प्रखर श्रीवास्तव।
15 जून 1947… आज के ही दिन कांग्रेस ने बैठक कर भारत के बंटवारे पर मुहर लगाई थी… इस बैठक से पहले और बैठक में क्या हुआ था? बैठक में कौन-कौन मौजूद थे? किसने क्या कहा, कौन रोया, किसने गुस्सा किया… गांधीजी ने क्या बोला? और सबसे बड़ा सवाल… देश के विभाजन के खिलाफ गांधीजी ने आमरण अनशन क्यों नहीं किया? ये सब जानना आपके लिए ज़रूरी है।
हमें बचपन से क्या पढ़ाया गया कि- ‘गांधी ने हमेशा कहा की पार्टीशन मेरी लाश पर होगा है। देश के दो टुकड़े करने से पहले मेरे शरीर के दो टुकड़े कर दो।’ ये हमेशा गांधी कहते हैं यही हमको पढ़ाया गया। इससे बड़ा कोई सफेद झूठ नहीं है। भारतीय राजनीति का कोई पहला जुमला था तो वह यही जुमला था जो गांधी जी ने दिया था कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। दो-तीन ऐसे मौके आए जब अगर गांधी खड़े होकर स्टैंड लेते और कहते कि नहीं, पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा, तो पाकिस्तान कभी नहीं बनता। लेकिन उन दिनों गांधी चुप रहे। मैं आपको उदाहरण के साथ बताता हूं। जब जिन्ना ने 1940 में मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा तो इस मांग ने एकदम से तेजी नहीं पकड़ी… इसको सपोर्ट नहीं मिला बहुत ज्यादा। लेकिन 1942 में अंग्रेजों ने कांग्रेस के तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया तो जिन्ना को एक खुला मैदान मिल गया। उन्होंने तेजी से आगे बढ़ना शुरू किया और मुस्लिम सेंटीमेंट को भुनाना शुरू किया। और
1945-46 में इंडिया में एक इलेक्शन हुआ। तो राज्य में जैसे विधानसभा होती है विधानसभाओं के चुनाव भी हुए और केंद्र के लिए जिसको हम एक तरह से लोकसभा का चुनाव कह सकते हैं उसके लिए भी चुनाव हुए। उन चुनावों में मुस्लिम रिजर्व सीट होती थी। मुस्लिम रिजर्व सीट का मतलब मुस्लिम ही उस सीट पर खड़ा होगा और मुस्लिम ही वोट डाल सकता था। यानी, मुसलमान द्वारा मुसलमान ही चुना जाएगा। तो मौजूदा भारत के तरफ वाली मुस्लिम रिजर्व सीटों में एकतरफा मुस्लिम लीग जीती। खुद जिन्ना मुंबई से जीते। लियाकत अली खान मुरादाबाद से जीते जो बाद में पाकिस्तान के फर्स्ट प्राइम मिनिस्टर बने।
तो पूरा यूपी, एमपी, साउथ में मुस्लिम रिजर्व सीटों पर एकतरफा मुस्लिम लीग जीत गई। उससे एकदम से पाकिस्तान की मांग ने बहुत तेजी पकड़ ली। और जब लार्ड माउंट बेटन आए और उन्होंने एक तरह से नेहरू और पटेल को तैयार कर लिया कि पार्टीशन होना चाहिए, तब यहां से गांधी की भूमिका बड़ी संदिग्ध हो जाती है क्योंकि वो हमेशा कहते थे पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा। अपनी पुस्तक ‘हे राम’ में मैंने लिखा भी है। देखिए यह होता है कि अगर किसी बात का हवाला मैं अपने मन से दूं तो वो बात बनती नहीं है। मैंने खास ख्याल रखा कि मैं उन लोगों का रेफरेंस अपनी पुस्तक में दूं जो उस वक्त गांधी के साथ मौजूद थे। जो या तो गाँधी जी के सिपहसालार थे, उनके साथी थे- या उस समय के जर्नलिस्ट थे- या उस समय के अंग्रेज अधिकारी थे- या उस समय के आईसीएस ऑफिसर थे… जो पुरे घटनाक्रम को अपने सामने होते हुए अपनी आंखों से देख रहे थे।
