आपका अखबार ब्यूरो ।
कांग्रेस का चुनाव निशान हाथ है और बंगाल में उसके दोनों हाथ खाली हैं। बंगाल में 2021 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने लेफ्ट और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ गठबंधन में लड़ा था। इसके बावजूद कांग्रेस का स्कोर शून्य पर पहुंच गया। ऐसा पहली बार है कि राज्य में उसे एक भी विधानसभा सीट नसीब नहीं हुई है।
सदमे में कांग्रेस
कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी में जितनी उम्मीदें लगा रखी थीं, जितने संसाधनों झोंके थे, जितने बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाया था और अपने लिए जो टारगेट फिक्स किया था- उसके मुताबिक उसे कामयाबी नहीं मिल पाई। लेकिन वहां सबसे बड़ा झटका और सदमा कांग्रेस को लगा है। उसने 2016 के विधानसभा चुनाव में 44 विधानसभा क्षेत्रों में कामयाबी हासिल की थी लेकिन इस बार उसकी झोली बिल्कुल खाली है।
हम सिर्फ अस्तित्व के लिए लड़ रहे थे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि ‘बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अपनी सरकार को बचाना चाहती थी, जबकि भारतीय जनता पार्टी सत्ता हासिल करने के लिए चुनाव मैदान में उतरी थी। कांग्रेस के लिए वहां ऐसा कुछ दांव पर नहीं था और हम केवल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे थे।’
हमारे मुस्लिम वोट तृणमूल और हिंदू वोट भाजपा ले गई
विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की हुई दुर्गति को लेकर अधीर रंजन ने कहा कि ‘कांग्रेस को मुख्य रूप से मुसलमानों के वोट मिलते हैं। हमारा मुस्लिम वोट टीएमसी के खाते में चला गया और हिंदू वोट भारतीय जनता पार्टी को ट्रांसफर हो गया। तृणमूल कांग्रेस मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब रही। भाजपा विरोध के चलते मुस्लिम वोटरों ने भी ममता बनर्जी पर विश्वास किया। इसी वजह से ऐसी स्थिति पैदा हुई और बंगाल के चुनाव में हमारे लिए कुछ भी नहीं बचा था।
लेफ्ट की जमापूंजी भी लुटी
अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कांग्रेस के इस हद तक पिछड़ने का एक और बड़ा कारण यह रहा कि जिस लेफ्ट के साथ हम गठबंधन में चुनाव लड़ रहे थे, उसके वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी तृणमूल कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ है। वामदलों ने भी इसका खामियाजा भुगता और वे एक भी सीट हासिल नहीं कर पाए।
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