उत्तरी सिक्किम में ल्होनक झील पर बादल फटने से लाचेन घाटी में तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आने से तबाही का मंजर देखने को मिला। इस इस बाढ़ ने ना सिर्फ 3 लोगों की जान ली, बल्कि सेना के 23 जवान भी लापता हो गए हैं जिनकी तलाश अभी भी जारी है। बाढ़ ने दस्तक उस समय दी, जब मंगलवार देर रात अचानक बाढ़ आने और एक बांध से पानी छोड़े जाने के कारण स्थिति और बिगड़ गई।  जैसे ही आप सिक्किम की राजधानी गंगटोक से ऊपर बढ़ना शुरू करते हैं, आपको तीस्ता नदी नज़र आती है. नदी उफ़ान पर है लेकिन शांत है। लेकिन नदी के किनारे आपको चार अक्टूबर को हुई तबाही के निशान नज़र आते हैं। उस अंधेरी रात बादल फटने और तेज बारिश के चलते तीस्ता नदी ने अपने तटबंध तोड़ दिए. इसके बाद हुई तबाही में कई लोगों की जान गई है और हज़ारों लोग विस्थापित हो गए।अचानक आई बाढ़ से कई लोग प्रभावित हुए। सोशल मीडिया पर अब तस्वीरें और कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने खराब हुए हैं। स्थानीय लोगों द्वारा रिकॉर्ड किए गए वीडियो में सड़क का एक बड़ा हिस्सा नदी के तेज पानी में बहता हुआ दिख रहा है।

तीस्ता नदी के तट पर स्थित सिंगथाम गांव पर इस बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है. एक हफ़्ते के बाद भी इस गांव में मौजूद लोग अपने क्षतिग्रस्त घरों से कीचड़ निकालने में लगे हुए हैं। नदी के उस पार आदर्श नगर कस्बा है जहां कुछ मकान नज़र आते हैं जिनकी ऊपरी मंजिल पर कीचड़ से बनी एक गहरी लाइन नज़र आती है. ये लाइन बताती है कि बाढ़ का पानी इस इलाके में घरों की ऊपरी मंजिल तक पहुंच गया था। इस बाढ़ में पक्के घर सुरक्षित बच गए लेकिन कच्चे घर नहीं बच सके. इसके बाद शुरू हुआ मलबा निकालने का काम अब तक जारी है।

सिक्किम में बाढ़ के बाद के हालात

इस रात आदर्श नगर और सिंगथाम को जोड़ने वाला पुल बह गया. यहां एक छोटा निर्माणाधीन बांध था जिसकी दीवार का एक हिस्सा अभी भी बचा हुआ है. ये दीवार ही उस ओर जाने का मार्ग देता है।  वह और उनकी सास बाढ़ में बहे अपने घर की ज़मीन पर बैठी नज़र आईं. अब उनके पास सिर्फ़ वही कपड़े बचे हैं जो उन्होंने 4 अक्टूबर की रात पहने थे.अंजू नदी के उस पार सिंगथाम गांव में बनाए गए एक अस्थाई शिविर में रह रही हैं. वह हर रोज़ बाढ़ में बहे अपने घर के बचे-खुचे हिस्से को देखने के लिए यहां आती हैं.अंजू कहती हैं, “आपदा आने के बाद पहले दो दिन हम यहां नहीं आ सके. फिर हमें बांध की दीवार के ज़रिए पार जाने का रास्ता मिल गया. हम तीन चार किलोमीटर पैदल चलकर यहां आते हैं. हम उन लोगों के साथ रहते हैं जो बचाव अभियान में लगे हुए हैं. रात होने पर हम वापस अपने शिविर में चले जाते हैं.”वह बाढ़ में घर बहने के बाद खाली हुई ज़मीन की ओर इशारा करते हुए बतातीं हैं कि कहां उनका किचन था और कहां बच्चों का कमरा। वह कहती हैं, “यहां मेरा किचन था. यहां बच्चों का कमरा था. और यहां हमारी अलमारी रखी थी. और यहां पर छोटा आंगन था जहां मैंने एक छोटा सा बगीचा बनाया था।

