प्रदीप सिंह।
उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट को लेकर यह पहेली बनी हुई है कि गांधी परिवार का कोई सदस्य यहाँ से चुनाव लड़ेगा कि नहीं। क्या राहुल गांधी फिर अमेठी से किस्मत आजमाएंगे? या, उन्होंने अमेठी को हमेशा के लिए छोड़ दिया है। क्या उनकी जगह पर प्रियंका वाड्रा चुनाव लड़ सकती हैं? या, प्रियंका वाड्रा रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी?
ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर सिर्फ तीन लोगों के पास है- सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा। कांग्रेस में किसी और नेता की इतनी हैसियत नहीं है जो इस सवाल का जवाब दे सके क्योंकि उनको इसके बारे में कुछ पता नहीं है। उधर ‘परिवार’ है कि अपना मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है। इसका कारण क्या है? अमेठी से राहुल गांधी लड़ेंगे या नहीं इस सवाल का जवाब देने में कांग्रेस को परेशानी क्या है? उत्तर प्रदेश में सीटों का बंटवारा हो चुका है। समाजवादी पार्टी से सीटों का समझौता हो चुका है। फिर अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार घोषित करने में कांग्रेस के लिए क्या दिक्कत है? उसका एक कारण है राहुल गांधी का डर।
मेरा मानना है कि राहुल गांधी अमेठी से भी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। कल उन्होंने केरल के वायनाड से पर्चा दाखिल कर दिया। वायनाड से वह अभी सांसद हैं और एक बार फिर उन्होंने वहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस बात पर ध्यान दीजिए कि पहली बार वायनाड की सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष हो रहा है। सीपीआई यानी लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट पिछली बार की तुलना में इस बार ज्यादा गंभीरता से इस सीट पर चुनाव लड़ रहा है। उसको इस बात पर सख्त नाराजगी है कि राहुल गांधी ने भाजपा शासित कोई राज्य चुनने की बजाय लेफ्ट के शासन वाले केरल से चुनाव लड़ रहे हैं। यहाँ वह बीजेपी से नहीं लड़ रहे हैं बल्कि इंडिया एलायंस के गठबंधन के एक साथी दल (सीपीआई) के खिलाफ लड़ रहे हैं।
लेकिन सवाल तो यह है कि राहुल गांधी अमेठी से लड़ेंगे या नहीं। और लड़ेंगे तो उसकी घोषणा कब होगी? मामले का सारा पेंच यहीं पर फंसा है। पिछली बार यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अमेठी से पर्चा दाखिल कर दिया था। चुनाव प्रचार के दौरान उनको एहसास हुआ और उनकी पार्टी को एहसास हुआ कि वो चुनाव हार सकते हैं। अमेठी के लोगों का जिस तरह का रिस्पांस था, जिस तरह से बेरुखी दिखाई, उससे उनके मन में डर बैठ गया कि वह चुनाव हारने जा रहे हैं। और आखिर में हुआ यही। राहुल गाँधी चुनाव हार गए।
उसकी वजह यह है कि 2014 में अमेठी से स्मृति ईरानी उनके खिलाफ चुनाव लड़ी थीं और हार गई थीं। लेकिन उसके बाद 5 साल तक वो लगातार अमेठी जाती रहीं। राहुल गांधी अपने चुनाव क्षेत्र से लगभग नदारद रहे। उनको लगा कि यह हमारी पैतृक सीट है। यहां से हमको कौन हरा सकता है। यहां हम अजेय हैं। जब चाहे आएं, पर्चा भरें और फिर जीत का सर्टिफिकेट लेकर जाएं। यहाँ ज्यादा चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं है और जीतने के बाद तो और आने की जरूरत नहीं है। राहुल गाँधी का यह सारा घमंड, सारा गुरुर अमेठी के लोगों ने 2019 में तोड़ दिया। स्मृति ईरानी चुनाव जीत गईं। और, चुनाव जीतने के बाद भी अमेठी जाती रहीं। अब उन्होंने गौरीगंज में घर बनवा लिया है। गौरीगंज अमेठी पार्लियामेंट सीट के तहत आनेवाला एक विधानसभा क्षेत्र है। वह वहां की निवासी ही नहीं हो गई वहां की वोटर भी बन गई हैं। इसलिए राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ने में डर लग रहा है कि कहीं फिर ना हार जाएं। फिर हार गए तो संसद कैसे पहुंचेंगे।
राहुल गाँधी को पहले अपना संसद पहुंचना सुनिश्चित करना था। इसके लिए लिए उनको वायनाड की सीट सुरक्षित लगी। उनको लगा वायनाड से उनका संसद पहुंचना तय है, बस मार्जिन कम ज्यादा हो सकता है, संघर्ष ज्यादा हो सकता है। इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि वायनाड सीट से राहुल गाँधी जीत जाएंगे। एक तो यह यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का गढ़ है और अब तो वहां से एसडीपीआई ने भी समर्थन कर दिया है। आपको मालूम होगा एसडीपीआई आतंकवादी गतिविधियों के कारण बैन कर दिए गए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की पॉलिटिकल विंग है। उसने राहुल गांधी का खुला समर्थन कर दिया है। अब कांग्रेस पार्टी थोड़ा शर्मा रही है कह रही है हमने तो समर्थन मांगा नहीं था। अगर कोई समर्थन अपने आप कर रहा है तो हम क्या कर सकते हैं। तो टुकड़े-टुकड़े गैंग, भारत को तोड़ने वाली ताकतें आखिर कांग्रेस पार्टी और उसके सर्वोच्च नेता राहुल गांधी का समर्थन क्यों कर रहे हैं- यह सवाल भी लोगों के मन में है।
लेकिन आज चर्चा केवल अमेठी की। क्या राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे- यह सवाल अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मेरे हिसाब से राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। रहा सवाल कि उसकी घोषणा क्यों नहीं हो रही है। वायनाड में 26 अप्रैल को मतदान होना है। राहुल गांधी के लिए उसके बाद बोलने में आसानी होगी। अभी डर यह है कि अगर अमेठी से भी लड़ने की घोषणा कर दी तो उसका असर वायनाड पर हो सकता है। वायनाड में इस बार वह अपने को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं जैसा की 2019 में कर रहे थे।
(विस्तार से जानने के लिए वीडियो देखें)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)