‘रासो’ आधारित है फिल्म सम्राट पृथ्वीराज

शिवचरण चौहान।

‘सम्राट पृथ्वीराज’ फिल्म महाकवि चंदबरदाई द्वारा लिखे गए महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ पर आधारित है। मुख्यतः पृथ्वीराज रासो अत्यंत ओजस्वी भाषा में जीवनंतता के साथ पृथ्वीराज की वीरता का बखान है। हालांकि उसमें पृथ्वीराज के जीवन चरित और प्रेम श्रृंगार का भी वर्णन है।

माना जाता है कि पृथ्वीराज रासो हिंदी की पहली कविता है। ऐसा है तो महाकवि चंदबरदाई हिंदी के प्रथम कवि हैं। इसमें 10 हजार से अधिक छंद हैं। जिनमें पृथ्वीराज चौहान की शूरवीरता और प्रेम-सौंदर्य-श्रृंगार का चित्रण है। पृथ्वीराज रासो का अंतिम भाग चंदबरदाई के पुत्र जल्हण ने पूरा किया। चंदबरदाई छह से अधिक भाषाओं के ज्ञाता थे। पृथ्वीराज रासो में ब्रजभाषा सहित छह  भाषाओं का प्रयोग किया गया है। पिंगल में तत्कालीन समाज और तत्कालीन कविता के प्रतिमान दिखाई देते हैं। इतिहासकारों ने पृथ्वीराज की इतिहास के साथ न्याय नहीं किया है, ऐसा प्रतीत होता है। इतिहासकारों ने पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा कह कर सीमित कर दिया है। जो मिला उसी के आधार पर इतिहास लिख दिया और विवादित बना दिया।

जालंधरी देवी की कृपा

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चंदबरदाई की पुरखे पंजाब से लाहौर में रहते थे और वहीं पर चंदबरदाई का जन्म हुआ। चंदबरदाई सम्राट पृथ्वीराज के राज कवि तो थे ही, साथ ही उनके मित्र और सामंत भी थे। चंदबरदाई षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद शास्त्र, ज्योतिष, पुराण तथा नाटक आदि अनेक विषयों और विधाओं में निपुण थे । इन्हें जालंधरी देवी की कृपा प्राप्त थी। जिससे यह अदृष्ट देख सकते थे और आशु कविता कर सकते थे। चंदबरदाई मंत्र-तंत्र आदि में भी बड़े प्रवीण बताए जाते गए हैं।

चंदबरदाई का जीवन पृथ्वीराज चौहान के जीवन से ऐसा मिला-जुला था कि उससे अलग नहीं किया जा सकता। युद्ध, शिकार, सभा तथा यात्रा में सदा महाराज पृथ्वीराज के साथ रहा करते थे। इन्होंने कई बार संकट और आसन्न मृत्यु से महाराज की रक्षा भी की थी। शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी के साथ अंतिम युद्ध में जब वह पृथ्वीराज चौहान तृतीय को कैद कर गजनी ले गया। शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की दोनों आंखें फोड़ दीं थीं और कारागार में डाल दिया था।

मत चूको चौहान…

Was Muhammad Ghori killed by Prithviraj Chauhan? - Quora

चंदबरदाई किसी तरह गजनी पहुंचा और उसने गजनी के बादशाह मोहम्मद गोरी से घनिष्ठता बना ली और गोरी को बताया कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चला लेता है। इसकी परीक्षा ली जानी चाहिए। फिर एक दिन मोहम्मद गोरी एक उत्सव का आयोजन करता है और उसमें पृथ्वीराज चौहान की शब्दभेदी बाण कला का प्रदर्शन करने को कहता है। पृथ्वीराज घंटे की आवाज सुनकर के घंटे पर तीर चलाते हैं और तभी गोरी वाह-वाह कर उठता है। चंदबरदाई ने तुरंत पृथ्वीराज से कहा- “चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण/ ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।”

