#pradepsinghप्रदीप सिंह।

राहुल गांधी की सांसदी जब से गई है तब से विपक्षी खेमे में बड़ा उत्साह है। अचानक जैसे मुर्दे में जान आ गई हो इस तरह का दृश्य नजर आ रहा है। यह सक्रियता बल्कि कहें कि अतिसक्रियता क्यों आ गई है, क्या राहुल गांधी की सांसदी जाने से, उनके खिलाफ यह फैसला आने से या फिर राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर संभावित प्रतिबंध, अगर यह फैसला टिका रहता है तो वह 8 साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकते यानी 8 साल तक चुनावी मैदान से बाहर हो जाएंगे, इसका दुख है या इसकी सहानुभूति में ऐसा हो रहा है, बिल्कुल नहीं। अगर आपको यह गलतफहमी है तो इस गलतफहमी को दूर कर लीजिए। मैंने जानने की कोशिश की है कि इसके बाद विपक्षी नेताओं के मन में क्या चल रहा है।

जैसे ही सूरत की अदालत से राहुल गांधी को दो साल की सजा हुई उसके अगले दिन ही उनकी सदस्यता लोकसभा ने समाप्त कर दी। अब आगे क्या, क्यों अचानक वे राजनीतिक दल जो गैर-भाजपा गैर-कांग्रेसी मोर्चा बनाना चाहते थे, जो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समापन के कार्यक्रम में निमंत्रण के बावजूद जाने को तैयार नहीं हुए, जो ईडी दफ्तर के सामने प्रदर्शन के लिए उनका साथ देने को तैयार नहीं हुए, जो अलग-अलग मुद्दों पर उनका साथ देने को तैयार नहीं होते, नेशनल हेराल्ड केस में ईडी जब उनसे पूछताछ करती है तब उनके साथ चलने को तैयार नहीं होते, आखिर वे सब लोग अचानक क्यों राहुल गांधी के पक्ष में आ गए हैं।  हाल ही में ममता बनर्जी कह रही थीं कि बीजेपी की सबसे बड़ी टीआरपी राहुल गांधी हैं, वह भी साथ आ गई हैं। अरविंद केजरीवाल, जिनका जन्म ही गैर-कांग्रेसवाद पर हुआ है, जिनकी पार्टी का जन्म ही कांग्रेस को हटाकर हुआ है, दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस राजनीतिक रूप से जीवित रहती तो अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक रूप से कहीं नामोनिशान नहीं होता। कौन क्या सोच रहा है इसके बारे में मैंने एक अंदाजा लगाने की कोशिश की है जिसे आपसे साझा करना चाहता हूं।

केजरीवाल ने लगाए ठहाके

सबसे पहले बात करते हैं अरविंद केजरीवाल की। 2017 में जब पंजाब विधानसभा का चुनाव आम आदमी पार्टी हारी थी तो पार्टी के अंदरूनी सूत्रों से जो खबर आई थी कि केजरीवाल फर्श पर लोट-लोट कर रोए थे। उनको इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनकी पार्टी पंजाब का चुनाव हार चुकी है। इस बार दृश्य बदला हुआ था। पार्टी की कोर कमेटी के लोग थे मौजूद थे। हालांकि, कई लोग पार्टी से अलग हो चुके हैं और कुछ लोग जेल में हैं। जो बचे हैं वह सब मौजूद थे। इस बार अरविंद केजरीवाल लोट-लोट कर ठहाके लगा रहे थे और कह रहे थे, “देखो जी, मैं तो पहले से कहता था यही होगा, आप लोग मानते नहीं थे। मैं तो कहता था हनुमान जी हमारे साथ हैं सारी बाधाएं दूर कर देंगे। हनुमान जी ने एक बड़ी बाधा दूर कर दी। अब विपक्ष में कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी हो लेकिन उसके पास सबसे बड़ा नेता नहीं है। कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी मैं हूं यानी आम आदमी पार्टी है और देश का सबसे बड़ा नेता मैं हूं। 2014 में मैं मोदी के खिलाफ लड़ने बनारस चला गया था। और कोई गया था क्या, मुझसे बड़ा मोदी विरोधी कौन है।” अरविंद केजरीवाल की खुशी का इस समय कोई पारावार नहीं है। उनको लग रहा है कि जो चट्टान वह हिला नहीं पा रहे थे यानी विपक्षी एकता के रास्ते में जो सबसे बड़ी बाधा नेतृत्व की थी, जिसको वह हटा नहीं पा रहे थे वह सूरत की अदालत ने हटा दिया। अब कांग्रेस पार्टी भले ही सबसे बड़ी पार्टी हो लेकिन राहुल गांधी उसका नेतृत्व करने के लिए उपलब्ध नहीं हैं। अरविंद केजरीवाल को लगता है कि उनकी दावेदारी सबसे मजबूत हो गई है।

