काश, भारत ने वह गलती न की होती।

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
जरा सोचिए कि अगर भारत से एक गलती न हुई होती तो आज पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश नहीं बनता। पाकिस्तान ने कहुटा में अपना पहला परमाणु संयंत्र बनाना शुरू किया। उस समय सेनाध्यक्ष थे जियाउल हक, जिन्होंने मार्शल लॉ लगाया और सरकार के मुखिया बन गए थे। उनके और 1977 में हमारे देश के प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई दोनों के अच्छे संबंध थे।
भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों में मोरारजी देसाई ऐसे एकमात्र नेता थे जिनको पाकिस्तान ने अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘निशाने पाकिस्तान’ दिया। क्यों दिया? अब ये केवल अंदाजे की बात है।बी रमन… का नाम आपने सुना होगा। इनका जिक्र आगे आएगा। वैसे ‘रॉ’ को तो आप जानते ही होंगे। भारत की रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW)  है जो यह भारत के बाहरी खुफिया मामलों को संभालने और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है। हमारे विदेशों में ख़ुफ़िया काम देखती है। सितंबर 1968 में बनी रॉ ने अगले चार पांच साल में पाकिस्तान में अपने बहुत सारे इनफॉर्मर्स का नेटवर्क तैयार कर लिया था। इस एजेंसी के मुखिया बने थे आर एन काओ (रामनाथ काओ) जो कश्मीरी थे और आईबी के डिप्टी डायरेक्टर थे। दरअसल रॉ बनने से पहले देश के अंदर और देश के बाहर दोनों जगह ख़ुफ़िया सूचनाएं जुटाने का काम आईबी यानी इंटेलिजेंस ब्यूरो करती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनको आईबी से उठाकर नई संस्था ‘रॉ’ का चीफ बनाया। रॉ विदेशी मामलों में सूचना इकट्ठा करने के लिए बनी थी।The Kaoboys of R&AW by B. Raman - Z-Library

रॉ के एजेंट्स ने पता कर लिया कि न्यूक्लियर पावर को लेकर पाकिस्तान की क्या योजना है? पाकिस्तान के नूक्लियर  प्रोजेक्ट में जुटे वैज्ञानिकों में से एक साइंटिस्ट को इस बात के लिए तैयार कर लिया गया कि वो रॉ के एजेंट को पूरा ब्लूप्रिंट और नक्शा दे दे। इसके बदले में उसने दस हजार डॉलर मांगे। अगर देश की सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो दस हजार डॉलर कोई बड़ी कीमत नहीं है। लेकिन उस समय 10,000 डॉलर बहुत होते थे। इसके लिए प्रधानमंत्री की मंजूरी जरूरी थी। मामला गया उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के पास। मोरारजी देसाई ने पूछा कि- और बताओ क्या-क्या कर रहे हो? काओ ने बता दिया। मोरारजी ने कहा कि ‘इस प्रोजेक्ट को अभी बंद कर दो। हमको किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।’

आर एन काओ इतना नाराज हुए कि उन्होंने कहा कि जब हमारे देश के प्रधानमंत्री को ही हमारी जासूसी संस्था पर भरोसा नहीं है तो इसमें रहने का क्या मतलब? उन्होंने इस्तीफा दे दिया। मोरारजी ने इतना ही नहीं किया। उन्होंने रॉ का 40 फीसदी से ज्यादा बजट कम कर दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका यह मानना था, बल्कि विश्वास था कि रॉ के जरिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विपक्षी नेताओं की जासूसी कराती थीं। हालांकि रॉ विदेशी मामलों की खुफिया एजेंसी थी। और, उनका यह भी मानना था कि रॉ के आर एन काओ के जरिए इंदिरा गांधी का पैसा विदेशों में जमा कराया जाता था। अब इन गलतफहमियों का तो कोई इलाज हो नहीं सकता है। तो उनको आर एन काओ और रा से बड़ी चिढ़ थी।

यहां तक भी बात समझ में आती है। लेकिन अपने दोस्त जियाउल हक से टेलीफोन पर बातचीत में मोरारजी देसाई ने एक दिन कह दिया ‘हमको मालूम है कि आप कहटा में क्या कर रहे हैं।’ यह  जियाउल हक के लिए जैसे बम फूटने जैसी खबर थी। मोरारजी देसाई इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने कहा कि ‘आप ही के लोगों से हमारे लोगों को यह खबर मिली है और हमारे पास पुख्ता और पक्की जानकारी है।’ उसके बाद पाकिस्तान सजग हो गया।

