भारतीय संविधान के निर्माता, दलित समूह के मसीहा और मानवाधिकार आंदोलन के प्रकांड विद्वता बाबा साहेब डॉक्टर भीमाराव अंबेडकर  को अब भारत के बाहर भी पूजा जाएगा। दरअसल, शनिवार (14 अक्टूबर) को बाबा साहब की सबसे बड़ी प्रतिमा का औपचारिक रूप से अनावरण अमेरिका के मैरीलैंड शहर में किया गया.19 फीट ऊंची इस मूर्ति को स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का नाम दिया गया है।

अंबेडकर को जानिए…

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू जिले में एक महार परिवार में हुआ था। महार जाति को उस समय अछूत समझा जाता था। बाबा साहेब के पिता सेना में थे और नौकरी के सिलसिले में यहां रहा करते थे। उनके पुरखे महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबाडावे गांव से थे। 1906 में भीमराव अंबेडकर की पहली शादी रमाबाई से हुई। रमाबाई ने उनकी पढ़ाई में बहुत मदद की। दोनों के 5 बच्चे थे, इनमें से केवल यशवंत अंबेडकर जीवित रहे। 27 मई 1935 को लंबी बीमारी के बाद रमाबाई की मौत हो गई।

अमेरिका में गूंजे जय भीम के नारे

इस समारोह में अमेरिका के विभिन्न हिस्सों से 500 से अधिक भारतीय-अमेरिकी, भारत और अन्य देशों के कई लोग शामिल हुए. इस दौरान वहां मौजूद सभी लोगों ने जय भीम के नारे भी लगाए. सूत्रों ने बताया Statue of Equality के अनावरण समारोह में शामिल होने आए प्रतिभागियों का भारी बारिश और बूंदाबांदी के बाद भी उत्साह कम नहीं हुआ. वहीं, कई लोगों ने इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए करीब 10 घंटे तक की लंबी यात्रा की. प्रतिमा के अनावरण समारोह के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से आए भारतीय-अमेरिकियों ने वहां कई तरह की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दीं.

19 फीट ऊंची प्रतिमा का लोकार्पण

जानकारी के अनुसार, 19 फीट ऊंची इस प्रतिमा को सरदार पटेल की प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue of Unity) बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकार और मूर्तिकार राम सुतार (Ram Sutar) ने बनाई है. बता दें ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को गुजरात में सरदार सरोवर बांध के नीचे की ओर नर्मदा में एक द्वीप पर स्थापित किया गया है।

राम सुतार ने बनाई है प्रतिमा

मालूम हो कि इस 19 फीट प्रतिमा को सरदार पटेल की प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकार और मूर्तिकार राम सुतार ने बनाई है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को गुजरात में सरदार सरोवर बांध के नीचे की ओर नर्मदा में एक द्वीप पर स्थापित किया गया है।  स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी के अनावरण समारोह में शामिल होने आए प्रतिभागियों का भारी बारिश और बूंदाबांदी के बाद भी उत्साह कम नहीं हुआ। वहीं, कई लोगों ने इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए करीब 10 घंटे तक की लंबी यात्रा की।

भारतीय-अमेरिकियों ने दी सांस्कृतिक प्रस्तुतियां

प्रतिमा के अनावरण समारोह के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से आए भारतीय-अमेरिकियों ने वहां कई  तरह की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दीं। वहीं, इस प्रतिमा के अनावरण के समारोह में शामिल दिलीप म्हास्के ने कहा कि स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी 1.4 अरब भारतीयों और 4.5 मिलियन भारतीय अमेरिकियों का प्रतिनिधित्व करेगी। मालूम हो कि  दिलीप म्हास्के अमेरिका में अंबेडकरवादी आंदोलन का नेतृत्व करते हैं।

14 अक्टूबर क्यों है खास?

मालूम हो कि स्वतंत्र भारत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में डॉ अम्बेडकर को कानून और न्याय मंत्री बनाया गया था। वहीं, उन्होंने 14 अक्टूबर, 1956 को अपने समर्थकों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। उनके बौद्ध धर्म अपनाने की तारिख और मैरीलैंड में प्रतिमा का अनावरण की तारीख दोनों एक दूसरे से मेल खाती है।

समानता और मानवाधिकार का प्रतीक

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर (एआईसी) के अनुसार, मैरीलैंड में स्मारक का उद्देश्य बाबासाहेब के संदेशों और शिक्षाओं का प्रसार करते हुए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में काम करना है। यह समानता और मानवाधिकारों के स्थायी आदर्शों का प्रतीक है, जो डॉ. बी.आर. के मूल सिद्धांतों को दर्शाता है। अम्बेडकर जीवन भर इसके लिए खड़े रहे।

अनुयायियों की एक वैश्विक सभा

‘स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी’ के अनावरण में अंबेडकरवादी आंदोलन और डॉ. अंबेडकर के वैश्विक अनुयायियों से बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों के शामिल होने की उम्मीद है। इस कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से प्रशंसकों की उपस्थिति देखी जाएगी, जो बाबासाहेब की विरासत को श्रद्धांजलि देने के लिए एक साथ आएंगे।

भारत के संविधान के निर्माता

14 अप्रैल, 1891 को जन्मे डॉ. भीम राव अंबेडकर, जिन्हें प्यार से बाबासाहेब भी कहा जाता है, ने स्वतंत्रता के बाद के भारत की नियति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके गहरे प्रभाव का श्रेय संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका को दिया जा सकता है, जिसके कारण उन्हें “भारतीय संविधान के वास्तुकार” की उपाधि मिली। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के उद्घाटन मंत्रिमंडल में कानून और न्याय मंत्री के रूप में कार्य किया।

सामाजिक आंदोलनों के चैंपियन

डॉ. अम्बेडकर की विरासत भारतीय संविधान के प्रारूपण से कहीं आगे तक फैली हुई है। वह दलितों और अछूतों के अधिकारों के लिए एक अथक वकील थे, उन्होंने इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने के उद्देश्य से कई सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। सामाजिक न्याय के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने भारत के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है और पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। (एएमएपी)