भारत-बांग्लादेश के प्रगाढ़ द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों पर निशाना
इंडिया आउट अभियान के अंतर्गत बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी द्वारा जिस प्रकार से देशवासियों से भारतीय से आयात होने वाले सामानों का बहिष्कार करने का अह्वान किया गया है और बांग्लादेश एवं भारत के प्रगाढ़ द्विपक्षीय आर्थिक रिश्तों पर निशाना साधा गया है, साफ तौर पर उसका मकसद देश की आर्थिक तरक़्क़ी को पटरी से उतारना है.
गौरतलब है कि बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति सत्तारूढ़ अवामी लीग की राजनीतिक सफलता की सबसे बड़ी वजह है. पिछले पांच दशकों के दौरान बांग्लादेश के आर्थिक हालातों में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है. वर्ष 1971 में बांग्लादेश की गिनती दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में होती थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रगति करते हुए 2015 तक बांग्लादेश निम्न-मध्यम-आय वाले राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया. इतना ही नहीं, वर्ष 2026 तक बांग्लादेश संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देशों (LDC) की सूची से भी बाहर निकलने के लिए कमर कस चुका है. बांग्लादेश की सरकार द्वारा राष्ट्रीय रणनीतिक योजना ‘विज़न 2041’ तैयार की गई है. विज़न 2041 के तहत सरकार का लक्ष्य अत्यधिक ग़रीबी को देश से पूरी तरह समाप्त करना है, साथ ही वर्ष 2030 तक बांग्लादेश को उच्च-मध्यम वर्ग राष्ट्र का दर्ज़ा दिलाना और वर्ष 2041 तक उच्च आर्थिक राष्ट्र का दर्जा हासिल कराना है.
वर्तमान में बांग्लादेश 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था है. जैसे-जैसे बांग्लादेश की इकोनॉमी परवान चढ़ेगी, भारत के साथ इसका व्यापार भी रफ़्तार पकड़ेगा. फिलहाल भारत और बांग्लादेश के बीच जो प्रगाढ़ आर्थिक रिश्ते हैं, उसमें इंडिया आउट अभियान के माध्यम से भारत पर निशाना साधाना और उसकी निंदा करना देखा जाए तो अवामी लीग की नीतियों को कटघरे में खड़ा करना है. उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की आर्थिक तरक़्क़ी का श्रेय अवामी लीग सरकार की नीतियों को ही दिया जाता है. बीएनपी द्वारा इंडिया आउट अभियान के ज़रिए भारत और बांग्लादेश के आर्थिक रिश्तों का राजनीतिकरण किया जा रहा है. बीते 27 वर्षों के दौरान भारत द्वारा बांग्लादेश को किए जाने वाले निर्यात में 10 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि देखी गई है. वर्ष 1995 में भारत द्वारा बांग्लादेश को किया जाने वाला निर्यात 1.05 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 13.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.
बांग्लादेश में विपक्ष के “इंडिया आउट” अभियान के पीछे की राजनीति-1
बांग्लादेश भौगोलिक नज़रिए से भारत का निकटतम पड़ोसी है और निश्चित रूप से इस वजह से दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियां बहुत सहज हैं. बांग्लादेश दक्षिण एशिया में नई दिल्ली का प्रमुख व्यापारिक भागीदार देश है, जबकि ढाका के लिए भारत एशिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है. जहां तक बांग्लादेश से होने वाले निर्यात की बात है, तो भारत उसके शीर्ष निर्यातक देशों में शामिल है. वित्तीय वर्ष 2022-23 में बांग्लादेश द्वारा भारत को लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया गया था. 2022-23 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 15.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था. भारत से आयात होने वाली वस्तुओं पर बांग्लादेश की निर्भरता बहुत अधिक है. वर्ष 2022 में भारत द्वारा बांग्लादेश को 13.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सामान निर्यात किया गया था.
भारत और बांग्लादेश अपनी आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए कनेक्टिविटी की मज़बूती पर भी गंभीरता से कार्य कर रहे हैं. दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने 1 नवंबर 2023 को वर्चुअल तरीक़े से बांग्लादेश में भारत की सहायता से निर्मित तीन परियोजनाओं का उद्घाटन किया था. इनमें से एक अगरतला-अखौरा रेल लिंक परियोजना है. यह रेल लिंक परियोजना भारत और बांग्लादेश के बीच न सिर्फ़ कनेक्टिविटी बढ़ाने का काम करेगी, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने वाली भी साबित होगी. नई दिल्ली और ढाका ने रेलवे सेक्टर में भी पारस्परिक सहयोग को सशक्त किया है. इसके अलावा बिजली और एनर्जी सेक्टर में भारत और बांग्लादेश के बीच मज़बूत सहयोग दोनों देशों के प्रगाढ़ होते आपसी रिश्तों की मिसाल बन चुका है. वर्ष 2023 में ही भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन परियोजना का उद्घाटन किया गया था. इसके अतिरिक्त भारत, नेपाल और बांग्लादेश पहली बार एक त्रिपक्षीय बिजली व्यापार समझौते की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं. इस समझौते के अंतर्गत भारत की ट्रांसमिशन लाइनों का उपयोग करते हुए नेपाल द्वारा बांग्लादेश को 500 मेगावाट (MW) तक पनबिजली की आपूर्ति की जानी है.
बताया जा रहा है कि मौज़ूदा वक़्त में बांग्लादेश बढ़ती मुद्रास्फ़ीति, ऊर्जा की कमी, भुगतान संतुलन में घाटा और राजस्व में कमी जैसी गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इतना ही नहीं, देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले रेडीमेड गार्मेंट उद्योग में उपयोग होने वाले कच्चे कपास और नॉन-रिटेल शुद्ध कॉटन यार्न के लिए बांग्लादेश भारत पर निर्भर है और इन चीज़ों का ज़्यादातर आयात भारत से ही किया जाता है. बांग्लादेश से निर्यात होने वाले सामान में रेडीमेड गार्मेंट्स का योगदान सबसे अधिक है और इसके अलावा दूसरे सामानों के निर्यात को बढ़ावा देना बांग्लादेश के लिए एक बड़ी आर्थिक चुनौती है. इसके साथ ही बुनियादी ढांचा क्षेत्र को रफ़्तार देना भी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है. इसके अतिरिक, बांग्लादेश में जिस प्रकार से आयात को कम करने के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं और आर्थिक गतिविधियों में बाधाएं आ रही हैं, उनसे जो संकेत मिल रहे हैं, उनके मुताबिक़ वित्तीय वर्ष 2024 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि में कमी आने की संभावना है. बांग्लादेश को वर्ष 2031 तक उच्च-मध्यम-आय वाले राष्ट्र का दर्ज़ा हासिल करने की अपनी कोशिशों को अमली जामा पहनाने के लिए कई रणनीतिक पहलों को प्रमुखता देनी होगी और इसके लिए भारत की सहायता लेनी होगी. बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी को इन हालातों के बीच अपनी राजनीतिक को चमकाने के लिए मौक़ा दिखाई देता है. ज़ाहिर है कि भारत – बांग्लादेश के आर्थिक रिश्तों और द्विपक्षीय व्यापार पर राजनीतिक मकसद से कीचड़ उछालकर, जहां बांग्लादेश की प्रगति में रुकावट पैदा की जा सकता ही, वहीं सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार की साख पर भी सवाल उठाया जा सकता है.
(आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं। श्रुति सक्सेना ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं। आलेख ओआरएफ से साभार)