रमेश शर्मा।
26/11 मुम्बई आतंकी हमले का “मास्टरमाइंड” तहव्वुर राणा भारत आ गया है। उससे पूछताछ चल रही है। इस आतंकी हमले से संबंधित अनेक प्रश्न अब तक अनुत्तरित हैं। इनमें एक भारत में आतंकवादियों की जड़ों का है और दूसरा आतंकी हमलों को “भगवा” रंग लपेटकर प्रचारित करने के “मास्टरमाइंड” का है। आशा की जा रही है कि पूछताछ में सभी रहस्य सामने आ सकेंगे।
मुम्बई पर यह आतंकी हमला 26 नवम्बर 2008 को हुआ था। पाकिस्तान के दस आतंकवादी समुद्री मार्ग से मुम्बई आये थे। उनके पास आधुनिक हथियार और विस्फोट थे। वे आधुनिक संचार प्रणाली से जुड़े थे। पाकिस्तान में बैठा कोई सरगना उन्हें गाइड कर रहा था। वे दो-दो की पाँच टोलियों में मुम्बई के अलग अलग स्थानों पर फैल गये। यह आतंकी हमला सबसे भीषण था। इसमें कुल 175 लोगों के प्राण गये और साढ़े तीन सौ से अधिक लोग घायल हुये थे। मुठभेड़ में नौ आतंकवादी मारे गये और एक आतंकवादी कसाब जिन्दा पकड़ा गया था। जिस पर मुकदमा चला और उसे वर्ष 2012 में फांसी दी गई। इस भीषण हमले की योजना कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर ए तयैबा ने बनाई थी। तहव्वुर राणा और हैडली इस हमले के दो मास्टरमाइंड थे। भारत सरकार तहव्वुर राणा को बड़े प्रयास के बाद भारत ला सकी है। यह मोदी सरकार के प्रयासों की सफलता है। कसाब के जिन्दा पकड़े जाने के बाद ही जिन संदिग्धों के नाम भी सामने आये थे जिनमें तहव्वुर राणा और हेडली भी थे। भारत और अमेरिका के बीच यह प्रत्यावर्तन संधि 1997 में हुई थी। लेकिन तहव्वुर को भारत लाने में सत्रह वर्ष लगे। मुम्बई पर जब आतंकवादी हमला हुआ तब केन्द्र में काँग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। तब उस सरकार से जुड़े कुछ मंत्री और काँग्रेस के कुछ नेता आतंकवादी हमलों को भगवा आतंकवाद में लपेटने का अभियान चला रहे थे। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद भारत सरकार ने वांछित आरोपियों को भारत सौंपने का अभियान चलाया। संकेत मिले हैं कि भारत ने लगभग पचास से ऊपर आरोपियों को सौंपने केलिये पत्र लिखे हैं। इसपर प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी और अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रंप के बीच बातचीत हुई और यह मार्ग निकल सका। प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान दस कुख्यात अपराधियों और आतंकवादियों को भारत सौंपने पर चर्चा की है। इनमें गोल्डी बरार और अनमोल बिश्नोई भी शामिल हैं, जिनके अमेरिका में छिपे होने की आशंका है। संकेत हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मुंबई आतंकी हमलों के मुख्य आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यावर्तन के साथ कुछ अन्य को भेजने पर अपनी सहमति दे दी है।
तहव्वुर हुसैन राणा मूलतः पाकिस्तानी नागरिक है। छात्र जीवन में ही कुख्यात आतंकवादी संस्था लश्कर ए तयैबा से जुड़ गया था। डाॅक्टरी की पढ़ाई पूरी करके पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर भर्ती हुआ। उसने 1990 में पाकिस्तानी सेना की नौकरी छोड़ दी और अनेक देशों की यात्रा की इसमें भारत, कनाडा, दुबई और अमेरिका जैसे देश हैं। 