अनुशासन के एक सीधे और स्थानीय मामले को बेवजह बना दिया गया राष्ट्रीय मुद्दा, सुनियोजित तरीके से रचा गया है देश को अशांत करने और अराजकता फैलाने का षडयंत्र।
प्रदीप सिंह।
देश में पिछले कुछ दिनों से हिजाब के नाम पर जो कुछ चल रहा है जिसकी शुरुआत कर्नाटक के उडुपी से हुई, जिस तरह से पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन हो रहा है,आप यह मान कर चलिए कि न केवल यह सुनियोजित है बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव का टेंपलेट है जो अभी से तैयार किया जा रहा है। बहुत से मुद्दों पर टेस्ट किया गया। सीएए से लेकर कथित किसान आंदोलन तक, कोई सफल नहीं हुआ। अब इस मुद्दे पर लगता है कि उनको सफलता मिल जाएगी। अब आप देखिए कि अलग-अलग संगठन किस तरह से आते हैं, नाम बदल- बदल कर आते हैं।पहले पीएफआई था, उस पर प्रतिबंध लगा तो नाम बदल कर सीएफआई आया (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया)। लोग वही हैं, उसी संस्था के हैं। पहले प्लान बनाया, चार लड़कियों को ट्रेंड किया, उनको हिजाब पहना कर वहां भेजा, उनके ट्विटर हैंडल बनाए, वहां से ट्वीट कराना शुरू किया और धीरे-धीरे इस बात को बढ़ाते गए। इन लड़कियों के अलावा जो भी लड़कियां इसमें शामिल हो रही हैं, उन मुस्लिम लड़कियों में से कोई भी पहले हिजाब पहनकर नहीं आता था।
स्कूलों में यूनिफॉर्म जरूरी या कुछ और
इसकी प्लानिंग शुरू हुई है अक्टूबर से। अब चूंकि उत्तर प्रदेश का चुनाव है, उसके बाद लोकसभा का चुनाव है। आप देखिए इनके संपर्क सूत्र, कहां-कहां तक इसके तार जुड़ रहे हैं। उनका पक्ष अदालत में कौन रख रहा है, देवदत्त कामत जो कांग्रेस पार्टी से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में कौन खड़ा हुआ, कपिल सिब्बल। और अब यूथ कांग्रेस ने एक रिट फाइल कर दी है। प्रियंका वाड्रा का बयान आपने सुना होगा। इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। यह बहुत सीधा सा मामला है कि स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म पहनकर आएंगे या दूसरी चीजें पहनेंगे।किसी भी संस्था का एक अनुशासन तो आपको मानना पड़ेगा। स्कूल-कॉलेज में है तो वहां का, पुलिस में है तो पुलिस का, सेना में है तो सेना का। क्या अदालत में महिला वकील हिजाब पहनकर जाएंगी, क्या महिला जज हिजाब पहनकर बैठेंगी। सवाल यह है कि कहां ले जा रहे हैं आप।दूसरी बात, यह कहा जा रहा है कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा है।जबकि केरल के गवर्नर और इस्लाम के स्कॉलर आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि कुरान में कहीं भी हिजाब का जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा है कि इस शब्द का मतलब होता है पर्दा। और पर्दा तब रखा जाता है जब कोई पुरुष किसी स्त्री से बात कर रहा होता है।महिलाएं हिजाब पहने यह कुरान में कहीं नहीं कहा गया है। उन्होंने बताया कि क्या-क्या पहना जाता है और क्यों। उस दौर में गुलाम होते थे। गुलाम स्त्री-पुरुष स्वतंत्र स्त्री-पुरुषों से अलग दिखते थे।गुलाम स्त्रियों को कोई भी छेड़ता था, कोई भी परेशान करता था, कोई भी उनका यौन शोषण करता था, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पर्दा का चलन शुरू हुआ। इससे गुलाम और स्वतंत्र लोगों में फर्क दिखे और दोनों में फर्क रखा जा सके। यह है कुल मामला। अब इसको मुद्दा बनाया जा रहा है कि यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा है।
देश संविधान से चलेगा या शरिया से
