आपका अख़बार ब्यूरो।  मयासुर द्वारा रचित “सूर्य सिद्धांत” भारतीय खगोलशास्त्र का सबसे बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। हिन्दू पंचांग का निर्धारण आज भी “सूर्य सिद्धांत” के आधार ही होता है। सूर्य सिद्धांत के महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बाद में ज्योतिषशास्त्र और खगोलशास्त्र के अनगिनत ग्रंथ इसी के आधार पर लिखे गए। इसी प्राचीन ग्रंथ पर चर्चा के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के भारतीय विद्या परियोजना प्रभाग ने “शाश्वत हिन्दू” संस्था के साथ मिलकर एक संगोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी का विषय थाः “आर्कियो-एस्ट्रोनॉमिकल स्टडी ऑफ सूर्यसिद्धांत” (सूर्यसिद्धांत का खगोलीय-पुरातात्त्विक अध्ययन), जिसमें मुख्य वक्ता थे रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव और प्रसिद्ध लेखक डॉ. वेदवीर आर्य।

संगोष्ठी की शुरुआत नेपाल की राजधानी काठमांडू के श्री पशुपतिनाथ मंदिर से पधारे पंडित अर्जुन बस्तोला जी के संबोधन से हुई। उन्होंने कहा कि हर शास्त्र पर विवाद हो सकता है, लेकिन “सूर्य सिद्धांत” पर कोई विवाद नहीं हो सकता। यह निर्विवाद है। ज्योतिषशास्त्र को “वेद की आंख” कहा जाता है और ज्योतिषशास्त्र का आधारभूत ग्रंथ है “सूर्य सिद्धांत”। संगोष्ठी के विषय का परिचय देते हुए आईजीएनसीए के भारतीय विद्या परियोजना प्रभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. ए.बी. शुक्ला ने कहा कि “सूर्य सिद्धांत” स्वयंसिद्ध है, लेकिन दुर्भाग्य कि उसे सिद्ध करने के लिए आज सेमिनार करना पड़ रहा है। सारी दुनिया कहती थी कि पृथ्वी चपटी है, लेकिन हम अनादि काल से कहते आ रहे हैं कि पृथ्वी गोल है, इसलिए हमारे यहां इसके बारे में बताने वाले शास्त्र का नाम ही भूगोल है। हमारे ऋषि प्राचीन काल से सूक्ष्मतम काल गणना करते आ रहे हैं, जिसकी सबसे छोटी इकाई ‘त्रुटि’ है, जो एक सेकंड का 33,575वां हिस्सा है। उन्होंने कहा कि “सूर्य सिद्धांत” ऐसा ग्रंथ है, जिसका हम गहराई से अध्ययन करें, तो हमें और कई नई बातें पता चलेंगी।

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. वेदवीर आर्य ने कहा कि आर्कियो-एस्ट्रोनॉमी का अर्थ आकाश में खुदाई है। यानी आकाशीय पिंडों की जो गति है, उसके आधार पर की गई काल गणनाएं भी उतनी ही प्रामाणिक हैं, जितनी प्रामाणिक गणना पुरातात्त्विक खुदाइयों के आधार पर की जाती हैं। उन्होंने पावर पाइंट प्रस्तुतिकरण के माध्यम से “सूर्य सिद्धांत” और उसकी गणनाओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने भारतीय काल गणना के आधार पर 8,800 साल पहले निर्मित कैलेंडर पर भी चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि “सूर्य सिद्धांत” के रचयिता मयासुर ही त्रिकोणमिति (ट्रिगोनोमेट्री) के वास्तविक जन्मदाता थे। उन्होंने यह भी कहा कि, भारत एक प्राचीन सभ्यता है। वैदिक युग से लेकर आज तक हमारी सभ्यता निरंतर है, तो एक उन्नत कैलेंडर, जो एक लूनिसोलर कैलेंडर (चंद्र और सूर्य दोनों की गति पर आधारित) है, उसका प्रयोग हम वैदिक युग से अब तक करते आ रहे हैं। संगोष्ठी के दौरान भारतीय काल गणना पर आधारित लगभग 25 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई गई, जो डॉ. वेदवीर आर्य ने ही बनाई गई थी। संगोष्ठी की अध्यक्षता “शाश्वत हिन्दू” के मुख्य संरक्षक श्री पवन श्रीवास्तव ने की।