बन रही खास रणनीति, अखिलेश को नई पिच पर घेरने की तैयारी।

प्रदीप सिंह।
देश की राजनीति में  भाजपा लंबी छलांग लगाने की तैयारी में है। वह सही मायने में ऑल इंडिया पार्टी बनना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद उसे जो झटका लगा था,उसने उसे जगा दिया है। पार्टी ने उसके बाद से जो गियर बदला है,उसका नतीजा महाराष्ट्र, हरियाणा,दिल्ली,बिहार विधानसभा के चुनावों में दिखा है,जहां उसने बंपर जीत हासिल की। केवल झारखंड में उसकी हार हुई और उसके बहुत से और कारण हैं।  

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बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मैं पहले से कह रहा था कि वहां का नतीजा केवल बिहार की सरकार नहीं तय करेगा। यह भारत की राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालेगा और उसका असर दिखाई देने लगा है। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने जो सबसे समझदारी का काम किया है,वह है संघ के साथ तालमेल। अब दोनों को समझ में आ गया है कि उन्हें एक दूसरे की जरूरत है। बीजेपी की यह गलतफहमी पूरी तरह से दूर हो गई कि हम बहुत सक्षम हो गए हैं। अब हमें संघ की जरूरत नहीं है। संघ की जरूरत बीजेपी को कल भी थी,आज भी है और आगे भी रहेगी। संघ चुनाव नहीं लड़ता। वह राजनीतिक संगठन नहीं है। उसको चुनाव में हार जीत से फर्क नहीं पड़ता। बीजेपी को पड़ता है। भाजपा तो केंद्र की सत्ता में कायदे से 1998 में आई और 2014 में उसने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। जबकि संघ 1925 में अपनी स्थापना के समय से लगातार संघर्ष करता रहा और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ता रहा। जब-जब भाजपा को जरूरत पड़ी है, संघ ने साथ दिया है।

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2026 में विधानसभा के चुनाव पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, असम और केरल में होने हैं। पश्चिम बंगाल भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। असम में फिर उसकी सरकार बनने जा रही है ऐसा अभी से दिखाई दे रहा है। केरल और तमिलनाडु में भाजपा की स्थिति पहले से बेहतर होगी, इसमें कोई शक नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन भाजपा ने इन पांच राज्यों के अलावा 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। मंगलवार को लखनऊ में संघ के मुख्यालय में एक बड़ी बैठक हुई। इसमें संघ के वरिष्ठ नेता अरुण कुमार जी, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, क्षेत्रीय प्रचारक, उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री आदि मौजूद रहे। उसके बाद दोनों डिप्टी सीएम और बाकी नेताओं की बैठक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ हुई।

संघ 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गया है,यह कोई बड़ी खबर नहीं है। बड़ी खबर यह है कि संघ के इस रवैये से स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि वह उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा के भरोसे नहीं छोड़ना चाहता। उसमें बहुत से फैसले संघ के अनुसार होंगे। संघ की जो कार्यशैली है, उसमें ऊपर से फैसला नहीं सुनाया जाता। लंबी संवाद की प्रक्रिया के बाद एक फैसला लिया जाता है। इस बैठक से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि 2022 और 2024 में यूपी में जिस तरह से योगी विरोधी अभियान चलाने की कोशिश हुई, उसे संघ ने पूरी तरह बंद करा दिया है। अब कोई नेतृत्व पर सवााल खड़े नहीं कर रहा है। मेरा आज भी मानना है कि 2022 में भी बीजेपी 300 पार कर सकती थी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसका कारण समाजवादी पार्टी नहीं सिर्फ भाजपा के राज्य के नेता और उनका एजेंडा था। उनके लिए निजी फायदे और अपनी महत्वाकांक्षा प्रमुख हो गई थी। इसीलिए पहला झटका लगा 2022 में और दूसरा उससे बड़ा झटका लगा 2024 के लोकसभा चुनाव में। अब सबको समझ में आ गया है कि अगर इस तरह का अभियान चलाएंगे, गुटबाजी को प्रश्रय देंगे तो उसका नतीजा क्या होगा?