उस समय इजराइल भी पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ था। इजराइल तैयार था कि जॉइंट ऑपरेशन करते हैं। भारत तैयार नहीं हुआ। तब इजराइल ने कहा कि हम अकेले भी यह काम कर सकते हैं। हमारे फाइटर जेट जाएंगे और इस न्यूक्लियर फैसिलिटी को उड़ा देंगे। आपसे यानी भारत से केवल एक मदद चाहिए कि हमारे फाइटर जेट्स को भारत में रिफ्यूलिंग की सुविधा मिले। मोरारजी ने इसके लिए भी मना कर दिया।

आप कल्पना कीजिए कि अगर यह हो गया होता तो आज पाकिस्तान न्यूक्लियर स्टेट नहीं होता। परमाणु संपन्न देश नहीं होता। वह जो बार-बार धमकी देता है कि हम हमारे ऊपर हमला किया तो हम परमाणु हथियार का इस्तेमाल करेंगे। वो धमकी देने की नौबत ही नहीं आती कभी।

इस समय पाकिस्तान की आतंकवादी कार्रवाइयों के विरोध में भारत द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन सिन्दूर से सबसे ज्यादा मुश्किल में फंसे हैं अमेरिका और चीन। थोड़ा सा पीछे जाएं तो पहले अमेरिका और बाद में चीन को भी लगता था पाकिस्तान परमाणु हथियार संपन्न होगा तो भारत पर अंकुश रखने में मदद मिलेगी। हर बार जब भारत पाकिस्तान के बीच में कुछ होगा तो भारत को दबाने में मदद मिलेगी। आप दोनों का स्टैंड देखिए। चीन को एक मिनट के लिए छोड़ देते हैं। वह हमारा दुश्मन है। 1962 में उससे युद्ध लड़ चुके हैं। हम हार चुके हैं। हमारे बड़े भूभाग पर चीन ने कब्जा कर लिया है जिसे वह छोड़ने को तैयार नहीं है। वह हमारी और भी जमीन पर कब्जा करना चाहता है। उसकी नीति ही विस्तारवादी है। )

पर, अमेरिका जो हमारा दोस्त बनता है लेकिन कभी दोस्त नहीं रहा- उसकी पूरी नीति को समझिए तो उसका कहना है कि ‘भारत पर आतंकवादी हमला हो तो भारत को विरोध करने का अधिकार है। उसके अलावा उसे चुप बैठ जाना चाहिए। भारत को यह बर्दाश्त करना चाहिए।’ और किसलिए बर्दाश्त करना चाहिए? इसलिए… कि ‘अगर भारत बर्दाश्त नहीं करेगा, जवाबी कार्रवाई करेगा, तो परमाणु युद्ध हो सकता है’।

पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधि आज से तो चला नहीं रहा है। दोनों देश जब परमाणु संपन्न नहीं थे तब भी ये गतिविधियां चल रही थीं। यह सिर्फ जम्मू कश्मीर की बात नहीं है, जहाँ आतंकवाद 1989 से शुरू हुआ। उससे पहले पंजाब। पंजाब में भी जो खालिस्तानी आंदोलन, आतंकवाद चला- उसके पीछे भी पाकिस्तान ही था। तब भी अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कुछ करने को तैयार नहीं था।

PV Narasimha Rao | A look-back at his political and economic legacy

प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय की बात है। उस बात से पता चलता है कि नरसिम्हा राव अमेरिका को कितनी अच्छी तरह से जानते-समझते थे। बी रमन, जो आर एन काओ के सबसे विश्वस्त थे और रॉ में काउंटर टेररिज्म के मुखिया थे, उन्होंने एक किताब लिखी है- ‘द काओ बॉयज ऑफ रॉ: डाउन द मेमोरी लेन’। मैंने ऊपर जो बातें बताई उनका इस पुस्तक में उन्होंने विस्तार से जिक्र किया है। लेकिन एक और घटना का भी जिक्र किया है जब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे। बी रमन ने कहा कि नरसिम्हाराव ने एक दिन आर एन काओ को बुलाया और कहा कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट (अमेरिकी विदेश विभाग) की एक महिला अधिकारी ने हमारे एंबेसी के जरिए यह संदेश भिजवाया है… और राव साहब ने वह कागज आर एन काओ की तरफ बढ़ा दिया। काओ ने पढ़ा और फिर उन्होंने बी रमन की तरफ बढ़ा दिया। उसमें कहा गया था कि भारत पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियां कर रहा है। उस देश को डीस्टेबलाइज करने की कोशिश कर रहा है। नरसिम्हा राव ने पूछा- क्या हम ऐसा कुछ कर रहे हैं? आर एन काओ ने कहा कि हम ऐसा कोई काम नहीं कर रहे हैं जिसको आतंकवादी गतिविधि कहा जाए। हम वहां के लोगों से संपर्क रखते हैं- वहां के प्रभावशाली लोगों के संपर्क में रहते हैं- उसके जरिए सूचनाएं जुटाते हैं। उनके अलावा ऐसे लोग जो भारत के समर्थक हैं उनके भी संपर्क में रहते हैं। पीवी नरसिम्हा राव ने कहा कि हमें एक नोट बना के दो जिससे हम इसका जवाब दे सकें। आर एन काओ ने वह नोट बनाकर दे दिया। बी रमन लिखते हैं कि ‘उसके बाद मालूम नहीं कि क्या जवाब भेजा गया। भेजा गया कि नहीं भेजा गया।’ नरसिम्हा राव ने कहा कि ‘आप अपना ऑपरेशन जारी रखिए। उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि अमेरिका का स्टेट डिपार्टमेंट पूरी तरह से एंटी इंडिया है। भारत को बिल्कुल पसंद नहीं करता है। वह भारत के खिलाफ है। इसलिए हमें दबने की जरूरत नहीं है’।

