वसंत रास, ईसुरी फाग, गारागालु लोक नृत्य और फूलों की होली के साथ संपन्न हुआ आईजीएनसीए स्थापना दिवस समारोह

पं. राहुल शर्मा के संतूर और विदुषी आरती अंकलीकर टिकेकर के शास्त्रीय गायन से खिली सुरों की चांदनी

प्रख्यात कलाकार अयान अली बंगश के सरोद वादन तथा अकाराई बहनों- एस. सुब्बलक्षमी और एस. स्वर्णलता के वायलिन वादन ने भी किया श्रोताओं को मंत्रमुग्ध

आपका अखबार ब्यूरो।

उत्साह और उल्लास का त्योहार होली दस्तक दे चुकी है। हवाओं में फाग और राग की खुशबू तैर रही है। ऐसे में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के तीन दिवसीय स्थापना दिवस समारोह के समापन के लिए फूलों की होली से बेहतर आयोजन और क्या हो सकता था! स्थापना दिवस समारोह के अंतिम दिन देवेंद्र पाल ने अपने समूह के साथ फूलों की होली के जरिये ब्रज के रंग बिखेर कर आईजीएनसीए के वातावरण को राग और फाग से भर दिया। इस प्रस्तुति से दर्शक इतने आनंदित हुए कि मंच पर कलाकारों के साथ उन्होंने भी जमकर फूलों की होली खेली और वातावरण को रंगमय कर दिया। इस कार्यक्रम को देखना मन और आंखों के लिए सचमुच एक मनोहारी अनुभव था। खास बात यह है कि समापन दिवस पर आईजीएनसीए में भारत की होली के कई रंग देखने को मिले। दर्शकों ने एक तरफ जहां मणिपुर के वसंत रास का आनंद लिया, तो वहीं बुंदेलखंड के लोककवि ईसुरी के फाग का आनंद भी उठाया।

सचमुच, लोक संगीत के माध्यम से यह भारत की विविधता का उत्सव था। अंतिम दिन, सबसे पहले पी. अयप्पास्वामी और उनके दल ने आंध्र प्रदेश के लोकनृत्य गारागालु की प्रस्तुति देकर दक्षिण भारत की समृद्ध लोक कला से दर्शकों को आह्लादित कर दिया। गौरतलब है कि गारागालु लोक नृत्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उत्सवों के दौरान किया जाता है। होली की पूर्णिमा पर मणिपुर में वसंत रास परम्परा बहुत लंबे समय से चली आ रही है। यह रास का एक अनूठा रूप है, जिसमें मणिपुर की समृद्ध संस्कृति के दर्शन होते हैं। इसी वसंत रास से दिल्ली के लोगों को परिचित कराया धनरानी देवी के समूह ने। इस रास को देखकर दर्शक अभिभूत हो गए। इसके बाद, सुश्री अर्चना कोयतारा ने प्रसिद्ध लोककवि ईसुरी के फाग सुनाकर बुंदेलखंड की महक को राजधानी दिल्ली की हवाओं में घोल दिया।

इससे पूर्व, आईजीएनसीए के तीन दिवसीय स्थापना दिवस समारोह के अंतिम दिन की शुरुआत दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लोकार्पण के साथ हुई। इसमें एक पुस्तक है प्रो. लोकेश चंद्र द्वारा लिखित ‘सिद्धम कैलिग्राफी ऑफ संस्कृत हेरोनिम्स’, जिसे आईजीएनसीए ने प्रकाशित किया है। वहीं दूसरी पुस्तक है ‘संस्कृत मेनुस्क्रिप्ट्स फ्रॉम जापान- वॉल्यूम 1’, जिसकी लेखिका हैं प्रो. निर्मला शर्मा। पुस्तक के विमोचन के साथ-साथ इस पर गंभीर चर्चा भी हुई। यह पुस्तक भारत और जापान के सांस्कृतिक सम्बंधों को और मजबूती देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

पुस्तक चर्चा में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, प्रख्यात विद्वान और पूर्व सांसद प्रो. लोकेश चंद्र, इंटरनेशल एकेडमी ऑफ इंडियन कल्चर की डिप्टी डायरेक्टर प्रो. निर्मला शर्मा, जापानी दूतावास के फर्स्ट सेक्रेटरी (पीआर एवं कल्चर) श्री ताकशी कोबायाशी, विदेश मंत्रालय के सलाहकार (जापान) प्रो. अशोक चावला, दिल्ली विश्विद्यालय में पूर्व एशिया अध्ययन विभाग की प्रो. रंजना मुखोपाध्याय और जेएनयू के जापानी अध्ययन केन्द्र की डॉ. जनश्रुति चंद्र उपस्थित थे।