इतना सुनते ही अंधे पृथ्वीराज ने निशाना साध कर मोहम्मद गोरी की ओर तीर चलाया जो उसके सीने में लगा। गोरी वहीं ढेर हो गया। चंदबरदाई ने अपनी पगड़ी में छिपी कटार निकाली और पहले पृथ्वीराज के सीने में उतार दी और फिर अपने सीने में। इस तरह दोनों ने वीरगति प्राप्त की।

अपने समय का विश्व इतिहास

Prithviraj Raso - Wikipedia

पृथ्वीराज रासो ढाई हजार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है। इस में 69 ‘समय’ या अध्याय हैं, जिनमें पृथ्वीराज का जन्म से लेकर मरण तक का वृत्तांत है। प्रसंगवश पृथ्वीराज का जिन-जिन लोगों से जहाँ-जहाँ काम पड़ा था, उनका भी पर्याप्त विवरण इसमें मिलता है। इस प्रकार उस समय के भारत-वर्ष के प्रायः सभी राजाओं और उन के राज्यों तथा वहाँ के लोगों का विवरण इस ग्रंथ में है। इन्हीं कारणों से कर्नल टाड को इसे अपने समय का विश्व इतिहास मानना पड़ा था।

अजमेर का राज्य कैसे मिला पृथ्वीराज को

Akshay Kumar's Prithviraj is now Samrat Prithviraj - Movies News

पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज चौहान अजमेर के सम्राट सोमेश्वर के पुत्र तथा अर्णोराज का पौत्र थे। सोमेश्वर का विवाह दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल तोमर की कन्या से हुआ था। अनंगपाल तोमर की दो पुत्रियां थीं, जिनमें से एक का नाम सुन्दरी तथा दूसरी का नाम कमला था। कमला का विवाह अजमेर के चौहान राजा सोमेश्वर से हुआ। उनके घर पृथ्वीराज का जन्म हुआ था। राजा अनंगपाल की दूसरी कन्या सुंदरी का विवाह कन्नौज के राठौर राजा विजयपाल से हुआ था और जयचंद उनका पुत्र था।

अनंगपाल के कोई बेटा नहीं था। उन्होंने अपने नाती पृथ्वीराज चौहान को गोद ले लिया। जयचंद भी उनका नाती था पर उनको पृथ्वीराज से अधिक स्नेह था। यह इसलिए कि विवाह के पहले ही जब जयचंद के पिता विजयपाल ने अनंगपाल के पर चढ़ाई की थी तब पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर ने अनंगपाल की सहायता की थी। अनंगपाल का राज्य भी पृथ्वीराज  जिससे जयचंद बहुत नाराज हुआ।

राजसूय यज्ञ का आयोजन

Prithviraj Chauhan Love Story|पृथ्वीराज चौहान की लव स्टोरी|Prithvi Raj Chauhan Ki Patni -पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी के बारे में जानें

उस समय जयचंद सबसे अधिक समृद्धिशाली था। आर्यावर्त के प्रायः सभी राजा उसके सामने शीश नवाते थे। पर पृथ्वीराज और जय चंद्र में हरदम 36 का आंकड़ा रहा। जयचंद ने एक बार दुनिया को अपना आधिपत्य दिखाने के लिये राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के कामों में हाथ बँटाने के लिए सब राजाओं को निमंत्रित किया। पृथ्वीराज को भी बुलाया गया पर उन्होंने वहाँ जाना अस्वीकार किया। जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर भी इसी समय रचा। संयोगिता ने पृथ्वीराज की वीरता की कहानियां सुन रखीं थीं। वह उन पर मुग्ध थी। उसने पहले से ही अपना हृदय पृथ्वीराज को दे रखा था और मन ही मन उन्हें अपना पति बनाने का निश्चय कर चुकी थी।