उन सबके रेफरेंस के आधार मैं आपको समझता हूं कि गांधी जी ने बंटवारे को रोकने की कोशिश की या नहीं की। मौलाना आजाद खुद गांधी के बहुत बड़े सिपहसालार थे। वो अपनी पुस्तक ‘इंडिया विन्स फ़्रीडम’ में लिखते हैं कि “अप्रैल के आखिरी तक गांधीजी की सोच थी कि पाकिस्तान नहीं बनना चाहिए। लेकिन दो-तीन दिन के अंदर उनकी सोच बदल गई और पाकिस्तान बनाने के लिए वो सहमत होते हुए दिखना शुरू हो गए।”
जब यह तय हो गया कि पाकिस्तान बनने वाला है और भारत का पार्टीशन होने वाला है तो मई के अंतिम सप्ताह में माउंटबेटन उनको अप्रूव करवाने के लिए लंदन गए। गांधी जी रोज प्रार्थना सभा करते थे। जब मैंने मई के अंतिम सप्ताह के उनके प्रार्थना सभाओं में दिए गए भाषण निकाले तो उनकी टोन बदलना शुरू हो गई थी। वो या तो पार्टीशन पर बात कम करते थे- या जब पार्टीशन पर बात करते थे तो बात को घुमाते थे। पार्टीशन, या कहें पाकिस्तान, की मांग तो मुसलमानों ने की थी। लेकिन गाँधी जी अपनी प्रार्थना सभाओं में ये कहने लगे थे कि मुसलमानों ने ही नहीं, हिंदुओं और सिखों ने भी तो बंटवारे का समर्थन किया है, जबकि ये पूरी तरह से सही नहीं था। तो गांधी जी अपनी भाषा को- जो उनका स्टैंड था कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा- उसको टोन डाउन करने लगे थे।
तो दो और तीन जून को एक बैठक होती है मॉउन्टबेटन के साथ- जिसकी तस्वीर भी आपने देखी होगी मॉउन्टबेटन के साथ जिन्ना, नेहरू, पटेल आदि बैठे हुए हैं। पार्टीशन के प्लान को माउंटबेटन प्लान कहते हैं। उस बैठक में उस पर सहमति बन गई। 3 जून को उसकी आल इंडिया रेडियो पर घोषणा हो गई। उन दो-तीन दिनों में भी गांधीजी ने पार्टीशन पर बात नहीं की।
बीपी मेनन ने भारत को एक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई- बहुत बढ़िया अधिकारी थे। सरदार पटेल के साथ मिलकर उन्होंने भारत में सारे राज्यों के विलय में बड़ा योगदान दिया। बीपी मेनन उनकी पुस्तक है। इसके अलावा माउण्टबेटन के मीडिया एडवाइज़र एलेन कैंपबेल जॉनसन ने बुक लिखी है ‘मिशन विद माउंटबेटन’। इस पुस्तक में वह लिखते हैं कि “जब गांधी पार्टीशन पर चुप हो गए और तैयार हो गए तो समझ लो ये तय हो गया किस इस देश का बंटवारा होना था।”
3 जून को पार्टीशन का ऐलान हो जाता है। सवाल उठता है कि गांधी ने उस ऐलान के बाद आमरण अनशन का ऐलान क्यों नहीं किया। हम सबने बचपन से पढ़ा है कि गांधी जी तो बहुत छोटी-छोटी बातों पर अनशन कर देते थे। एक बार ट्रैन डिरेल हो गई थी उसके लिए कर दिया था। एक बार अहमदाबाद में मिल मजदूर की हड़ताल हो गई तो उसमें उन्होंने अनशन कर दिया था। गांधीजी अक्सर अपनी अंतरात्मा की आवाज, ईश्वरीय प्रेरणा को आधार बनाकर अनशन करते थे। अब ये सवाल उठता है कि देश का बंटवारा हो गया, इतने बड़े मुद्दे पर हमारे बापू ने अनशन क्यों नहीं किया। और न केवल खुद अनशन नहीं किया, बल्कि उनके जो सहयोगी अनशन करना चाहते थे, गांधी ने उनको भी डी डिमोरलाइज, हतोत्साहित किया- अनशन करने से रोका।
