नए साझीदारों की तलाश
बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी इंडिया आउट अभियान का इस्तेमाल देश के बाहर अपने सहयोगी बनाने के लिए भी कर रही है, यानी इसके ज़रिए ऐसे सहयोगियों को तलाश रही है, जो अगले चुनावों में उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए चुनावों के दौरान भारत और चीन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि चुनाव बांग्लादेश का आंतरिक मामला है. इससे ऐसा महसूस होता है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना की इन दोनों देशों के साथ संतुलन क़ायम रखने की रणनीति और “सभी से दोस्ती, किसी से दुश्मनी नहीं” की नीति ने बीजिंग एवं दिल्ली दोनों को ही उनके पाले में रखा है. हालांकि, चुनाव के दौरान बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी द्वारा अमेरिका पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रधानमंत्री हसीना पर दबाव बनाने के लिए लामबंदी की जा रही थी. ऐसा करने से बीएनपी और उसके इस्लामी कट्टरपंथी सहयोगियों को फायदा हो सकता था. शेख हसीना की जीत के बाद, उन्हें बधाई देने वालों में भारत और चीन पहले देश थे. हालांकि, बांग्लादेश में चुनाव प्रक्रिया की आलोचना करने के बावज़ूद अमेरिका ने शेख हसीना को पीएम बनने पर देर से ही सही, लेकिन बधाई ज़रूर दी.
बांग्लादेश में चुनाव के दौरान हुए इन तमाम घटनाक्रमों के बाद वहां इंडिया आउट अभियान की शुरुआत से कुछ अहम संकेत मिलते हैं. पहला, विपक्षी दल बीएनपी द्वारा सत्तारूढ़ अवामी लीग को भारत के प्रमुख रणनीतिक सहयोगी के तौर पर देखा जाता है. ज़ाहिर है कि घरेलू राजनीति में अपनी मज़बूरियों और प्राथमिकताओं के चलते बीएनपी भारतीय हितों के संरक्षण और भारत की चिंताओं को दूर करने में नाक़ाम रही है. यानी बीएनपी यह साबित नहीं कर पाई है कि वो बांग्लादेश में भारतीय हितों पर आंच नहीं आने देगी. चुनाव में शेख हसीना की जीत और उसके बाद बीएनपी द्वारा जिस प्रकार से इंडिया आउट अभियान की शुरूआत की गई, वो कहीं न कहीं भारत और बीएनपी के बीच की इस दूरी को और बढ़ाने का काम करेगी. दूसरा, ऐसा लगता है कि बीएनपी को इस बात का पता चल चुका है कि बांग्लादेश में भारतीय हितों और चिंताओं के विरुद्ध क़दम उठाने को लेकर अमेरिका कतई सहज नहीं है और वो किसी भी सूरत में ऐसा नहीं चाहता है. इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि बीएनपी चाहे लाख कोशिश कर ले, लेकिन उसे अगले पांच वर्षों के दौरान अमेरिका के ज़रिए शेख हसीना सरकार को घेरने में बहुत क़ामयाबी नहीं मिलने वाली है.
तीसरा, चीन के शेख हसीना सरकार के साथ बहुत प्रगाढ़ संबंध क़ायम हैं, लेकिन बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के नेताओं को लगता है कि जिस प्रकार मालदीव में इंडिया आउट अभियान सफल रहा है, उसी प्रकार से बांग्लादेश में यह अभियान चलाकर वो चीन को अपने पाले में ला सकते हैं. यही वजह है कि बीएनपी की विदेशी संबंधों की कमेटी (FRC) और स्टैंडिंग कमेटी ने अपने रुख में बदलाव लाते हुए चीन के साथ संबंधों को प्रमुखता देने के संकेत दिए हैं. बीएनपी के आला नेताओं ने चीन के साथ फिर से संपर्क स्थापित करने का निर्णय लिया है और पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी है. बीएनपी द्वारा जिस प्रकार से एक ओर भारत के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है और दूसरी ओर उस चीन के साथ गलबहियां करने की कोशिश की जा रही है, जिसके भारत के साथ संबंध बहुत अच्छे नहीं हैं, यह सब कहीं न कहीं उसकी चीन को प्रसन्न करने की क़वायद में सहायक सिद्ध हो सकता है और साथ ही चीनी नेताओं को बीएनपी के साथ संबंध बढ़ाने के लिए रज़ामंद करने में मदद कर सकता है. चौथी बात यह है कि बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी इंडिया आउट अभियान के माध्यम से देश की कट्टरपंथी ताक़तों का समर्थन हासिल कर रही है और ऐसा करके वो पाकिस्तान के लिए बांग्लादेश में मुनासिब ज़मीन तैयार कर रही है. भविष्य में इसका इस्तेमाल भारत के सुरक्षा हितों को हानि पहुंचाने के लिए किया जा सकता है.
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि बांग्लादेश में हाल ही में हुए आम चुनाव में अवामी लीग की जीत के बाद वहां जिस तरह से विपक्ष द्वारा “इंडिया आउट” अभियान शुरू किया गया है, उसने यह बताने का काम किया है कि राजनीति, अर्थनीति और भू-राजनीति किस प्रकार से आपस में जुड़े हुए हैं. ऐसा लगता है कि बांग्लादेश में इंडिया आउट अभियान का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है और जिस प्रकार से मालदीव में इसी तरह के अभियान के ज़रिए विपक्ष ने भारत विरोधी जन भावनाओं को भड़काया था और लाभ उठाया था, बांग्लादेश के विपक्षी दल भी उसी प्रकार का फायदा उठाना चाहते हैं. बांग्लादेश के विपक्ष को “इंडिया आउट” अभियान के माध्यम से भले ही वहां सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार के समक्ष चुनौती खड़ी करने का और भारत – बांग्लादेश के बीच मज़बूत साझेदारी को कमज़ोर करने का अवसर मिल रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि इससे बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के डंवाडोल होने का ख़तरा है.
(आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं। श्रुति सक्सेना ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं। आलेख ओआरएफ से साभार)