देश को यह तय करने का समय आ गया है कि यह देश संविधान से चलेगा या शरिया से चलेगा। मान लीजिए कि यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा है तो फिर संविधान का क्या मतलब है? फिर तो अलग-अलग धर्म-संप्रदाय के लोग अपने-अपने हिसाब से चलेंगे। तो फिर संविधान को किनारे रख दीजिए। यह मामला अभी कर्नाटक हाईकोर्ट में है और पूरी उम्मीद है कि वहां से सुप्रीम कोर्ट में आएगा।और धमकी क्या दी जा रही है? हम जो मांग कर रहे हैं अगर उसके मुताबिक फैसला नहीं आया तो हम आंदोलन करेंगे। मतलब अदालत पर यह दबाव डाला जा रहा है कि हम जो कह रहे हैं उसी को मानकर उस पर फैसला सुना दीजिए। यह एक इनटॉलरेंट माइनॉरिटी और टॉलरेंट मेजॉरिटी के बीच का युद्ध है। यह यहींरुकने वाला नहीं है। मुसलमानों के दिमाग में बचपन से ही यह बात भर दी जाती है कि हम दूसरों से अलग हैं। हमें दूसरों से अलग दिखना चाहिए। वह ये मानते हैं कि यह जो पूरी दुनिया है यह हमारी है, हम किसी पर कब्जा नहीं कर रहे हैं। हमारा जो अपना है उसी को रिक्लेम कर रहे हैं, जो हमारा है उसी को ले रहे हैं। वह ये मानते हैं कि जो गैर-इस्लामी हैं, जो इस्लाम को फॉलो नहीं कर रहे हैं दरअसल वे गलत रास्ते पर हैं। उनको सुधारना हमारा काम है। अगर उनको सुधारेंगे नहीं तो वे दोजख में चले जाएंगे।हम उनका हम भला कर रहे हैं। इसलिए उन्हें हमारी बात सुननी चाहिए। यह दुनिया भर में है।वे एक लूप होल खोजते हैं और फिर उसको ट्रंक होल बना देते हैं।उनकी मांग कहीं रुकती नहीं है। मान लीजिए कि आज हिजाब की मांग मान ली जाए तो उसके बाद दूसरी मांग आ सकती है कि हमको क्लास-रूम में, स्कूल में नमाज पढ़ने के लिए जगह दी जाए। वह भी मांग मान ली जाएगी तो फिर कहा जाएगा कि स्कूल में मस्जिद होनी चाहिए। फिर कहा जाएगा कि रविवार को नहीं शुक्रवार को हमारी छुट्टी होनी चाहिए। फिर कहा जाएगा कि पांचबार नमाज पढ़ने का जो समय होता है उस समय हमें छुट्टी मिलनी चाहिए। यह सिलसिला अंतहीन है। यह रुकने वाला नहीं है।
दबाव की रणनीति
आजादी के आंदोलन के दौरान लियाकत अली खान से महात्मा गांधी ने कहा था कि आपकी जो मांगें हैं उसकी एक सूची बना कर दीजिए, हम मान लेते हैं। लियाकत अली ने जो कहा वही बात आज हिंदुस्तान में हो रही है। आजादी के आंदोलन से लेकर आज तक हो रही है। अगर इसे रोका नहीं गया तो आगे भी होती रहेगी। उन्होंने कहा कि यह हमारी नई मांग है,अंतिम मांग नहीं है। इसमें हमारी मांग जुड़ती जाएगी। यह मत मानिए कि हमने आपको जो सूची दी वह पूरी हो जाएगी तो हम कुछ नहीं बोलेंगे। तो हमेशा इनकी जो मांग होती है वह सिर्फ नई होती है, अंतिम नहीं। उनकी जो मांग होती है वह इस नजरिए से होती है कि देखें कितना दबा सकते हैं, कितना हासिल कर सकते हैं, कितना वसूल सकते हैं। सारा जोर, सारी रणनीति यही होती है। ताजा उदाहरण है बेंगलुरु के रेलवे स्टेशन का। पोटर्स का केबिन था यानीकुलियों के आराम करने की जगह। वहां धीरे-धीरे पहले पानी की व्यवस्था की गई वजू के लिए। फिर नमाज पढ़ने लगे और आज स्थिति यह है कि वह पोटर्स केबिन मस्जिद में बदल चुका है। यह होती है इनकी रणनीति।दबाते जाओ, जितना दब जाए उतना और दबाते जाओ। विरोध होने लगे तो थोड़ा रुक जाओ, फिर दबाओ। यह मांग कहीं रुकने वाली नहीं है।
घूंघट के विरोधी, हिजाब के समर्थक
अब आप देखिए कि कैसे-कैसे लोग इसका समर्थन कर रहे हैं। जो लोग घूंघट के विरोध में बड़ी-बड़ी बातें करते थे, जो दुनिया भर में महिला अधिकारों को लेकर बातें करते हैं, वे हिजाब का समर्थन कर रहे हैं। प्रियंका वाड्रा ने जो बयान दिया वह तो निहायत ही शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि आप बिकनी पहन सकते हैं, कुछ भी पहन कर जा सकते हैं। स्कूल-कॉलेज के संदर्भ में बात हो रही है तो आप कैसे ऐसा बयान दे सकते हैं। उनका संदेश यह था कि वो लड़कियां जो कर रही हैं ठीक कर रही हैं। हम इस आंदोलन के साथ हैं। अब आप देखिए कि कर्नाटक के उडुपी के स्कूल का मामला है और प्रदर्शन कहां हो रहा है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में हो रहा है। कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि अदालत कह रही है कि स्थानीय मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा मत बनाइए।कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि हम सब के मौलिक अधिकारों की रक्षा करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि कुछ लोगों का मौलिक अधिकार उनके मजहब से तय होगा?या संविधान ने जो सबको बराबरी का अधिकार दिया है, मौलिक अधिकार दिया है, उसके अनुसार होगा। यह मुद्दा यहीं रुकने वाला नहीं है और निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर शुरू किया गया है। अब आप इसको जोड़िए राहुल गांधी के बयान से जो उन्होंने संसद में दिया था। प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं कि इनकी नीति है “बांटो और लूटो” उसी के अनुसार हो रहा है। इसकी टाइमलाइन अगर आप देखिए तो आपको पता चलेगा कि किस तरह से सब मिले हुए हैं। किस तरह से सब मिलकर, योजना बनाकर सुनियोजित तरीके से, एक षड्यंत्र के तहत यह सब किया जा रहा है।
स्कूल में हिजाब, मॉल में फटी जींस
जो लोग कह रहे हैं कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा है, उनकी नींद क्या अभी दो-तीन महीने पहले ही खुली है।इससे पहले इस्लाम के बारे में वे नहीं जानते थे या इस्लाम का जो जरूरी हिस्सा है उसके बारे में नहीं जानते थे। हिजाब केवल स्कूल में पहन कर जाना है।वो लड़की जो स्कूल में सबसे आगे बढ़ कर प्रदर्शन कर रही थी वह मॉल में फटी हुई जींस पहन कर घूम रही थी। तब उसे हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा है यह याद नहीं आता है। महिला अधिकारों की बात करने वाले तमाम लोग सिर्फ इसलिए हिजाब का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि यह बीजेपी के विरोध में है, सरकार के विरोध में है। और अंततः यह देश के विरोध में है। देश में अगर आप अशांति पैदा करेंगे, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ेंगे तो निश्चित रूप से यह देश विरोधी गतिविधि है। मैं फिर कह रहा हूं कि यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। लेकिन कर्नाटक में जो हो रहा है, जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है, जिस तरह से इसके जवाब में हिंदू लड़के-लड़कियां उतरे हैं वह शुभ संकेत है। यह राष्ट्रीय भावना को मजबूत करेगा।यह इस बात का संकेत है कि बहुसंख्यकों ने तय कर लिया है कि बस अब बहुत हो गया। हम इनटॉलरेंट माइनॉरिटी की मांग को हमेशा नहीं सुनते रहेंगे। अब समय आ गया है जब हमको कहना पड़ेगा कि बस बहुत हो गया। अब इससे आगे नहीं। और यह समय है जब अदालत को भी तय करना पड़ेगा। यह जो सारा इस्लामोफोबिया है, विक्टिम कार्ड है,एक रणनीति के तहत यह कार्ड खेला जा रहा है। इसमें पश्चिमी देशों का पूरा-पूरा सहयोग है। प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि अमेरिका के कहने पर हमने दुनिया भर में वहाबीमदरसे तैयार किए, उनको फंड दिया। यह जो टेरर है, यह जो वहाबिज्म है, यह जो इस्लामोफीलिया है, इसको बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान पश्चिमी देशों का है।इसके पीछे उनका अपना हित है। वे नहीं चाहते कि दुनिया के किसी भी देश में मजबूत सरकार बने या चले। मजबूत नेता आए या रहे। वे हमेशा एक कमजोर सरकार और एक कमजोर नेता चाहते हैं।पश्चिमी देशोंकी इस चाल में, देश विरोधी काम में कांग्रेस पार्टी शरीक हो गई है। उसका पूरा समर्थन है, पूरा सक्रिय योगदान है।
देश विरोधियों के खिलाफ मुखर होइए