4 अक्‍टूबर का वो दिन कभी भूल नही पाएंगे

अंजू की आंखों में देखते हुए लगता है कि जैसे उन्हें अपने घर की परछाईं नज़र आ रही हो.चार अक्टूबर को याद करते हुए वह कहती हैं, “ऊपर से किसी ने आवाज़ लगाकर कहा कि बाढ़ आ रही है भागो. उस वक़्त बिजली नहीं थी. हम अंधेरे में अपना रास्ता खोजते हुए आगे बढ़ रहे थे.”  अंजू अपने पति, दो बच्चों, और सास समेत पुल की ओर भागे. गांव के दूसरे लोग भी उनके साथ-साथ पुल की ओर भागे। जब ये लोग पुल पार करके दूसरी ओर पहुंचे तो उन्होंने पलटकर देखा. अंधेरे में उन्हें जो कुछ नज़र आया, वो देखकर वे जहां खड़े थे, वहीं जम कर रह गए. बाढ़ का पानी पूरे गांव में घुस चुका था. अगले पांच मिनट के अंदर ही उनकी आंखों के सामने वह पुल बाढ़ में बह गया, जिस पर चलकर वे इस पार आए थे। अंजू कहती हैं, “जो लोग भाग नहीं सके, उनकी जान चली गई. सिंगथाम गांव के बाज़ार में अभी भी मृत शरीर पाए जा रहे हैं. यहां हर तरफ़ पानी ही पानी था. बाज़ार में हमारी दुकान थी जिससे हमारी रोजी-रोटी चलती थी. लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को हमारी दुकान भी बह गई.”

पानी की 15 फीट लंबी लहर

दान किए गए कपड़ों में अपने नाप के कपड़े तलाशते बच्चे
एक मंदिर में अस्थाई शिविर बनाया गया है जहां कुछ बच्चे दान किए गए कपड़ों में अपने नाप के कपड़े तलाश रहे हैं.इसके पीछे एक बड़ा किचन बनाया गया है जहां शिविर में रहने वाले लोगों के लिए खाना बनाया जा रहा है. और बाढ़ से विस्थापित परिवारों ने अपने रहने के लिए जितनी संभव है, उतनी जगह बचा ली है.श्याम बाबू प्रसाद और उनके परिवार के बचे-खुचे सदस्य एक अलग कमरे हैं. वह यहीं नदी किनारे बने लाल बाज़ार में रहा करते थे. उनकी राशन की दुकान उनके घर से आगे ही थी. श्याम बाबू की शादी चार महीने पहले ही जून में हुई थी. वह यहां अपनी पत्नी और बूढ़ी मां के साथ रहा करते थे।

अपनी माँ कांति देवी के साथ बैठे हुए श्याम बाबू हमसे बात करते हुए भावुक हो उठते हैं.

वह कहते हैं, “हम सब सो रहे थे. अचानक बहुत सारा पानी घर में घुसने लगा. मेरी पत्नी ने फोन उठाकर टॉर्च की रोशनी में पानी का स्तर देखने की कोशिश की. लेकिन पानी का एक रैला हमारी ओर तेजी से आया. और पानी का स्तर अचानक काफ़ी बढ़ गया.यह 15 फीट ऊंची लहर जैसी थी. पानी का बहाव इतना तेज था कि उसने हमें किनारे फेंक दिया. हमें कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ है. हमें ये भी पता नहीं चला कि मेरी पत्नी कहां थी. कुछ भी समझ नहीं आया.”

श्याम ने सीलिंग फैन का सहारा लिया. उस लहर के दौरान वह अपने कमरे में लगे पंखे को पकड़े रहे. अगले दिन आठ घंटे तक चले बचाव अभियान के बाद सुबह दस बजे उन्हें बचाया गया. लेकिन जब वह बाहर आए तो उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी दुर्गावती कहीं नहीं हैं. इस हादसे के एक हफ़्ते बाद भी दुर्गावती का कुछ पता नहीं चल सका है।

बिलखते हुए श्याम कहते हैं, “जब मैं पंखा पकड़ने के लिए चढ़ा तो मेरा पैर जख़्मी हो गया. मैं अपनी पत्नी का नाम पुकारता रहा लेकिन कोई जवाब नहीं आया. हर जगह अंधेरा ही अंधेरा था. मेरी सांस उखड़ रही थी. लेकिन मैं फिर भी उसका नाम लेता रहा. मगर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया.”

‘पानी ने माँ से अलग किया’

श्याम बाबू की बड़ी बहन संतोषी देवी भी पड़ोस में ही रहती हैं. संतोषी देवी की 11वीं में पढ़ने वाली बेटी चांदनी अपने जन्मदिन के मौके पर घर आई हुई थी. इस बाढ़ में संतोषी देवी का घर भी बह गया है. चांदनी ज़िंदा बच गयी हैं. लेकिन इस हादसे के तीन दिन बाद उनकी माँ का मृत शरीर मिला है। चांदनी कहती हैं, “पानी अचानक ही आ गया. मैं और मम्मी हाथ पकड़े हुए थे. लेकिन पानी के बहाव ने हमें अलग कर दिया. मेरे हाथ में जो आया, मैंने उसे पकड़ लिया. मेरा फोन भी डूब गया. लेकिन कुछ देर बाद मुझे मेरा फोन मिल गया. मैं अपनी मां को पुकारती रही. लेकिन वह वहां नहीं थीं. मैंने जब तबाही का मंजर देखा तो मुझे पता चला कि मेरी माँ को वहां से बाहर निकाला गया था.”

