पांच राज्यों के चुनाव नतीजे पार्टी पर गांधी परिवार के प्रभाव की पोल खोल देंगे।

प्रदीप सिंह।
जब परिवार और पार्टी एक हो जाए तो दोनों का भविष्य भी एक हो जाता है। पार्टी गिरती है तो परिवार गिरता है। परिवार गिरता है तो पार्टी गिरती है। बात हो रही है कांग्रेस पार्टी की। आपने यूपीए सरकार के 2004 से 2014 के कार्यकाल के दौरान पॉलिसी पैरालिसिस की बात सुनी होगी। उस दौरान मनमोहन सिंह कहने को तो प्रधानमंत्री थे,लेकिन असली प्रधानमंत्री सोनिया गांधी थीं। मनमोहन सिंह के पास पद था, लेकिन कोई अधिकार नहीं था जबकि सोनिया के पास पद नहीं था लेकिन अधिकार थे। मनमोहन सिंह 10 साल सिर्फ इसलिए प्रधानमंत्री रहे क्योंकि वे सोनिया गांधी की कठपुतली बनने को तैयार थे।

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पिछले 25-26 साल का कांग्रेस का इतिहास देखें जब से सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष बनीं तो कांग्रेस पार्टी में गिरावट साफ नजर आती है, लेकिन परिवार में गिरावट दिखाई नहीं दे रही थी क्योंकि कभी पार्टी और कभी सरकार दीवार बनकर परिवार के सामने खड़ी थीं। सोनिया गांधी सर्वेसर्वा थीं। तो उनके सलाहकारों ने बड़ी ही चतुराई से एक आवरण बनाया ताकि सोनिया ताकतवर दिखें। पार्टी कमजोर हो रही है कोई बात नहीं। सरकार कमजोर हो रही है। उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। कोई बात नहीं। सोनिया गांधी का शीशे का यह आवरण 2014 तक बना रहा, लेकिन जब यह आवरण नरेंद्र मोदी नाम के पत्थर से टकराया तो चूर-चूर हो गया।

सोनिया गांधी जब से कांग्रेस अध्यक्ष बनीं तब से 2014 और 2014 से अब तक के सालों को देखिए तो पता चलेगा कि कांग्रेस गिर रही थी, लेकिन लोगों को यह नहीं दिख रहा था कि परिवार भी गिर रहा है। लेकिन जैसे ही आवरण हटा वैसे ही परिवार की गिरावट भी दिखाई देने लगी। लालकृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले कहा था कि मनमोहन सिंह इस देश के अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं। ऐसे प्रधानमंत्री जिनका सम्मान उनके मंत्रिमंडल के साथी भी नहीं करते। सोनिया गांधी में यह क्षमता नहीं थी कि वह बड़ी लकीर खींच सके। वह दिल और दिमाग दोनों से बहुत बौनी हैं। तो खुद को बड़ा दिखाने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपमानित करना शुरू कर दिया। कभी एसपीजी मनमोहन सिंह को पकड़ कर पीछे कर देती। विदेशी मेहमान जब मिलने आते थे तो सोनिया गांधी उनसे ऐसे मिलतीं जैसे वही सबकुछ हों और मनमोहन ऐसे लगते जैसे उनके सहायक हों। यह जो गिरावट थी, सोनिया गांधी इसको अपनी ताकत समझ रही थीं। अगर भारत जैसे देश का प्रधानमंत्री किसी के सामने झुका खड़ा हो तो सामने वाले का कद तो बड़ा दिखेगा ही। इसलिए 10 साल तक सोनिया गांधी बड़ी दिखती रहीं।

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भारत के एक अन्य प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का कद बड़ा था। योग्यता बड़ी थी। इसके बावजूद सोनिया गांधी ने उन्हें तक अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा, लेकिन नरसिम्हा राव मनमोहन सिंह नहीं थे। उनके अंदर रीढ़ थी। इसलिए उस तरह का दृश्य आपको देखने को नहीं मिला जो 2004 से 2014 के बीच में देखने को मिला। हालांकि नटवर सिंह ने अपनी किताब में साफ-साफ लिखा है कि पांच साल प्रधानमंत्री रहने के दौरान नरसिम्हा राव की सबसे बड़ी परेशानी सोनिया गांधी थीं। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का फोन अगर 10 जनपथ सोनिया गांधी के पास जाता था तो उनको इंतजार कराया जाता था। एक बार उन्होंने परेशान होकर कहा,यह मुझे बुरा नहीं लगता लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को बुरा लगता है। अब इससे ज्यादा अपमान भारत के प्रधानमंत्री का क्या हो सकता है? एक महिला जिसकी कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं, कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं,कोई राजनीतिक अनुभव नहीं। वह पीवी नरसिम्हा राव जैसे योग्य व्यक्ति का अपमान करे।

अब कांग्रेस की सरकार रही नहीं। सरकार आने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है तो गांधी परिवार की असली ताकत दिखाई दे रही है। अब सत्ता के दंभ से जो आवरण बना था, वह चकनाचूर हो चुका है। अब जो दृश्य दिखाई दे रहा है वह पार्टी पैरालिसिस का है। इसीलिए कर्नाटक में जो कुछ हो रहा है वह सिर्फ इसलिए कि पार्टी और परिवार दोनों लकवाग्रस्त हो गए हैं। कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं है और फैसला ले भी ले तो उसको लागू करवाने की हिम्मत नहीं है। आप एक-एक करके देश के सारे राज्यों पर नजर दौड़ा लीजिए, कोई राज्य ऐसा नहीं मिलेगा जहां कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी या बेहतर होने वाली हो। हर राज्य में सवाल यह है कि कांग्रेस कितना और गिरेगी। आप अगले साल पांच राज्यों पश्चिम बंगाल,केरल,तमिलनाडु,असम और पुदुचेरी में होने वाले चुनावों का इंतजार कीजिए। उसके बाद यह लकवाग्रस्त पार्टी और परिवार और विकराल रूप में दिखाई देगा। इन चुनावों के नतीजे पूरी तरह से यह साबित कर देंगे कि इस परिवार का न तो पार्टी और न देश के मतदाताओं पर कोई प्रभाव रहा। उसके बाद जिन राज्यों में चुनाव होना है खासतौर से पंजाब जहां कांग्रेस सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है, लेकिन उसकी वह उम्मीद पूरी होगी, ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है।

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पहले कांग्रेस चुनाव हारती थी। फिर मटियामेट होने लगी और अब तीसरी स्टेज आ गई है कांग्रेस के विलुप्त होने की। 2029 का लोकसभा चुनाव आते-आते किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार होगी, यह कहना मुश्किल है। कांग्रेस के पास जो कुछ बचा हुआ है वह राज्यों के चंद नेताओं के कारण है। सोनिया गांधी,राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने तो मिलकर पार्टी को बर्बाद कर दिया है। अगर किसी को अपनी पार्टी को खत्म कराना हो तो इनकी कंसलटेंसी लेनी चाहिए। चाहे राजस्थान का मामला हो,छत्तीसगढ़ का मामला हो,मध्य प्रदेश का मामला हो,पंजाब का मामला हो और अब कर्नाटक का मामला देख लीजिए। आने वाले दिनों में मानकर चलिए कि हिमाचल और तेलंगाना का मामला भी खुलने वाला है। अब बस सवाल यही है कि गांधी परिवार और कांग्रेस दोनों खत्म कब होंगे? दोनों के सर्वाइवल की किसी को उम्मीद नहीं है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)