प्रधानमंत्री ने संसद के दोनों सदनों में अभी हाल में जो बयान दिया है उनको बार-बार सुनिए और समझने की कोशिश कीजिए कि वे किस ओर इशारा कर रहे हैं। वे क्या बताने की कोशिश कर रहे हैं, देश को किस मुश्किल से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। देश के खिलाफ किस तरह के षड्यंत्र हो रहे हैं, साजिशें हो रही है लेकिन हमलोग कुछ समझने को ही तैयार नहीं हैं। शबाना आजमी, राणा अयूब या और जो दूसरी मुस्लिम महिलाएं कह रही हैं कि ‘हिजाब हमारा अधिकार है’, तो उनसे पूछिए कि आपका हिजाब कहां है? आप हिजाब क्यों नहीं पहनती हैं? अपने बच्चों को, अपने घर की औरतों को क्यों नहीं पहनाती हैं? आपको हिजाब स्कूल-कॉलेजों में ही क्यों चाहिए? लड़कियां हिजाब पहनकर ही स्कूल क्यों जाए? कोई सवाल पूछता है। इस देश में सोनम कपूर जैसे गद्दार भी हैं। आप देखिए कि कोई भी एंटी इंडिया एजेंडा हो उसमें ये महिला आपको सबसे आगे दिखेगी। हम लाइन में लगकर, पैसा देकर, टिकट खरीद कर इनका सिनेमा देखने जाते हैं, इनके घर दौलत से भरते हैं, इनको सेलिब्रिटी बनाते हैं, इनको स्टार बनाते हैं। कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम ऐसे लोगों के खिलाफ बोलिए तो। अगर आप गांधी जी के अनुयायी हैं तो असहयोग आंदोलन तो कर सकते हैं। जो बात आपको देश के विरोध में लगे, समाज के विरोध में लगे, उस पर तो आपका कुछ रिएक्शन होना चाहिए। बस हम घर से दफ्तर जाएं, तनख्वाह मिले, खाए-पीएं सो जाएं, बाकी देश जाए भाड़ में। अगर यही रवैया रहा तो आने वाले दिन बहुत बुरे होने वाले हैं।
हिंदू खतरे में है, देश का इस्लामीकरण हो जाएगा, यह कहकर मैं डरा नहीं रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि जो सच है उसको सच कहने की हिम्मत रखिए। जो सच बोल रहे हैं उसके साथ खड़े होने का हौसला रखिए, वह भी दिखाई नहीं दे रहा है। यह संभव नहीं है कि कोई एक पार्टी, कोई एक नेता, कोई एक सरकार सब कुछ कर दे। नरेंद्र मोदी के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिसे वे घुमा देंगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस आंदोलन के कुछ बुरे पक्ष दिखाई दे रहे हैं, जो बुराइयां हैं वह खुलकर सामने आ रही हैं। उन लोगों को पहचानिए जो हिजाब आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, देश के विरोध में काम कर रहे हैं। उनका मकसद देश में अशांति और अराजकता पैदा करना है। आप मान कर चलिए ये अभी रुकने वाले नहीं हैं। इनका हौसला इसलिए बढ़ता है कि हमारे आपके जैसे लोग यह सोच कर मुंह मोड़ लेते हैं कि हमसे क्या मतलब। हमारे घर में, हमारे शहर में तो नहीं हो रहा। हमको कोई दिक्कत नहीं है। हमारी नौकरी चल रही है, हमारा व्यापार चल रहा है, हम पैसा कमा रहे हैं, हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं तो हमको क्या मतलब। जिस दिन आप पर आएगा, यह सवाल पूछने लायक भी नहीं रह जाएंगे। हमसे, आपसे, ऐसे बहुत से लोगों से अच्छे उडुपी के वे बच्चे हैं जिन्होंने हिम्मत दिखाई। वे राष्ट्रवाद को मजबूत कर रहे हैं।
इसका दूसरा जो सकारात्मक पक्ष है, जो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है और दूसरे लोग मांग कर रहे हैं कि समय आ गया है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाए। यह बहस, झंझट, यह झगड़ा ही खत्म हो कि यह शरिया के मुताबिक है, यह कुरान के मुताबिक है। किसी के मुताबिक नहीं बल्कि जो कुछ हो वह संविधान के मुताबिक हो। संविधान में हिंदू, मुसलमान,सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सबको वही अधिकार हैं। किसी को विशेष अधिकार नहीं है। लेकिन विशेषाधिकार की जो इच्छा है और जो मिलती भी रहती है इस्लामोफोबिया के नाम पर, विक्टिमहुड के नाम पर, यह एक संगठित धंधा बन चुका है।इसलिए जरूरी है कि कर्नाटक में जो कुछ हो रहा है उसके पीछे की मंशा को समझने की कोशिश कीजिए। बहुत दिन नहीं लगेंगे जब आपके दरवाजे पर भी इसकी दस्तक होगी। समय है जाग जाइए, नहीं तो भुगतने के लिए तैयार रहिए, मंशा आपकी है।