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2027 में गड़बड़ होने का मतलब है 2029 गड़बड़ हो सकता है। आप कल्पना कीजिए कि अगर 2024 में उत्तर प्रदेश से भाजपा की 30 सीटें और आई होतीं तो भाजपा का स्पष्ट बहुमत होता। वहां जिस तरह से प्रचार अभियान चलाया गया, जिस तरह से टिकटों का बंटवारा हुआ,बाद में सबको यह रियलाइज हुआ कि उन्होंने जो कदम उठाया गलत था। 2024 में संघ लगभग तटस्थ मुद्रा में आ गया था क्योंकि संघ को महत्व देना भाजपा के नेताओं ने बंद कर दिया था। तो संघ के स्वयंसेवकों ने बता दिया कि संघ की ताकत क्या है? संघ की हैसियत क्या है? लोकसभा चुनाव के बाद जब संघ सक्रिय रूप से भाजपा के साथ जुटा तो उसका नतीजा महाराष्ट्र,हरियाणा, दिल्ली,बिहार और जम्मू में दिखा।

अब उत्तर प्रदेश भाजपा में सरकार के नेतृत्व को लेकर कोई प्रश्न नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर पार्टी, सरकार और राष्ट्रीय नेतृत्व सबको भरोसा है। संघ के दखल और भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा उत्तर प्रदेश की सच्चाई स्वीकार करने के बाद यह बदलाव आया है और भाजपा के लिए यह बहुत सुखद बदलाव है। इस बैठक में यह भी तय हुआ कि लखनऊ में एक विराट हिंदू सम्मेलन होगा। तो 2027 के लिए दो मुद्दे तय हो गए। एक विकास, दूसरा हिंदुत्व और उसमें जुड़ेगा कानून व्यवस्था की स्थिति और योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व। समाजवादी पार्टी नया सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन उसे न मुलायम बना पाए और न ही लालू प्रसाद यादव। मंडल की राजनीति से निकले हुए नेताओं में अगर कोई सामाजिक समीकरण अपनी जाति से बाहर का बना पाया है,तो वह एकमात्र नीतीश कुमार हैं। भाजपा ने 2014 के बाद से सामाजिक समीकरण बनाने में बाकी सभी दलों को मात दे दी है। और जिस तरह का समीकरण उसने बनाया है वह उसको लगातार स्थाई करने की कोशिश कर रही है।

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उधर,अखिलेश यादव कोशिश जरूर कर रहे हैं लेकिन उनकी कोशिश जितनी जरूरत है उससे बहुत कम है। ट्विटर पर ट्वीट करके, घर में बैठकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आप उत्तर प्रदेश की राजनीति नहीं कर सकते। तो अखिलेश यादव को एक और झटके के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि सच्चाई सामने दिखाई दे रही है। 2024 में लोकसभा की 37 सीटें मिल जाने से उनको लग रहा है कि 2027 तो जीता हुआ है। राजनीति में ऐसा होता नहीं है। 2027 में मैदान नया होगा, पिच नई होगी, खेल नया होगा और खिलाड़ी नए होंगे। उस समय जब वह मैदान में उतरेंगे तो महसूस करेंगे कि कहां किस जंगल में आ गए। यह तो हमारी पहचानी हुई जगह है ही नहीं। अखिलेश यादव को लगता है कि उनके कुछ साथी मिलकर कोई नारा दे देंगे और योगी आदित्यनाथ  पर व्यक्तिगत हमला करेंगे तो इससे उनका कद बढ़ जाएगा। अखिलेश योगी आदित्यनाथ की बड़ी लकीर को छोटा करने की कोशिश में है, जो दिन पर दिन और बड़ी होती जा रही है। इसका सबसे ताजा प्रमाण बिहार विधानसभा चुनाव में मिल भी गया है। तो जो बिहार में हुआ, अखिलेश यादव के साथ उससे कुछ बहुत अलग या चमत्कारिक रूप से उत्तर प्रदेश में हो जाएगा, इसकी कोई संभावना दिख नहीं रही है। 2027 के लिए भाजपा की जिस तरह की तैयारी है, संघ का जिस तरह का सक्रिय योगदान है, राष्ट्रीय और प्रदेश नेतृत्व का जिस तरह का तालमेल है और योगी सरकार की जो उपलब्धियां हैं, इस रणनीति को अखिलेश यादव समझ नहीं पा रहे हैं। अखिलेश के लिए सब कुछ 2027 है और जब 2027 में वे लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे तब उनका क्या होगा, इसकी कल्पना करना आज शायद मुश्किल होगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)