उन्होंने कहा, “देखो जी, आप मानते नहीं हो, मैं सबसे समझदार हूं। तीन-तीन बार अदालत में माफी मांग ली। अरुण जेटली से माफी मांगी, नितिन गडकरी से माफी मांगी और मजीठिया से माफी मांग ली। माफी मांग कर मैंने अपना राजनीतिक जीवन बचा लिया। अगर राहुल गांधी की तरह नासमझ होता तो मेरी भी 8 साल के लिए सदस्यता जाती। मेरी तो कितनी बार जाती पता नहीं, इसलिए इस बात को समझो कि मेरे जैसा नेता आपको नहीं मिलेगा। यही बात मैं पूरे विपक्ष को बताने वाला हूं। इसलिए पूरी ताकत लगाओ और कांग्रेस के समर्थन में खड़े हो जाओ। कांग्रेस को लगना चाहिए कि संकट के समय अगर किसी ने सबसे पहले और सबसे आगे बढ़कर साथ दिया है तो वह अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी है।”

नीतीश के मन में फूटे लड्डू

अब नंबर आता है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का। नीतीश कुमार ने मुस्कुराते हुए बगल में खड़े अपने सेवक से खैनी बना कर देने को कहा। खैनी मुंह में दबाते हुए उन्होंने कहा, “हम तो कहते ही थे कि इस बबुआ से कुछो नहीं होगा। देखिए, ऐसा है कि हमको तो कुछ चाहिए नहीं, हमको तो प्रधानमंत्री बनना नहीं है। हम जो कर रहे हैं वह तो आप सब लोगों के लिए ही कर रहे हैं। आप ही लोगों को चलाना है। देखिए, हम डेमोक्रेसी में बहुत विश्वास करते हैं। आप लोग दबाव मत डालिएगा, यह मत कहिएगा कि प्रधानमंत्री बन जाओ। हमारे लिए बड़ा मुश्किल होता है। सिर्फ दो जने के कहने पर हमने तीन-तीन बार पाला बदल लिया। प्रधानमंत्री बनने के लिए इतने लोग दबाव डालेंगे तो हम क्या करेंगे।” बगल में बैठे तेजस्वी यादव ने मन ही मन में कहा, “चच्चा का कोई जवाब नहीं है। हां भी कर रहे हैं और ना भी कर रहे हैं। इनकी हां को हां समझा जाए या ना को ना समझा जाए, समझना मुश्किल है।” नीतीश कुमार ने मन ही मन में उसका जवाब दिया, बोले- “बच्चा अभी तुम बहुत बच्चे हो। हम तो लालू यादव और मोदी दोनों को तीन-तीन बार धोखा दे चुके हैं। उन लोगों को समझ में नहीं आया तो तुम्हें कहां से समझ में आएगा। हमारी चाल के चक्कर में ना पड़ो। तुम यह देखो कि तुम्हें आगे क्या करना है। जो मैं कहूंगा वहीं कर पाओगे उससे ज्यादा कर नहीं पाओगे।” फिर नीतीश कुमार लोगों की ओर मुखातिब हुए, “देखिए, हम फिर कह देते हैं, हमारा तनिको मन नहीं है लेकिन क्या करें राजनीति में लोग छोड़ता नहीं है, बोलता रहता है, बोलता रहता है बन जाइए, बन जाइए। अरे भाई, चलिए अच्छा बन जाएंगे, इतना काहे परेशान हो रहे हैं।”

