पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने बताया कि रुपये के साथ कारोबार देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के ही तहत संभव हैं। भारत में अब तक जितने भी इस तरह के करार हुए हैं उनमें दो देशों के बीच ही मुद्रा में कारोबार की शर्तें तय की गई हैं। मौजूदा समय में ऐसा रुस और ईरान के साथ है। इन देशों के साथ भारत जो भी निर्यात करता है उस मुद्रा के बराबर तेल भी आयात किया जाता है। अगर इसका दायरा और देशों के साथ बढ़ाया जाएगा तो देखना होगा कि हम वहां से निर्यात के पैमाने पर आयात क्या और कितना करते हैं।
भारत भी अगर ऐसे समझौते करने की तरफ आगे बढ़ रहा है तो उसे भी शुरू में ऐसे ही देशों के साथ समझौता करना होगा जिन्हें हमारी जरूरत ज्यादा होगी। साथ ही निर्यात के साथ साथ आयात की भी व्यवस्था हो इसकी भी पड़ताल करनी पड़ेगी ताकी भारत के निर्यात के एवज में मिलने वाली रकम फंसे नहीं। अगर भारत किसी भी देश को बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहा है और उस मुकाबले वहां से आयात नहीं हो रहा है तो ऐसे में भारत की रकम फंसने की आशंका है। ऐसे में जरूरी है कि यह व्यवस्था जरूर पुख्ता की जाए।
उत्पादन संग रोजगार के अवसर बढ़ेंगे
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर रुपये में ही किसी देश के साथ कारोबार होता है तो हमारे लिए यह डॉलर पर निर्भरता को कम करेगा। इससे विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अच्छी बनी रहेगी। वहीं हमारा निर्यात भी बढ़ेगा जो जाहिर तौर पर देश में उत्पादन बढ़ाएगा और रोजगार सृजन में भी मददगार रहेगा।
बता दें कि भारत के साथ अबतक 35 देशों ने रुपयों में व्यापार करने में अपनी रूचि दिखा चुके हैं। इसमें रूस के अलावा भारत के पड़ोसी देश म्यांमार, बांग्लादेश और नेपाल भी शामिल है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग सबसे अधिक है। अभी तक भारत अपने हर चीज के लिए डॉलर में भुगतान करता है। इसके लिए भारत की तरफ से हर साल अरबों डॉलर खर्च होता है। यदि भारत भी आयात की जाने वाली चीजों का भुकतान रुपय के माध्यम से किया जाए तो डॉलर की निर्भरता को कम किया जा सकता है।(एएमएपी)