मां ने हर काम में आजादी दी

जैसे-जैसे हम उत्तर दिशा में आगे बढ़े, तबाही का मंजर भीषण होता चला गया. नदी के किनारे तबाही सबसे ज़्यादा नज़र आई. सड़कें टूटी हुई थीं. कहीं-कहीं सड़कें थी ही नहीं. कई जगहों पर पुल बह गए हैं जिससे नदी के उस पार मौजूद गांवों का दुनिया से संपर्क टूट गया है। बचाव अभियान में लगे लोग पहाड़ों पर चढ़कर उन इलाक़ों तक सामान और ज़रूरी सामान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं जिनका संपर्क दुनिया से कट गया है. हर कुछ मिनट पर सिर के ऊपर से हेलीकॉप्टर गुज़रता नज़र आता है क्योंकि बचाव अभियान जारी है।

कैसे आई इतनी भयानक बाढ़

सिक्किम सरकार के मुताबिक़, इस आपदा से साठ हज़ार से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं. चालीस से ज़्यादा लोगों ने अपनी जिंदगियां खो दी हैं. लेकिन मरने वाले लोगों की संख्या आने वाले दिनों में बढ़ सकती है क्योंकि सौ से ज़्यादा लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं और 50 से ज़्यादा शवों की शिनाख़्त होना शेष है। इस हादसे की वजहों पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह एक प्राकृतिक आपदा थी या यह एक अनियोजित विकास का नतीज़ा था। अब तक उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ उत्तरी सिक्किम के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित लोनक ग्लेशियर झील में अचानक झील फटने से पानी की एक बड़ी मात्रा तीस्ता नदी में आई. इससे निचले स्थानों में तेज बहाव के साथ अचानक बाढ़ आई। ये स्थिति साल 2010 में आई केदारनाथ बाढ़ की याद दिलाती है. शोधार्थियों का मानना है कि बादल फटने या झील फटने जैसी घटनाएं वैश्विक पर्यावरण में होते बदलावों और बढ़ते तापमान से जुड़ी हुई हैं।

सिक्किम के चुंगथांग में तीस्ता नदी पर बना बांध भी इस बाढ़ की चपेट में आया है. कुछ ख़बरों में आया है कि तेज बहाव की वजह से इस बांध को नुकसान पहुंचा जिसके बाद बाढ़ की प्रचंडता बढ़ गयी। आदिवासियों के एक स्थानीय संगठन ने ये बांध बनाए जाने के ख़िलाफ़ सालों तक विरोध प्रदर्शन किया था. उनका मानना था कि इस बांध की वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले आदिवासी नेता ग्योत्सो लेपचा कहते हैं कि ‘हम आदिवासी लोग एक लंबे समय से इसका विरोध कर रहे हैं. तब भी हमें कहा गया था कि हम विशेषज्ञ नहीं हैं. लेकिन हमने बहुत पहले ही ये सब देख लिया था।

हालांकि, सिक्किम सरकार का इस पर अलग रुख है.

सिक्किम के प्रमुख सचिव विजय भूषण पाठक ने बीबीसी को बताया, बारिश की मात्रा को देखें तो सभी बांध और बंद में सीमा से ज़्यादा पानी था. इससे पानी की एक बड़ी मात्रा निकली. अब जब तट टूटते हैं तो कुछ दूसरी चीज़ें भी होती हैं. लेकिन बांध टूटा या नहीं, इसकी जांच की जाएगी। गंगटोक लौटते हुए हमारी मुलाक़ात एक वृद्ध महिला से हुई जो मिट्टी में कुछ खोदते हुए नज़र आईं. उन्हें कुछ ख़ास चीज़ नज़र आई थी. यह एक फोटो एलबम था. एक छोटी लकड़ी लेकर उन्होंने एक-एक तस्वीर पर जमी मिट्टी हटाई।

यह एक मजदूरों के परिवार की तस्वीर थी जो बिहार से यहां सिंगथाम गांव के पास स्थित बांध में काम करने के लिए आए थे. उनका अस्थाई घर बह गया था. इस महिला को एक प्लास्टिक बैग भी मिला जिसमें लाल रंग की रसीदें थीं। मैंने उनसे पूछा कि ये क्या है. जवाब मिला कि वे उन मजदूरों की ओर से की गई दिहाड़ियों की रसीदें थीं. उन्हें उम्मीद है कि इन रसीदों के ज़रिए उन्हें कॉन्ट्रेक्टर से इन मजदूरों की मजदूरी मिल जाएगी।   (एएमएपी)