स्थापना दिवस के दूसरे दिन भी आईजीएनसीए का वातावरण शास्तीय संगीत की स्वरलहरियों से गुंजायमान हो उठा। संतूर को पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित करने वाले पं. शिवकुमार शर्मा के पुत्र व शिष्य पं. राहुल शर्मा ने अपने कर्णप्रिय संतूर वादन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आईजीएनसीए के उन्मुक्त सभागार में आयोजित समारोह में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति राग यमन में दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन जम्मू-कश्मीर की पहाड़ी धुन से किया, जिस पर श्रोता झूम उठे। पं. राहुल शर्मा के साथ तानपुरा पर संगत की उनकी पत्नी बरखा शर्मा ने, जबकि तबले पर साथ दिया ओजस आद्या जी ने।

इसके बाद, सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका आरती अंकलीकर टिकेकर ने अपनी मधुर आवाज में कई बंदिशें सुना कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। उन्होंने सबसे पहले राग बागेश्वरी में तीन ताल में “कौन गति भई मेरो, पिया ना पूछे एक बार” सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद उन्होंने “देर ना लगाओ प्रीतम प्यारे” और “ना डालो रंग मो पर” सुनाया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन राग भैरवी में अपने गुरु द्वारा रचित बंदिश से किया। जब उन्होंने अपना गायन समाप्त किया, उन्मुक्त एम्फीथियेटर देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। उनके साथ तबले पर विनोद लेले और हारमोनियम पर विनय मिश्रा ने संगत की, जबकि तानपुरे पर साथ दिया गीता बिष्ट ने।

इस अवसर पर आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय, सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानन्द  जोशी, निदेशक (प्रशासन) डॉ. प्रियंका मिश्रा, कला दर्शन प्रभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. ऋचा कंबोज, एनएमसीएम की निदेशक डॉ. ऋचा नेगी, कलानिधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष व डीन (प्रशासन) डॉ. रमेश चन्द्र गौर, कथाकार व रंगकर्मी श्रीमती मालविका जोशी सहित कई अन्य गणमान्य अतिथि भी मौजूद रहे।

इससे पूर्व, स्थापना दिवस की शुरुआत अकाराई बहनों- एस. सुब्बलक्ष्मी और एस. स्वर्णलता के वायलिन वादन से हुई। अकाराई बहनों- एस. सुब्बलक्ष्मी और एस. स्वर्णलता ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत अपने दादा शुचिंद्रम श्री एस.पी. शिवसुब्रमण्यम द्वारा रचित कंपोजिशन से की। इसके बाद उन्होंने वायलिन वादन के साथ-साथ गायन की भी प्रस्तुति दी। दोनों बहनों ने वायलिन वादन के साथ अपने मधुर स्वर में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की स्तुति की। इसके बाद, अकाराई बहनों ने राग कुमुदक्रिया, राग बागेश्वरी, राग बिन्दू मालिनी की सुन्दर प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपनी प्रस्तुति का समापन उन्होंने राग सिंधु भफैरवी में विश्वसरैया के भजन के साथ किया। इस प्रस्तुति में अकाराई बहनों के साथ एमवी चंद्रशेखर ने मृदंग पर संगत की, जबकि घटक पर साथ दिया एस. कृष्णा ने।

इसके बाद, अयान अली बंगश ने अपनी कर्णप्रिय प्रस्तुतियों से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने राग देश के साथ अपने वादन की शुरुआत की और समापन राग हाफ़िज़ कौंस के साथ किया। इस राग को अयान के पिता अमजद अली खां ने अपने पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खान की 25वीं पुण्यतिथि पर 1997 में बनाया था। अयान की प्रस्तुति के दौरान उनके पिता व विश्वविख्यात सरोद वादक अमजद अली खान भी उपस्थित थे और अपने पुत्र का वादन सुनकर भावविभोर हो गए। अयान के साथ तबले पर संगत की सत्यजीत सुरेश तलवलकर ने।

इसके अतिरिक्त, स्थापना दिवस के दूसरे दिन संग्रहालयों और गैलरी में आपदा जोखिम को कम करने के प्रशिक्षण वर्कशॉप ‘डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट इन म्यूजियम्स’ की शुरुआत हुई। इस तीन दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन आईजीएनसीए ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के सहयोग से किया, जो 22 मार्च तक चलेगी। साथ ही, 18 मार्च से उत्तर-पूर्व के बांस की टोकरियों की प्रदर्शनी ‘बास्केट्री’ केंद्र के भूतल पर स्थित ‘दर्शनम’ कला दीर्घा में आयोजित की गई। यह प्रदर्शनी भी 22 मार्च तक चलेगी।