1996 में उसने कनाडा की नागरिकता ले ली और स्थाई रूप से शिकागो में बस गया। यहाँ उसने इमिग्रेशन कंसल्टेंसी का व्यवसाय आरंभ किया। लश्कर की योजना से वह केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों में भी आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है। पाकिस्तानी सेना की नौकरी छोड़कर कनाडा की नागरिकता लेना भी सामान्य नहीं लगता। पाकिस्तान के बाद कनाडा भी एक ऐसा देश है जहाँ भारत के विरुद्ध आतंकवाद के कुचक्र चलाये जाते हैं। इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि लश्कर की योजना से ही उसने सेना की नौकरी की, और लश्कर की योजना से ही वह नौकरी छोड़कर उसने कनाडा को अपना ठिकाना बनाया। उसने लगातार भारत और मुम्बई की यात्रा की। उसकी यात्रा बढ़नै के साथ ही मुम्बई में आतंकवादी हमले भी बढ़े। 1993 के मुम्बई से 2008 के बीच मुम्बई में बारह बड़ी आतंकी घटनाएँ घटीं जिनमें साढ़े तीन सौ से अधिक लोगों के प्राण गये। इसलिए इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि तहव्वुर ने पूरी योजना से सेना की नौकरी छोड़ी। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उसका व्यवसाय केवल दिखावा हो और इसके बहाने आतंकवाद का नेटवर्क ही बनाना हो।
26/11 का यह आतंकवादी हमला बहुत भीषण और पूरी योजना से था। इसकी गूँज पूरी दूनियाँ में हुई। इसमें पाकिस्तानी कनेक्शन किसी से छिपा नहीं था। एक तो कसाब की जिन्दा गिरफ्तारी थी और दूसरे जब ये आतंकवादी मुम्बई पोर्ट पर उतरे थे तब कुछ मछुआरों ने इन्हें नाव से आते हुये देखा था। अमेरिकी गुप्तचर संस्था ने भी पाकिस्तान कनेक्शन खोज लिया था। और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान ने भी यह स्वीकार कर लिया था कि हमलावर पाकिस्तानी नागरिक थे। पाकिस्तान मंत्री रहमान मलिक ने 12 फरवरी 2009 को बाकायदा पत्रकार वार्ता में स्वीकार किया था कि 26/12 के हमलावर पाकिस्तान से ही भारत गये थे। उन्होंने यह भी बताया था कि पाकिस्तान के ही जावेद इकबाल ने हमलावरों को वीओआईपी फोन उपलब्ध कराये थे और हमद अमीन सादिक ने धन की व्यवस्था की थी। हमलावर कराची से जिस नाव पर सवार होकर निकले थे वह बलूचिस्तान की थी। उनके अनुसार हमलावर थाटा, सिंध के समुद्री रास्ते मुम्बई पहुँचे थे। इसके बाद 21 नवंबर 2009 को ब्रेशिया, इटली में दो पाकिस्तानी नागरिक गिरफ्तार हुये उन्होंने भी स्वीकार किया कि 26/11 के हमलावरों को युद्धक सामग्री उन्होंने उपलब्ध कराई थी। ये दोनों भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घटनाओं से जुड़े थे और इंटरपोल ने उनके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। अक्टूबर 2009 में, एफबीआई ने डेविड हेडली उर्फ दाऊद गिलानी और तहव्वुर हुसैन राणा को गिरफ्तार भी कर लिया था। एफबीआई ने इन दोनों पर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी होने के साथ 26/11 मुम्बई हमले का भी आरोपी माना था। दोनों ने इस हमले में अपनी सहभागिता भी स्वीकार कर ली थी। अदालत ने तहव्वुर को चौदह वर्ष और हेडली को चौंतीस वर्ष की सजा सुनाई।
भगवा आतंकवाद का शोर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का कुचक्र
इस हमले में एक पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब जिन्दा गिरफ्तार हुआ। पहले दिन से पूरी दुनियाँ इस हमले के पीछे पाकिस्तान कनेक्शन स्वीकार कर रही थी। स्वयं पाकिस्तान ने भी घटना केवल ढाई महीने बाद हमलावरों का पाकिस्तानी नागरिक होना स्वीकार कर लिया था। इसके बाद भी भारत में कुछ राजनेता, कुछ पत्रकार और छद्म सेकुलर समूह पाकिस्तान को क्लीनचिट देने और इस हमले को “भगवा आतंकवाद” से जोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का षड्यंत्र में जुटे रहे।
