नवीन जोशी।
अन्ना जार्विस- इस अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्त्री ने जब 1908 में अपनी मां के सम्मान में ‘मदर्स डे’ की शुरुआत की तो कभी नहीं सोचा था कि बहुत ज़ल्दी इसे बाजार हड़प लेगा और यह दिन भारी धंधे और बेतहाशा मुनाफा कमाने का विश्वव्यापी माध्यम बन जाएगा। और, जब उसने देखा कि सच्ची, सुंदर, ईमानदार और पवित्र भावना से शुरू किया गया ‘मदर्स डे’ भावना-विहीन बाजारी धंधे एवं औपचारिक तमाशा बन गया है तो अपना शेष जीवन एवं धन उसने ‘मदर्स डे’ का विरोध करने और इसे बंद कराने की कोशिशों में लगा दिया। इसके बाजारीकरण से वह इतनी घृणा करने लगी थी कि 1948 में अपनी मृत्यु तक सारी ताकत और समस्त संसाधन लगाकर वह इसका विरोध करती रही। मृत्यु के समय वह बेहद गरीब और अकेली हो चुकी थीं, जबकि ‘मदर्स डे’ का बाजार हर साल भारी मुनाफा देने वाला बनता चला जा रहा था।
पवित्र भावना की याद नहीं आती
हर साल मई के दूसरे रविवार को जब अमीर ही नहीं, गरीब से गरीब देशों और परिवारों के पुत्र-पुत्रियां अपनी उपेक्षित और घर से खदेड़ी जा चुकी माताओं की भी तस्वीरें सोशल मीडिया में डाल-डालकर ‘मदर्स डे’ का दिखावा करते हैं तो किसी को भी अन्ना जारविस और उसकी पवित्र भावना की याद नहीं आती। उसने ‘क्यों मदर्स डे’ शुरू किया और फिर क्यों इसके तीव्र विरोध पर उतर आई, इसे जानने की न किसी को फुर्सत है, न बाजार इसका अवसर देता है। आज हालात यह हैं कि जो कोई अपनी (जीवित या दिवंगत) मां को बधाई देते और उसके चरणों में लहालोट होते हुए उसके साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया में नहीं चिपकाते, वे अपने को विश्व के सबसे दुर्भाग्यशाली और नालायक पुत्र/पुत्री मानते/मानतीं हैं। अनेक माताओं को तो यह भी पता नहीं होता कि बेटे/बेटी ने उनकी फोटो सोशल मीडिया में चिपका कर क्या-क्या लिख मारा है।
अन्ना जार्विस की कहानी मैंने ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में पढ़ी। फिर बीबीसी और दूसरी साइटों पर उसके बारे में तलाश किया। वही कथा आपसे साझा करता हूं। अन्ना की मां, ऐन रीव्स जार्विस ने अपना जीवन मातृत्व-सेवा में लगा दिया था। वह अमेरिकी गृह युद्ध का दौर था। माताएं प्रसव-सम्बद्ध समस्याओं और बच्चे बीमारियों से मर रहे थे। ऐन रीव्स ने माताओं को अपनी एवं बच्चों की साफ-सफाई, बीमारियों से उन्हें बचाने एवं जागरूक करने का अभियान शुरू किया। वह बच्चों के लालन-पालन में माताओं के समर्पण को दुनिया की सबसे बड़ी सेवा मानती थी। अन्ना ने बचपन में अपनी मां को कहते सुना था कि काश, यह दुनिया जानती और मानती कि एक मां अपने बच्चों एक लिए क्या-क्या करती और कर सकती है। कभी यह दुनिया मां को सम्मान देना सीखे!
