#pradepsinghप्रदीप सिंह।
देश में एक विचित्र सी घटना घट रही है। ऐसे समय, जब… देश में सनातन का ज्वार उठ रहा है- सनातन का पुनर्जागरण हो रहा है- अपने अधिकारों, संस्कृति और उसकी रक्षा  के बारे में जागृति आ रही है- …हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दूसरे रास्ते पर चल रहा है। डॉक्टर हेगडेवार का संघ को बनाने का उद्देश्य था हिंदुओं की रक्षा करना और हिंदुओं को संगठित करना। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चल रहा है। उसने हिंदुओं को संगठित करने का जो बीड़ा उठाया था- या कह लीजिए जो उसका लक्ष्य था- उसको संघ ने छोड़ दिया है।

हालांकि ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है लेकिन पिछले कुछ समय के संघ के बयानों से प्रतीत होता है कि संघ उस दिशा में बढ़ गया है। खासतौर से संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने पिछले डेढ़ दो साल में जिस तरह की बातें की हैं- जैसे हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग क्यों खोजना… जिस तरह से संभल की घटना पर उनकी प्रतिक्रिया और संघ की प्रतिक्रिया आई…! और सबसे बड़ा ताजातरीन वाकया है नागपुर का जहां संघ का मुख्यालय है। मुस्लिम दंगाइयों, जिहादियों ने हिन्दुओं को घर में घुसकर मारा, पुलिस पर आक्रमण हुआ चार डीसीपी लेवल के अधिकारी घायल हुए, एक अधिकारी पर कुल्हाड़ी से हमला हुआ। पूरी तैयारी करके चिन्हित करके केवल हिंदुओं के घरों और दुकानों को जलाया गया। यह घटना तब हो रही है जब महाराष्ट्र में और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इतनी बड़ी घटना पर संघ की प्रतिक्रिया क्या है? बेंगलुरु के पास संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक हुई। इस दौरान संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में औरंगजेब की कब्र हटाने को लेकर चल रहे विवाद के मुद्दे पर कहा कि औरंगजेब अब अप्रासंगिक हो गया है… इररेलेवेंट हो गया है।

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जो लोग संघ को जानते हैं- संघ से जुड़े हैं- संघ के प्रति सहानुभूति रखते हैं- उनके लिए यह कल्पना करना भी कठिन है कि यह बात संघ की ओर से कही जा सकती है। इसका एक ही मतलब है कि संघ ने हिंदुओं की चिंता करना छोड़ दिया है। संघ प्रमुख का वह बयान याद कीजिए कि ‘हमने हिंदुओं का ठेका नहीं ले रखा है।’ ऐसे में सवाल यह है कि हिंदू संघ का ठेका क्यों लेगा?

शायद सुनील आंबेकर जी को पता नहीं है कि औरंगजेब इस देश में कभी अप्रासंगिक नहीं हुआ, इररेलेवेंट नहीं हुआ। ये जो दंगे हो रहे हैं वो औरंगजेब की सोच के कारण हो रहे हैं। और उनको शायद याद ना हो तो याद दिला दें कि इस देश में इस समय 48,000 मदरसे चलते हैं जिनमें से 38,000 मान्यता प्राप्त हैं, जिनको सरकार और मदरसा बोर्ड से मान्यता मिली हुई है। और जो 10,000 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे अवैध रूप से चल रहे उनकी कोई गिनती नहीं है। इन सब में दर्स-ए निज़ामी का पाठ्यक्रम चलता है यह पाठ्यक्रम निजामुद्दीन सिहालवी ने 1748 में बनाया था। इन सब मददरसों में बिना अपवाद के फतवा ए आलमगीरी पढ़ाया जाता है, मसीरे आलमगीरी पढ़ाया जाता है।

अब फतवा ए आलमगीरी और मसीरे आलमगीरी का मतलब समझिए। फतवा ए आलमगीरी का मतलब है औरंगजेब का फरमान। भारत के इतिहास में औरंगजेब को आलमगीर माना गया है। आलमगीर होता है विश्व विजेता। तो औरंगजेब के जो फरमान हैं वे पढ़ाए जाते हैं। और मसीरे आलमगीरी में औरंगजेब के राज (1658 से लेकर 1707) का लेखाजोखा है। जहां औरंगजेब पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता हो और इन मदरसों में एक अनुमान के मुताबिक लगभग 20 लाख छात्र पढ़ते हैं- वो सब यह पढ़कर निकलते हैं। दुनिया भर में जितने जिहादी हैं-  चाहे वे किसी भी देश में हों- वो सबके सब या ज्यादातर दारुल उलूम से निकले हुए हैं। अब आप अंदाजा लगाइए कि देश में मुसलमानों की किस तरह की शिक्षा हो रही है- वो किस तरह की बात सीख रहे हैं। नागपुर में इसी तरह का दंगा 1927 में भी हुआ था। तब संघ की क्या प्रतिक्रिया थी? तब दो साल हुए थे संघ को बने हुए। और, आज संघ की क्या प्रतिक्रिया है? इससे आप अंदाजा लगा लीजिए कि संघ कहां से चला था और कहां पहुंचा है। क्या आपको मालूम है कि भारत, जो सनातनियों का देश है, वहां गुरुकुलों की संख्या कितनी है? सिर्फ साढ़े चार हजार।