संयोगिता को एकांतवास का दंड

Prithviraj Chauhan And Sanyogita Chauhan's Love Story

संयोगिता के स्वयंवर समारोह में और सब तो पहुँचे लेकिन पृथ्वीराज नहीं आए। यह देख जयचंद ने सभी उपस्थित राजाओं के सम्मुख अनुपस्थित पृथ्वीराज को अपमानित करने का एक विचित्र उपाय ढूँढ़ निकाला। उसने पृथ्वीराज की एक प्रतिमा बनवा कर सभामंडप के द्वार पर द्वारपाल के स्थान पर रखवा दी। इसका आशय सबको यह बताना था कि मेरे दरबार में पृथ्वीराज की हैसियत द्वारपाल से अधिक नहीं है। पर राजकुमारी संयोगिता ने सभी राजाओं को छोड़कर पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को जयमाल पहना कर पृथ्वीराज के प्रति अपने अपार प्रेम का परिचय दिया। भरी सभा में जयचंद का सिर नीचा हो गया। वे चले थे पृथ्वीराज को अपमानित करने पर अब अपने ही को हजार गुना अधिक अपमानित समझने लगे। बाद में उन्होंने संयोगिता को बहुत समझाया कि वह पृथ्वीराज को भुला दे लेकिन सरे प्रयत्न व्यर्थ हए। आखिरकार झुंझला कर जयचंद ने गंगा किनारे एक महल में संयोगिता को एकांतवास का दंड दे दिया। इधर पृथ्वीराज के सामंतों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने आकर जयचंद का यज्ञ विध्वंस कर डाला और साथ ही पृथ्वीराज और चंदबरदाई भी भेष बदल कर कन्नौज पहुँचे। पर जयचंद को इनके आने की सूचना मिल गई। उसने चंद का डेरा घेर लिया। बस फिर क्या था, लड़ाई शुरू हो गई। इधर पृथ्वीराज, कन्नौज की सैर करते हुए संयोग से संयोगिता के महल के नीचे से गुजरे और दोनों की निगाहें भी चार हुई। अंत में सखी सहेलियों की सहायता से दोनों मिले और वहीँ गन्धर्व विवाह कर लिया।

प्रेममिलन के बाद

इस विचित्र प्रेममिलन के बाद पृथ्वीराज अपने सामंतों से आ मिला, पर उन लोगों को पृथ्वीराज का इस प्रकार अकेले आना अच्छा न लगा। यह देख पृथ्वीराज लौटे और अपने घोड़े पर प्रेममुग्धा संयोगिता को बैठाकर फिर अपने सामंतों से आ मिले। जयचंद और उसके सैनिकों को जब यह मालूम हुआ कि पृथ्वीराज संयोगिता को हरण कर ले गया तो जयचंद के क्रोध का ठिकाना न रहा। भीषण मारकाट प्रारंभ हो गई। पृथ्वीराज और उनके सिपाही लड़ते हुए दिल्ली की ओर अग्रसर होते जा रहे थे। दिल्ली की सीमा तक लड़ाई होती रही पर जयचंद के सैनिक सामंत पृथ्वीराज को पकड़ नहीं पाए। अंत में जयचंद ने कोई उपाय न देख कर दिल्ली में ही विधिवत पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह करा दिया और दहेज के रूप में बहुत-सी संपत्ति भी दी। यह सब तो हुआ पर जयचंद के हृदय में पृथ्वीराज के प्रति जो भयानक द्वेषाग्नि भभक उठी थी वह शांत नहीं हूई।

निराश जयचंद और गोरी

सब तरह से निराश जयचंद ने शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए उकसाया। समय देख और जयचंद का इशारा पाकर शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज के ऊपर चढ़ाई कर दी। वीर पृथ्वीराज चौहान के सामने शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी को बार बार पराजित होना पड़ा। आखरी लड़ाई में उसने गाय और महिलाओं को आगे कर युद्ध लड़ा और पृथ्वीराज चौहान को पकड़ कर ग़जनी ले गया।

छत्रियों को पहले राजपूत नहीं कहा जाता था। पृथ्वीराज रासो में पहली बार चंदबरदाई ने क्षत्रियों को राजपूत कहा है। तभी से राजपूत शब्द प्रचलन में आया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)