हमसे अच्छा कौन है- ममता दी

इन सब लोगों को लग रहा है कि उनके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा राहुल गांधी थे। राहुल गांधी गए और उनके रास्ते की बाधा दूर हो गई क्योंकि जब तक राहुल गांधी थे तब तक गांधी परिवार किसी और को नेता मानने को तैयार नहीं था। बाहर के नेता का तो सवाल ही नहीं उठता था। अब वह रास्ता खुल गया है। राहुल गांधी ने इतनी बड़ी कृपा की है। उन्होंने अगर माफी मांग ली होती तो इन सबके चेहरे गिरे हुए होते। उन्हें अगर दो साल से कम की सजा हुई होती तो जो लोग समर्थन दे रहे हैं उनमें से कोई नहीं देता। अब बात प्रधानमंत्री पद की तीसरी उम्मीदवार ममता बनर्जी की। ममता बनर्जी ने कहा, “देखो, हम तो पहले ही बोला था कि राहुल गांधी अयोग्य है। अदालत बोला तो मानेगा तुम लोग, हमारा बात तुम लोग मानता नहीं है। हम बोलता रहता है तुम लोग सुनता नहीं है। हमको सोनिया जी से कोई प्रॉब्लम नहीं है। हम सोनिया जी का बहुत इज्जत करता है। सोनिया जी से हमको कोई परेशानी नहीं है। हमको राहुल से परेशानी था। अब राहुल चला गया तो सोनिया जी से तो कोई परेशानी था नहीं तो कांग्रेस से क्यों परेशानी होगा। हम तो पुराना कांग्रेसी है। कांग्रेस में रहे कांग्रेस से ही निकले हैं। अब हमारा बात समझो राहुल गांधी को छोड़ो। देखो हम तीसरी बार चुनाव जीत कर आया है। भाजपा को हमने ही हराया है। और कौन हराया बताओ, हम हराया। भाजपा से हम ही लड़ रहे हैं। हम तो मोदी और अमित शाह दोनों से लड़ रहा है। दोनों को बंगाल में हरा दिया। राहुल गांधी रास्ते से हट गया तो हमारा और कांग्रेस का दोस्ती फिर से चालू हो गया। हम जो कुछ बोलता था सब राहुल गांधी के लिए बोलता था। अब राहुल गांधी नहीं है तो विपक्ष का एकता बहुत जरूरी हो गया है और विपक्ष का नेता भी चुना जाना बहुत जरूरी हो गया है। हमारी ओर देखो, हम तो कांग्रेसी भी है, महिला भी है और बीजेपी से भी लड़ता है। सब मुसलमान, यहां तक कि बांग्लादेश का मुसलमान भी हमारे साथ है तो हमसे अच्छा उम्मीदवार कौन मिलेगा।”

चतुर चाणक्य शरद पवार

महाराष्ट्र की राजनीति के तथाकथित पितामह यानी शरद पवार बड़ी धीर-गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे। उन्होंने कहा, “देखो, राजनीति बच्चों का खेल नहीं है। उद्धव को देखो संभाल नहीं पाया, सरकार चला नहीं पाया। इस तरह से कोई सरकार चलाता है, इस्तीफा देकर भाग गया। राहुल गांधी तो सरकार में ही नहीं आया। वह तो कोई पद ही नहीं लेता है। चलो अदालत ने अच्छा किया हम लोगों का समस्या हल कर दिया। जिस समस्या को हल करने के लिए हम लोग इतनी बार बैठक कर चुके थे उसको अदालत के एक फैसले ने कर दिया।” उनके ड्राइंग रूम में जहां यह बैठक चल रही थी उसके एक कोने में सुप्रिया सुले केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने की रिहर्सल कर रही थी। शरद पवार बड़े इत्मीनान में हैं कि उनकी आखिरी पारी शानदार होने वाली है। कांग्रेस के बाद विकल्प क्या है। सबसे पुराना कांग्रेसी मैं, सबसे चतुर राजनेता मैं, मेरे अलावा चाणक्य कौन है। 2019 में महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना जीत गई थी, जीता हुआ गठबंधन तुड़वाकर सरकार बनवा ली। यह तो मान कर चलो कि किसी को बहुमत नहीं मिलने वाला है। सरकार तो मैं ही बना सकता हूं। सरकार बनाने के लिए पैसा खर्च करना पड़ेगा। गांधी परिवार तो पैसा खर्च करेगा नहीं, पैसा तो मैं ही खर्च कर सकता हूं। मेरी आखिरी ख्वाहिश प्रधानमंत्री बनने की है। अगर प्रधानमंत्री न भी बन पाया तो प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तो बन ही जाऊंगा।