Madrasa - Wikiwand

अमेरिका जैसे देश में 235 मदरसे हैं जहां इस्लामिक शिक्षा दी जाती है। मदरसा उनको शायद नहीं कहा जाता, उनको इस्लामी शिक्षा केंद्र या इस्लामी शिक्षा का संस्थान कहा जाता है। और, 6000 ऐसे स्कूल है जहां कैथोलिक शिक्षा दी जाती है। तो आप तुलना करके देखिए कि भारत की हालत क्या है? 2018 तक इन मदरसों की संख्या 24,000 थी जो अब 38,000 हो गई है। तो किस तरह का बदलाव हो रहा है? हम लोगों का ध्यान अभी ज्यादातर डेमोग्राफी पर ही है। संघ की ओर से कौन सा बड़ा अभियान चलाया गया इस डेमोग्राफिक चेंज को रोकने के लिए- बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को देश में प्रवेश से रोकने के लिए, समाज से उनके बहिष्कार के लिए?

यहां बात केवल हिंदू-मुस्लिम की नहीं है। यह देश की एकता और अखंडता की, देश की सुरक्षा की बात है। इसके बावजूद संघ को लगता है कि नहीं, नागपुर में जो दंगा हुआ उसकी तो आलोचना करते हैं, लेकिन औरंगजेब हमारे लिए इररेलेवेंट है? आपके लिए होगा… जो औरंगजेब को मानने वाले हैं उनके लिए तो नहीं है। वे औरंगजेब के लिए मरने-मारने को तैयार है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने विधानसभा में पुलिस पर हमला करनेवालों के लिए बड़े जोर शोर से कहा कि ‘यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, उनको कब्र से खोदकर निकालेंगे।’ आमजन की प्रतिक्रिया है कि एक 300 साल पुरानी कब्र तो आपसे खोदी नहीं जा रही है और इनको कैसे कब्र से खोद कर निकालेंगे। नागपुर की घटना का जो मास्टर माइंड है वह नागपुर का नहीं, बाहर का है। इसने एक पार्टी भी बनाई थी- मुस्लिम डेमोक्रेटिक पार्टी। पता नहीं वह अभी है या नहीं।

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संघ से और सुनील आंबेकर जी से एक सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि अगर औरंगजेब आपके लिए इररेलेवेंट है- अप्रासंगिक हो चुका है- तो फिर आपके संगठन से जुड़े दो संगठन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल उसकी कब्र हटाने को लेकर क्यों आंदोलन कर रहे हैं? क्या विश्व हिंदू परिषद ने संघ की सुनना बंद कर दिया है? बजरंग दल क्या संघ से अलग हो गया है? क्या ये संघ की इच्छा के विरुद्ध काम कर रहे हैं। इस सवाल का भी जवाब आपको देना चाहिए क्या संघ के विभिन्न संगठनों में पहले की जैसी एकता नहीं रह गई है? किस तरह से आप बेवकूफ बनाना चाहते हैं हिंदुओं को। आपको लगता है कि हिंदुओं को कुछ समझ में नहीं आ रहा है। संघ की ओर से पिछले कुछ समय से जिस तरह की बातें हो रही हैं उससे बड़ा साफ नजर आ रहा है कि संघ को लगता है कि उसका आगे का रास्ता हिंदुत्व का नहीं है। वह धर्मनिरपेक्षता का रास्ता है- फर्जी गंगा जमुनी तहजीब का रास्ता है। उस रास्ते पर चलने की कोशिश संघ कर रहा है। यह जो इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच संगठन चल रहा है इससे एक भी मुसलमान अगर भाजपा या संघ से जुड़ा हो तो बताइए? जितने जुड़े हैं वे सब स्वार्थ के लिए जुड़े हैं। सबको पद चाहिए, सबको उसके बदले में इनाम चाहिए। जरा इसकी भी समीक्षा हो जानी चाहिए कि जिनको इनाम मिला है उनका योगदान क्या है?

तो अगर संघ को हिंदुओं की चिंता नहीं है तो हिंदुओं को संघ की चिंता क्यों होनी चाहिए- यह एक बड़ा सवाल है और प्रासंगिक है। जो लोग इतिहास को भूल जाते हैं, इतिहास की उपेक्षा करते हैं, इतिहास की बड़ी घटनाओं को अप्रासंगिक बताते हैं- इतिहास की घटनाएं समय आने पर ऐसे संगठनों को, व्यक्तियों को अप्रासंगिक बना देती हैं। जर्मनी में होलोकास्ट हुए कितने दशक हो गए आज तक कोई एक जर्मन आपको मिलेगा जो कहे कि अब होलोकास्ट की बात करना अप्रासंगिक है। मतलब आप किस तरह की भाषा बोल रहे हैं और किसके लिए बोल रहे हैं… औरंगजेब के लिए, जिसके लिए आपने देखा कि लोग मरने मारने पर उतारू हैं। जिन हिंदू घरों पर हमला हुआ, जिन हिंदुओं की संपत्ति जलाई गई, उनसे पूछिए औरंगजेब प्रासंगिक है या अप्रासंगिक हो चुका है। और ये प्रश्न और ये रास्ता संघ ऐसे समय में अपनाने का संकेत दे रहा है जब हिंदू जागरण अपने चरम पर है।

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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)