आज इतिहास के लगभग विवरण हमारे सामने है। जिस तैयारी से ये आतंकवादी मुम्बई आये थे। उसी में यह झलक रहा था कि वे इस हमले को “भगवा आतंकवाद” के शोर से जोड़ने की तैयारी से ही पाकिस्तान से चले थे। इसका प्रमाण जिन्दा पकड़े गये आतंकवादी अजमल कसाब के हाथ में बँधा हुआ कलावा था।उसके पहचान पत्र में उसका नाम “समीर दिनेश चौधरी” और निवास का पता 254, टीचर्स कॉलोनी, नगराभावी, बेंगलुरु लिखा था। अकेले कसाब ही नहीं सभी आतंकवादियों के हाथ में कलावा बँधा था और सबके अपने पहचान पत्र हिन्दू नाम से बने थे। इस तैयारी से स्पष्ट है कि यह आतंकवादी हमला जितना भीषण था उतना ही कुटिल षड्यंत्र भी। कोई उस कुटिलता की कल्पना भी नहीं कर सकता जिसपर ये आतंकवादी काम कर रहे थे। 175 निर्दोष भारतीय नागरिकों के ये हत्यारे पाकिस्तान को आतंकवादी आरोपों से मुक्तकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा करने की तैयारी करके आये थे। इन आतंकवादियों को नाव से उतरते हुये मुम्बई के कुछ मछुआरों ने देखा था। पाँच छै आतंकवादियों के कंधे पर भगवा दुपट्टा भी डला था। यदि सिपाही तुकाराम आंवले अपने प्राणों का बलिदान देकर कसाब को जीवित न पकड़ लेते तो पाकिस्तान को क्लीनचिट मिल ही जाती । यदि कसाब मारा जाता तो “भगवा आतंकवाद” का नारा आसमान तक गूँज जाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का षड्यंत्र और गहरा होता। “भगवा आतंकवाद” और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का यह षडयंत्र 2002 में गोधराकांड के बाद आरंभ हुआ था। गोधरा में कारसेवकों को घेरकर मारने वाली वह हजारों की भीड़ कौन थी उसके हजारों तस्वीरें थीं फिर भी “भगवा आतंकवाद” का नारा उछालकर गुजरात के दंगों केलिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरने का कुचक्र हुआ। इसे समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट में भी दोहराया गया और मालेगाँव विस्फोट के बाद तो केन्द्र और राज्य सरकार के कूछ सूत्र भी जुड़े और कूटरचित प्रमाण भी जुटाये गये। इस प्रयास में काँग्रेस के कुछ नेता, कुछ पत्रकार और छद्म सेकुलर बुद्धिजीवियों का एक समूह था। काँग्रेस की ओर से श्री दिग्विजय सिंह और एक उर्दू पत्रकार अजीज बर्नी अगुआ थे। अजीज बर्नी उन दिनों दिल्ली के एक उर्दू समाचारपत्र के संपादक थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाते हुये “भगवा आतंकवाद” पर उन्होंने कयी लेख लिखे। इनमें गोधरा कांड और गुजरात के दंगों का भी हवाला था, अजीज बर्नी यहीं तक नहीं रुके। कसाब के जीवित पकड़े जाने के बाद भी उनकी धारा नहीं बदली। लगातार लेख लिखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा करते रहे। बाद में उनके लेखों के संकलन के रूप में पुस्तक भी प्रकाशित हुयी। इस पुस्तक का विमोचन दिल्ली और मुंबई दो स्थानों पर आयोजित हुआ। दोनों आयोजनों में काँग्रेस नेता श्री दिग्विजय सिंह उपस्थित थे। अजीज बर्नी ने पुस्तक की प्रति हेमन्त करकरे की पत्नि को भी भेंट की। हेमन्त करकरे पुलिस अधिकारी थे। वे मुम्बई के इसी आतंकवादी हमले में मारे गये थे। श्री हेमन्त करकरे ने ही मालेगाँव ब्लास्ट की जांच की थी। उनपर साध्वी प्रज्ञा भारती ने झूठे सबूत गढ़ने और अमानुषिक यातनाएँ देकर कागजों पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगाया था। 