-श्रावस्ती के सहेत में है 25सौ वर्ष पुराना ‘पीपल’, भगवान बुद्ध ने की थी पूजा

उत्तर प्रदेश राज्य जैवविविधता बोर्ड की ओर से प्रदेश में विरासत (हेरिटेज) वृक्षों को सहेजन का काम किया जा रहा है। अब-तक प्रदेश के गैर वन क्षेत्रों में 948 वृक्षों को हेरीटेज वृक्षों की श्रेणी में रखकर संरक्षण किया जा रहा है। इस सूची के अनुसार प्रदेश का सबसे पुराना वृक्ष पीपल श्रावस्ती जिले के इकौना तहसील स्थित सहेत-महेत के पास है, जिसकी उम्र लगभग 25सौ वर्ष है।

ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे ही भगवान बुद्ध ने पूजा की थी। इसी के पास अंगुलीमार गुफा भी है। टेढ़ी नदी के तट पर यह अवस्थित है। इस वृक्ष बौद्ध के साथ ही हिंदू धर्मावलम्बियों के लिए भी आस्था का केंद्र है।

ऐसी मान्यता है कि पीपल वृक्ष के समीप स्थित मां शक्ति मंदिर में पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूर्ण होती है। वृश्चिक राशि का वृक्ष होने से इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति वृक्ष की देखरेख व सुरक्षा में विशेष रूचि रखते हैं।

वन विभाग के एक उच्चाधिकारी का कहना है कि ऐसे वृक्षों के रख-रखाव का काम तो वैसे स्थानीय लोग ही ‘आस्था’ को ध्यान में रखकर करते रहते हैं,लेकिन इसके लिए हमारी भी जो जरूरत पड़ती है, वह किया जाता है। उसकी टहनियों में बांस-बल्ली लगाने का काम हो या उसमें रोग लगने पर उसका निदान का काम हो, वन विभाग के कर्मचारी निरीक्षण करते रहते हैं और उसका निदान समय-समय पर करते हैं।

श्रावस्ती के वरिष्ठ पत्रकार विजय आर्य का कहना है कि यह वृक्ष अपने-आप में दैव स्वरूप है। मान्यता है कि यहां देवताओं का वास है। ऐसी स्थिति में प्रभु भक्तों की रक्षा करते हैं और भक्त अपने प्रभु की निगरानी में लगे रहते हैं। सामान्य तौर पर किसी विभाग की यहां जरूरत ही नहीं पड़ती।

बताया कि 32 एकड़ भूमि में फैला, सहेत दक्षिण पश्चिम दिशा में महेत के ऐतिहासिक स्थल के पास स्थित है। सहेत में कई मंदिरों, बौद्ध स्तूपों और मठों का निर्माण किया गया। यहां पाए जाने वाले मंदिर वास्तुकला की गुप्त शैली में निर्मित हैं। सहेत के अधिकांश स्तूप कुषाण काल के हैं। यहां एक विशाल बुद्ध प्रतिमा भी मिली थी। इस संबंध में प्रभारी प्रभागीय वनाधिकारी श्रावस्ती धर्मेंद्र नाथ सिंह का कहना है कि यह वृक्ष पुरातत्व विभाग से जुड़ा हुआ है। इसकी विशेष महत्ता होने के कारण यहां का पूरा देख-रेख पूरातत्व विभाग करता है। वन विभाग के अधिकारी भी वहां जाते रहते हैं।(एएमएपी)