खड़गे के हाथों में आई कांग्रेस की कमान, पार्टी को होंगे ये फायदे
कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को पार्टी की बागड़ोर संभाल ली। कांग्रेस मुख्यालय में हुए खड़के के शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। कांग्रेस की बागडोर 24 साल बाद गैर गांधी परिवार के हाथों में गई है।
शपथ ग्रहण समारोह में चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री ने खड़गे को मंच पर जीत का प्रमाण पत्र सौंपा। इस दौरान सोनिया गांधी ने कहा कि खड़गे के कमान संभालने पर वह राहत महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अब अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी खड़गे संभालेंगे। उन्होंने खड़गे को बधाई भी दी।
उल्लेखनीय है कि शपथ ग्रहण से पहले सुबह खड़के राजघाट पहुंचे। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद वह पंडित जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, जगजीवन राम और इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि देने उनके समाधि स्थलों पर गए। पिछले दिनों अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़गे ने शशि थरूर को हराकर भारी मतों से जीत हासिल की थी।
खड़गे के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को ये फायदे
दलित वोट बैंक साधने में मिलेगी मदद
पिछले कुछ समय से कांग्रेस की राजनीति में दलित वोटबैंक पर खास जोर दिया जा रहा है। पंजाब चुनाव से ठीक पहले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने वाला दांव कोई भूला नहीं है। चुनाव में तो कांग्रेस को इसका कोई फायदा नहीं मिला लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी के साथ एक तमगा जरूर जुड़ गया- ‘पंजाब के पहले दलित सीएम’। अब मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना भी पार्टी की दलित राजनीति को नई धार दे सकता है।
परिवारवाद के आरोप से मिलेगी मुक्ति
कांग्रेस को लेकर एक परसेप्शन बन गया है कि वह परिवारवाद की राजनीति करती है। इस परसेप्शन ने पार्टी को कई चुनावों में भारी नुकसान दिया है।मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना इस धारणा को तोड़ने का काम कर सकता है। वैसे भी सोशल मीडिया पर खड़गे की जीत का प्रचार भी इसी तरह से किया जा रहा है कि पार्टी को कई सालों बाद गैर गांधी अध्यक्ष मिला है। अब जितना तेजी से ये संदेश लोगों के बीच जाएगा, पार्टी को लेकर चल रहा एक बड़ा परसेप्शन टूट सकता है।
कर्नाटक चुनाव की तैयारी
कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां बीजेपी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। इसके अलावा राज्य का जातीय समीकरण ऐसा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को पार्टी फायदा पहुंच सकता है। कर्नाटक में दलितों की आबादी 19.5 प्रतिशत है, वहीं 16 फीसदी मुस्लिम हैं। अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा भी 6.95 प्रतिशत बैठता है। अब ये आंकड़े कांग्रेस की राजनीति के लिए मुफीद बैठते हैं।
खड़गे के सामने चुनौतियां भी अपार
मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही कई चुनौतियां भी उनके साथ आ गई हैं। दरअसल वह ऐसे समय में अध्यक्ष चुने गए हैं जबकि देश के कई राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस कई गुटों में बंट चुकी है।इतना ही नहीं कांग्रेस कई राज्यों में भी दो फाड़ है। राजस्थान का सियासी संकट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कई राज्यों में कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है, ऐसे में उनके सामने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दोबारा अपने जनाधार को पाना होगा और कांग्रेस को एकजुट करने का चैलेंज है।
कर्नाटक के दलित नेता हैं खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे दलित नेता हैं। वे कर्नाटक के रहने वाले हैं। वे कर्नाटक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। खड़गे 8 बार विधायक, दो बार लोकसभा सांसद एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं। वे सिर्फ 2019 में लोकसभा चुनाव हारे। वे यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले तीसरे दलित नेता हैं। (एएमएपी)