क्या से क्या हो गया- केसीआर

सबसे बुरा हाल केसीआर यानी के चंद्रशेखर राव का है। वह सिर पर हाथ रखकर बैठे गाना गा रहे हैं- “क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार में।” सामने प्रधानमंत्री पद की कुर्सी रखी हुई है जिसके लिए क्या-क्या नहीं किया। कांग्रेस को धोखा दिया, कहा राज्य बनवा दो तो कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर दूंगा। कांग्रेस ने राज्य बना दिया तो उसको बेवकूफ बना कर निकल आए। अब सत्ता में हैं। दूसरी बार जीत चुके हैं, तीसरी बार जीतने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री बनना था। गैर-कांग्रेसी मोर्चा तो मैं ही बना रहा था। इसके लिए प्रधानमंत्री को कितना गाली दिया। राहुल गांधी तो एक गाली देकर बाहर हो गया। हम तो इतनी गाली दे रहे हैं इसके बावजूद हमको कोई नेता मानने को तैयार नहीं है। ये जो विपक्ष के नेता है इन सबके मन में खुशी के लड्डू फूट रहे हैं। इनमें से किसी को राहुल गांधी से कोई सहानुभूति नहीं है। आपको एक बात और बता दूं। कांग्रेस पार्टी के जो लोग काला बिल्ला लगाकर, काले कपड़े पहन कर घूम रहे हैं इन सब को लग रहा है कि अच्छा हुआ निजात मिली। अगर उनके मन की बात पूछी जाए और उनको भरोसा दिलाया जाए कि यह बात सार्वजनिक नहीं होगी तो ये लोग सूरत के उस मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट का सार्वजनिक अभिनंदन करेंगे कि हम इतने साल से लगे थे इस परिवार से छुटकारा पाने में, भैया तुम कहां थे। पहले आ जाते तो पार्टी बच जाती। पहले आ जाते तो शायद 2014 में भी सरकार बन जाती। जितने बूढ़े कांग्रेसी हैं सब शेरवानी का ऑर्डर दे चुके हैं कि अब नंबर आने वाला है। जितने युवा हैं उनमें अचानक से उम्मीद जगी है कि अब हम भी कतार में हैं।

कुल मिलाकर परिस्थिति यह है कि राहुल गांधी की सांसदी जाने का दुख किसी को नहीं है। मैं तो कह रहा हूं कि राहुल गांधी को भी नहीं है। उनको भी लग रहा है कि सारे प्रपंच से छुटकारा मिला। ये लोग रोज मुझसे भाषण रटवाते थे, उसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में टोंटिंग करते थे कि ये बोलो ये मत बोलो, ये बोलोगे तो मजाक उड़ेगा, ये बोलोगे तो गंभीर समझे जाओगे। अब मैं इन सब से मुक्त हो गया हूं। कुछ भी बोलूं मेरा तो कोई नुकसान नहीं होने वाला है। पहले भी नहीं हो रहा था। कुल मिलाकर भारतीय राजनीति इस समय एक विचित्र स्थिति में है जहां पूरा विपक्ष ऐसे चौराहे पर खड़ा है जिसके चारों रास्ते बंद गली में खुलते हैं। आगे कोई रास्ता ही नहीं है। विपक्ष की इस हालत के लिए सिर्फ और सिर्फ विपक्षी दल जिम्मेदार हैं। अगर सिद्धांत और विचारधारा पर आपका यकीन नहीं होगा, भ्रष्टाचार और वंशवाद की राजनीति करने से आपको परहेज नहीं होगा, अपने विरोधी का अपमान करने उसको गाली देने में आपको कोई संकोच नहीं होगा तो यही सब झेलना पड़ेगा जो आज झेल रहे हैं। यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है क्योंकि आपका व्यवहार बदलने वाला नहीं है, क्योंकि आपका स्वभाव बदलने वाला नहीं है, क्योंकि आपका आचार-विचार बदलने वाला नहीं है, तो तैयार रहिए आगे और समस्याएं झेलने के लिए।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)