मई का दूसरा रविवार ही क्यों
1905 में अन्ना की मां का देहांत हो गया। तब वह अपनी मां की इच्छा पूरी करने के अभियान में जुट गई। उसने राजनेताओं, उद्योगपतियों और अन्य प्रभावशाली व्यक्तियों को कई पत्र लिखे कि मई का दूसरा रविवार ‘मदर्स डे’ के रूप में मनाया जाए। इस दिन सब लोग अपनी-अपनी मां का विशेष रूप से आदर करें और परिवार एवं मानवता के लिए उसकी सेवाओं को प्यार के साथ याद करें। रविवार का दिन इसलिए चुना गया कि मां को तनिक फुर्सत होगी और मई का दूसरा रविवार इसलिए कि वह नौ मई के आस-पास पड़ेगा, जिस दिन अन्ना की मां की मृत्यु हुई थी। 1908 में अन्ना का अभियान रंग लाया। उस साल दो जगहों पर मदर्स डे मनाया गया। एक, अन्ना के ग़ृहनगर ग्राफ्टन के एक चर्च में और दूसरा, फिलाडेल्फिया में। अन्ना के अभियान को कई विशिष्ट व्यक्तियों का समर्थन मिलता गया। 1914 में अभियान को बड़ी कामयाबी मिली जब अमेरिकी प्रतिनिधि सदन में अल्बामा के सांसद जेम्स हेफ्लिन ने ‘मदर्स डे’ को राष्ट्रव्यापी मान्यता दिलाने के लिए विधेयक पेश किया जो पारित हो गया। अमेरिकी राष्ट्रपति टॉमस विड्रो विल्सन ने आठ मई, 1914 को इस पर हस्ताक्षर किए। अमेरिका में ‘मदर्स डे’ को विधिक मान्यता मिल गई।
दुनिया की सबसे अच्छी मां- मेरी मां
अन्ना जार्विस के इस अभियान से काफी पहले 1873 में लेखिका और सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्त्री जुलिया वार्ड होव ने भी माताओं के अतुलनीय योगदान का सम्मान करने के लिए ‘मदर्स डे’ मनाने की अपील की थी। जुलिया और अन्ना के ‘मदर्स डे’ के विचार में बुनियादी फर्क था। जुलिया अपनी-अपनी माताओं के पारिवारिक सम्मान की बजाय सभी माताओं को इसमें जोड़ती थीं, जबकि अन्ना का विचार था कि प्रत्येक संतान अपनी मां के प्रति व्यक्तिगत रूप से अपना पवित्र प्यार, आदर और श्रद्धा व्यक्त करे जिसके लालन-पालन के लिए वह अपना सर्वस्व एवं सर्वोत्तम न्योछावर करती है। अन्ना का ध्येय वाक्य कुछ इस तरह था- ‘इस दुनिया की सबसे अच्छी मां- मेरी मां।’ यानी सभी को अपनी-अपनी मां को हृदय से दुनिया की सर्वोत्तम मां मानते हुए इस दिन बहुत याद, प्यार और सम्मान करना था।
क्रिसमस से बड़ा बाजार
परिवार के भीतर अपनी-अपनी मां के पवित्र सम्मान का अन्ना जार्विस का यह अभियान शीघ्र ही ग्रीटिंग कार्डों, फूलों, टॉफी-चॉकलेट, उपहारों के व्यापार और सार्वजनिक समारोहों में बदलने लगा। 1964 में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मदर्स डे पर उपहार, फूल, ग्रीटिंग कार्ड, आदि बांटने का सिलसिला इतना बढ़ गया था कि तब इसका बाजार सिर्फ क्रिसमस के बाजार से ही थोड़ा पीछे था।
‘मदर्स डे’ को निरी औपचारिकता तथा बाजार और मुनाफे के धंधे में बदलते देख अन्ना जार्विस को इससे नफरत होने लगी। उसने इसके व्यापारीकरण के खिलाफ पहले चिट्ठियां लिखीं, अपीलें कीं, पोस्टर बनाए, फिर मुकदमे किए और सड़कों पर प्रदर्शन तक किए। ‘मई का दूसरा रविवार- मदर्स डे’ ध्येय वाक्य का उसने कॉपीराइट लिया और व्यापारिक कम्पनियों पर इसके इस्तेमाल के लिए मुकदमे किए। अन्ना की मां को कारनेशन (क्या कहेंगे, गुलनार?) के सफेद फूल बहुत पसंद थे। अन्ना ने इसीलिए सफेद कारनेशन के फूलों को मदर्स डे का प्रतीक चिह्न बनाया था लेकिन बाजार ने हर रंग के कारनेशन और दूसरे फूलों को मदर्स डे से जोड़कर धंधा चमका लिया। दिवंगत माताओं के लिए सफेद और जीवित माताओं के लिए लाल-गुलाबी कारनेशन फूल!