गांधीजी उस समय दिल्ली में झंडेवालान के पास वाल्मीकि बस्ती में रुके हुए थे। 3 जून की बात है जब भारत के बंटवारे के ऐलान हो गया। एक युवा दंपती गांधी जी को बहुत मानता था। उसने आमरण अनशन शुरू कर दिया तो गांधी ने उनको बड़ी लानते भेजीं और कहा ये अनशन करने का तरीका नहीं है। अनशन तो अंतरात्मा की आवाज पर किया जाता है। उस कपल को यह बहुत बुरा लगा और उसने कहा कि क्या आपके अंदर ही आत्मा की आवाज है- हमारी अंतरात्मा की आवाज नहीं है। गांधीजी ने उस दंपती को ईटा जलील, अपमानित किया कि तीन दिन में वे टूट गए। गांधी ने उनका अंश तुड़वा दिया। तो गांधी जी बटवारे के खिलाफ ना खुद अनशन कर रहे थे, ना दूसरे को करने दे रहे थे।
फिर आई 14, 15, 16 जून। इन तीन दिन में कांग्रेस की महासमिति की बैठक थी जिसको भारत के बंटवारे पर फाइनल मोहर लगानी थी। यह मालूम होना चाहिए कि उस समय कांग्रेस एक मंच था। कांग्रेस एक पार्टी भले ही हो लेकिन उसमें हर विचारधारा के लोग थे। वामपंथी विचारधारा के लोग भी थे। समाजवादी विचारधारा के भी थे। पंडित मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन और सरदार पटेल जैसे लोग भी शामिल थे जो हिंदूत्ववादी विचारधारा के थे। जब 14 जून को महासमिति की बैठक शुरू हुई तो भारतरत्न पीडी टंडन ने बैठक में विभाजन का विरोध करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया। उससे पास पलट गया। फ्रंटियर गाँधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान साढ़े छह फ़ीट कद से पठान थे और हमेशा कांग्रेस और गाँधी जी के साथ रहे थे। अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ उनका प्रान्त पाकिस्तान के हिस्से में जाने वाला था। जब वो भाषण देने के लिए खड़े हुए तो भाषण देते देते रोने लगे। रोते-रोते फ्रंटियर गांधी ने कहा कि आपने हम पठानों को भेड़ियों के हवाले कर दिया। मतलब था आप सब ने मिलकर हमको पाकिस्तानी भेड़ियों के हवाले कर दिया और फूट-फूट के रोने लगे।
इन दो भाषणों से पूरा माहौल विभाजन के खिलाफ हो गया। ऐसी संभावना बन रही थी की अगर वोटिंग होती है कि भारत का बंटवारा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए- तो इस कार्यसमिति के अंदर बंटवारे के खिलाफ बहुमत आ सकता है। नेहरू इससे घबरा गए। उस समय गांधी कांग्रेस के सदस्य नहीं थे। 30 के दशक में गांधी कांग्रेस की सदस्यता छोड़ चुके थे। लेकिन 15 जून को अचानक गांधी जी को महासमिति की बैठक में बुलाया गया और गांधी जी ने एक भाषण दिया। उस भाषण में उन्होंने कहा की आज जो ये पार्टीशन के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं वे सब भी तो पार्टीशन के समर्थक थे। हिंदुओं ने भी तो पाकिस्तान मांगा, सिखों ने भी तो पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया। इस तरह के भाषण देकर गांधीजी ने पूरा माहौल बदल दिया। जब वोटिंग हुई तो दुर्भाग्य से इस देश का बंटवारे पर मोहर लग गई। यानी जो हमें बचपन से पढ़ाया गया कि ‘पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा’ ये बापू का जुमला था। अगर यह बात वो दिल से सोचते तो जिस जगह पर, जिस पॉइंट पर उनको भारत के बंटवारे का विरोध करना चाहिए था, वो उन्होंने नहीं किया। अपनी पुस्तक ‘हे राम’ में मैंने ऐसी तमाम बातों का विस्तार से वर्णन किया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और दूरदर्शन में सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं)