, तो दुनिया के आर्थिक तंत्र पर सवालिया निशान लग जाएगा।