वाह, क्या भावना है
हैरान-परेशान और क्रोध से फनफनाती अन्ना जार्विस ने विज्ञप्तियां जारी कीं- “एक पवित्र, सात्विक, ईमानदार और सर्वोत्तम सम्मान दिवस को अपनी लिप्सा से अपवित्र कर देने वाले पाखण्डियों, चोरों, लुटेरों, उचक्कों और अपहर्ताओं के साथ आप क्या सलूक करेंगे?” उसने जनता से अपील की कि इस दिन फूल देना बंद कर दीजिए। अपनी मां को छपा हुआ ग्रीटिंग कार्ड देने का अर्थ है कि आप इतने आलसी हैं कि उस स्त्री के लिए दो शब्द लिख या बोल भी नहीं सकते जिसने आपके लिए इतना किया है, जितना दुनिया में और कोई कर नहीं सकता। और कैण्डी-चॉकलेट? आप उसके लिए डिब्बा ले जाते हो सारा खुद चट कर जाते हो! वाह, क्या भावना है!
पवित्र भावना बनाम बढ़ते मुनाफे का व्यापार
पवित्र भावना वाले ‘मदर्स डे’ को निरंतर बढ़ते मुनाफे वाले व्यापार में बदलने के लिए अन्ना जार्विस का विरोध-प्रदर्शन बढ़ता गया। उसने विरोध प्रदर्शन और बहिष्कार के आह्वान किए। एक ‘मदर्स डे’ पर ‘युद्ध-माताओं’ (जिनके बेटे शहीद हुए) के लिए धन एकत्र करने के लिए आयोजित समारोह में घुसकर उसने तत्कालीन राष्ट्रपति की पत्नी श्रीमती एलेनॉर रूजवेल्ट के सामने प्रदर्शन किया। एक और आयोजन में जब मदर्स डे पर फूल बेचकर ‘युद्ध माताओं’ के नाम पर धन जमा किया जा रहा था, उसने जबर्दस्त हंगामा किया। तब उसे शांति भंग में गिरफ्तार कर लिया गया। अन्ना के विरोध प्रदर्शन को व्यापार के लिए नुकसानदेह मानते हुए उसे मनाने के वास्ते फूल-उद्योग ने उसे मुनाफे में हिस्सा बांट करने का भी प्रस्ताव दिया पर वह इस लालच में कहां आने वाली थी।
विरोध में अपना सब कुछ झोंक दिया
एक पवित्र भावना से मदर्स डे का आयोजन शुरू करने वाली अन्ना जार्विस ने अब इसके विरोध में अपना सब कुछ झोंक दिया था। वह लगभग अकेली थी और बाजार बहुत बड़ा हो गया था। उसकी सारी जमा पूंजी इसी में खर्च हो गई। बीमार, बूढ़ी, छदाम-विहीन और अकेली अन्ना को एक सेनीटोरियम में भर्ती किया गया। वहीं 1948 में उसकी मृत्यु हो गई। बीबीसी के अनुसार सेनीटोरियम में भर्ती किए जाने से ठीक पहले वह घर-घर घूमकर पर्चे बांट रही थी जिनमें अपील की गई थी कि ऐसा ‘मदर्स डे’ मनाना बंद कर दें।
बाजार का विशाल आकार
अन्ना जार्विस की कोई औलाद नहीं थी। उसकी भावनाओं को देखते हुए उसके भाई-बहनों के परिवारों ने उसकी मृत्यु के लम्बे समय तक ‘मदर्स डे’ नहीं मनाया था। अन्ना जार्विस का नाम आज कोई नहीं जानता लेकिन ‘मदर्स डे’ घर-घर मानाया जाता है। उसके बाजार के विशाल आकार का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। अमेरिका-यूरोप में ही नहीं, बेरोजगारी और भुखमरी से ग्रस्त अपने देश में भी। ‘मदर्स डे’ मना चुकने के बाद तनिक इस पर भी गौर कीजिएगा कि क्या बाजार ने हमारे सभी आत्मीय पर्वों, दिवसों, त्योहारों को भावना-विहीन औपचारिकता और बड़ी धन्धे में नहीं बदल दिया है और क्या हम आंख मूंदकर पूरे उत्साह से बाजार के बैण्ड के साथ डांस करके गदगद नहीं हो रहे?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘अपने अपने मोर्चे’ से साभार)