Pakistan missile test confirms its MIRV ambitions

इसीलिए, आपको याद होगा जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तब भी 1995 में परमाणु परीक्षण की तैयारी हुई थी। सारी तैयारी हो गई थी। आखिरी मिनट पर यह खबर लीक हो गई। अमेरिका को पता चल गई। अमेरिका ने दबाव डालकर इसे रुकवा दिया। जिस काम को पूरा किया अटल जी ने, जब 1998 में उनकी सरकार बनी। इस बार उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि यह खबर किसी भी तरह से लीक ना होने पाए। इसको गोपनीय रखने का स्तर क्या था? इसे आप इससे समझिए कि पूरी कैबिनेट में जॉर्ज फर्नांडिस के अलावा किसी को नहीं मालूम था कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है। परमाणु परीक्षण का दिन, तारीख और समय तय हो गया। परीक्षण होने के बाद प्रधानमंत्री ने मीडिया के सामने आकर घोषणा की कि भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया है। उससे यानी परमाणु होने से कुछ देर पहले दो नेताओं को पीएम हाउस में बुलाया गया। उनमें एक थे उस समय के गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी थे और दूसरे नेता थे विदेश मंत्री जसवंत सिंह। दोनों को बुलाकर एक कमरे में बिठाया गया और उस कमरे से फोन हटा दिया गया। हालांकि 1995-96 में मोबाइल फोन आ गया था लेकिन प्रचलन में नहीं आया था। खासतौर से मंत्री लोग रैक्स का इस्तेमाल करते थे जो एक तरह की हॉट लाइन होती है। नंबर मिलानेपर सीधे वही उठाएंगे जिसको किया है। फोन हटा लिया गया कि कहीं बाहर से उनका कोई संपर्क ना हो सके। कुछ देर वो दोनों बैठे रहे।

थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई आए और कहा कि हम परमाणु परीक्षण कर रहे हैं। दोनों नेता खड़े हो गए कि “अरे पहले बात तो करनी चाहिए थी। पूरी दुनिया प्रतिबन्ध लगा देगी हमारे ऊपर। इकॉनमी का क्या होगा? हमारे पास पूर्ण बहुमत नहीं है। हमारे साथियों-सहयोगियों  का क्या रिएक्शन होगा? इस सब पर पहले चर्चा तो करनी चाहिए थी।” अटल जी ने कहा कि ‘अब तो हमने कर दिया है’। तो, इतनी गोपनीयता रखी गई थी। इसीलिए अमेरिका को इस बार पता नहीं चला।

अमेरिका को आज तक इस बात का अफसोस है कि हमारी इतनी पैनी नजर के बावजूद भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया। हमारी खुफिया एजेंसी के सेटेलाइट हर समय पोखरण पर घूमते रहते थे। अब तो इस बारे में काफी कुछ छप चुका है और  फिल्म भी बन चुकी है कि सेटेलाइट का एक पीरियड होता था जब उसका फोकस पोखरण पर नहीं होता था। उस टाइम विंडो का इस्तेमाल भारत ने अपना पूरा प्रोजेक्ट आगे बढ़ाने के लिए किया। उतनी ही देर काम होता था। फिर, यहां तक कि पोखरण में जो गाड़ियां थीं वे भी उसी जगह और दिशा में खड़ी की जाती थी जिससे यह शक ना हो कि सेटेलाइट जब पहले इधर आया था तब स्थिति ऐसी थी, अब ये बदल गई। मतलब यहां कुछ हो रहा है। ये सब साइंटिस्ट- जिनके इंचार्ज डॉ. कलाम थे- आर्मी की यूनिफार्म में थे जिससे किसी को कानों कान हवा नहीं लगने पाई, खबर नहीं लगने पाई। केवल पोखरण में राजस्थान के एक अखबार में छोटी सी खबर छपी जिससे सीआईए के कुछ एजेंट्स के कान खड़े हुए कि बड़ी मात्रा में आर्मी ट्रक में प्याज लद कर आ रहे हैं। जैसा कि आपको मालूम है प्याज परमाणु विकिरण को रेडिएशन को कम करती है। लेकिन अमेरिका इसको जोड़ नहीं पाया। इसलिए हम परमाणु संपन्न देश बन पाए।