26/11 हमले पर अजीज बर्नी के लेखों के संकलन इस पुस्तक का नाम- “26/11 : भारत के इतिहास सबसे बड़ा हमला” था। इस पुस्तक में यह भी लिखा कि हेमन्त करकरे की मौत आतंकवादियों की गोली से नहीं अपितु सुरक्षा बलों की गोली से हुई थी। अजीज बर्नी ने यह भी दावा किया था कि “इस हमले के पीछे आईएसआई या लश्कर नहीं बल्कि मोसाद और सीआईए के गुप्त समर्थन से आरएसएस था” सामान्यतया किसी पुस्तक का विमोचन एक बार होता है। लेकिन इस पुस्तक का विमोचन दो बार हुआ। पहले लगातार लेख लिखना और फिर उन्हे पुस्तक का आकार देकर प्रचार केलिये पूरी शक्ति लगा देने से इसका उदेश्य समझा जा सकता है। ये लेख और यह पुस्तक केवल पाकिस्तान की करतूतों पर परदा डालने तक ही सीमित नहीं थी। इसमें आतंकवादियों को भी “क्लीन चिट” देने की झलक है। लेकिन कसाब के जिन्दा पकड़े जाने से आतंकी हमले का सच सामने आ गया। यदि कसाब जीवित न पकड़ा जाता तो पुनः कुछ लोगों को फँसाने का कुचक्र एक बार फिर चलता जैसा मालेगाँव विस्फोट के बाद हुआ था। यह तो आइने की तरह स्पष्ट है कि 26/11 का मुम्बई हमला पाकिस्तान और आईएसआई का षड्यंत्र था। सभी आतंकवादियों को हिन्दू नाम के पहचान-पत्र, कलावा एवं कुछ को भगवे दुपट्टे में भेजने का मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा ही है।
उससे पूछताछ में यह स्पष्ट होने की आशा है कि भारत के कुछ राजनेताओं और बुद्धिजीवियों द्वारा आतंकी घटनाओं को “भगवा आतंकवाद” में लपेटने की रणनीति केवल संयोग है अथवा इसमें भी पाकिस्तानी कनेक्शन है और भारत में सक्रिय “स्लीपर सेल” की रणनीति से भारत में “भगवा आतंकवाद” का शोर उठा। तहव्वुर से पूछताछ में इस प्रश्न के समाधान के साथ दो और प्रश्नों के समाधान की आशा है। पाकिस्तान के अनुसार ये आतंकवादी सिंध के समुद्री मार्ग से भारत आये थे। तब भारतीय सीमा में आने के बाद मुम्बई पोर्ट पर पहुँचाने के सहयोगी कौन थे। दूसरा प्रश्न यह है कि मुंबई पर इस हमले केलिये कुल 26 लोगों को प्रशिक्षण दिया गया था। 26 लोगों को प्रशिक्षण की बात पाकिस्तानी जाँच एजेंसी एफआइए के पूर्व महानिदेशक तारिक़ खोसा ने मार्च 2015 में कही थी जो पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र डॉन में प्रकाशित भी हुई थी। उनके अनुसार “थाटा” नामक स्थान में हमलावरों को प्रशिक्षित किया गया था। मुंबई केवल दस आये तो अन्य सोलह लोगों को क्या दायित्व दिया गया था और इस समय वे कहाँ हैं। तहव्वुर राणा साधारण व्यक्ति नहीं है। उससे सच उगलवाना भी सरल नहीं है फिर भी पूछताछ में इन प्रश्नों के समाधान की उम्मीद तो की ही जा सकती है। तहव्वुर राणा को अपने अधिकार में लेकर प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने समस्त देश वासियों को यह संदेश दे दिया है कि आतंकवाद भले कितना पुराना हो वह भूलने का नहीं और दुष्टों को उनकी दुषटता का दंड देने केलिये सदैव तैयार रहना चाहिए। अब हमें यह आशा भी रखना चाहिये कि हेडली सहित भारत के अन्य अपराधियों को भी दंडित किया जा सकेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)