तो मोरारजी देसाई के एक एक्शन से पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश बन गया। वहीं अटल जी की सावधानी और गोपनीयता के इस स्तर से हम परमाणु संपन्न देश बन पाए। अगर खबर लीक हो गई होती तो वही हाल होता जो नरसिम्हा राव के समय में हुआ था।

How Morarji Desai Became Prime Minister in 1977 - Open The Magazine

किराना हिल्स में जो हुआ है वो हमारा अगला कदम है। इस समय देश का नेतृत्व नरेंद्र मोदी के हाथ में है जो किसी दबाव में नहीं आते। ये जो कांग्रेसी हल्ला मचा रहे हैं कि ट्रंप ने युद्धविराम की घोषणा कर दी… अमेरिका ने क्यों घोषणा कर दी? दरअसल इनको कुछ पता नहीं है। ये केवल अपना फर्जी एजेंडा चलाना चाहते हैं। वो केवल प्रधानमंत्री को और भारत को नीचा दिखाना चाहते हैं कि भारत का प्रधानमंत्री दबाव में आ गया। उनको पता तो जरूर होगा, लेकिन इस बात का एहसास नहीं है, कि भारत ने कितनी बड़ी विजय हासिल की है। दुनिया के बड़े से बड़े मिलिट्री स्ट्रेटजिस्ट, एक्सपर्ट कह रहे हैं कि यह भारत की क्लियर कट विक्ट्री है। मॉडर्न वारफेयर में दुनिया में कोई देश ऐसी विक्ट्री हासिल नहीं कर पाया है। एयर डिफेंस और एयर स्ट्राइक में जो भारत ने किया वो बेमिसाल है।

सबसे बड़ी बात कि प्रधानमंत्री का जो 11 साल का जो परिश्रम है मेक इन इंडिया का- डिफेंस के मामले में और डिफेंस इक्विपमेंट के मामले में आत्मनिर्भर होने की जो योजना है- उसके कारण हमारे देश के उपकरण सबसे ज्यादा काम आए। काम ही नहीं आए सबसे प्रभावी साबित हुए। हमने पूरी दुनिया को बता दिया कि चीन के इक्विपमेंट, जिनका वह इतना डंका बजाता है, किसी काम के नहीं हैं। वो न तो रक्षा कर सकते हैं- न आक्रमण कर। पाकिस्तान को कुछ समझ में नहीं आ रहा कि वो क्या करे? चीन उसकी इसमें कोई मदद नहीं कर पा रहा है। अमेरिका चाहकर भी भारत को रोक नहीं पा रहा है। कुल मिलाकर ये स्थिति है।

डोनाल्ड ट्रंप वाहवाही में, अपने बड़बोलेपन में जरूर क्रेडिट लेने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस बारे में उनसे कोई बातचीत नहीं हुई। सरासर गलत बयानी कर रहे हैं कि ट्रेड के मुद्दे पर बात हुई थी। हमारे विदेश विभाग के प्रवक्ता ने स्पष्ट रूप से कहा  दिया कि ‘ट्रेड के बारे में कोई बात नहीं हुई थी। पाकिस्तान भारत के पास आया था कि वह अब युद्ध विराम चाहता है। वह चाहता है कि भारत का जवाबी हमला रुक जाए।’ हमारा शुरू से स्टैंड था तुम रुकोगे हम रुकेंगे। तुम आक्रमण करोगे हम जवाब देंगे। उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया। इसलिए भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर बंद नहीं हुआ है।

पाकिस्तान के पास उसका सबसे बड़ा हथियार- परमाणु हथियार से भी बड़ा हथियार था- न्यूक्लियर ब्लैकमेल का, जिससे वो भारत ही नहीं पूरी दुनिया को डराता था। उसका वो हथियार नरेंद्र मोदी ने बेकार कर दिया है। यह असर है चार दिन के युद्ध का। और चार दिन भी तो ज्यादा है, दरअसल यह सारी कारवाई 10 मई की सुबह हुई और 23 मिनट में पाकिस्तान के एयर डिफेंस को पटरा कर दिया। यह ताकत है हमारी एयरफोर्स की, हमारी इंटेलिजेंस की, हमारे फौजियों की। सबसे बड़ी ताकत है पॉलिटिकल विल की, जिसके कारण यह संभव हो पाया।

विस्तार से जानने के लिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक करें:


(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)